भवनभास्कर अध्याय ३
वास्तुविद्या बहुत प्राचीन विद्या
है । विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ ' ॠग्वेद '
में भी इसका उल्लेख मिलता है । इस विद्या के अधिकांश ग्रन्थ लुप्त
हो चुके हैं और जो मिलते है, उनमें भी परस्पर मतभेद हैं ।
वास्तुविद्या के गृह - वास्तु , प्रासाद - वास्तु, नगर - वास्तु, पुर - वास्तु, दुर्ग
- वास्तु आदि अनेक भेद हैं । भवनभास्कर के इस अध्याय ३ में भूमि-प्राप्ति के लिये
अनुष्ठान का वर्णन किया गया है।
भवनभास्कर तीसरा अध्याय
भवनभास्कर
तीसरा अध्याय
भूमि-प्राप्ति के
लिये अनुष्ठान
किसी व्यक्ति को प्रयत्न करने पर भी
निवास के लिये भूमि अथवा मकान न मिल रहा हो, उसे
भगवान् वराह की उपासना करनी चाहिये । भगवान् वराह की उपासना करने से, उनके मन्त्र जप करने से, उनकी स्तुति - प्रार्थना
करने से अवश्य ही निवास के योग्य भूमि या मकान मिल जाता है ।
स्कन्दपुराण के वैष्णवखण्ड में आया
है कि भूमि प्राप्त करने के इच्छुक मनुष्य को सदा ही इस मन्त्र का जप करना चाहिये
-
ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्युद्धारणाय
स्वाहा ।
ध्यान - भगवान् वराह के अंगों की
कान्ति शुद्ध स्फटिक गिरि के समान श्वेत है । खिले हुए लाल कमलदलों के समान उनके
सुन्दर नेत्र हैं । उनका मुख वराह के समान है, पर
स्वरुप सौम्य है । उनकी चार भुजाऍ हैं । उनके मस्तक पर किरीट शोभा पाता हैं और
वक्षःस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न है । उनके चार हाथों में चक्र, शङ्ख, अभय - मुद्रा और कमल सुशोभित है । उनकी बायीं
जाँघ पर सागराम्बरा पृथ्वी देवी विराजमान हैं । भगवान् वराह लाल, पीले वस्त्र पहने तथा लाल रंग के ही आभूषणों से विभूषित हैं । श्रीकच्छप के
पृष्ठ के मध्य भाग में शेषनाग की मूर्ति है । उसके ऊपर सहस्त्रदल कमल का आसन है और
उस पर भगवान् वराह विराजमान हैं ।
उपर्युक्त मन्त्र के सङ्कर्षण ॠषि,
वाराह देवता, पंक्ति छन्द और श्री बीज है ।
उसके चार लाख जप करे और घी व मधुमिश्रित खीर का हवन करे ।
भूमि-प्राप्तिके लिये निम्न
स्तुतियों का नित्य पाठ करें-
भवनभास्कर अध्याय ३ सम्पूर्ण ॥
आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय ४
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