नारदसंहिता अध्याय ४४

नारदसंहिता अध्याय ४४                          

नारदसंहिता अध्याय ४४ में इंद्रधनुष के शुभाशुभ फल, गंधर्वनगर दर्शन, प्रतिसुर्य लक्षण तथा फल का वर्णन किया गया है।  

नारदसंहिता अध्याय ४४

नारदसंहिता अध्याय ४४  

नानावर्णाशवो भानोः साभ्रवायुविघट्टिताः ।

यद्व्योम्नि चापसंस्थानमिंद्रचापं प्रदृश्यते ॥ १ ॥     

सूर्य की किरण बादल और वायु के संयोग से अनेक प्रकार के रंगोंवाली होकर आकाश में धनुष के आकार हो जाती हैं वह इंद्रधनुष कहलाता है । १ ।

अथवा शेषनरेंद्रदीर्घनिश्वाससंभवम् ।

विदिक्षुजं दिक्षुजं च तद्दिङ्नृपविनाशनम् ॥ २ ॥

अथवा सर्पराज शेषनाग के उच्च श्वास लेने से इंद्रधनुष हो जाता है वह जिस दिशा में अथवा जिस कोण में होय उस दिशा के स्वामी राजा को नष्ट करे ॥ २ ॥

पीतपालनीलैश्च वह्निशस्त्रास्त्रभीतिदम् ॥

वृक्षजं व्याधिदं चापं भूमिजं सस्यनाशदम् ॥ ३ ॥

अवृष्टिदं जलोद्भूतं वल्मीके युद्धभीतिदम् ॥

अवृष्टौ वृष्टिदं चैद्यां दिशि वृष्यामवृष्टिदम् ॥ ४  ॥

पीला, पाडलवर्ण, नीलावर्ण इंद्रधनुष होय तो अग्नि तथा युद्ध का भय करे वृक्ष के ऊपर किरणों की क्रांति पड़के धनुषाकार दीखे तो प्रजा में रोग हो तथा भूमि पर दीखे तो खेती को नष्ट करे जल में क्रांति पडके धनुष दीखे तो वर्षा नहीं हो । बमई में बिल में धनुष की क्रांति पडे तो प्रजा में युद्ध का भय हो, पूर्वदिशा में इंद्रधनुष होय तो वर्षा नहीं होय तो वर्षा होने लगे और वर्षा होते हुए पूर्वदिशा में इन्द्रधनुष दीखे तो वर्षा होनी बंद हो जाय ॥ ३॥४॥

सदैव वृष्टिदं पश्चाद्दिशोरितरयोस्तथा ॥

रात्र्यामिंद्रधनुः प्राच्यां नृपहानिर्भवेद्यदि ॥ ५॥

पश्चिम दिशा में इंद्रधनुष दीखे तो सदा वर्षा करता है अन्य दिशाओं में ( उत्तर दक्षिण में ) हो तो भी वर्षा करे, रात्रि में पूर्व दिशा में इंद्रधनुष दीखे तो राजा की हानि करे ।। ५ ।।

याम्यां सेनापतिं हंति पश्चिमे नायकोत्तमम् ॥

मंत्रिणं सौम्यदिग्भागे सचिवं कोणसंभवम् ॥६॥   

दक्षिण दिशा में दीखे तो सेनापति को नष्ट करे पश्चिम में हो तो बडे हाकिम सरदार को नष्ट करे, उत्तर तथा ईशान आदि कोणों में दीखे तो राजा के मंत्री को नष्ट करे ।। ६ ।।

राज्यामिंद्रधनुः शुक्लवर्णाढ्यं विप्रपूर्वकम् ॥

हंति यद्दिग्भवं स्पष्टं तद्दिगीशनृपोत्तमम् ॥ ७ ॥

रात्रि में पूर्वदिशा में सफेदवर्ण इंद्रधनुष दीखे तो ब्राह्मणों को नष्ट करे और जिस दिशा में स्पष्ट इंद्रधनुष दीखे उसी दिशा का राजा नष्ट होता है ॥ ७ ॥

अवनीगाढमाच्छिन्नं प्रतिकूलं धनुर्द्वयम् ॥

नृपांतकृद्यदि भवेदानुकूल्यं न तच्छुभम् ॥ ८॥

विना कटा हुआ धनुष पृथ्वी पर शुभफल करता है दो धनुष अशुभ फल करते हैं, राजा को नष्ट करते हैं अनुकूल शुभफल नहीं करते ॥८॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायामिंद्रचापलक्षणाध्यायः श्चतुश्चत्वारिंशत्तमः॥ ४४ ॥

