क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल २०
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल २०में
वन्ध्यायन्त्रम्, रक्षायन्त्रम्,
पुत्रजननयन्त्रम्, वशीकरणम्, बन्धमुक्तियन्त्रम्, डाकिन्यादिभयविनाशनयन्त्रं, जीववत्सायन्त्रं का
वर्णन किया गया है।
क्रियोड्डीश महातन्त्रराजः विशतितमः पटलः
Kriyoddish mahatantraraj Patal 20
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल २०
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज विशतितम
पटल
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज बीसवाँ पटल
क्रियोड्डीशमहातन्त्रराजः
अथ विशतितमः पटलः
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज
पटल २० - यन्त्रप्रकरणम्
वन्ध्यायन्त्रम्
अतः परं देवि! शृणु
यन्त्रधारणमुत्तमम् ।
यन्त्रधारणमात्रेण सर्वाभीष्टफलं
लभेत् ।। १ ।।
जन्मवन्ध्या च या नारी शुभपुत्रवती
भवेत् ।
तदा गोरोचनाद्येन
लिखेद्यन्त्रमनुत्तमम् ।।२।।
वृत्तद्वयं समालिख्य पद्मष्टदलं
लिखेत् ।
प्रतिपद्मे लिखेन्मायाबीजं भूपुरकं
ततः ।। ३ ।।
भूर्जपत्रे लिखेद्यन्त्रं धारयेत्तु
महेश्वरि ।
कुक्षौ धृत्वा महायन्त्रं
शुभपुत्रवती भवेत् ।।४।।
प्रयोगान्तरमन्यत्र प्राणसङ्कटतो नहि
।
दक्षिणां गुरवे दत्त्वा
गृह्णीयाद्यन्त्रमुत्तमम् ।।५।।
हे देवि! अब यन्त्रधारण का श्रेष्ठ
विधान सुनो। यन्त्र के धारणमात्र से ही सभी अभीष्ट प्राप्त हो जाते हैं। जन्म से
ही वन्ध्या नारी भी शुभपुत्रवती हो जाती है। गोरोचन आदि सुगन्धित पदार्थों से
श्रेष्ठ यन्त्र की रचना करे। दो वृत्त अंकित कर अष्टदल कमल का निर्माण कर प्रति दल
में मायाबीज (ह्रीं) लिखे तथा पुर की रचना करे। हे महेश्वरि ! भोजपत्र के ऊपर
लिखकर इस यन्त्र को धारण करने पर वन्ध्या स्त्री भी पुत्रवती होती है। गुरु को
दक्षिणा प्रदान कर उनसे श्रेष्ठ यन्त्र को ग्रहण करना चाहिये ।। १-५॥
वृत्तं चतुर्दलं पद्मं भूपुरेण
समन्वितम् ।
वृत्तमध्ये लिखेद्देवि साधकाख्यां
विशेषतः । । ६ । ।
पुत्रवतीपदं पश्चात् भवत्विति पदं
ततः ।
प्रणवैः पुटिता लज्जा त्रिधा
पत्रेषु संलिखेत् ।।७।।
पूर्ववत्पूजयेद्देवि धारयेद्दक्षिणे
भुजे ।
सत्यं सत्यं हि देवेशि वन्ध्या
पुत्रवती भवेत् ।। ८।।
दुर्भगा चेद्भवेन्नारी सुभगा मासतो
भवेत् ।। ९ ।।
वृत्त एवं चतुर्दल पद्म का निर्माण
कर भूपुर अंकित करे। हे देवि ! वृत्त के मध्य में साधक के नाम को लिखे तथा 'पुत्रवती भवतु' इस
पद को लिखे एवं प्रणव से सम्पुटित लज्जाबीज (ह्रीं ) तीन दलों में लिखे। हे देवि !
पूर्ववत् पूजन करके इसे दाहिनी भुजा में धारण करे। हे देवेशि ! यह निश्चित रूप से
सत्य है कि इसके धारण करने से दुर्भगा स्त्री भी एक महीने के भीतर ही सुभगा
अर्थात् सौभाग्यवती हो जाती है ।। ६-९ ॥
रक्षायन्त्रम्
अतः परं प्रवक्ष्यामि महारक्षाकरं
परम् ।
धारणाद्दानवपतिर्महारक्षाकरो भवेत्
।। १० ।।
पञ्चदलं लिखेद्देवि 'ग्लौं' बीजेनैव लाञ्छितम् ।
गं पञ्चकं सर्वमध्ये लिखित्वा
धारयेद्यदि ।।११।।
न तस्य पुत्रभीतिः स्यात्तत्र
रक्षाकरो हरः ।
गोरोचनाकुङ्कुमाभ्यां भूर्जे
संलिख्य धारयेत् ।।१२।।
तत्र पूजां महादेवि गणपतिस्तु
समाचरेत् ।
पूजितं धारितश्चैव सर्वोपद्रवनाशनम्
।।१३।।
वृत्तमष्टदलं पद्मं पुनः पद्मेषु
संलिखेत् ।
गोरोचनाभिः संलिख्य
धारयेत्परमेश्वरि ।। १४ ।।
उक्तरूपेण लिङ्गस्य पूजां कृत्वा
महेश्वरि ।
धारयेद्यो भवेत्तस्य
ह्यपमृत्युविनाशनम् ।। १५ ।।
अब महारक्षाकर यन्त्र कहता हूँ,
जिसके धारण करने से दानवपति भी महारक्षाकर हो जाता है। हे देवि !
