दत्तात्रेयतन्त्र पटल २२

दत्तात्रेयतन्त्र पटल २२                 

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल २१ में आपने द्रावणादिकथन पढ़ा, अब पटल २२ में भूतग्रहादिनिवारण, सिह व्याघ्रादिनिवारण, सर्पभयनिवारण, बृश्चिकभयनिवारण तथा अग्निभयनिवारण बतलाया गया है।

दत्तात्रेयतन्त्र पटल २२

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् द्वाविंशतितम: पटलः

दत्तात्रेयतन्त्र बाईसवां पटल

दत्तात्रेयतन्त्र पटल २२                   

दत्तात्रेयतन्त्र    

द्वाविंशति पटल

भूतग्रहादिनिवारण

ईश्वर उवाच

बिल्वमूलं देवदारु गोश्रृङ्गं च प्रियंगु च ।

पिष्ट्वा धूपो निहन्त्याशु भूतग्रहज्वरादिकान्‌ ॥ १ ॥

शाकिन्यो राक्षसाः प्रेता: पिशाचा ब्रह्मराक्षसा: ।

ऐकाहिको द्वयाहिकश्च ज्बरों नश्यति तत्तक्षणात्‌ ॥ २ ॥

शिवजी बोले-(हे दत्तात्रेयजी ! ) बेल की जड़, देवदारु, बबूर प्रियंगू के फूल इन सबको बराबर ले पीसकर धूप बनावे उस धूप के देने से भूत- बाघा ग्रहबाधा ज्वरादिक नष्ट होते हैं। शाकिनी, राक्षस, प्रेत, पिशाच जनितपीडा एवं दो दिन में आनेवाला ज्वर उसी समय दूर हो जाता है। १-२ ॥।

शिरीषनिम्बयो: पत्रं गोश्रृङ्गस्य च त्वग्वच ।

वंशत्वक्‌ शिखिपुच्छं च कंगुना च घृतं समम्‌ ॥।

धूपो बालग्रहान्हन्ति ह्येतन्मन्त्रेण मंत्रित: ॥। ३

मंत्र:- ॐ द्रुतं मुञ्च उड्डामरेश्वर आज्ञापयति स्वाहा ॥।

शिरस और नीम के पत्ते एवं बबूर की छाल, मोर की पूंछ, कांगनी- धान और ,घी को बराबर लेकर इनको नीचे लिखें मंत्र को पढ़कर धूप देने से बालग्रह नष्ट हो जाते हैं ॥ ३ ॥

'ॐ द्रुतं मुञ्च उड्डामरेश्वर आज्ञापयति स्वाहा' यह मंत्र हैं ।।

श्रीवासं सैन्धवं कुष्ठं वचां तैलं घृतं वसा ।

धूपो बालग्रहे देयो ग्रहराक्षसशान्तये ।। ४ ।।

चन्दन, सेंधा, कूठ, वच, तेल, घी और चर्बी को बराबर ले घूप देने से बालग्रह और राक्षसजनित भय दूर हो जाता है।। ४ ॥।

पुनर्नवानिम्बपत्रसर्षपघृतेविरचितो धूप: ।

गर्भिण्या बालानां सततं रक्षाकर: कथित: ।। ५॥।

सोंठ, नीम के पत्ते, सरसों घी इनको बराबर मिलाय धूप देने से बालकों की निरन्तर रक्षा रहती है ।। ५ ॥

पुष्यार्के श्वेतगुञ्जाया मूलमुद्धत्य धारयेत्‌ ।

बालनां कण्ठदेशे तु डाकिनीभयनाशनम्‌ ।। ६ ॥।

पुष्प नक्षत्र युक्त रविवार के दिन सफेद घुंघुची की जड उखाडकर बालक के गले में बांधने से डाकिनी का भय जाता है ॥ ६ |

दाडिमस्य च वृन्दाकं ज्येष्ठर्क्षे तु समुद्धरेत्‌ ।

द्वारबंधे च बालानां सर्वग्रहनिवारणम्‌ । ७ ॥

आर्द्रानक्षत्र में दाडिमी क़ा बन्दा लाकर घर के दरवाजे पर बांध दे तो ग्रहजनित पीडा दूर हो जाती है ।। ७ ॥॥