नारदसंहिता अध्याय ४४ 

गंधर्वनगर दर्शन

गंधर्वनगरं दिक्षु दृश्यतेऽनिष्टदं क्रमात् ॥

भूभुजां वा चमूनाथसेनापतिपुरोधसाम् ॥ १ ॥

दिशाओं में गंधर्वनगर दीखना यथाक्रम से राजा, सेनापति,मंत्री पुरोहित इन्होंको अशुभफल करता है ।। १ ॥

सितरक्तपीतकृष्णं विप्रादीनामनिष्टदम् ॥

रात्रौ गंधर्वनगरं धराधीशविनाशनम् ॥ २॥

और सफेद, लाल, पीला, काला, ये वर्ण दीखने यथाक्रम से ब्राह्मणादिकों को अशुभ है रात्रि में गंधर्वनगर दीखे तो राजा को नष्ट करे ॥ ३२ ।।

इंद्रचापाग्निधूमाभं सर्वेषामशुभप्रदम् ॥

चित्रवर्णं चित्ररूपं प्राकारध्वजतोरणम् ॥ ३ ॥

इंद्रधनुष, अग्नि,धूमा इन्होंके सदृश गंधर्वनगर दीखे तो सभी को अशुभफलदायक है विचित्रवर्ण, विचित्ररूप, कोटका आकार, ध्वजा, तोरण ॥ ३ ॥

दृश्यते चेन्महायुद्धमन्योन्यं धरणीभुजाम् ॥ ४ ॥

इन्हके आकार दीखें तो राजाओं का "आपस में महान युद्ध हो ॥ ४ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां गंधर्वनगरदर्शनाध्यायः श्चतुश्चत्वारिंशत्तमः॥ ४४ ॥

नारदसंहिता अध्याय ४४                          

प्रतिसुर्य लक्षण तथा फल

प्रतिसूर्यनिभः स्निग्धः सूर्यः पार्श्वं शुभप्रदः ॥

वैडूर्यसदृशस्वच्छः शुक्लो वापि सुभिक्षकृत् ॥ १ ॥

सूर्य के तेज से बादल में दूसरा सूर्य दीख जाता है वह स्निग्धवर्ण तथा बराबर में दीखे तो शुभ है वैडूर्यं मणि के समान स्वच्छ सफेद दीखे तो सुभिक्ष करता है ।। १ ।।

पीताभो व्याधिदः कृष्णो मृत्युदो युद्धदारुणः ।

माला चेत्प्रतिसूर्याणां शश्वच्चौरभयप्रदा ॥ २ ॥

पीलावर्ण प्रतिसूर्य दीखे तो प्रजा में बीमारी हो, कालावर्ण होय तो मृत्युदायक तथा दारुण युद्ध होता है, बादल में प्रतिसूर्यादी माळा दीखे तो निरंतर चोरों का भय हो ।। २ ।।

जलदोदक्प्रतिसूर्यों भानोर्याम्येनिलप्रदः ।

उभयस्थोंबुभयदो नृपदोपर्यधो नृहा ॥ ३ ॥

उत्तरदिशा में प्रतिसूर्यं दीखे तो वर्षा होवे, दक्षिणदिशा में दीखे तो वायु चले, दोनों तर्फ बराबरों में प्रतिसूर्य दीखे तो वर्षा को बंद करे, सूर्य के ऊपर प्रतिसूर्य दीखे तो राजा को नष्ट करे, सूर्य के नीचे अतिसूर्य दीखे तो प्रजा को नष्ट करे । 

पराभवंति तीक्ष्णांशोः प्रतिसूर्याः समंततः ॥

जगद्विनाशमाप्नोति तथा शीतद्युतेरपि ॥ ४ ॥

सूर्य के चारों तर्फ प्रतिसूर्य होकर साक्षात् सूर्य की क्रांति को ही, न कर दे तो जगत्का नाश हो इसी प्रकार चंद्रमा का भी फल जानना ॥ ४ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां प्रतिसुर्यलक्षणाध्यायः श्चतुश्चत्वारिंशत्तमः॥ ४४ ॥

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ४५  ॥     

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