दत्तात्रेयतन्त्र पटल १८
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १७ में
आपने वन्ध्यापुत्रवतीकरण प्रयोग पढ़ा, अब पटल १८ में मृतवत्साजीवन व काकवंध्या की चिकित्सा
प्रयोग बतलाया गया है।
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् अष्टादश: पटलः
दत्तात्रेयतन्त्र अठ्ठारहवां पटल
दत्तात्रेयतन्त्र पटल १८
दत्तात्रेयतन्त्र
अष्टादश पटल
मृतवत्साजीवन
ईश्वर उवाच-
गर्भ: सञ्जातमात्रो वा पक्षे मासे च
वत्सरे ।
म्रियते द्वित्रिवर्षादिर्यस्या: सा
मृतवत्सका ।। १ ॥
शिवजी बोले- (हे दत्तात्रेयजी ! )
जिस स्त्री के गर्भ रहते ही गिर जाय, या
गर्भ में बालक खंडित हो जाय वा बालक उत्पन्न होते ही मर जाय या दो तीन वर्ष का
बालक होकर मर जाय तो उस स्त्री को मृतवत्सा कहते हैं ।
गृहीत्वा शुभनक्षत्रे ह्यपमार्गस्य
मूलकम् ।
गृहीत्वा लक्ष्मणामूल एकवर्णगवां
पयः ।। २ ॥
पीत्वा सा लभते गर्भ दीघजीवी सुतो
भवेत् ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं नान्यथा मम भाषितस्
॥ ३ ॥
शुभ नक्षत्र में अपामार्ग की जड और
लक्ष्मणा(जिसके गौ के दुध के समान सफेद फूल, पान
के समान दल और बीच में लाल रेखा हो उसे लक्ष्मणा कहते है।) की जड़ लाकर एक रंगवाली
गौ के दूध के साथ पीने से स्त्री गर्भ धारण कर दीर्घजीवी पुत्र को प्राप्त करती है
इस मेरे सत्य प्रयोग को हर एक मनुष्य को न दे ॥ २-३ ॥
वंध्या कर्कोटिकाकन्दं भृंगराजेन
पेषयेत् ।
ऋतुकाले त्र्यहं पीत्वा दीर्घजीबिसुतं
लभेत् ॥ ४ ॥
कूष्मांडी की जड को भांगरे के रस में
पीस ऋतुकाल के उपरान्त तीन दिन पीने से वन्ध्या स्त्री दीर्घजीवी पुत्र को प्राप्त
करती है ४॥।
मार्गंशीर्षे तथा ज्येष्ठे
पूर्णायां लेपिते गृहे ।
नूतनं कलशं पूर्ण गन्धतोयैश्च कारयेत्
।। ५ ॥
अगहन वा जेठ की पूर्णिमा को घर लीप
नवीन कलश स्थापित करे और उसमें चन्दन आदि से युक्त सुगंधित जल भरे ॥ ५॥
कदलीस्तंभसंयुक्त नवरत्नसमन्वितम्
।
सुवर्णमुद्रिकायुक्तं षट्कोणस्थितमंडलम्
॥। ६ ॥
तन्मध्ये पूजयेद्देवीमेकान्ते नामविश्रुताम्
।
गन्धपुष्पाक्षतैर्धूपेदीपनैवेद्यसंयुते:
।। ७ ॥
और उसके आगे षट्कोण यन्त्र लिखे
चारों ओर केले के खम्भे गाड नवरत्नों की बंदनवार लगाय सुवर्ण की अंगूठी यन्त्र के
बीच में रक्खे और एक मन होकर गंध पुष्पाक्षत धूप दीप नैवेद्य से आगे लिखे देवियों
का नाम लेकर पूजन करे ॥ ६ - ७ ॥।
वाराही च तथा चैन्द्री ब्राह्मी
माहेश्वरी तथा ।
कौमारी वैष्णवी देवी षट्सु पत्रेषु मातर:॥
८ ॥।
पूजयेन्मंत्रभावेन तथा सप्तदिनावधि
।
अष्टमेऽन्हि सुतं चैकं
कन्यानवकसंयुतम् ॥। ९ ॥।
भोजयेदक्षिणां दद्यात्पश्चात्कृत्वाभिवादनम्
।
विसृज्य देवतां चाथ नद्यां
