दत्तात्रेयतन्त्र पटल १६
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १५ में
आपने अनाहार प्रयोग पढ़ा,
अब पटल १६ में आहार प्रयोग और निधिदर्शन प्रयोग
बतलाया गया है।
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् षोडशः पटलः
दत्तात्रेयतन्त्र सोलहवां पटल
दत्तात्रेयतन्त्र पटल १६
दत्तात्रेयतन्त्र
षोडश पटल
आहार
ईश्वर उवाच
बन्धूकस्य च वृक्षस्य पिष्टवा
पुष्पफलानि वै ।
योऽसौ भुंक्ते घृतेस्सार्द्धं भोजनं
भीमसेनवत् ।। १॥
शिवजी बोले-(हे दत्तात्रेयजी !)
दुपहरिया वृक्ष के फल और फूलों को पीसकर घी के साथ खाने से भीमसेन के समान अधिक
भोजन करता है ॥ १ ॥
शनौ विभीतवृक्षस्थ
सन्ध्यायामभिमंत्रितम् ।
प्रातः पत्राणि संगृह्य भोजनेऽङघ्रितले
न्यसेत् ।। २ ।।
शनीचर के दिन भिलावे के वृक्ष को
संध्या समय अभिमंत्रित कर आवे और प्रातःकाल उसके पत्तों को लाय चरण तले दाबकर भोजन
करे तो अधिक भोजन करेगा ॥। २ ॥।
गृहीत्वा मंत्रितं मंत्री
विभीततरुपल्लवम् ।
धारयेद्दक्षिणे हस्ते
पुष्कलाहाभुग्भवेत् ॥। ३ ॥।
मंत्र से अभिमंत्रित कर भिलावे के
पत्ते तोडकर दाहिने हाथ में बाँध भोजन करे तो अधिक भोजन करेगा ।। ३ ॥।
आहारे सत्प्रयोगोऽयं भोजनं भीमसेनवत्
।
यस्मै कस्मै न दातव्यं गोपनीय
प्रयत्नतः ॥। ४ ॥।
ओं नमः सर्वभूताधिपतये हुं फट्
स्वाहा ।
“ओं नमः सर्व भूताधिपतये हुं फट
स्वाहा' यह मन्त्र है। इस मन्त्र से अभिमंत्रित कर इस
श्रेष्ठ प्रयोग का अनुष्ठान करने से भीमसेन के समान मनुष्य भोजन कर सकता है । इस
प्रयोग को हर किसी को न देकर गुप्त रक्खे ॥४॥
इति श्रीदत्तात्रेयतंत्रे
दत्तात्रेयेश्वरसंवादे आहारप्रयोग: ॥
दत्तात्रेयतन्त्र पटल
१६
निधिदर्शन
ईश्वर उवाच-
शिरीषवृक्षपंचांगं कटुतेलेन पाचितम्
।
धत्तुरबीजसंयुक्तं विषेणैव युतं तथा
॥। १॥
शिवजी बोले-(हे दत्तात्रेयजी ! )
सिरस वृक्ष के पचांग को लेकर कडुए तेल में पकावे फिर उसमें घतूरे के बीज और विष
मिलावे ॥ १॥
पञ्चांगं करवीरस्य श्वेतगुञ्जासमन्वितम्
।
उलूकविष्ठासंयुक्तं गन्धकं च मनश्शिला
॥ २ ।।
धूपं दत्त्वा जपेन्मन्त्रं
निधिस्थाने विशेषतः ।
पलायन्ते निधिं त्यक्त्वा यथा
युद्धेषु कातरा: ॥ ३ ॥।
राक्षसा भूतवेताला देवदानवपन्नगाः ।
सुखेनाशु निधिं प्राप्य
परमानन्दभुग्भवेत् ।। ४ ॥।
मन्त्र:- ॐ नमो विघ्नविनाशाय
निधिदर्शनं कुरु कुरु स्वाहा ॥।
कनेर के पचांग में सफेद घुंघुची,
उल्लू की बीट, गन्धक और मनशिल मिलावे फिर
मंत्र पढ़कर निधिस्थान में उसकी धूप देने से जैसे कायर पुरुष युद्ध से भाग जाते
हैं वसै ही निधिस्थान को छोड़कर राक्षस, भूत, वेताल, देव, दानव और पन्नग भागजाते हैं, तब सुखसहित निधि को पाय मनुष्य परमानन्द को भोगता है ।। २-४
ओं नमो विघ्नविनाशय ०'
यह मंत्र है ॥।
इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे
दत्तात्रेयेश्वर संवादे निधिदर्शनं नाम
षोडश: पटल: ॥ १६ ।॥।
आगे जारी........
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १७ बन्ध्यापुत्रवतीकरण ॥
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