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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
लक्ष्मी सूक्त
सर्व ऐश्वर्यदात्री इस लक्ष्मी सूक्त
का पाठ सप्तशती के साथ ही अवश्य करें। इसके पाठ के बिना सप्तशती फल नहीं देता। इसे
अत्यंत ही गोपनीय रखा गया है, पाठकों के
लाभार्थ ही इसे प्रकाशित किया जा रहा है।
लक्ष्मी सूक्त
Laxmi suktam
श्री लक्ष्मीसूक्तम्
अथाञ्जलिंसमाधाय हरिः
प्रोवाचविश्वकृत् ।।
श्रीविष्णुरुवाच ।।
परापरेशांजगदादिभूतां वरांवरेण्यां
वरदांवरिष्ठाम् ।
वरेश्वरीं तां विबुधैः प्रगीतां
त्वांविश्वयोनिं शरणंप्रपद्ये ॥१॥
श्रियंसमस्तैरधिवासभूतां
महासुलक्ष्मींधरणीधरांच ।
अनादिमादिम्परमार्थरूपा
त्वांविश्वयोनिं शरणं प्रपद्ये ।।२॥
एकामनेकां विविधासुकार्यां सुकारणीं
सदसद्रूपिणीं च ।
कल्याणरूपां हि शिवप्रदांच
त्वांविश्वयोनिं शरणंप्रपद्ये ।। ३॥
सर्वाशयां सर्वजगन्निवासां
श्रीमन्महालक्ष्मीसुरादिदेवीम् ।
शक्तिस्वरूपा च शिवस्वरूपां त्वांविश्वयोनिं
शरणं प्रपद्ये ।।४॥
कामाभिधां त्वामधिवासभूतां
ह्रींरूपिणीं मन्मथबीजयुक्ताम् ।
कलाढ्यबीजां परमार्थसंज्ञां रमां
विशालां कमलाधिवासाम् ।। ५॥
वैश्वानरश्रीसहितेनदेवीं
श्रीमन्त्रराजेनविराजमानाम् ।
सर्वार्थदात्रीं परमपवित्रां
त्वांविश्वयोनिं शरणं प्रपद्ये ।। ६॥
त्रिकोणपञ्चारयुतप्रभावां
षट्कोणमिश्रद्विदशारयुक्ताम् ।
अष्टारचक्राधिनिवासभूतां
त्वांविश्वयोनिं शरणंप्रपद्ये ।।७॥
पुनर्दशारद्वितयेनयुक्तां
पञ्चारकोणाङ्कितभूगृहाञ्च ।
यन्त्राधिवासामपियन्त्ररूपां
त्वांविश्वयोनिं शरणं प्रपद्ये ।।८॥
सम्भावितां सर्वसुरैरगम्यां
सर्वस्वरूपामपिसर्वसेव्याम् ।
सर्वाक्षरन्यासवशावरिष्ठां
त्वांविश्वयोनिं शरणं प्रपद्ये ।।९॥
सृष्टिस्थितिप्रलयाख्यैश्चबीजैर्न्यासंविधायाऽत्र
जपन्ति येत्वाम् ।
त एव राजेन्द्र निघृष्टपादा
विद्याधरेन्द्रस्य यशो लभन्ते ।।१०॥
प्रपूज्ययन्त्रं विधिनामहेशि
पुण्यांसुपूज्यां परमांसुभाग्याम् ।
जपन्तियेत्वां विविधार्थदात्रीं त
एवधन्याः कुलमार्गनिष्ठाः ।।११॥
जानन्ति के पशवस्त्वां कुरूपा
ब्रह्मादिगीतो महिमामहेशि ।
केचिन्महान्तो निजधर्मभाजो जानन्ति
ते देवि परंसुधाम ।। १२॥
विधायकुण्डं विदिनासुवेदिं
सौगन्धहोमं सफलं चकुर्वते ।
त्वत्तोषणाज्जायते भाग्यतन्त्रं
तेषांतु देवैरपि योगगम्यम् ।।१३॥
पुनः स्तुवन्ति प्रयताश्चदेवीं
स्तोत्रैरुदारैः कुलयोगयुक्ताः ।
त एव धन्याः परमार्थभाजो भोगं च
मोक्षं च करोति तेषाम् ।।१४॥
ऋषिरुवाच ॥
इति स्तुत्वावसाने तु महालक्ष्मीं
ददर्श सः ।
चतुर्भुजां त्रिनयनां
महिषासुरघातिनीम् ।।१५॥
अस्य श्रीमन्महालक्ष्मीः
प्रसन्नास्तुतिगौरवात् ।
उवाचस्मितशोभाढ्या नारायणमजा शिवा
।।१६॥
देव्युवाच ॥
वरं वरय देवेश नारायण सनातन ।
दास्याम्यद्याभिधातव्यं तव स्तुत्या
वशीकृता ।।१७॥
श्रीविष्णुरुवाच ॥
मातः परमकल्याणि महालक्ष्मि वरप्रदे
।
कुलाचारेमनोमेऽस्तु वरस्तेकृपयाशिवे
।।१८॥
तवसूक्तं च फलं भवतुप्रीतिदायकम् ।
श्री देव्युवाच ॥
एवमस्तु महाभाग नारायण सनातन ॥१९ ॥
सूक्तमेतद्विनायस्तु
पठेत्सप्तशतींनरः ।
स प्राप्नोति महाघोरं नरकं दारुणं
किल ॥२०॥
लभते परमव्याधिं मम कोपविघूर्णितः ।
लक्ष्मीसूक्तं विना यस्तु
स्तोत्रंसप्तशतीं पठेत् ।।२१॥
ऋषिरुवाच ॥
एवमुक्त्वा वचोदेवी तूष्णीम्भूय
गतानृप ॥२२॥
इति श्री लक्ष्मीसूक्तम् संपूर्णम् ।।
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