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बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १५
बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १५ में कारक और मारक का विचार का वर्णन हुआ है। कारक ग्रह- कुंडली में जो ग्रह किसी भी व्यक्ति को सुख, स्मर्द्धि, यश प्रसिद्धि, मान सम्मान दे, वह कारक ग्रह होते हैं। मारक ग्रह- जो ग्रह आपको शरीरिक तथा मानसिक कष्ट देते है, मारक ग्रह कहलाता है।
बृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय १५
Vrihat Parashar hora shastra chapter 15
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पन्द्रहवाँ अध्याय भाषा-टीकासहितं
बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १५- कारकमारकविचाराध्यायः
अथ कारकमारकविचाराध्यायः
पञ्चमं नवमं चैव विशेषधनमुच्यते ।
चतुर्थं दशमं चैव विशेषसुखमुच्यते ।
। १ । ।
पाँचवाँ और नवम स्थान विशेष धनस्थान
होता है और चौथा तथा दशम विशेष सुखस्थान होता है । । १ । ।
चन्द्रभानू विना सर्वे मारके
मारकाधिपाः ।
षष्ठाष्टमव्ययेशास्तु राहुः
केतुस्तथैव च ॥ २ ॥
चन्द्रमा - सूर्य को छोड़कर शेष सभी
ग्रह मारकेश होते हैं। छठा, आठवाँ, बारहवाँ स्थान के स्वामी और राहु तथा केतु ये सभी मारकेश होते हैं । । २ ।
केन्द्राधिपतयः सौम्याः शुभं नैव
दिशन्ति च ।
क्रूरा: नैवाशुभं कुर्युः कोणपौ
शुभदायकौ ।। ३ ।।
यदि शुभग्रह केन्द्र के स्वामी हों
तो शुभ फल नहीं देते हैं । पापग्रह केन्द्राधिपति हों तो अशुभ फल नहीं देते हैं।
यदि कोण (९/५) के स्वामी हों तो शुभफल देते हैं । । ३ । ।
धनेशो हि व्ययेशश्च संयोगात्फलदौ
मताः ।
लाभारित्र्यधिपा पापा रन्ध्रेशो न
शुभप्रदः । ॥४॥
द्वितीयेश और व्ययेश संयोगवश
(साहचर्य) फल देते हैं । ११/६/३भावों के स्वामी पाप होते हैं। अष्टमेश शुभद नहीं
होता है । । ४ । ।
जायाकुटुम्बकाधीशौ मारकौ
परिकीर्त्तितौ ।
क्रूराश्चैते ग्रहा ज्ञेया
क्षीणचन्द्रो रविस्तथा ।। ५ ।।
सप्तम और दूसरे भाव के स्वामी
मारकेश होते हैं। क्षीणचन्द्र और रवि क्रूर ग्रह हैं । । ५ । ।
शनिर्भीमश्च विज्ञेया प्रबला
ह्युत्तरोत्तराः ।
लग्नाम्बुद्यूनकर्माणि
प्रबलान्युत्तराणि हि ॥ ६ ॥
शनि, भौम ये क्रूर ग्रह कहे जाते हैं और उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। लग्न,
चतुर्थ, सप्तम, दशम ये
उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं।।६।।
सुतधर्मो तथा ख्यातौ प्रबलौं
चोत्तरोत्तरौ ।
लाभारित्रितयस्थानं त्वधोधः प्रबलं
भवेत् ।।७।।
पंचम और नवम उत्तरोत्तर प्रबल होते
हैं । ११/६/३ स्थान क्रमशः प्रबल होते हैं ।।७।।
पुनर्मारकयोर्मध्ये ह्युत्तरं
प्रबलं मतम् ।
भाग्यस्थानाद्व्ययं विप्र
तस्माच्चैवाशुभं वदेत् ॥ ८ ॥
मारकों के मध्य में द्वितीयेश प्रबल
मारक होता है। भाग्यस्थान से व्ययस्थान (अष्टम) से भी अशुभ फल होता है ।।८।।
एतत्स्थानानुसारेण ग्रहाणां
मानमालिखेत् ।
चन्द्रज्ञगुरुशुक्राणां केन्द्रदोषो
यथोत्तरम् ।।९।।
इस प्रकार ग्रहों की शुभ-अशुभ फलों
की तालिका लिखकर फल का विचार करें । चन्द्रमा, बुध,