पञ्चदल पद्म लिख कर उस पर ग्लौं बीज अंकित करे। समस्त कमलदलों के मध्य में गं
बीज लिखकर पूजन करके धारण करने पर पुत्रभय कभी भी नहीं होता तथा स्वयं शंकरजी उसकी
रक्षा करते हैं। भोजपत्र के ऊपर गोरोचन एवं कुङ्कुम से अंकित कर गणपति का पूजन
कर यन्त्र धारण करे तो समस्त उपद्रव दूर हो जाते हैं। हे महेश्वरि ! वृत्त,
अष्टदल पद्म एवं पुनः पद्म गोरोचनादि से लिखकर धारण कर लिङ्गपूजा
कर जो भी इसे धारण करता है, उसकी अपमृत्यु का विनाश हो
जाता है ।। १०-१५ ॥
पुत्रजननयन्त्रम्
बिन्दुवृत्तं समालिख्य लिखेदष्टदलं
ततः ।
प्रतिपत्रेषु यंबीजं लिखेदथ
पृथक्पृथक् ।। १६ ।।
पूर्ववत्पूजयेद्देवि धारणान्मृत्युनाशनम्
।
काकवन्ध्याजनस्यापि बहुपुत्रकरं परम्
।।१७।।
षट्कोणं विलिखेद् वृत्तं
ततश्चाष्टदलं लिखेत् ।
षट्कोणेषु च षट् दीर्घान्
विलिखेत्परमेश्वरि ।। १८ ।।
ऐं ह्रीं ॐ ऐं ह्रीं फट् स्वाहा
लिखेदष्टदले ततः ।
सर्वमध्ये लिखेद्देवि ततः शृणु
महेश्वरि ।। १९ ।।
प्रणवस्तु ततो माया साधकाख्यं तु
ङेऽन्तकम् ।
सुपुत्रञ्च समालिख्य उत्पादय पदन्ततः
।। २० ।।
विधाय चैवं विधिवद्धारयेद्यन्त्रमुत्तमम्
।
धारणात्सर्वसम्पत्तिर्भवेद्देवि न
संशयः ।। २१ ।।
पूजनं पूर्वमुक्तम् । देवीं
कालीमन्त्रेण पूजयेत् ।
बिन्दु एवं वृत्त अंकित करके अष्टदल
पद्म लिखे तथा कमलदल के प्रत्येक पत्र पर यं बीज लिखे। हे देवि ! पूर्ववत्
अर्थात् पूर्व की भाँति पूजन कर इसे धारण करने से मृत्यु का नाश होता है।
काकवन्ध्या नारी बहुपुत्रवती होती है। षट्कोण लिखकर वृत्त लिखे,
तदुपरान्त अष्टदल कमल लिखे। हे परमेश्वरि ! षट्कोण में प्रत्येक में
बीजमन्त्र लिखे। ऐं ह्रीं ॐ ऐं ह्रीं फट् स्वाहा मन्त्र को अष्टदल में लिखे
। हे महेश्वरि! जो सभी के मध्य में लिखा जायेगा, अब उसका
श्रवण करो। यन्त्र के मध्य में प्रणव मायाबीज, साधक का नाम
एवं सुपुत्रं उत्पादय लिख कर विधिवत् यन्त्र को धारण करे। इस यन्त्र के
धारण करने से हे देवि ! सभी प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त होती है; इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। इसका पूजन पहले ही कहा जा चुका है।
देवी का पूजन काली मन्त्र से करना चाहिये।। १६-२१॥
वशीकरणम्
वशीकरणयन्त्रन्तु शृणु
मत्प्राणवल्लभे!
