दत्तात्रेयतन्त्र पटल १७
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १६ में
आपने आहार व निधिदर्शन प्रयोग पढ़ा, अब पटल
१७ में वन्ध्यापुत्रवतीकरण
प्रयोग
बतलाया गया है।
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् सप्तदश: पटलः
दत्तात्रेयतन्त्र सत्रहवां पटल
दत्तात्रेयतन्त्र पटल १७
दत्तात्रेयतन्त्र
सप्तदश पटल
वन्ध्यापुत्रवतीकरण
ईश्वर उवाच-
जन्मवंध्या: काकवन्ध्या मृतवत्सा:
क्वचित्तस्त्रिय: ।
तासां पुत्रप्रापणाय कथयामि विधिं
वरम्॥ १॥
शिव बोले-जन्मवंध्या (जिनके सन्तान
हुई ही नहीं ) काकवन्ध्या (जिनके एक वार सन्तान
होकर फिर नहीं होती) और मृतवत्सा (जिनकी सन्तान होकर मर जाती है) इनके
पुत्रप्राप्ति के कारण श्रेष्ठ विधि को कहता हूं ॥
पत्रमेकं पलाशस्य
गर्भिणीपयसान्वितम् ।
ऋत्वन्ते तच्च पीतं चेद्वन्ध्या
पुत्रवती भवेत् ।। २ ॥।
एवं सप्तदिनं कुर्याच्छोकोद्वेगविवर्जितम्
।
पतिसंगगता सा च नात्र कार्या
विचारणा ॥ ३॥
ढाक के पत्तों को गर्भवती स्त्री के
दूध में पीस ऋतुकाल के उपरान्त वन्ध्या स्त्री पीने से पुत्रवती होती है। उक्त
प्रयोग को सात दिन तक शोक और उद्बेग को त्याग के करे तो वह पति के सहवास करने से
निःसन्देह पुत्रवती होती है ॥ २ - ३ ॥
समूलपत्रां सर्पाक्षीं रविवारे
समुद्धरेत् ।
एकवर्णंगवां क्षीरे कन्याहस्तेन
पेषयेत् ।। ४ ॥।
ऋतुकाले पिबेद्वंध्या पलार्द्धं
तद्दिने दिने ।
क्षीरं शाल्यन्नमुद्गों च लध्वाहारं
प्रदापयेत् ।
एवं तप्तदिनं कृत्वा वंध्या भवति
पुत्रिणी ॥ ५ ॥।
रविवार के दिन जड सहित सर्पाक्षी
वृक्ष को उखाड एक रंगवाली गौ के दूध में कन्या के हाथ से पिसावे और ऋतुकाल में
उसको १ तोला प्रतिदिन पीवे साथ में दूध भात मूंग आदि हलका अन्न भोजन करे तो
वन्ध्या स्त्री पुत्रवती होती है ।
एकमेव रुद्राक्षं सर्पाक्षीं
कर्षमात्रिकाम् ।
पुर्वंवञ्च गवां क्षीरे ऋतुकाले
प्रदापयेत् ॥ ६ ॥॥
महागणशमंत्रेण रक्षां तस्याश्च
कारयेत् ॥ ७ ॥।
मन्त्र-मदनमहागणपते रक्षामृत
मत्सुतं देहि ॥
एक रुद्राक्ष दो तोले सर्पाक्षी एक
रंगावली गौ के दूध में कन्या के हाथ से पिसाय ऋतुकाल में स्त्री को पिलावे और
महागणेश के मन्त्र से रक्षा करे ॥ मन्त्र मूल में स्पष्ट लिखा है ॥ ६- ७ ॥।
उद्वेगं भयशोकौ च व्यायामं परिवर्जयेत्
।
अनङ्गमुष्णशीतं च दिवा निद्रां तथैव
च ॥। ८ ॥।
न कर्म कारयेत्किञ्चिद्वर्जयेच्छीतमातपम्
।
न तया परमां सेवां कारयेत्पूर्ववत्क्रियाम्
॥॥ ९ ॥॥
पतिसंगाद्गर्भलाभो नात्र कार्या
विचारणा ॥। १० ॥।
उद्देश,
भय, शोक, व्यायाम को छोड
दे कामक्रीडा, गर्मी, सर्दी और दिन में
सोना त्याग दे । परिश्रम का काम न करें । अधिक सर्दी और गर्म के कामों को त्याग
दे। अधिक सेवा और पूर्व के समान काम न करावे तो पति के सहवास से निश्चय पुत्र
प्राप्त होगा ॥ ८-१० ॥।
पत्रं श्वेतकदम्बस्य बृहतीमूलमेव च।
एतानि समभागानि अजाक्षीरेण पेषयेत्
॥ ११ ॥
त्रिरात्रं पञ्चरात्रं वा पिबेदेवं
महौषधिम्।