गुरु और शुक्र का केन्द्रदोष यथोत्तर बलवान् होता है ।।९।।
तथैव ग्रहाः क्रूरा
प्रबलाश्चैवोत्तरोत्तरम् ।
भाग्येशः सर्वदा सौम्यो न क्रूरः
फलदायकः । । १० । ।
उसी प्रकार उसमें स्थित ग्रह भी
यथोत्तर बली होते हैं । भाग्येश सर्वदा शुभफल देने वाला होता है,
किन्तु क्रूरग्रह हो तो शुभ फलदायक नहीं होता है । । १० ।।
पुत्राधिपोऽपि शुभदः क्रूरोऽपि
सुखदः स्मृतः ।
त्रिलाभरिपुमृत्यूनां पतयो दुःखदायकाः
। ११ । ।
पंचमेश शुभग्रह हो या पापग्रह हो
शुभफल ही देता है । ३/११/६/ ८ के अधिपति दुःखदायी होते हैं ।। ११ ।।
यद्यद्भावगतो राहुः केतुश्च जनने
नृणाम् ।
यद्यद्भावेशसंयुक्तस्तत्फलं
प्रदिशेदलम् । ।१२ । ।
राहू-केतु जिन-जिन भावों में हों,
जिन-जिन भावेशों से युत हों उनके अनुसार फल को देते हैं । ।१२ ।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ मेषलग्ने शुभाशुभदायकौ
मन्दसौम्यसिताः पापाः शुभौ
गुरुदिवाकरौ ।
न शुभं योगमात्रेण
प्रभवेच्छनिजीवयोः । । १३ ।।
मेष लग्न में उत्पन्न बालक को शनि,
बुध, शुक्र पापफल देने वाले और गुरु- सूर्य
शुभफल देनेवाले होते हैं। शनि गुरु योग मात्र से शुभदायक नहीं होते किन्तु सहायक
होते हैं । । १३ ।।
परतन्त्रेण जीवस्य पापकर्माणि
निश्चितम् ।
कविः साक्षान्निहन्ता
स्यान्मारकत्वेन लक्षितः । । १४ । ।
गुरु के पारतंत्र्य होने से (व्ययेश
होने के कारण - पापसंबंध से) पॉपफल देना भी निश्चित है। शुक्र साक्षात् मारकेश
होता है । । १४ ।।
मन्दादयो निहन्तारो भवेयुः पापिनो
ग्रहाः ।
शुभाशुभफलान्येवं ज्ञातव्यानि
क्रियोद्भवैः । । १५ ।।
शनि आदि पापग्रह भी मारकेश के सहयोग
से मारक होते हैं। इस प्रकार मेष लग्न में उत्पन्न जातक के शुभ-अशुभ का निर्णय
करना चाहिए । । १५ ।।
विशेष-
यहाँ मेषलग्न के स्वामी भौम अष्टमेश होने के कारण अशुभ है। किन्तु लग्नेश होने के
कारण शुभ फल देने वाले के सहायक हैं। शनि केन्द्राधिपति होने के कारण शुभद है,
किन्तु लाभाधिपति होने के कारण पापी हो गया। बुध ३/६ भाव का अधिपति
होने के कारण अशुभ, शुक्र मारकस्थान (२/७) का स्वामी यानि
केन्द्रेश होने के कारण अशुभ, सूर्य (५) का स्वामी होने से
शुभ, गुरु व्ययेश और भाग्येश होने के कारण अपने सहयोगी के
अनुसार पापफलद भी हो सकता है। इसी प्रकार प्रत्येक लग्नों में समझना चाहिए ।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- वृषलग्नम्
जीवशुक्रेन्दवः पापा: शुभौ
शनिदिवाकरौ ।
राजयोगकरः साक्षादेक एव रवेः सुतः ।
।१६।।
वृष लग्न वाले को गुरु,
शुक्र, चन्द्रमा पापफल देने वाले, शनि-सूर्य शुभ फलदायक और राजयोगकारक होते हैं ।। १६ ।।
जीवादयो ग्रहाः पापाः सन्ति
मारकलक्षणाः ।
बुधः स्वल्पफलान्येवं ज्ञेयानि
वृषजन्मनः । । १७ ।।
गुरु, शुक्र, चन्द्रमा ये पापफलदायक मारकेश के फल को देने
वाले होते हैं और बुध अल्प शुभफल को देने वाला होता है। ऐसा लक्षण वृषलग्न वालों
का होता है ।। १७ ।।
बृहत् पाराशर होरा शास्त्र
अध्याय १५- मिथुन लग्नम्
भौमजीवारुणः पापा एक एव कविः शुभः ।
शनैश्चरेण जीवस्य योगो मेषभवो यथा ।
। १८ । ।
मिथुन लग्नवाले को भौम,
