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- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ८
- षोडशी कवच
- मातङ्गी शतनाम स्तोत्र
- शीतला कवच
- मातङ्गी सहस्रनाम स्तोत्र
- मातङ्गीसुमुखीकवच
- मातङ्गी कवच
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ७
- मातङ्गी हृदय स्तोत्र
- वाराही कवच
- शीतलाष्टक
- श्री शीतला चालीसा
- छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
- धूमावती अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता सहस्रनाम स्तोत्र
- धूमावती अष्टक स्तोत्र
- छिन्नमस्ता हृदय स्तोत्र
- धूमावती कवच
- धूमावती हृदय स्तोत्र
- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ६
- नारदसंहिता अध्याय ११
- छिन्नमस्ता कवच
- श्रीनायिका कवचम्
- मन्त्रमहोदधि पञ्चम तरङ्ग
- नारदसंहिता अध्याय १०
- नारदसंहिता अध्याय ९
- नारदसंहिता अध्याय ८
- नारदसंहिता अध्याय ७
- नारदसंहिता अध्याय ६
- नारदसंहिता अध्याय ५
- मन्त्रमहोदधि चतुर्थ तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि तृतीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि द्वितीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि - प्रथम तरड्ग
- द्वादशलिङगतोभद्रमण्डलदेवता
- ग्रहलाघव त्रिप्रश्नाधिकार
- ग्रहलाघव पञ्चतारास्पष्टीकरणाधिकार
- ग्रहलाघव - रविचन्द्रस्पष्टीकरण पञ्चाङ्गानयनाधिकार
- नारदसंहिता अध्याय ४
- नारदसंहिता अध्याय ३
- ग्रहलाघव
- नारद संहिता अध्याय २
- नारद संहिता अध्याय १
- सवितृ सूक्त
- शिवाष्टकम्
- सामनस्य सूक्त
- ब्रह्मा स्तुति श्रीरामकृत
- श्रीरामेश्वरम स्तुति
- ब्रह्माजी के १०८ तीर्थनाम
- ब्रह्मा स्तुति
- शिव स्तुति श्रीरामकृत
- चामुण्डा स्तोत्र
- त्रिप्रकार स्तुति
- महादेव स्तुति तण्डिकृत
- महादेव स्तुति
- महादेव स्तुति उपमन्युकृत
- तण्डिकृत शिवसहस्रनाम
- शिव स्तुति अर्जुनकृत
- दुर्गा स्तवन अर्जुनकृत
- शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [प्रथम-सृष्टिखण्...
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 19
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 18
- सरस्वती स्तोत्र
- नील सरस्वती स्तोत्र
- मूर्त्यष्टकस्तोत्र
- श्रीराधा स्तुति
- श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
वाराही कवच
वाराही कवच के नित्य पाठ करने से भूतादिगण,
आपदा, शत्रु, ग्रहदोष, चोरादि से माता वाराही सदा रक्षा करती है।
श्रीवाराहीकवचम्
अस्य श्रीवाराहीकवचस्य त्रिलोचन
ऋषीः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीवाराही देवता, ॐ बीजं, ग्लौं शक्तिः, स्वाहेति कीलकं,मम
सर्वशत्रुनाशनार्थे जपे विनियोगः ॥
ध्यानम् -
ध्यात्वेन्द्र नीलवर्णाभां
चन्द्रसूर्याग्नि लोचनां ।
विधिविष्णुहरेन्द्रादि
मातृभैरवसेविताम् ॥ १॥
ज्वलन्मणिगणप्रोक्त
मकुटामाविलम्बितां ।
अस्त्रशस्त्राणि सर्वाणि
तत्तत्कार्योचितानि च ॥ २॥
एतैस्समस्तैर्विविधं बिभ्रतीं मुसलं
हलं ।
पात्वा हिंस्रान् हि कवचं
भुक्तिमुक्ति फलप्रदम् ॥ ३॥
पठेत्त्रिसन्ध्यं रक्षार्थं
घोरशत्रुनिवृत्तिदं ।
वार्ताली मे शिरः पातु घोराही
फालमुत्तमम् ॥ ४॥
नेत्रे वराहवदना पातु कर्णौ
तथाञ्जनी ।
घ्राणं मे रुन्धिनी पातु मुखं मे
पातु जन्धिन् ॥ ५॥
पातु मे मोहिनी जिह्वां स्तम्भिनी
कन्थमादरात् ।
स्कन्धौ मे पञ्चमी पातु भुजौ
महिषवाहना ॥ ६॥
सिंहारूढा करौ पातु कुचौ
कृष्णमृगाञ्चिता ।
नाभिं च शङ्खिनी पातु पृष्ठदेशे तु
चक्रिणि ॥ ७॥
खड्गं पातु च कट्यां मे मेढ्रं पातु
च खेदिनी ।
गुदं मे क्रोधिनी पातु जघनं
स्तम्भिनी तथा ॥ ८॥
चण्डोच्चण्डश्चोरुयुगं जानुनी
शत्रुमर्दिनी ।
जङ्घाद्वयं भद्रकाली महाकाली च
गुल्फयो ॥ ९॥
पादाद्यङ्गुलिपर्यन्तं पातु
चोन्मत्तभैरवी ।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालसङ्कर्षणी
तथा ॥ १०॥
युक्तायुक्ता स्थितं नित्यं
सर्वपापात्प्रमुच्यते ।
सर्वे समर्थ्य संयुक्तं भक्तरक्षणतत्परम्
॥ ११॥
समस्तदेवता सर्वं सव्यं विष्णोः
पुरार्धने ।
सर्शशत्रुविनाशाय शूलिना निर्मितं
पुरा ॥ १२॥
सर्वभक्तजनाश्रित्य सर्वविद्वेष
संहतिः ।
वाराही कवचं नित्यं त्रिसन्ध्यं यः
पठेन्नरः ॥ १३॥
तथाविधं भूतगणा न स्पृशन्ति कदाचन ।
आपदश्शत्रुचोरादि ग्रहदोषाश्च
सम्भवाः ॥ १४॥
मातापुत्रं यथा वत्सं धेनुः
पक्ष्मेव लोचनं ।
तथाङ्गमेव वाराही रक्षा रक्षाति
सर्वदा ॥ १५॥
इति श्रीवाराहीकवचं सम्पूर्णम् ।
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