सत्यं पुत्रवती वन्ध्या नान्यथा मम
भाषितम् ॥। १२ ।।
सफेद कदम्ब के पत्ते और बडी कटाई की
जड को बराबर ले बकरी के दूध से पीसे फिर इस महौषधि को तीन वा पांच रात्रि पीवे तो बन्ध्या
स्त्री निश्चय पुत्रवती होती है ।। ११- १२ ।।
कृष्णापरजितामूलमजक्षीरेण संपिबेत्
।
ऋतुस्नाता त्रिधा या तु वंध्या
गर्भधरा भवेत् ॥। १३ ॥।
काले विष्णाक्रान्ता की जड को बकरी के
दूध के साथ ऋतुकाल के पीछे तीन दिन पीने से वन्ध्या स्त्री गर्भ को धारण करती है।। १३ ॥।
तुरंगगन्धाधृतवारिसिद्धं साज्यं पय:
स्नानदिने च पीत्वा ।
प्राप्नोति गर्भ विषयं चरन्ती
वन्ध्यापि पुत्र पुरुषप्रसंगात् ।।१४ ॥
असगन्ध को घी और जल में सिद्ध करे
पीछे उसे घी और दूध के साथ ऋतुस्नान के दिन पिलावे और शयन करने के समय घृत पिये तो
बन्ध्या स्त्री पति के संग से गर्भधारण करती है ।। १४ ।।
सपिप्पलीकेशरश्रृगवेरं क्षुद्रायणं गव्यघृतेन
पीतम् ।
वंध्यापि पुत्रं लभते हठेन
योगोत्तमोऽयं हि शिवेन प्रोक्त: ।।१५॥।
पीपल, केशर, अदरक और छोटी गोल मिर्च को, घी के साथ पीने से वन्ध्या स्त्री पति के सहवास से गर्भ धारण करती है यह
उत्तम योग शिवजी ने कहा है ।। १५ ।।
शीततोयेन संपिष्य शरपुंख्याश्च मूलकम्
।
पिबेद्गर्भधरा नारी सा वंध्या
पतिसंगतः ।। १६ ॥।
शरपुंखे की जड को शीतल जल में पीसकर
पीने से वन्ध्या स्त्री भी पतिसंग मे गर्भ को धारण करती है ।। १६ ॥।
समूला सहदेवी च संग्राह्या पुष्यभास्करे
।
छायाशुष्कं च चूर्णन्तु एकवर्णगवां
पयः ।
पूर्बबद्या पिबेन्नारी वंध्या भवति
पुत्रिणी ॥ १७ ॥।
पुष्यनक्षत्रयुक्त रविवार के दिन जड
समेत सहदेवी के वृक्ष को लाय छाया में सुखाकर चू्र्ण करे उस चूर्ण को एकरंगवाली गौ
के दूध के साथ पूर्व कही रीति के अनुसार पीने से वन्ध्या स्त्री पुत्रवती होती है
॥॥ १७॥
नागकेशरचूर्णन्तु नूतने गव्यदुग्धके
।
पिबेत्सप्तदिनं दुग्धं घृतैर्भोजनसाचरेत्
॥।
ऋत्वन्ते लभते गर्भ सा नारी
पतिसंगतः ॥। १८ ॥।
नागकेशर का चूर्ण नई व्याई हुई गौ के
दूध के साथ ऋतुस्नान के, उपरान्त सात दिन
पीवैं और घी दूध का भोजन करे तो वह नारी पति के सहवास से गर्भ को धारण करती है ॥।
१८ ॥।
गोक्षुरस्प च बीजस्तु पिबेन्निर्गुण्डिकारसै:
त्रिरात्रं पंचरात्रं च वंध्या भवति
पुत्रिणी ।। १९ ॥।
गोखरू के बीजों का चूर्ण निर्गुण्डी
के रस में तीन वा पांच दिन पीने से बन्ध्या स्त्री पुत्रवती होती है ।। १९ ।।
कर्कोटबीजचूर्णन्तु एकवर्णंगवां पयः
।
घृते पिबेच्च मासन्तु वन्ध्या भवति
पुत्रिणी ॥। २० ॥।
कर्कोटवृक्ष के बीजों का चूर्ण एक
रंगवाली गौ के दूध और घी के साथ एक मास पीने से वन्ध्या स्त्री पुत्रवती होती है
॥॥ २० ॥।
इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे श्रीदत्तात्रेयेश्वरसंवादे
इन्द्रजालकौतुकदर्शनं-सप्तदश: पटल: ।। १७ ।॥।
आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १८ मृतवात्साजीवन ॥
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