भवनभास्कर अध्याय २
भवनभास्कर के इस अध्याय २ में निवास
के योग्य स्थान का वर्णन किया गया है।
'वास्तु' शब्द
का अर्थ है - निवास करना ( वस निवासे ) । जिस भूमि पर मनुष्य निवास करते हैं,
उसे 'वास्तु' कहा जाता
है । कुछ वर्षो से लोगों का ध्यान वास्तुविद्या की ओर गया है । प्राचीनकाल में विद्यार्थी
गुरुकुल में रहकर चौंसष्ठ कलाओं ( विद्याओं ) - की शिक्षा प्राप्त करते थे,
जिनमें वास्तुविद्या भी सम्मिलित थी । हमारे प्राचीन ग्रन्थों में
ऐसी न जाने कितनी विद्याऍ छिपी पड़ी हैं, जिनकी तरफ अभी लोगों
का ध्यान नहीं गया है । सनत्कुमारजी के पूछने पर नारदजी ने कहा था -
ॠग्वेदं भगवोऽध्येमि यजुर्वेद ৯ सामवेदमाथर्वणं
चतुर्थमितिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदं पित्र्य ৯राशि दैवं निधिं
वाकोवाक्यमेकायनं देवाविद्यां ब्रह्मविद्यां भूतविद्यां क्षत्रविद्यां
नक्षत्रविद्या ৯सर्पदेवजनविद्यामेतद्भगवोऽध्यमि
॥ ( छान्दोग्योपनिषद् ७ / १ / २ )
'भगवन् ! मुझे ॠग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और चौथा अथर्ववेद याद है । इनके
सिवाय इतिहास - पुराणरुप पाँचवाँ वेद, वेदों का वेद (
व्याकरण ), श्राद्धकल्प, गणित, उत्पातज्ञान, निधिशास्त्र, तर्कशास्त्र,
नीति, देवजनविद्या, भूतविद्या,
क्षत्रविद्या, नक्षत्रविद्या, सर्पविद्या और देवजनविद्या - हे भगवन् ! यह सब में जातना हुँ ।'
भवनभास्कर दूसरा अध्याय
भवनभास्कर
दूसरा अध्याय
निवास के योग्य स्थान
(१) मनुष्य को किस गाँव अथवा नगर में
तथा किस दिशा में निवास करना चाहिये - यह बात नारदपुराण में इस प्रकार बतायी गयी
है ।
अपने से पाँचवे वर्ग में अर्थात्
सम्मुख दिशा में निवास नहीं करना चाहिये । अपने नाम के आदि अक्षर से अपना वर्ग तथा
गाँव के नाम के आदि अक्षर से गाँव का वर्ग समझना चाहिये । उदारणार्थ,
'नारायण' नामक व्यक्ति को 'गोरखपुर' में निवास करना हैं । 'नारायण' का वर्ग तवर्ग तथा दिशा पश्चिम हैं और '
गोरखपुर ' का वर्ग कवर्ग तथा दिशा आग्नेय है ।
' नारायण ' के वर्ग से ' गोरखपुर ' का वर्ग छठा पड़ता है; अतः गोरखपुर निवास के लिये योग्य स्थान हुआ ।
अब यह विचार करना है कि 'नारायण' नामक व्यक्ति को 'गोरखपुर'
में रहने तथा व्यापार करने से कितना लाभ होगा ? साधक (नारायण) - की वर्ग - संख्या ५ है और साध्य (गोरखपुर) - की वर्ग -
संख्या २ है ।
साधक - साध्य : ८ = धन ( लाभ )
साध्य - साधक : ८ = ऋण ( खर्च )
पहले साधक की वर्ग - संख्या और फिर
साध्य की वर्ग - संख्या रखने से ५२ संख्या हुई । इसमें ८ का भाग देने से ४ बचा ।
यह साधक का 'धन' हुआ ।
इससे विपरीत वर्ग - संख्या २५ को ८ का भाग देने से १ बचा । यह साधक का ' ॠण ' हुआ । इससे सिद्ध हुआ कि साधक ' नारायण ' को साध्य ' गोरखपुर '
में निवास करने तथा व्यापार करने से ४ लाभ तथा १ खर्च होता रहेगा ।
(यदि ८ का भाग देने से शून्य बचे
तो उसे ८ ही मानना चाहिये ।)
(२) अपनी राशि से जिस गाँव की
राशि दूसरी, पाचवीं, नवीं, दसवीं और ग्यारहवीं हो, वह गाँव निवास के लिये शुभ
होता है । यदि अपनी राशि से गाँव की राशि एक अथवा सातवीं अथवा बारहवीं हो तो रोग
होता है ।
(३) ईशान में चरकी, आग्नेय में विदारी, नैऋत्य में पूतना और वायव्य में
पापराक्षसी निवास करती है । इसलिये गाँव के कोनों में निवास करने से दोष लगता है ।
परन्तु अन्त्यज, श्वपच आदि जातियों के लिये कोनों मे निवास
करना शुभ एवं उन्नतिकारक है ।
भवनभास्कर अध्याय २ सम्पूर्ण ॥
आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय ३
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