यस्य धारणमात्रेण वशीकुर्यात् पुनः
प्रिये ।। २२ ।।
चतुर्वृत्तं समालिख्य लिखेदष्टदलं ततः
।
ॐ शत्रुमुखं बन्धयेति प्रतिपद्मदलं
लिखेत् ।। २३ ।।
यस्य नामाभिसंलिख्य बाहौ
सन्धारयेच्छिवे ।
पूर्ववत्पूजयेद्देवीं जपेल्लक्षं
विधानतः ।। २४ ।।
चामुण्डोक्तविधानेन पूजयेद्देवि
साधकः ।
हुत्वा चैव विधानेन स वशी भवति ध्रुवम्
।। २५ ।।
हे प्राणवल्लभे! अब वशीकरण यन्त्र
का श्रवण करो। जिसके धारणमात्र से ही वशीकरण हो जाता है। चार वृत्त लिखकर आठ कमलदल
लिखे। ॐ शत्रुमुखं बन्धय इस मन्त्र को प्रति कमल दल में लिखे। हे देवि! जिस
किसी व्यक्ति का भी नाम लिखकर भुजा में धारण तथा पूर्वोक्त पूजन एवं एक लाख जप
करके चामुण्डा विधान के अनुसार पूजन कर हवन करने से निश्चित रूप से उस व्यक्ति का
वशीकरण हो जाता है ।।२२-२५॥
बन्धमुक्तियन्त्रम्
प्रथमन्तु लिखेद्वृत्तं तद्बहिस्तु
स्वरांल्लिखेत् ।
बहिर्बुभूद्वयं लिख्य चतुर्दिक्षु च
ह्रीं लिखेत् ।। २६ ।।
वृत्तयुग्माष्टपत्रञ्च लिखेद्गोरोचनादिना
।
ग्रीवायां कण्ठदेशे वा शिखायां वापि
धारणात् ।। २७ ।।
बन्धमुक्तिर्भवेत्तस्य नवमे दिवसे
तथा ।
पूर्वोक्तविधिना लक्षं
दुर्गामन्त्रं जपेद्बुधः ।। २८ । ।
सर्वप्रथम वृत्त लिखे,
तत्पश्चात् उस वृत्त के बाहरी भाग में स्वरों को लिखे। बाहरी भाग
में दो बुभू लिखे एवं चारो दिशाओं में ह्रीं लिखे। दो वृत्त एवं अष्टदल
गोरोचनादि से लिखे। इसे ग्रीवा, कण्ठ तथा शिखा में धारण करने
से नवें दिन बन्धन से मुक्ति प्राप्त होती है। पूर्वोक्त विधान के अनुसार पूजन तथा
दुर्गा का एक लाख मन्त्र जप करना चाहिये ।। २६-२८।।
डाकिन्यादिभयविनाशनयन्त्रं
जीववत्सायन्त्रञ्च
वृत्तयुग्मं लिखेत्तत्र
महाबीजचतुष्टयम् ।
चतुष्कोणद्वयं बाह्ये लिखित्वा
धारयेद्यदि ।। २९ ।।
नाशयेत्क्षणमात्रेण डाकिन्यादिभवं
भयम् ।
मृतवत्सा यदि भवेन्नारी दुःखपरायणा
।
धारयेत् परमं यन्त्रं जीववत्सा ततो
भवेत् ।। ३० ।।
वृत्तयुग्म लिखकर चारो कोणों में
चार महाबीज अंकित कर धारण करे तो उसी क्षण डाकिनी आदि का भय दूर हो जाता है। यदि
इसे मृतवत्सा धारण करे तो वह भी जीविवत्सा हो जाती है ।। २९-३०॥
दीर्घरेखाद्वयं दत्त्वा
तद्गात्रेऽष्टदलं लिखेत् ।
ॐ ह्रीं देवदत्त ह्रीं रेखामध्ये
लिखेच्छिवे ।। ३१ । ।
रेखागात्रदले ॐ हूँ रेखाद्यन्तदले च
ॐ ।
गोरोचनाकुंकुमेन तथैवालक्तकेन वा
।।३२।
यस्य नाम तु संलिख्य
स्थापयेत्परमेश्वरि ।
पञ्चामृतेषु देवेशि जीववत्सा
भवेद्धि सा ।। ३३ ।।
तत्सुतस्याकालमृत्युर्नान्यथा जायते
प्रिये ।
उक्तरूपे तथा पूजां लक्षमन्त्रं
जपेच्छिवे ।।३४।।
दो दीर्घ रेखायें लिखकर उनमें
अष्टदल कमल निर्मित कर रेखाओं के मध्य में ॐ ह्रीं देवदत्त ह्रीं ॐ इस
मन्त्र को लिखे। रेखा के गात्रदल में ॐ हूं, रेखा के आद्य व अन्त दल में ॐ इन बीजों को लिखे। हे परमेश्वरी!
गोरोचन, कुङ्कुम और लाख के द्वारा साध्यासाध्य का नाम लिखकर
पञ्चामृत से स्नान कराये। हे देवेशि! इससे नारी अवश्य ही जीवितवत्सा होती है। हे
प्रिय ! इस यन्त्र को धारण करने वाली स्त्री का पुत्र कभी भी अकाल में कालकवलित
नहीं होता। हे शिवे ! पूर्वोक्त रूप से पूजन तथा मन्त्र का एक लाख जप करना चाहिये
।। ३१-३४ ॥
इति क्रियोड्डीशे महातन्त्रराजे
देवीश्वर-संवादे विंशतितमः पटलः ।। २० ।।
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज में
गौरी-शंकरसंवादात्मक बीसवाँ पटल पूर्ण हुआ ।। २० ।।
आगे जारी...... क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल 21
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