भवनभास्कर अध्याय ६

भवनभास्कर अध्याय ६     

वास्तुविद्या के अनुसार मकान बनाने से कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है । भवनभास्कर के इस अध्याय ६ में गृहारम्भ का वर्णन किया गया है।

भवनभास्कर अध्याय ६

भवनभास्कर छटवाँ अध्याय

भवनभास्कर

छठा अध्याय  

गृहारम्भ

( १ ) गृहारम्भ और गृहप्रवेश के समय कुलदेवता, गणेश, क्षेत्रपाल, वास्तुदेवता और दिक्पति की विधिवत् पूजा करे । आचार्य, द्विज और शिल्पी को विधिवत् सन्तुष्ट करे । शिल्पी को वस्त्र और अलंकार दे । ऐसा करने से घर में सदा सुख रहता है ।

जो मनुष्य सावधान होकर गृहारम्भ या गृहप्रवेश के समय वास्तुपूजा करता है, वह आरोग्य, पुत्र, धन और धान्य प्राप्त करके सुखी होता है । परन्तु जो मनुष्य वास्तुपूजा न करके नये घरमें प्रवेश करता है, वह नाना प्रकार के रोग, क्लेश और संकट प्राप्त करता है ।

( २ ) मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर और कुम्भ - इन राशियों के सूर्य में गृहारम्भ करना चाहिये । मिथुन, कन्या, धनु और मीन - इन राशियों के सूर्य में गृह - निर्माण आरम्भ नहीं करना चाहिये ।

मेष राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है ।

वृष राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से धन की वृद्धि होती है ।

मिथुन राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से मृत्यु होती है ।

कर्क राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है ।

सिंह राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से सेवकों की वृद्धि होती है ।

कन्या राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से रोग होता है ।

तुला राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से सुख होता है ।

वृश्चिक राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से धन की वृद्धि होती है ।

धनु राशि के सूर्य में गृहारम्भ महान् हानि होती है ।

मकर राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से धन प्राप्त होता है ।

कुम्भ राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से रत्नलाभ होता है ।

मीन राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से रोग तथा भय होता है ।

( ३ ) अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुण्य, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, उत्तराषाढा़, श्रवण, उत्तराभाद्रपद और रेवती - ये नक्षत्र गृहारम्भ में श्रेष्ठ माने गये हैं ।

( ४ ) शुक्लपक्ष में गृहारम्भ करने से सुख और कृष्णपक्ष में गृहारम्भ करने से चोर – डाकुओं से भय होता है ।

(५ ) चैत्र, ज्येष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन, पौष और माघ - ये मास गृहारम्भ के लिये निषिद्ध कहे गये हैं । वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्श और फाल्गुन - ये मास गृहारम्भ के लिये उत्तम कहे गये हैं ।

चैत्र मास में गृहारम्भ करने से रोग और शोक की प्राप्ति होती है ।

वैशाख मास में गृहारम्भ करने से धन - धान्य, पुत्र तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है ।

ज्येष्ठ मास में गृहास्थ करने से मृत्यु तथा विपत्ति प्राप्त होती है ।

आषाढ़ मास में गृहारम्भ करने से पशुओं की हानि होती है ।

श्रावण मास में गृहारम्भ करने से पशु धन और मित्रों की वृद्धि होती है ।

भाद्रपद मास में गृहारम्भ करने से मित्रों का ह्रास, दरिद्रता तथा विनाश होता है ।

आश्विन मास में गृहारम्भ करने से पत्नी का नाश, कलह तथा लड़ाई - झगड़ा होता है ।

कार्तिक मास में गृहारम्भ करने से पुत्र, आरोग्य एवं धन की प्राप्ति होती है ।

मार्गशीर्ष मास में गृहारम्भ करने से उत्तम भोज्य – पदार्थों की तथा धन की प्राप्ति होती है ।

पौष मास में गृहारम्भ करने से चोरों का भय होता है ।

माघ मास में गृहारम्भ करने से अग्नि का भय होता है ।

फाल्गुन मास में गृहारम्भ करने से धन तथा सुख की प्राप्ति और वंश की वृद्धि होती है ।

( कुछ ग्रन्थों में गृहारम्भ के लिये आषाढ़ एवं पौष को शुभ और कार्तिक को अशुभ बताया गया है । )

ईंट – पत्थर के घर में मासदोष का विचार करना चाहिये । घास - फूस एवं लकड़ी का घर बनाने में मासदोष नहीं लगता ।

( ६ ) द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा - ये तिथियाँ गृहारम्भ के लिये शुभ फल देनेवाली हैं ।

प्रतिपदा दरिद्रताकारक, चतुर्थी धननाशक, अष्टमी उच्चाटन करनेवाली, नवमी धान्यनाशक तथा शस्त्र से चोट पहुँचानेवाली, चतुर्दशी पुत्र व स्त्रियों का नाश करनेवाली और अमावस्या राजभय देनेवाली है ।

