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- भवनभास्कर अध्याय २०
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- भवनभास्कर अध्याय १९
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- भवनभास्कर अध्याय १८
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- भवनभास्कर अध्याय १७
- नारदसंहिता अध्याय ४२
- भवनभास्कर अध्याय १६
- नारदसंहिता अध्याय ४१
- भवनभास्कर अध्याय १५
- नारदसंहिता अध्याय ४०
- भवनभास्कर अध्याय १४
- नारदसंहिता अध्याय ३९
- भवनभास्कर अध्याय १३
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- भवनभास्कर अध्याय १२
- नारदसंहिता अध्याय ३७
- भवनभास्कर अध्याय ११
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- भवनभास्कर अध्याय ९
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- नवचण्डीविधान
- भवनभास्कर अध्याय ७
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- दत्तात्रेयतन्त्र पटल २२
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- दत्तात्रेयतन्त्र पटल २१
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- दुर्गा सप्तशती प्रयोग
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नारदसंहिता अध्याय ३५
नारदसंहिता अध्याय ३५ में
वर्षाप्रश्न का वर्णन किया गया है।
नारदसंहिता अध्याय ३५
अथ वर्षाप्रश्न ।
वर्षाप्रश्ने वारेभेऽजे पूर्णे वै
लग्नगेपि वा ।
केंद्रगे वा शुक्लपक्षे चातिवृष्टिः
शुभेक्षिते ॥ १ ॥
वर्षा के प्रश्न में जलराशि पर
पूर्ण चंद्रमा हो अथवा लग्न में चंद्रमा हो अथवा शुक्लपक्ष में केंद्र में चंद्रमा
हो तथा शुभग्रहों से इष्ट हो तो अत्यंत वर्षा होवे ।। १ ।।
अल्पदृष्टिः पापदृष्टे प्रावृट्काले
चिराद्भवेत् ॥
चंद्रवर्द्भार्गवे
सर्वमेवंविधगुणान्विते ॥ २ ॥
और वर्षाकाल में चंद्रमा पापग्रहों
से दृष्ट हो तो अल्पवर्षी बताना चंद्रमा की तरह शुक्र से भी सब शुभ अशुभ फल कहना
।। २ ।।
प्रावृषींदुः सितात्सप्तराशिगः
शुभवीक्षितः ।
मंदात्रिकोणसप्तस्थो यदि वा
वृष्टिकृद्भवेत् ॥ ३ ॥
वर्षाकाल में शुक्र से सातवीं राशि
पर चंद्रमा हो और शुभग्रहों से दृष्ट हो अथवा शनि से नवमें,
पांचवें घर तथा सातवें घर चंद्रमा हो तो वर्षा होवे ।। ३ ।।।
सद्यो वृष्टिकरः शुक्रो यदा
बुधसमीपगः ॥
तयोर्मध्यगते भाना तदा
वृष्टिविनाशनम् ॥ ४ ॥
शुक्र जो बुध के समीप होय तो शीघ्र
ही वर्षा करे तिन्होंने मध्य में सूर्य आ जाय तो वर्षा को नष्ट करै ॥ ४ ॥
मघादिपंचधिष्ण्यस्थः पूर्वं स्वाती
त्रये परे ॥
प्रवर्षणं भृगुः कुर्याद्विपरीते न
वर्षति ॥ ५ ॥
मघा आदि पांच नक्षत्र तीनों पूर्वा,
स्वाती आदि तीन नक्षत्र इन नक्षत्रों पर शुक्र होय तो वर्षा करे
इनसे विपरीत होय तो नहीं वर्षे ।। ५ ।।
पुरतः पृष्ठतो भानोर्ग्रहा यदि
समीपगाः ॥
तदा वृष्टिं प्रकुर्वंति न चैते
प्रतिलोमगाः॥ ६ ॥
सौम्यमार्गगतः शुक्रो वृष्टिकृन्न
तु याम्यगः॥
उदयास्तेषु वृष्टिः
स्याद्भानोरार्द्राप्रवेशने ॥ ७ ॥
चंद्रमा आदि ग्रह पीछे से अथवा आगे
से सूर्य के समीप होवें तो वर्षा करते हैं और वक्री होकर सूर्य से दूर होवें तो
वर्षा नहीं करें शुक्र उत्तरचारी होय तो वर्षा करता है और दक्षिणचारी होय तो वर्षा
नहीं करे शुक्र के उदय अस्त होने के समय वर्षा होती है और सूर्य आर्द्रा पर आये उस
दिन का फल कहते हैं । ६ ।। ७ ॥ ।
विपत्तिः सस्यहानिः
स्यादह्न्यार्द्राप्रवेशने ।
संध्ययोः सस्यवृद्धिः
स्यात्सर्वसंपन्नृणां निशि ८॥
दिन में आर्द्रा प्रवेश होय तो
प्रजा में दुःख और खेती का नाश हो दोनों संधियों में आर्द्रा प्रवेश हो तो खेती की