गुरु, सूर्य पापफल देने वाले, केवल एक मात्र शुक्र शुभफल देने वाला होता है। शनि गुरु का योग मेषलग्न
वाले के समान फलदायक होता है । । १८ ।।
नायं शशी निहन्ता स्याल्लक्षणं
पापनिष्फलम् ।
ज्ञातव्यानि द्वन्द्वजस्य
फलान्येतानि सूरिभिः । । १९ । ।
चन्द्रमा मारक नहीं होता है किन्तु
साहचर्यानुसार फल देने वाला होता है। इस प्रकार मिथुन लग्न वालों के फल का विचार
करना चाहिए । । १९ । ।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- कर्कलग्नम्
भार्गवेन्दुसुतौ पापौ भौमेज्यशशिनः
शुभाः ।
एकग्रहस्तु भवेत्साक्षान्महीसुतो
योगकारकः ।। २० ।।
कर्क लग्नवाले को शुक्र-बुध पाप फल
देने वाले और भौम, गुरु, चन्द्रमा शुभ फल देने वाले होते हैं। केवल एक भौम ही राजयोगकारक होता है
।।२०।।
निहन्ता रविजोऽन्ये च
साहचर्यात्फलप्रदाः ।
कुलीरसम्भवस्यैव फलान्युक्तानि
सूरिभिः । । २१ । ।
शनि मारकेश होता है,
अन्य ग्रह साहचर्य के अनुसार फल देते हैं। ऐसा कर्क लग्न वाले का फल
होता है ।।२१।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ सिंहलग्नम्
बुधशुक्रार्कजाः पापा:
भौमेज्यार्काः शुभप्रदाः ।
प्रभवेद्योगमात्रेण न शुभं
गुरुशुक्रयोः । । २२ ।।
सिंह लग्नवाले को बुध,
शुक्र, शनि पापफल देने वाले और भौम, गुरु, सूर्य शुभ फल देने वाले होते हैं । गुरु-शुक्र
के योगमात्र से शुभफल नहीं होता है ।। २२ ।।
घ्नन्ति सौम्यादयः पापा मारकत्वेन
लक्षिताः ।
एवं फलानि वेद्यानि सिंहे यस्य
जनुर्भवेत् ।। २३ ।।
बुध पापग्रहों के साहचर्य से मारकेश
होता है। ऐसा सिंहलग्न वालों का फल होता है ।। २३ ।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ कन्यालग्नम्
कुजजीवेन्दवः पापा एक एव भृगुः शुभः
।
भार्गवेन्दुसुतावेव भवेतां योगकारकौ
। । २४।।
कन्या लग्नवाले को भौम,
गुरु, चन्द्रमा पापफल देने वाले, केवल शुक्र ही शुभफलदायक है । शुक्र-बुध योगकारक होते हैं ।। २४ ।।
निहन्ता कविरन्ये तु मारकास्तु
कुजादयः ।
प्रतीक्षते फलान्युक्तान्येवं
कन्याभवे बुधैः । । २५ ।।
मारकेश शुक्र ही होता है,
अन्य भौम आदि मारकेश के साहचर्य से फल 'देते
हैं। यह कन्यालग्न का फल है ।।२५।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ तुलालग्नम्
जीवार्कमहीजाः पापाः शनैश्चरबुधो
शुभो।
भवेतां राजयोगस्य कारको
चन्द्रतत्सुतौ । । २६ ।।
तुलालग्न वाले को गुरु,
सूर्य, भौम पापफल देनेवाले, शनि-बुध शुभफलदाता, चंद्रमा-बुध राजयोगकारक होते हैं
।।२६।।
कुजो निहन्ति जीवाद्याः परे
मारकलक्षणाः ।
निहन्तारः फलान्येवं काव्यो न तु
तुलाभवः ।। २७ ।।
भौम मारकेश होता है,
गुरु आदि अन्य ग्रह, जो मारकेश के लक्षण के
हैं, वे अनिष्टकारक और शुक्र समफलदाता होता है; ऐसा तुलालग्न का फल जानना चाहिए ।। २७ ।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ वृश्चिक लग्नम्
सौम्य भौमसिताः पापाः शुभौ
गुरुनिशाकरौ ।
सूर्यचन्द्रमसावेव भवेतां योगकारकौ
। । २८ ॥
वृश्चिक लग्नवाले को बुध,
भौम, शुक्र पाप फल देने वाले, गुरु-चंद्रमा शुभ फल देने वाले और सूर्य-चंद्रमा योगकारक होते हैं ।। २८ ।
।
जीवो निहन्ता सौम्याद्या हन्तारो
मारकाह्वयाः ।
तत्तत्फलानि विज्ञान्येवं