( ७ ) सोम, बुध, गुरु, शुक्र, और शनि - ये वार गृहारम्भ के लिये उत्तम हैं । रविवार और मंगलवार को गृहारम्भ ( भूमि खोदने का कार्य ) कदापि नहीं करना चाहिये, अन्यथा अनिष्ट होने की सम्भावना है ।

( ८ ) घर, देवालय और जलाशय ( कुआँ, तालाब ) बनाते समय नींव खोदने के लिये राहु की दिशा का विचार करना आवश्यक होता है । किस राशि के सूर्य में राहु का मुख, पुच्छ तथा पृष्ठ ( पीठ ) किस दिशा में रहता है - इसे निम्र तालिका से जानना चाहिये -

गृहारम्भ

सिंह कन्या तुला

वृश्चिक धनु मकर

कुम्भ मेष मीन

वृष मिथुन कर्क

देवालयारम्भ

मीन मेष वृष

मिथुन कर्क सिंह

कन्या तुला वृश्चिक

धनु मकर कुम्भ

जलाशयारम्भ

मकर कुम्भ मीन

मेष वृष मिथुन

कर्क सिंह कन्या

तुला वृश्चिक धनु

राहू का मुख

ईशान

वायव्य

नैर्ऋत्य

आग्नेय

राहू का पुच्छ

नैर्ऋत्य

आग्नेय

ईशान

वायव्य

राहू का पृच्छ

आग्नेय

ईशान

वायव्य

नैर्ऋत्य

उदारणार्थ - सिंह, कन्या अथवा तुला – राशि के सूर्य में घर का निर्माण आरम्भ करना हो तो इस समय राहु का मुख ईशान में तथा पुच्छ नैर्ऋत्य है । मुख तथा पुच्छ को छोड़कर पीठ में अर्थात् आग्नेय दिशा में नींव खोदना शुभ होगा । इसी प्रकार देवालय तथा जलाशय के निर्माण में भी राहु की पीठ में नींव खोदनी चाहिये ।

( ९ ) मार्गशीर्ष, पौष और माघ मास में राहु पूर्व में रहता है । फाल्गुन, चैत्र और वैशाख मास में राहु दक्षिण में रहता है । ज्येष्ठ, आषाढ़ और श्रावण मास में राहु पश्चिम में रहता है । भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास में राहु उत्तर में राहता है । राहु की दिशा में स्तम्भ रखने से वंश का नाश, द्वार बनाने से अग्नि का भय, गमन करने से कार्य की हानि और गृहारम्भ करने से कुल का क्षय होता है ।

( १० ) नींव खोदते समय भूमि के भीतर से यदि पत्थर मिलें तो धन तथा आयु की वृद्धि होती है । ईंट मिले तो धनप्राप्ति तथा समृद्धि होती है । धातु मिले तो वृद्धि होती है । लकड़ी मिले तो अग्नि से भय होता है । राख या कोयला मिले तो रोग होता है । भूसी मिले तो धन का नाश होता है । हड्डी मिले तो कुल का नाश होता है । कौड़ी मिले तो लड़ाई - झगड़ा एवं दुःख होता है । कपास मिले तो रोग व दुःख की प्राप्ति होती है । खर्पर मिले तो कलह, लड़ाई - झगड़ा होता है । लोहा मिले तो मृत्यु होती है । भूमि में से चींटी, मेंढक, साँप, बिच्छू आदि का निकलना अशुभ है ।

( ११ ) शिलान्यास सर्वप्रथम आग्नेय दिशा में करना चाहिये । फिर शेष निर्माण प्रदक्षिण–क्रम से करना चाहिये । गृह–निर्माण की समाप्ति दक्षिण में नहीं होनी चाहिये, अन्यथा धन का नाश, स्त्री में दोष एवं पुत्र की मृत्यु सम्भव है ।

( १२ ) ध्रुवतारा को देखकर या स्मरण करके नींव रखनी चाहिये । मध्याह्न, मध्यरात्रि तथा सन्ध्याकाल में नींव नहीं रखनी चाहिये । मध्याह्न तथा मध्यरात्रि में शिलान्यास करने से कर्ता का और धन का नाश होता है ।

( १३ ) शिलान्यास के लिये चौकोर एवं अखण्ड शिला लेनी चाहिये । लम्बी, छोटी, टेढ़ी - मेढ़ी, खण्डित, काले रंग की एवं टूटी - फूटी शिला अशुभ तथा भयप्रद है ।

( १४ ) गृहारम्भ के समय कठोर वचन बोलना, थूकना और छींकना अशुभ है ।

भवनभास्कर अध्याय ६ सम्पूर्ण

आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय ७    

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