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भवनभास्कर अध्याय ८

भवनभास्कर अध्याय ८       

भवनभास्कर के इस अध्याय ८ में गृहनिर्माण - सम्बन्धी आवश्यक बातों का वर्णन किया गया है।

भवनभास्कर अध्याय ८

भवनभास्कर आठवाँ अध्याय

भवनभास्कर

आठवां अध्याय

गृहनिर्माण - सम्बन्धी आवश्यक बातें      

( १ ) मकान पूर्व व उत्तर में नीचा और पश्चिम व दक्षिण में ऊँचा होना चाहिये । ऐसा होने से गृहस्वामी की उन्नति होती है । मत्स्यपुराण ( २५६।४ ) - में आया है कि दक्षिण दिशा में ऊँचा घर मनुष्य की सब कामनाओं को पूर्ण करता है ।

मकान दक्षिण में ऊँचा होने पर धन की वृद्धि और पश्चिम में नीचा होने पर धन का नाश होता है ।

( २ ) घर के चारों ओर तथा द्वार के सम्मुख व पीछे कुछ जमीन छोड़ देना शुभकारक है । पिछला भाग दक्षिणावर्त रहना चाहिये; क्योंकि वामावर्त विनाशकारक होता है ।

( ३ ) चहारदीवारी से मिले हुए जो ( वास्तुचक्र के ) चारों ओर के बत्तीस पद हैं , वे 'पिशाच-पद' अथवा 'पिशाचांश' कहलाते हैं । उनमें घर बनाना दुःख, शोक तथा भय देनेवाला है ।

( ४ ) जिस घर, देवालय, मठ आदि में सूर्य - किरणें और वायु प्रवेश नहीं करती, वह शुभ नहीं होता ।

( ५ ) एक दीवार से मिले हुए दो मकान यमराज के समान गृहस्वामी का नाश करनेवाले हैं ।

( ६ ) किसी मार्ग या गली का अन्तिम मकान ( जहाँ आगे मार्ग न हो ) अशुभ है । ऐसा मकान कष्ट देनेवाला है ।

( ७ ) पूर्व से पश्चिम की ओर लम्बा मकान ' सुर्यवेधी ' और उत्तर से दक्षिण की ओर लम्बा मकान ' चन्द्रवेधी ' होता है । चन्द्रवेधी मकान शुभ होता है, जिसमें धन की वृद्धि होती है । जलाशय सूर्यवेधी शुभ होता है ।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में आया है कि चौकोर शिविर भी चन्द्रवेधी होने पर मंगलप्रद होता है; परन्तु मंगलप्रद शिविर भी सूर्यवेधी भी अमंगलकारक होता है ( कृष्णजन्म- १०३ ।६०-६१ )

( ८ ) मकान के कुछ भाग में मिट्टी अवश्य रहनी चाहिये ।

( ९ ) धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती - इन पाँच नक्षत्रों (पंचक) - में घर के लिये तृण – काष्ठों का संग्रह, शय्या बनाना, चारपाई आदि बुनना और गृहाच्छादन ( घर को छवाना ) कदापि नहीं करना चाहिये ।

( १० ) घर में टूट - फूट हो जाय तो उसमें रहनेवालों को कभी सुख नहीं मिलता ।

( ११ ) यदि नये घर का द्वार टूट जाय तो उसमें स्त्रीसंज्ञक किसी वस्तु का अथवा स्वयं स्त्री का नाश होता है । इसी तरह नये घर में यदि कोई वस्तु टूट जाती है अथवा झुक जाती है या फट जाती है तो कुटुम्बी की मृत्यु होती है ।

(नये घर में उपर्युक्त शुभाशुभ फल एक वर्ष तक समझने चाहिये । एक वर्ष के बाद वह घर पुराना कहा जाता है।)

( १२ ) घर में टूटे - फूटे आसन (कुर्सी आदि), शयनिका (पलंग आदि) और वाहन (साइकिल, स्कूटर आदि) - का होना भी अशुभ फल देनेवाला है ।

महाभारत में आया है -

भिन्नभाण्डं च खट्वां च कुक्कुटं शुनकं तथा ।

अप्रशस्तानि सर्वाणि यश्च वृक्षो गृहेरुहः ॥

भिन्नभाण्डे कलिं प्राहुः खट्वायां तु धनक्षयः ।

कुक्कुटे शुनके चैव हविर्नाश्नन्ति देवताः ॥

वृक्षमूले ध्रुवं सत्त्वं तस्माद् वृक्षं न रोपयेत् ॥ ( महा० अनुशासन० १२७।१५-१६ )

' घर में टूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्ष का होना अच्छा नहीं माना गया है । फूटे बर्तन में कलियुग का वास कहा गया है । टूटी खाट रहने से धन की हानि होती है । मुगें और कुत्ते के रहने पर देवता उस घर में हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकान के अन्दर कोई बड़ा वृक्ष होने पर उसकी जड़ के भीतर साँप, बिंच्छू आदि जन्तुओं का रहना अनिवार्य हो जाता है । इसलिये घर के भीतर पेड़ न लगाये ।'

भवनभास्कर अध्याय ८  सम्पूर्ण

आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय ९   

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