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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
दैनिक व मास नवचण्डी विधान
श्रीदुर्गा तंत्र के इस भाग १२ में नवचण्डीविधान
अंतर्गत् नित्य(दैनिक) व मास नवचण्डी विधान का वर्णन है।
दैनिक व मास नवचण्डी विधान
नित्य-मासचण्डीविधान
नित्यचण्ड्यादिजाप्यस्य विधानं ते
वदाम्यहम् ।
शुक्लभूतामवष्टभ्य मासं प्रतिदिन जपेत्
॥ १ ॥
सकृद्रहस्यसंयुक्तं
चण्डिकाचरितत्रयम् ।
दशांशहोमसहितं
सोच्यते नित्यचण्डिका ॥ २ ॥
नित्य चण्डी आदि के जप का विधान मैं
तुम्हें बता रहा हूँ । शुक्लपक्ष से प्रारम्भ कर मासपर्यन्त प्रतिदिन रहस्य सहित
चण्डिका के तीनों चरित्रों का जप करना चाहिये । जप का दशांश होम करना चाहिये । इस
विधान को नित्य चण्डिका कहते हैं ।
धनपुत्रयशोदात्री महाव्याधिविनाशिनी
।
महाभयमहादुःखहन्त्री सौख्य
प्रदायिनी ३॥
यह नित्यचण्डी धन,
पुत्र और यश देने वाली तया महारोगों को विनष्ट करने वाली है । यह
महाभय, महादुःख को नष्ट कर सुखों को देने वाली है ।
अस्य विधानम् ।
कृतनित्यक्रियः पूजास्थानं गत्वा
पूर्वाभिमुखः स्वासने समुपविश्य आचम्य प्राणानायम्य स्वेष्टदेवतां स्मरन् हस्ते
कुशजलमादाय “देशकालौ संकीर्त्य
अमुकराशिगते सवितरि शुक्लपक्षे चतुर्दश्याममुकक्षेत्रे
अमुकगोत्रोमुकशर्माहममुकफलाप्तये अद्यारभ्य मासमात्र नित्यचण्डीजपं करिष्ये”
इति संकल्प्य प्राग्वत्पूजादिकं कृत्वा मूलं जपित्वा देव्या
यच्चरितत्रयं नवार्णादिन्यासपूर्वकं रहस्यं सकृज्जपेत् ।
कवचार्गलाकीलक पूर्वकमपि पठेत् ।
एवमेकमासं जपित्वा मासानन्तरं
वक्ष्यमाणविधिना कुण्डे स्थण्डिले वाग्निं संस्थाप्य सघृत पायसैस्तिलमिश्रैर्मूलमन्त्रस्य
जपदशांशहोमपुरःसरंवक्ष्यमाणविधिना हुत्वा पूर्णाहुति च दद्यात् ।
इसका विधान इस प्रकार है :
साधक नित्य क्रिया करके पूजास्थान
पर जाकर पूर्वाभिमुख अपने आसन पर बैठकर आचमन तथा प्राणायाम करके अपने इष्टदेवता का
स्मरण करते हुए हाथ में कुश तथा जल लेकर 'देशकालौ
संकीर्त्य अमुकराशिगते सवितरि शुक्लपक्षे चर्तुर्दश्याममुकक्षेत्रे अमुकगोत्रोमुकशर्माहममुकफलाप्तये
अद्यारभ्य मासमात्रं नित्यचण्डीजपं करिष्ये''
इससे संकल्प करके पूर्ववत् पूजादि करके मूलमन्त्र का जप करके देवी
का जो तीन चरित्र है उसका नवार्णादि न्यासपूर्वक रहस्य के साथ एक बार जप करे । कवच,
अर्गला तथा कीलक सहित भी पाठ करे । इस प्रकार एक मास तक जप करके मास
के बाद आगे कही विधि से कुण्ड में या वेदी (स्थण्डिल) पर अग्नि की स्थापना करके घी