वृद्धि हो रात्रि में आर्द्रा प्रवेश हो तो मनुष्यों की संपूर्ण समृद्धि बढै ॥ ८ ॥
स्तोकवृष्टिरनर्घः स्याद्वृष्टिः
सस्यसंपदः ॥
आर्द्रोदये प्रभिन्ने
चेद्भवेदीतिर्न संशयः ॥ ९॥
आर्द्रा प्रवेश समय थोडी सी वर्षा
हो तो अन्नादि महंगे हों और वर्षा नहीं हो तो खेतियों की वृद्धि हो पवन चले तो
टीडी आदि का भय हो ॥ ९ ॥
चंद्रज्येज्ञेथवा शुक्रे केंद्रे
त्वीतिर्विनश्यति ॥
पर्वाषाढगतोभानुजीर्मूतैः
परिवेष्टितः ॥ १० ॥
आर्द्रा प्रवेश लग्न समय चंद्रमा,
बृहस्पति, बुध, शुक्र ये
केंद्र में ‘हों तो टीडी आदि उपद्रव नष्ट हो ज़ावें
पूर्वाषाढ नक्षत्र पर सूर्य आवे तब ( धनु की संक्रांति में ) सूर्य बादलों से
आच्छादित रहे तो ॥ १० ॥
वर्षत्यार्द्रादिमूलांतं प्रत्यक्ष
प्रत्यहं तथा ॥
वृष्टिश्च पौष्णभे तस्मादशर्क्षेषु
न वर्षति ॥ ११ ॥
आर्द्रा आदि मूलनक्षत्र तक सूर्य
रहे तब तक यथाकाल में सुंदर वर्षा होती है और रेवती नक्षत्र पर सूर्य होने के समय
वर्षा हो जाय तो रेवती आदि दश नक्षत्रों तक सूर्य वर्षा नहीं करता है ॥१ १ ॥
सिंहे भिन्ने कुतो वृष्टिरभिन्ने
कर्कटे कुतः ॥
कन्योदये प्रभिन्ने चेत्सर्वथा
वृष्टिरुत्तमा ॥ १२ ॥
सिंही संक्रांति के दिन वर्षा बादल
हो और कर्की संक्रांति के दिन वर्षा बादल नहीं हो तो वर्षा संवत् अच्छा नहीं हो ॥
१२ ॥
अहिर्बुध्न्य पूर्वसस्यं परसस्यं च
रेवती ॥
भरणी सर्वसस्यं च सर्वनाशाय
चाश्विनी ॥ १३ ॥
उत्तराभाद्रपद पर सूर्य हो तब बादल
गर्भ रहे पूर्व सस्य अर्थात सामणूखेती नहीं हो रेवती में गर्भ हो तो परसस्य कहिये
सा ढूकी खेती नहीं हो अश्विनी भरणी पर सूर्य हो तब बादल वर्षा हो जाय तो संपूर्ण
खेतियां नष्ट होवें ॥ १३ ॥
गुरोः सप्तमराशिस्थः प्रत्यक्षो भृगुजो
यदा ।
तदातिवर्षणं भूरि प्रावृट्काले
बलोज्झिते ॥ १४ ॥
बृहस्पति से आगे सातवीं राशिं पर
शुक्र स्थित होय तो वर्षाकाल में वर्षा होने के बाद भी बहुत अच्छी वर्षा होने लगे
।१४।।
आसन्नमर्कशशिनोः परिवेषगतोत्तरा ।
विद्युत्प्रपूर्ण
मंडूकास्त्वनावृष्टिर्भवेत्तदा ॥ १५ ॥
सूर्य और चंद्रमा के समीप उत्तरदिशा
में मंडल होय अथवा बिजली चमके और उत्तरदिशा में ही मेडक बोले तो बर्षा नहीं हो
॥१५॥
यदा प्रत्यंगता भेकाः स्वसद्मोपरि
संस्थिताः॥
पतंति दक्षिणस्था वा
भवेदवृष्टिस्तदाचिरात् ॥ १६ ॥
जो पश्चिमदिशा में अथवा दक्षिणदिशा में
अपने स्थान पर बैठे हुए मेडक उछल के पडने लगे तो वर्षा शीघ्र ही होगी ऐसे जाने
॥१६॥
नखैर्लिखंतो मार्जाराश्चैव
निर्लोभसंस्थिताः ॥
सेतुबंधपरा बालाः सद्यो वै
वृष्टिहेतवः ॥ १७ ॥
और बिलाव नखों करके भूमि को खोदों
तथा निर्लोभ हुए स्थित रहें तथा बालक पुल बांधकर खेलने लगें तो वर्षा होगी ऐसा
जानना ॥ १७ ॥
पिपीलिका शिरश्छिंन्ना व्यवायः
सर्पयोस्तथा ॥
द्रुमाधिरोहः सर्पाणां
प्रतींदुर्वृष्टिसूचकाः ॥ १८ ।।
कीडी पर कीडी चढें अथवा कीडी अंडा लेकर
चलें सर्प सर्पिणी एक जगह स्थित दीखें सर्प वृक्ष पर चडा हुआ दीखे –
बादल में चंद्रमा के सम्मुख दूसरा चंद्रमा दीखे ये सब वर्षा होने के
लक्षण जानने । १८ ।।
उदयास्तमये काले विवर्णार्कोऽथ वा
शशी ॥
मधुवर्णातिवायुश्चेदतिवृष्टिर्भवेत्तदा
॥ १९ ॥
इति श्रीनारदीयसंहितायां
सद्योवृष्टिलक्षणाध्यायः पंचत्रिंशत्तमः ॥ ३८ ॥
उदय तथा अस्त होने के समय सूर्य वा
चंद्रमा का वर्ण बुरा ( गाधला) दीखे अथवा शहदसरीखा वर्ण दीखे अथवा अत्यंत पवन चले
तो वर्षा बहुत होती है । १९॥
इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां
सद्योवृष्टिलक्षणाध्यायः पंचत्रिंशतमः ।। ३५॥
आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ३६ ॥
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