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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
चण्डिका हृदय स्तोत्र
श्रीचण्डिका हृदय स्तोत्र जो की अति
गुप्त विद्या है, का तीनों सन्ध्याओं
में पाठ करने से पाठ करने वाले व्यक्ति की सभी कामनाएँ पूर्ण होती है तथा मुक्ति व
मोक्ष की प्राप्ति होती है । इस स्तोत्र का २१बार नित्य पाठ करने से राजा से, श्मशान में, वाद-विवाद में सदा विजय होता है, अग्नि, शत्रु, भूत, चोर, और किसी भी संकट से मुक्ति मिलती है तथा सभी कार्य सिद्ध होता है।
श्रीचण्डिका हृदय स्तोत्र
Chandika hriday stotra
श्रीचण्डिका हृदय स्तोत्रम्
विनियोगः-
अस्य श्री चण्डिका- हृदयस्तोत्र -
महामन्त्रस्य, मार्कण्डेय ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्री चण्डिका देवता, ह्रां बीजं, ह्रीं शक्तिः ह्रूं कीलकं, श्री चण्डिकाप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
न्यासः-
ऋष्यादि-न्यासः-
श्रीमार्कण्डेय ऋषये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
श्री चण्डिका देवतायै नमः हृदि ।
ह्रां बीजाय नमः लिंगे ।
ह्रीं शक्तये नमः नाभौ ।
ह्रूं कीलकाय नमः पाद्यौ ।
श्रीचण्डिका प्रीत्यर्थे जपे
विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास
कर-न्यास
ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ह्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः ।
अंग-न्यास
ह्रां हृदयाय नमः।
ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ह्रूं शिखायै वषट् ।
ह्रैं कवचाय हुं ।
ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ह्रः अस्त्राय फट् ।
ध्यानम्
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे
सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि
नमोऽस्तु ते ।।
श्रीचण्डिका हृदयम्
।। अथ हृदयम् मूल-पाठ ।।
ब्रह्मोवाच-
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विस्तरेण यथा
तथम् ।
चण्डिका हृदयं गुह्यं
श्रुणुष्वेकाग्रमानसः ॥
ओं ऐं ह्रीं क्लीं, ह्रां ह्रीं, ह्रूं, जय जय चामुण्डे, चण्डिके, त्रिदश-मणि- मकुट-कोटीर संघट्टित-चरणारविन्दे, गायत्रि, सावित्रि, सरस्वति, महाहिकृताभरणे, भैरवरूपधारिणि, प्रकटित-दंष्ट्रोग्रवदने, घोरे, घोरानने, ज्वलज्वल-ज्वाला-सहस्रपरिवृते, महाट्टहास-बधिरीकृत-दिगन्तरे, सर्वायुधपरिपूर्णे, कपालहस्ते, गजाजिनोत्तरीये, भूतवेतालबृन्दपरिवृते, प्रकम्पितधराधरे, मधुकैटभ-महिषासुर धूम्रलोचन- चण्ड-मुण्ड-रक्तबीज- शुंभ-निशुंभादि-दैत्य-निष्कण्टके, कालरात्रि, महामाये, शिवे, नित्ये, इन्द्राग्नि-यम-निर्ऋति वरुण-वायु- सोमेशानप्रधान- शक्तिभूते, ब्रह्माविष्णु शिवस्तुते, त्रिभुवनाधाराधारे, वामे, ज्येष्ठे, रौद्रंबिके, ब्राह्मी- माहेश्वरी - कौमारी - वैष्णवी-शंखिनी वाराहीन्द्राणी-चामुण्डा- शिवदूती - महाकाली - महालक्ष्मी महासरस्वतीति- स्थिते, नादमध्यस्थिते, महोग्र-विषोरग-फणामणि- घटित - मकुट- कटकादिरत्न महाज्वालामये, पाद-बाहु - दण्डोत्तमांगे, महामहिषोपरि- गन्धर्वविद्याधराराधिते, नवरत्ननिधिकोशे, तत्त्वस्वरूपे, वाक्-पाणि- पाद - पायूपस्थात्मिके, शब्द-स्पर्श-रूप-रस- गन्धादिस्वरूपे, त्वक्चक्षुः श्रोत्र - जिह्वा - घ्राण - महाबुद्धिस्थिते, ओं ऐंकार- ह्रींकार- क्लींकार-हस्ते, आं क्रों आग्नेय-नयन-पात्रे प्रवेशय प्रवेशय, द्रां शोषय शोषय, द्रीं सुकुमारय सुकुमारय, श्रीं सर्वं प्रवेशय प्रवेशय, त्रैलोक्य- वरवर्णिनि समस्तचित्तं वशीकुरु वशीकुरु, मम शत्रून् शीघ्रं मारय मारय, जाग्रत् - स्वप्न- सुषुप्त्यवस्थासु अस्मान् राज - चोराग्नि-जल - वात विषभूत - शत्रुमृत्यु - ज्वरादि-स्फोटकादि नानारोगेभ्यो नानाभिचारेभ्यो नानापवादेभ्यः परकर्म -मन्त्र- तन्त्र यन्त्रौषध- शल्य -शून्य- क्षुद्रेभ्यः सम्यङ् मां रक्ष रक्ष।ओं ऐं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्र:, स्फ्रां स्फ्रीं स्फ्रूं स्फ्रैं स्फ्रौं स्फ्र: मम सर्वकार्याणि साधय साधय, हुं फट् स्वाहा ॥
राजद्वारे श्मशाने वा विवादे
शत्रुसङ्कटे ।
भूताग्नि- चोर - मध्यस्थे मयि
कार्याणि साधय स्वाहा ।।
श्रीचण्डिका हृदय स्तोत्र फलश्रुति:
चण्डिकाहृदयं गुह्यं त्रिसन्ध्यं यः
पठेन्नरः ।
सर्वकामप्रदं पुंसां भुक्ति-मुक्तिं
प्रयच्छति ।।
(इति एकविंशतिवारं
जपेत् ) ।।
।। इति हृदयस्तोत्रम् ।
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