सहित तिल मिले खीर से मूलमन्त्र का जप तथा उसके दशांश से होमपूर्वक आगे कही विधि
से पूर्णाहुति देवे ।
ब्राह्मणान् कुमारिकाः सुवासिनीश्च
सम्पूज्य भोजयित्वा ताम्बूलदक्षिणादिभिः परितोष्य प्रणम्य
विसृजेत् ।
एवं स्वयं कर्तुमशक्तश्चेद्ब्राह्मणद्वारा
कारयित्वा तं वस्त्रालङ्कारादिभिर्दक्षिणाभिर्भूयसीभि:
परितोषयेत् ।
एतत्त्रिगुणितं सर्व नवदुर्गाजपे
फलम् ।
कथितं तदवाप्नोति नित्यचण्डीजपे
कृते ॥ १ ॥
इति नित्य मासचण्डीविधानम् ।
ब्राह्मणों तथा उत्तम वस्त्र धारण
किये हुये कुमारियों की पूजा कर उन्हें भोजन कराकर ताम्बूल तथा दक्षिणा आदि से
सन्तुष्ट कर प्रणाम करके विसर्जित करे । इस प्रकार स्वयं करने में असमर्थ हो तो
ब्राह्मण द्वारा कराकर उसे वस्त्र तथा अलङ्कारादि लम्बी दक्षिणाओं से सन्तुष्ट करे
। इससे तिगुना नवदुर्गा के जप में फल है, ऐसा
जो कहा गया है वह नित्यचण्डी के जप में साधक पाता है ।
इति नित्य मासचण्डीविधान ।
दैनिक व मास नवचण्डी विधान
दैनिक नवचण्डी विधान
शीघ्रकार्यसिद्धियै प्रत्यहं
नवचण्डीविधानम् :
आदौ अनुलोमं त्रयोदशाध्यायान्
पठित्वा पश्चाद्विलोमेन पठित्वा पुनः शापोद्धारवत्पठित्वा एवं क्रमेण प्रत्यहं
नवचण्डीं कुर्यात् ।
अल्पकार्ये नव दिनपर्यन्तं
मध्यमकार्ये एव्विशतिंदिनपर्यन्तं महाकार्ये त्रयस्त्रिंशद्दिनपर्यन्तं मन्त्रं
सिध्य्यनन्तरं जपेत् ।
जपान्ते पायसतिलाज्यमधुपुष्पपरसजातीपत्रफलयवव्रीहिसितशर्करायुतैर्दशांशेन
नवार्णपीठयुतेग्नौ जुहूयात् ।
तद्दशांशेन हरिद्राकुंकुमजलेन
सन्तर्पयेत् ।
तद्दशांशेन पायसलड्डुकपञ्चखाद्यैर्भोजयेत्
।
अत्र मार्जनमेवं कृते
शीघ्रकार्यसिद्धिः ।
इति प्रत्यहं नवचण्डीविधानम् ।
पहले अनुलोम क्रम से तेरह अध्यायों
का पाठ करके बाद में विलोम क्रम से पाठ करके पुनः शापोद्धार
की तरह पाठ करे । इस क्रम से
प्रतिदिन नवचण्डी का पाठ करे ।
छोटे कार्य में नव दिन,
मध्यम कार्य में इक्कीस दिन, बड़े कार्य में
तैतीस दिन तक मन्त्र को सिद्धि के अनन्तर जपे । जप के बाद, खीर,
तिल, घी, मधुपुष्प का रस
(महुआ के फूल का रस ), चमेली के पत्ते, फल, जव, धान तथा शकर से जप के
दशांश से नवार्णपीठ से युक्त अग्नि में होम करे । उससे दशांश से हल्दी तथा कुंकुम
के जल से तर्पण करे । तर्पण के दशांश से खीर, लड्डू तथा
पच्चखाद्य ( चिरौंजी, नारियल, खजूर,
किशमिश तथा शकर ) से भोजन कराये । यहाँ पर इस प्रकार मार्जन करने से
शीघ्र कार्य की सिद्धि होती है ।
इति दैनिक नवचण्डी विधान ।
श्रीदुर्गा तंत्र में आगे – नवरात्र वार्षिक नवचण्डी विधान
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