तत्कलशादिकम् ॥। १० ॥।
प्रतिवर्षमिदं कुर्य्याद्वीर्घजीबी
सुतो भवेत् ।
सिद्धियोगो ह्ययं ज्ञेयो गोपनीय:
प्रयत्नतः ॥। ११ ॥।
मन्त्र: ॐ परब्रह्मपरमात्मने
अमुकीगृहे दीर्घजीविसुतं कुरु कुरु स्वाहा ॥
१ वाराही,
२ ऐन्द्री, ३ ब्राह्मी, ४
माहेश्वरी, ५ कौमारी और ६ वैष्णवी का उपरोक्त षट्कोण दल के
चक्र में मंत्रभाव से ७ दिन पूजन करे आठवें दिन एक कुमार और नौ कुमारियों को भोजन
कराय दक्षिणा दे फिर उनको प्रणामकर देवियों को विसर्जन कर कलश का नदी में विसर्जन
करे । प्रत्येक वर्ष इस भांति अनुष्ठान करने से दीर्घजीवी पुत्र उत्पन्न होता है
तत्काल सिद्धि देनेवाला यह प्रयोग यन्त्र के साथ गुप्त रक्खें 'ॐ परब्रह्मपरमात्मने०” इत्यादि मंत्र है।। ८-११॥
या बीजपूरद्रुममूलमेकं क्षीरेण
सिद्ध हव्रिषा विमिश्रम् ।
ऋतौ निपीय स्वपतिं प्रयाति
दीर्घायुषं सा तनयं प्रसूते ॥ १२ ॥
जो दाडिमवृक्ष की जड दूध से सिद्ध
कर घी मिलाय ऋतुस्नान के पीछे पीकर पति के पास जाय तो वह दीर्घजीवी पुत्र को
उत्पन्न करती है ।। १२ ॥
दत्तात्रेयतन्त्र पटल १८
काकवंध्याकी चिकित्सा
ईश्वर उवाच-
पूर्व पुत्रवती या सा पश्चाद्वंध्या
भवेद्यदि ।
काकवन्ध्या तु सा ज्ञेया चिकित्सा
तत्र कथ्यते ।। १ ॥
शिवजी बोले-(हे दत्तात्रेजी !) जो
एक ही बार संतान उत्पन्न करके पीछे वन्ध्या होजाय उसको काकवन्ध्या कहते हैं अब
उसकी चिकित्सा कहता हूँ । १ ॥।
विष्णुक्रान्तां समूलां च पिष्ट्वा
माहिषदुग्धके ।
महिषीनवनीतेन ऋतुकाले च भक्षयेत्
॥॥ २ ॥।
एवं सप्तदिनं कुर्यात्पथ्ययुक्तं च
पूर्वबत् ।
सा गर्भ
लभते नारी काकवंध्या सुशोभनम् ।। ३ ॥।
विष्णुकान्ता को जड़सडित भैंस के
दूध में पीस और भैस के ही मक्खन के साथ ऋतुस्नान के पीछे सात दिन खाय और पूर्व के
समान हलका भोजन करे तो काकवन्ध्या नारी सुन्दर गर्भ को धारण करती है ॥ २- ३॥
अश्वगंधीयमूलं तु
ग्राहयेत्पुष्यभास्करे ।
योजयेन्महिषीक्षीरे: पलार्द्ध
भक्षयेत्सदा ।। ४ ॥।
सप्ताहाल्लभते गर्भ काकवंध्या न
संशय: ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं नान्यथा मम भाषितम्
॥। ५॥।
पुष्यनक्षत्रयुक्त रविवार के दिन
असगन्ध की जड लाय भैंस के दुध में आधे पलभर सदा भक्षण करे। इस भांति ७ दिन के सेवन
करने से काकवन्ध्या नारी निश्चय गर्भ को धारण करती है । हरेक मनुष्य को मेरे कहे
इस सत्य प्रयोग को न दे ॥ ४ - ५ ॥
इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे
श्रीदत्तात्रेयेश्वरसंवादे मृतवत्सासुतजीवनप्रकारो व काकवंध्या चिकित्सा नाम अष्टादशः पटल:
॥ १८ ॥
आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १९ जय की विधि ॥
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