वृश्चिकजन्मनः । । २९।।
गुरु मारकेश होता है,
बुध आदि मारक के समान ही फलदाता होते हैं। ऐसा वृश्चिक लग्न वाले का
फल होता है । । २९ ।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ धनुर्लग्नम्
एक एव कविः पापः शुभौ सौम्यदिवाकरौ
।
योगो भास्करसौम्याभ्यां निहन्ता
भास्करःसुतः । । ३० ।।
धनुलग्नवाले को शुक्र पाप फल देने
वाला,
बुध-सूर्य शुभफल देनेवाले, सूर्य-बुध का योग
राजयोगकारक होता है ।। ३० ।।
घ्नन्ति शुक्रादयः पापा मारकत्वेन
लक्षिताः ।
ज्ञातव्यानि फलान्येवं चापजस्य
मनीषिभिः । । ३१ । ।
शनि मारकेश होता है,
शुक्र आदि मारकेश के समान ही पापफल देने वाले होते हैं; ऐसा धन लग्न का फल होता है।।३१।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ मकरलग्नम्
कुजजीवेन्दवः पापा: शुभौ
भार्गवचन्द्रजौ ।
स्वयं चैव निहन्ता स्यान्मन्दो
भौमादयः परे । । ३२ । ।
मकर लग्न वाले को भौम,
गुरु, चंद्रमा पाप फल देने वाले शुक्र और
चंद्रमा शुभफल देने वाले, शनि मारकेश होता है। भौम आदि
मारकेश के लक्षण के समान होने से मारक होते हैं ।। ३२ ।।
तल्लक्षणानि हन्तारः कविरेकः
सुयोगकृत् ।
ज्ञातव्यानि फलान्येवं
विबुधैर्मृगजन्मनः । । ३३ ।।
शुक्र योगकारक होता है। इस प्रकार
का फल मकर लग्न का है ।। ३३ ।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ कुम्भलग्नम्
जीवचन्द्रकुजाः पापाएको दैत्यगुरुः
शुभः ।
राजयोगकरः शुक्रो भौमश्चैव
बृहस्पतिः । । ३४ ॥
कुंभ लग्न वाले को गुरु,
चंद्रमा, भौम पापफल देने वाले और शुक्र केवल
राजयोग कारक होता है ।। ३४ ।।
निहन्ता सन्ति भौमाद्या मारकत्वेन
लक्षिताः ।
एवमेव फलान्यूहान्येतानि घटजन्मनः ।
। ३५ ।।
भौम-गुरु मारकेश होते हैं,
अन्य ग्रह भी मारकेश से संबंध होने से उनके फलों को देते हैं । । ३५
।।
बृहत् पाराशर होरा
शास्त्र अध्याय १५- अथ मीनलग्नम्
मन्दशुक्रांशुमद् पापाः सौम्यो
भौमविधू शुभौ ।
महीसुतगुरुश्चैव भवेतां योगकारकौ ।
। ३६ ।।
मीनलग्न वाले को शनि,
शुक्र, सूर्य पाप फल देनेवाले, बुध, भौम, चंद्रमा शुभफलदायक
और भौम-गुरु राजयोगकारक होते हैं ।। ३६ ।।
भौमः मारकत्वेऽपि न हन्तामन्दज्ञौ
पापिनः ।
इत्यूहानि फलान्येवं बुधैस्तु
झषजन्मनः ।। ३७ ।।
भौम मारकेश होते हुए भी मारता नहीं
है,
किन्तु शनि-बुध मारक होते. हैं। इस प्रकार मीनलग्न का फल जानना
चाहिए ।। ३७ ।।
एतच्छास्त्रानुसारेण
मारकान्निर्दिशेद् बुधः ।
चन्द्रसूर्यं विना सर्वे मारकाः
परिकीर्त्तिताः ।। ३८ ।।
इस शास्त्र के अनुसार मारकेश का
निर्देश करना चाहिए। रवि चंद्र को छोड़कर शेष सभी मारकेश होते हैं।।३८।।
स्वदशायां स्वमुक्तौ च नराणां निधनं
न हि ।
क्वचिद्दशायामिच्छन्ति स्वभुक्तौ न
कदाचन ।। ३९ ।।
मारकेश की दशा और अन्तर्दशा में
मृत्यु नहीं होती है। किसी-किसी के मत से मारकेश की दशा में मृत्यु होती है और कभी
अंतर्दशा में नहीं होती है । । ३९ ।।
इंति पाराशरहोरायां पूर्वखण्डे
सुबोधिन्यां कारकमारकादिविचारो नामैकादशोऽध्यायः ।
आगे जारी............. बृहत्पाराशरहोराशास्त्र अध्याय 15
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