Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2022
(523)
-
▼
March
(75)
- दुर्गा स्तोत्र
- शतचण्डीसहस्रचण्डी विधान
- नारद संहिता
- षोडशी हृदय स्तोत्र
- नारदसंहिता अध्याय ५१
- श्रीविद्याकवच
- नारदसंहिता अध्याय ५०
- त्रिपुट (त्रिशक्तिरूपा) लक्ष्मीकवच
- नारदसंहिता अध्याय ४९
- गायत्री पञ्जर स्तोत्र
- नारदसंहिता अध्याय ४८
- भवनभास्कर
- नारदसंहिता अध्याय ४७
- भवनभास्कर अध्याय २१
- नारदसंहिता अध्याय ४६
- भवनभास्कर अध्याय २०
- नारदसंहिता अध्याय ४५
- भवनभास्कर अध्याय १९
- नारदसंहिता अध्याय ४४
- भवनभास्कर अध्याय १८
- नारदसंहिता अध्याय ४३
- भवनभास्कर अध्याय १७
- नारदसंहिता अध्याय ४२
- भवनभास्कर अध्याय १६
- नारदसंहिता अध्याय ४१
- भवनभास्कर अध्याय १५
- नारदसंहिता अध्याय ४०
- भवनभास्कर अध्याय १४
- नारदसंहिता अध्याय ३९
- भवनभास्कर अध्याय १३
- नारदसंहिता अध्याय ३८
- भवनभास्कर अध्याय १२
- नारदसंहिता अध्याय ३७
- भवनभास्कर अध्याय ११
- नारदसंहिता अध्याय ३६
- भवनभास्कर अध्याय १०
- वार्षिक नवचण्डी विधान
- भवनभास्कर अध्याय ९
- दैनिक व मास नवचण्डी विधान
- भवनभास्कर अध्याय ८
- नवचण्डीविधान
- भवनभास्कर अध्याय ७
- देवी के नवनाम और लक्षण
- भवनभास्कर अध्याय ६
- सप्तशती प्रति श्लोक पाठ फल प्रयोग
- भवनभास्कर अध्याय ५
- दत्तात्रेयतन्त्र
- दत्तात्रेयतन्त्र पटल २२
- भवनभास्कर अध्याय ४
- दत्तात्रेयतन्त्र पटल २१
- भवनभास्कर अध्याय ३
- वराह स्तोत्र
- दुर्गा सप्तशती शापोद्धारोत्कीलन
- भवनभास्कर अध्याय २
- भवनभास्कर अध्याय १
- नारदसंहिता अध्याय ३५
- दत्तात्रेयतन्त्र पटल २०
- नारदसंहिता अध्याय ३४
- दत्तात्रेयतन्त्र पटल १९
- नारदसंहिता अध्याय ३३
- दुर्गा सप्तशती प्रयोग
- कुमारी तर्पणात्मक स्तोत्र
- दुर्गे स्मृता मन्त्र प्रयोग
- बगलामुखी सहस्त्रनामस्तोत्र
- नारदसंहिता अध्याय ३२
- बगलामुखी शतनाम स्तोत्र
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग १०
- बगलामुखी कवच
- नारदसंहिता अध्याय ३१
- विद्वेषण प्रयोग
- दत्तात्रेयतन्त्र पटल १८
- गायत्रीस्तोत्र
- स्तम्भन प्रयोग
- गायत्री हृदय
- वशीकरण प्रयोग
-
▼
March
(75)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
सप्तशती प्रति श्लोक पाठ फल प्रयोग
श्रीदुर्गा तंत्र यह दुर्गा का
सारसर्वस्व है । इस तन्त्र में देवीरहस्य कहा गया है,
इसे मन्त्रमहार्णव(देवी खण्ड) से लिया गया है। श्रीदुर्गा तंत्र इस
भाग ९ में दुर्गा सप्तशती श्लोकान्तर्गत प्रति श्लोक पाठ फल प्रयोग का वर्णन है।
सप्तशती प्रति श्लोक पाठ फल प्रयोग
कार्यपरत्वेन
सप्तशतीस्तोत्रान्तर्गतप्रतिश्लोकप्रयोगेणाह :
कार्यपरक सप्तशती श्लोकान्तर्गत
प्रति श्लोक के पाठ प्रयोग का फल इस प्रकार होता है :
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि
भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥
अस्यकेवलस्यापि श्लोकस्य
कार्यानुसारेण लक्षमयुतं सहस्त्रं शतं वा जपाः सर्वापत्तिनिवारणं स्यात् ॥१॥
“ॐ दुर्गे स्मृता ” केवल इस श्लोक से ही कार्यानुसार एक लाख, दश हजार या
सौ बार जप करने से सभी आपत्तियों का निवारण होता है ।
अन्यच्च : ततो वव्रे नृपो राज्यमविभ्रंश्यन्यजन्मनि
।
अत्रैव च निज राज्यं हतशत्रुबलं
बलात् ।
इति मन्त्रस्य लक्षजपे पुनः
स्वराज्यप्राप्ति: ॥ २॥
और भी : “ॐ ततो ” इस मन्त्र का एक लाख जप करने पर पुनः अपना
राज्य प्राप्त हो जाता है ।
अन्यच्च : ॐ दुर्गे स्मृता हरसि
भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥
इति कार्यानुसारेण लक्षमयुतं सहस्त्रं
शतं वा जपाः सर्वापत्तिनिवारणं स्यात् ॥३॥
और भी : “ॐ दुर्ग ” कार्यानुसार इसका एक लाख, दस हजार या एक एक हजार या एक सौ जप समस्त आपत्तियों का निवारण करता है।
अन्यच्च : ॐ भगवत्या कृतं सर्व॑ न
किञ्चिदवशिष्यते ।
यदयं निहतः शत्रुरस्माकं महिषासुर:
।
यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महे
श्वरि ।
संस्मृतासंस्मृता त्वं नो हिंसेथा:
परमापद: ।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां
स्तोष्यत्यमलानने ।
