देवी के नवनाम और लक्षण
श्रीदुर्गा तंत्र यह दुर्गा का
सारसर्वस्व है । इस तन्त्र में देवीरहस्य कहा गया है,
इसे मन्त्रमहार्णव(देवी खण्ड) से लिया गया है। श्रीदुर्गा तंत्र इस
भाग १० में देवी के गुप्त नव नामों और उसके लक्षणों का वर्णन है।
देवी के नवनाम और लक्षण
दुर्गापाठस्य नव नामामि तल्लक्षणानि
च :
रहस्योक्तानि नामानि ब्रह्मोक्तानि
वदामिते ।
देवी के गुप्त नव नामों और उसके
लक्षणों को, जिन्हें ब्रह्मा ने कहा था,
मैं तुम्हें बता रहा हूँ :
महाविद्या महातन्त्री चण्डी
सप्तशतीति च मृतसञ्जीवनी नाम पचमं परिकीर्तितम् ॥ १ ॥
षष्ठं चैव महाचण्डी सप्तमं
रूपदीपिका ॥२॥
अष्टमं तु चतुःषष्टियोगिनी नवमी परा
।
१. महाविद्या २. महातन्त्री ३. चण्डी ४. सप्तशती ५. मृतसञ्जीवनी ६. महाचण्डी
७. रूपदीपिका ८. चतुःषष्टियोगिनी ९. पराचण्डी - ये देवी के नव नाम हैं।
एतानि योभिजानाति नामानि नृपनन्दन ।
जपं विना भवेत्तस्य चण्डिका वरदा
सदा ।
हे राजपुत्र,
जो दुर्गासप्तशती के इन सभी नामों को जानता है उसे जप के बिना ही
चण्डिका सदा वर देती हैं ।
पूर्वोक्त नवविद्यानां स्वरूपं तत्र
चोदितम् ॥ ४॥
पूर्वोक्त नव विद्याओं का स्वरूप
वहाँ कहा गया है ।
अद्याद्वितीयतृतीयचरितानुक्रमेण च ।
महाविद्या सप्तशती सर्वतन्त्रेषु
गोपिता ५॥
१. आद्य,
द्वितीय तथा तृतीय चरितानुक्रम से सप्तशती “'महाविद्या”
सभी तन्त्रों में गुप्त रूप से निहित है ।
आद्यंतमध्यचरितं महातन्त्रमितिरितम्
।
२. आद्य,
अन्त्य तथा मध्य चरितानुक्रम से महाविद्या को 'महातन्त्री” कहा गया है ।
आदिमध्यान्तचारित्रक्रमाच्चण्डीमहामनु:
॥६॥
३. आद्य,
मध्य तथा अन्त्य चरितानुक्रम से महाविद्या को “चण्डीमहामन्त्र” कहा गया है।
मध्यमाद्यन्त
चारित्रक्रमात्तप्तशतीति च ।
४. मध्य,
आद्य तथा चरितानुक्रम से महाविद्या को 'सप्तशती'
कहा गया है ।
इत्यादिमध्यचारित्रन्मृतसञ्जीवनी
स्मृता ॥ ७॥
५. अन्त,
आदि तथा मध्य ता को 'मृतसञ्जीवनी' कहा गया है ।
अन्त्यमध्यादिचारित्रान्महाचण्डीति कथ्यते
।
६. अन्त्य,
मध्य तथा आद्य चरितानुक्रम से महाविद्या को 'महाचण्डी”
कहा गया है ।
रूपं देहीति संयोज्य नवार्णमनुना सह
॥ ८॥
सम्पुटत्वेन संयोज्य प्रतिश्लोकं
जपेत्तथा ।
रूपचण्डीति सा प्रोक्ता
सर्वाभीष्टफलप्रदा ९॥
७. “रूपं देहि जयं देहि'” इस श्लोक को नवार्ण मन्त्र के
साथ संयुक्त करके प्रत्येक श्लोक को उससे सम्पुट करके जप करने को 'रूपचण्डी” कहा गया है । यह सभी अभीष्टों को देने
वाली हैं ।
योगिनीनां
चतुःषष्टियोगात्सप्तशतीमनो: ।
चतुःषष्टीति सा प्रोक्ता
योगसिद्धिप्रदायिनी ॥ १०॥
८. सप्तशती मन्त्रों से चौंसठ
योगिनियों का सम्बन्ध होने से महाविद्या को 'चतुःषष्ठी”
कहते हैं । यह योगसिद्धि प्रदान करने वाली हैं ।
पराबीजसमायोगात्पराचण्डीति कथ्यते ।
९. पराबीज के साथ संयुक्त होने के
कारण महाविद्या को 'पराचण्डी” कहते हैं ।
एवं नवानां भेदानां नामानि च पृथक्
पृथक् ॥ ११॥
इस प्रकार दुर्गासप्तशती के नव
भेदों के पृथक्-पृथक् नाम यहाँ बताये गये हैं ।
इति दुर्गापाठस्य नव नामामि तल्लक्षणानि
॥
श्रीदुर्गा तंत्र आगे जारी...............
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