नृसिहमंत्रवीजन्तु सकृदुच्चरितं हरेत्‌ ।

डाकिनीप्रेतभूतानि तमः सूर्योदयो यथा ॥॥ ८ ।।

नृसिहमंत्र:-ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकशिपुवक्षस्थलविदारणाय त्रिभुवनव्यापकाय भूतप्रेतपिशाच डाकिनी कुलोन्मूलनाय स्तम्भोद्भवाय समस्तदोषान्‌ हरहर विसरविसर पचपचहनहन कम्पयकम्पये मथमथ ह्रीं ह्रीं ह्रीं फट्फट् ठ: ठ: एह्येहि रुद्र आज्ञा पयति स्वाहा ॥।

उपरोक्त नृसिह भगवान्‌ के बीजमंत्र को एक वार पढने से ही डाकिनी, भूतजनित पीडा दूर हो जाती है जैसे सूर्योदय से अंधकार दूर हो जाता है ॥॥८॥

श्वेतापराजितापत्रं जपापत्रं द्वयो रसम्‌ ।

नस्यं कुर्यात्पलायन्ते डाकिनीदानवादय: ॥। ९ ॥।

सफेद अपराजिता के पत्ते और जयंती के पत्ते का रस निकाल नस्य देने से डाकिनी दानवादिक भाग जाते हैं ।

सिंहव्याघ्रादि भयनिवारण

पुष्यार्के तु समानीय श्वेतार्कस्य च मूलकम्‌ ।

धारयेद्दक्षिणे हस्ते सिहव्याघ्रभयं नहिं ॥ १० ॥

पुष्य नक्षत्र युक्त रविवार के दिन सफेद आक की जड को लाकर दहिने हाथ में बांघने से सिंहव्याघ्रादि का भय नष्ट होता है ॥ १० ॥।

गृहीत्वा शुभनक्षत्रे कृष्णधत्तूरमूलकम्‌ ।

धारयेद्दक्षिणे हस्ते व्याघ्रबाधाभयं नहिं ॥ ११ ॥।   

शुभ नक्षत्र में काले धतूरे की जड लाकर दहिने हाथ में बांधने से व्याघ्र का भय नहीं रहता है ।। ११ ॥।

सर्पभयनिवारण

आस्तिकं मुनिराजं च नमस्कृत्य पुनः पुनः ।

स्वप्ने सर्पभयं नास्ति तया सर्पनिवारण्‌ ॥॥ १२ ॥

आस्तिक मुनिराज को वारंवार नमस्कार करने से स्वप्न में भी सर्प का भय नहीं रहता और उसे देख सर्प भाग जाते हैं ।। १२ ।।

गृहीत्वा पुष्यनक्षत्रे ह्यमृतामूलकं पुनः ।

तन्मालां धारयेत्कंठ सर्पबाधाभयं नहि ॥ १३ ॥।

पुष्य नक्षत्र में गिलोय की जड लाकर उसकी माला बनाय गले में धारण करने से सर्प का भय नहीं रहता है।

वृश्चिकभयनाशन

गृहीत्वा शुभनक्षत्रे अपामार्गस्य मूलकम्‌ ।

धारयेद्दक्षिणे कर्णे वृश्चिचकाद्भीर्न विद्यते ॥। १४ ।।

शुभ नक्षत्र में अपामार्ग की जड लाकर दहिने कान में धारण करने से वीछी का भय नहीं रहता है ।

अग्निभयनिवारण

गृहीत्वा रविवारे च श्वेतकरवीरमूलकम्‌ ।

धारयेद्दक्षिणे हस्ते ह्यग्निबाधाभयं नहि ॥। १५ ॥।

मंत्र:-ॐ नमोऽग्निरूपाय ह्रीं नमः । अनेन मन्त्रेण सप्ता-

लिजलं वह्निमध्ये निक्षिपेत्तदा अग्निशान्तिर्भवति ।। १६ ॥।

रविवार के दिन सफेद कनेर की जड लाकर दहिने हाथ में धारण करने से अग्नि का भय दूर हो जाता है ।

ॐ नमोऽग्निरूपाय ह्रीं नम: ।' इस मंत्र को पढ़कर सात अंजलि जल अग्नि में छोड दे तो अग्नि शान्त हो जाती है।।

इति श्रीदत्तात्रेयतंत्रे दत्तात्रेयेश्वरसंवादे भूतग्रहादिनिवारणं नाम द्वाविशतितम: पटल: ॥। २२ ॥

इति श्रीदत्तात्रेयतंत्र सम्पूर्ण॥

About कर्मकाण्ड

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 $type={blogger} :

Post a Comment