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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
काली सूक्त
सर्व सिद्धिदात्री इस काली सूक्त का
पाठ सप्तशती के साथ ही अवश्य करें। इसके पाठ के बिना सप्तशती फल नहीं देता। इसे
अत्यंत ही गोपनीय रखा गया है, पाठकों के
लाभार्थ ही इसे प्रकाशित किया जा रहा है।
कालीसूक्त
Kali suktam
कालीसूक्तम्
श्री कालीसूक्तम्
ततोऽञ्जलिंसमाधाय शिवः
स्तोत्रमुदाहरत्
तुष्टाव
वाग्भिर्दिव्याभिर्महाकालींमहेश्वरः
वेदवाण्या च संस्तुत्या लोकानां
हितकाम्यया ।।१।।
श्रीमहादेव उवाच ।
शिवाममर्त्यो विविधप्रभावां
कालींकलामालिनि विश्वविद्याम् ।
कपालखद्वाङ्गधरां
नृमुण्डमालाविभूषां मृगचर्मशोभाम् ।।२।।
सुशुष्कमांसां च शवासनसथां
विभीषणान् भीषयती सुरारीन् ।
रक्तप्रियामासमदावघूर्णो
कालींशरण्यां शरणंव्रजामि ।।३।।
सुघोरबीजं च कपीश्वरस्य चिन्तामणिं
कुब्जितकामरूपे ।
विधाय विद्यासु च कामराजं
कामंकलामालिनि कामराजम् ।।४।।
वह्नेर्वधूमन्त्रवरोऽयमीशो विश्वं
पुनातीश्वरि देविवन्दे ।
मन्त्रेण चानेन च सिद्धयश्च
सुसिद्धयस्ताश्च जगन्निवासे ।। ५।।
पञ्चारयुग्मञ्च त्रिकोणयुग्मं
पुनश्चपञ्चारयुगेकनद्धम् ।
कलाष्टकोणाङ्कितभूगृहंच
मन्त्रेश्वरित्त्वत्पदपङ्कजस्थम् ।।६ ।।
संपूज्य यन्त्रं तव विश्वनायिके
निष्पापिनस्ते सहसाभवन्ति ।
ये साधकास्त्वच्छरणानुसारिणः
कुलानुवृत्या परमाः पवित्राः ।। ७।।
ते सिद्धिमृद्धिं च यशोऽनुगम्यां
वृणीत नुत्या प्रभवन्तिभूपाः ।
समस्त मन्त्रेण
विधायचाङ्गन्यासादिकं भक्तिसुभावयुक्ताः ।। ८।।
ते किङ्करीकृत्य
सुरारिदेवान्नियोजयन्त्येक विभूतियुक्ते ।
वदामिनान्यं नश्रृणोमिचान्यं न
गृणामिचान्यं न च चिन्तयामि ॥ ९।।
स्मरामिनान्यं न भजामिचान्यं
ध्यायामिचान्यं न वितर्कयामि ।
ते पादपद्मं हृदयाब्जवासं त्वां
विश्वयोनिं शरणं प्रपद्ये ।। १०।।
येषां न दैवं त्वमिहासिदेवि
नाराधयन्तीह नराः कुबुद्धयः ।
अन्धन्तमश्च प्रविशन्ति ते वै न
दर्शनं चास्ति दुरात्मनां ते ।। ११।।
ऋषिरुवाच ॥
इतिवाक्यंसमाकर्ण्य परमामृतसम्मितम्
।
प्रसन्नाभून्महाकाली
व्रियतामीप्सितोवरः ।।१२।।
इत्युवा च विशालाक्षी
शम्भोरानन्दकारिणी ।
प्रसन्नापरमाह्लादसंयुताशिवभाषणात्
।। १३।।
व्रियतां च मनोऽभीष्टो वरो
जगतिदुर्लभः ।
दास्यामितवदातव्यमितिस्तुत्या
वशीकृता ।। १४।।
श्रीशिव उवाच ।।
नकुलाचारतो देवि मतिर्मेऽस्तुकदाचन
।
शिथिला देवदेवेशि सूक्तं च
सफलंभवेत् ।। १५।।
श्रीदेव्युवाच ॥
एवमस्त्विति चोक्ताहि तिस्रोदेव्यः
सनातनाः ।
अन्तर्द्धिमापुः ररमा एकास्मिन्नास्थिताऽभवत्
।।१६।।
अथतान्सासुरानम्वा प्रोवाचवचनंमुदा
।
सन्तोषयन्ती
चमुहुर्भक्तानुग्रहतत्परा ।।१७।।
देव्युवाच ।।
श्रृणुध्वं प्रीतिसंयुक्ता
ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ।
देवीसूक्तं परं ध्यातं भविष्यति
वरप्रदम् ।।१८।।
देवीसूक्तं विनादेवा ये च सप्तशतीं
नराः ।
श्रोष्यन्ति च पठिष्यन्ति तेषां
पापं पदेपदे ।।१९।।
देवीसूक्तं विनापाठो ह्यरण्ये रोदनं
यथा ।
स्तोत्रत्रयेण चान्येन
पूर्णंस्तोत्रमभूदिदम् ।।२०।।
देवा ऊचुः
मात:सप्तशतीस्तोत्रफलस्तुतितिरियोच्यताम्
।
यांसमाकर्ण्यदेवानां
विश्वासोजायतेभृशम् ।।२१।।
ऋषिरुवाच
इतिवाक्यंसमाकर्ण्य
ब्रह्मविष्णुशिवोदितम् ।
फलस्तुतिमथोवाच स्तोत्रस्यास्य
महामते ।।२२।।
इति श्रीषट्तन्त्रे सप्तशत्यङ्गकालीसूक्तं सम्पूर्णम् ।।
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