शीतलाष्टक

शीतलाष्टक

भारतवर्ष में शीतला कुलदेवी व ग्राम देवी के रूप में पूज्य हैं। मां शीतला को आरोग्य प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। इनकी आराधना करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और हमेशा मां की कृपा बनी रहती है। माता अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी कर देती है। हैजा व त्वचा के रोग विशेषकर चिकन पॉक्स (छोटी-बड़ी माता) का रोग दूर कर देती है। भगवान शिव जी द्वारा रचित शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ मात्र से जातक स्वस्थ रहता है और रोग उससे दूर रहते हैं। इसका पाठ और श्रवण करना दोनों ही फलदायी माना जाता है।

शीतलाष्टक

शीतलाष्टक स्तोत्र

Sheetla Ashtakam Stotram

शीतलाष्टकम्

अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः  शीतला देवता लक्ष्मीर्बीजम् भवानी शक्तिः सर्वविस्फोटकनिवृत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

शीतलाष्टक अर्थ सहित  

ईश्वर उवाच ।

वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम् ॥ १॥

गर्दभ(गधा) पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में मार्जनी(झाड़ू) तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वन्दना करता हूँ।

वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम् ।

यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत् ॥ २॥

हे मां भगवती शीतला मेरा प्रणाम स्वीकार करें, सभी प्रकार के भय और रोगों का नाश करने वाली मां शीतला आप मुझे आशीष दें। आपकी शरण में जाने से चेचक जैसे बड़े से बड़े रोग दूर हो जाते हैं।

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयद्दाहपीडितः ।

विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ॥ ३॥

चेचक की जलन से पीड़ित जो व्यक्ति शीतले-शीतले” - ऎसा उच्चारण करता है, उसका भयंकर विस्फोटक रोग जनित भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

यस्त्वामुदकमध्ये तु ध्यात्वा सम्पूजयेन्नरः ।

विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥ ४॥

जो मनुष्य आपकी प्रतिमा को हाथ में लेकर जल के मध्य स्थित हो आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक, चेचक, रोग का भीषण भय नहीं उत्पन्न होता है।

शीतले ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।

प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥ ५॥

हे मां शीतला ज्वर से संतप्त, मवाद की दुर्गन्ध से युक्त व्यक्ति के लिए आपको ही जीवन रूपी औषधि माना जाता है।

शीतले तनुजान् रोगान् नृणां हरसि दुस्त्यजान् ।

विस्फोटकविदीर्णानां त्वमेकाऽमृतवर्षिणी ॥ ६॥

हे मां शीतला, आप मनुष्यों के शरीर में होने वाले पीड़ादायक रोगोंका नाश करती हैं। आपके आशीर्वाद से चेचक रोग कभी आपके भक्तों को कष्ट नहीं पहुंचाता है।

गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।

त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति सङ्क्षयम् ॥ ७॥

हे मां शीतला, गलगण्ड ग्रह, चेचक जैसे भीषण रोग हैं, आपके ध्यान मात्र से ही नष्ट हो जाते हैं। आपकी महिमा अपरंपार है।

न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।

त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥ ८॥

हे शीतला मां चेचक जैसे उपद्रवकारी पाप रोग की न कोई औषधि है और ना ही मन्त्र है। वो एकमात्र आपके स्मरण से ठीक हो जाता है।

शीतलाष्टक फलश्रुति

मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम् ।

यस्त्वां सञ्चिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥ ९॥

हे देवि! जो प्राणी मृणाल तन्तु के समान कोमल स्वभाव वाली और नाभि तथा हृदय के मध्य विराजमान रहने वाली आप भगवती का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती।

अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।

विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥ १०॥

जो मनुष्य भगवती शीतला के इस अष्टक का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक का घोर भय नहीं रहता।

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभाक्तिसमन्वितैः ।

उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥ ११॥

व्यक्ति को अपने सभी विघ्न-बाधाओं का नाश करने के लिये श्रद्धा से शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और सुनना चाहिए।

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता ।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥ १२॥

हे मां शीतला, आप जगतजननी हैं आप सम्पूर्ण जगत की माता हैं, आप पूरे ब्रह्मांड की पालन करने वाली हैं, आप शत-शत नमस्कार हैं।

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः ।

शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥ १३॥

एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।

तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते ॥ १४॥

हे मां शीतला आपकी महिमा अपरंपार है, आप अपने भक्तों का हमेशा ख्याल रखती हैं, जो भी भक्त रासभ, गर्दभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतला वाहन, दूर्वाकन्द, निकृन्तन, भगवती शीतला के वाहन आपके इन नामों का स्मरण करता है उसके घर में चेचक रोग नहीं होता है।

शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्यकस्यचित् ।

दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै ॥ १५॥

इस शीतलाष्टक स्तोत्र को जिस किसी अनधिकारी को नहीं देना चाहिए अपितु भक्ति तथा श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चाहिए।

॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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