तस्य वित्तर्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्
।
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः
सर्वदाम्बिके ।
इति द्वादशोत्तरशताक्षरों मन्त्र:
सर्वकामदः सर्वापन्निवारणश्च ॥ ४॥
और भी : “ॐ भगवत्या ” यह एक सौ बारह अक्षरों का मन्त्र समस्त
कामनाओं को पूर्ण करने वाला तथा समस्त आपत्तियों का निवारक है ।
अन्यच्च :
ॐ देवि प्रपन्नर्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥
इति श्लोकस्य यथाकार्यं
लक्षायुतसहस्रशतान्यतमे जपे सर्वापन्निवृत्ति: सर्वकामाप्तिश्च ।
इति श्लोकेन दीपाग्रे केवलमेव
नमस्कारकरणे अतिशीघ्रं सिद्धि: ॥ ५॥
और भी : “ॐ देवि प्रपन्नार्तिहरे” कार्य के अनुसार इस श्लोक
का एक लाख, दश हजार, एक हजार या एक सौ
में से किसी संख्या में जप करने से समस्त आपत्तियों की निवृत्ति और समस्त अभीष्टों
की प्राप्ति होती है । इस श्लोक से दीपक के सामने केवल नमस्कार मात्र करने से
अतिशीघ्र सिद्धि होती है ।
अन्यच्च : ॐ इत्थं निशम्य देवानां
वचांसि मधुसूदनः ।
चकार कोपं शम्भुश्च भ्रुकुटीकुटिलाननौ
।
इति श्लोकं त्रिंशसहस्त्रं जपेत् ।
सम्पत्समृद्धिर्भवति ॥ ६॥
और भी : “ॐ इत्थं ' इस श्लोक को तीस हजार जपने से सम्पत्ति
तथा समृद्धि प्राप्त होती है ।
अन्यच्च : ॐ नमो देव्यै महादेव्यै
शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियता:
प्रणताः स्मताम् ।
इति मन्त्रेण मासं जपः दशांशेन
क्षीरसंयुतैः कमलैर्होमो वा लक्ष्मीप्राप्ति: ॥७॥
और भी : “ॐ नमो देव्यै” इस मन्त्र से मास पर्यन्त जप करके
दशांश से दुग्धयुक्त कमलों के द्वारा होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।
अन्यच्च : ॐ
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां
न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥
इति लक्षं जपेत् रोगनाशः स्यात् ॥
८॥
और भी : “ॐ रोगानशेषानपहंसि ” इस मन्त्र का एक लाख जप करने से
रोग का नाश होता है।
अन्यच्च : ॐ इत्युक्ता सा तदा देवी
गम्भीरान्तः स्मिता जगौ ।
दुर्गा भगवती भद्रा ययेदंधार्यते
जगत् ।
इति लक्षं जपेत् विद्याप्राप्तिः
वाग्वैकृतनाशश्च ॥ ९ ॥
और भी : “इत्युक्ता सा ” इसका एक लाख जप करने से विद्या
प्राप्ति होती है तथा वाणी की विकृति का नाश होता है ।
अन्यच्च : ॐ हिनस्ति दैत्यतेजांसि
स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा नो देवि पापेभ्यो नः
सुतानिव ।
इत्यनेन सदीपबलिदानं घण्टाबन्धनेन
बालग्रहशान्ति: ॥१० ॥
और भी : “
हिनस्ति” इससे दीपक सहित बलिदान और घण्टाबन्धन
से बालग्रह की शान्ति होती है ।
अन्यच्च : ॐ इत्यं यदायदा बाधा
दानवोत्था भविष्यति ।
तदातदाऽवतीर्याहं
करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।
इति श्लोकस्य लक्षजपे
महामारीशान्ति: ॥ ११॥
और भी : “ॐ इत्थं यदा '' इस श्लोक का एक लाख जप करने पर
महामारी की शान्ति होती है ।
अन्यच्च : ॐ सर्वबाधाप्रशमनं
त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया
कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।
इत्यस्य लक्षजपे श्लोकोक्तं फलं
सर्वबाधाशमनं च ॥ १२॥
और भी : ॐ सर्वबाधा ”
इसका एक लाख जप करने पर श्लोक में कहे गये फलों की प्राप्ति तथा
समस्त बाधाओं की शान्ति होती है।
अन्यच्च : ॐ एवमुक्ता समुत्पत्त्य
सारूढा तं महासुरम् ।
पादेनाक्रम्य कण्ठे च
शूलेनैनमताडयत् ।
इति लक्षं जपेत्
मारणोक्तावृत्तिभि: फलसिद्धि: ॥ १३॥
और भी : “ॐ एवमुक्त्वा ” इसका एक लाख जप करना चाहिये । मारण
के लिए कही गयी आवृत्ति के बराबर पाठ करने से फल की सिद्धि होती है ।
अन्यच्च : ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि
देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति
।
इति श्लोक जपमात्रेण सद्यो
मोहनमित्यनुभव सिद्धम् ॥१४ ॥
और भी : “ॐ ज्ञानिनामपि ” इस श्लोक के जपमात्र से तत्काल मोहन
हो जाता है । यह अनुभवसिद्ध है ।
इति कार्यपरत्वेन
सप्तशतीस्तोत्रान्तर्गतप्रतिश्लोकप्रयोगेणाह
।
श्रीदुर्गा तंत्र आगे जारी...............
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: