recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

भवनभास्कर अध्याय १८

भवनभास्कर अध्याय १८                 

भवनभास्कर के इस अध्याय १८ में गृह के आन्तरिक कक्ष का वर्णन किया गया है।

भवनभास्कर अध्याय १८

भवनभास्कर अट्ठारहवाँ अध्याय

भवनभास्कर

अट्ठारहवाँ अध्याय

गृह के आन्तरिक कक्ष

( १ ) घर के भीतर किस दिशा में कौन - सा कक्ष होना चाहिये - इसको विभिन्न ग्रन्थों में इस प्रकार बताया गया हैं -

पूर्व में - स्त्रानगृह ।

आग्नेय में - रसोई ।

दक्षिण में - शयनकक्ष, ओखली रखने का स्थान ।

नैर्ऋत्य - शस्त्रागार, सुतिकागृह, वस्त्र रखने का स्थान, गृहसामग्री, शौचालय, बड़े भाई अथवा पिता का कमरा ।

पश्चिम में - भोजन करने का स्थान ।

वायव्य में - अन्न - भण्डार, पशुगृह, शौचालय ।

उत्तर में - देवगृह, भण्डार, जल रखने का स्थान, धन – संग्रह का स्थान ।

ईशान में - देवगृह ( पूजागृह ), जल रखने का स्थान ।

पुर्व – आग्नेय में - मन्थन - कार्य करने का स्थान ।

आग्नेय – दक्षिण में - घृत रखने का स्थान ।

दक्षिण - नैर्ऋत्य - शौचालय ।

नैर्ऋत्य – पश्चिम में - विद्याभ्यास ।

पश्चिम – वायव्य में - रोदनगृह ।

वायव्य – उत्तर में - रतिगृह ।

उत्तर – ईशान में - औषध रखने तथा चिकित्सा करने का स्थान ।

ईशान – पूर्व में - सब वस्तुओं का संग्रह करने का स्थान ।

( २ ) तहखाना पूर्व, उत्तर अथवा ईशान की तरफ बनाना चाहिये ।

( ३ ) भारी सामान नैर्ऋत्य दिशा में रखना चाहिये । पूर्व, उत्तर अथवा ईशान में भारी सामान यथासम्भव नहीं रखना चाहिये ।

( ४ ) जिस कार्य में अग्रि की आवश्यकता पड़ती हो, वह कार्य आग्नेय दिशा में करना चाहिये ।

( ५ ) दीपक का मुख यदि पूर्व की ओर करके रखा जाय तो आयु की वृद्धि होती है, उत्तर की ओर करके रखा जाय तो धन की प्राप्ति होती है, पश्चिम की ओर करके रखा जाय तो हानि होती है । वर्तमान में दीपक की जगह बल्ब, टय़ूबलाइट आदि समझने चाहिये ।

( ६ ) बीच में नीचा तथा चारों ओर ऊँचा आँगन होने से पुत्र का नाश होता है ।

( ७ ) यदि घर के पश्चिम में दो दरवाजे अथवा दो कमरे हों, तो उस घर में रहने से दुःख की प्राप्ति होती हैं ।

( ८ ) दूकान, आफिस, फैक्ट्री आदि में मालिक को पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिये ।

( ९ ) दूकान की वायव्य दिशा में रखा माल शीघ्र बिकता है। फैक्ट्री में भी तैयार माल वायव्य दिशा में रखना चाहिये । भारी मशीन आदि पश्चिम – दक्षिण में रखनी चाहिये ।

( १० ) दुकान का मुख वायव्य दिशा में होने से बिक्री अच्छी होती हैं ।

( ११ ) ईशान दिशा में पति – पत्नी को शयन नहीं करना चाहिये, अन्यथा कोई बड़ा रोग हो सकता है ।

( १२ ) पूजा - पाठ , ध्यान, विद्याध्ययन आदि सभी शुभ कार्य पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही करने चाहिये ।

( १३ ) नृत्यशाला पूर्व, पश्चिम, वायव्य और आग्नेय दिशा में बनानी चाहिये ।

( १४ ) घर के नैर्ऋत्य भाग में किरायेदार या अतिथि को नहीं ठहराना चाहिये, अन्यथा वह स्थायी हो सकता है। उन्हें वायव्य भाग में ठहराना ही उचित है ।

( १५ ) पशुशाला -

( क ) गौशाला के लिये ' वृष ' आय श्रेष्ठ ( शुभ ) है । घुड़साल के लिये ' ध्वज ', ' वृष ' और ' खर ' आय श्रेष्ठ है ।

हाथी के निवास में ' गज ' और ' ध्वज ' आय श्रेष्ठ है । ऊँट के निवास में ' गज ' और ' वृष ' आय श्रेष्ठ है ।

('आय' निकालने की विधि बारहवें अध्याय में देखें )

( ख ) गृहस्वामी के हाथ से भूमि की लम्बाई और चौड़ाई को जोड़कर आठ का भाग दें । जो शेष बचे, उसका फल इस प्रकार है - १ - पशुहनि, २ - पशुरोग, ३ - पशुलाभ, ४ - पशुक्षय, ५ - पशुनाश, ६ - पशुवृद्धि, ७ - पशुभेद, ८ - बहुत पशु ।

( ग ) भैंस, बकरे और भेड़ के रहने का स्थान दक्षिण और आग्नेय के बीच में बनाना श्रेष्ठ है । गधे और ऊँट का स्थान ईशान और पूर्व के बीच में बनाना श्रेष्ठ है ।

( घ ) पूर्व अथवा पश्चिम मुख घोड़ों को बाँधने से गृहस्वामी का तेज नष्ट होता है । उत्तर अथवा दक्षिण मुख बाँधने से कीर्ति, यश, धन – धान्य की वृद्धि होती है ।

भवनभास्कर अध्याय १८ सम्पूर्ण                  

आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय १९  

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]