नारदसंहिता अध्याय ३६
नारदसंहिता अध्याय ३६ में कूर्म का विभाग करने का वर्णन किया गया है।
नारदसंहिता अध्याय ३६
प्राङ्मुखस्य तु कूर्मस्य नवांगेषु धरामिमाम् ॥
विभज्य नवधा खंडमंडलानि प्रदक्षिणम्
।
अंतर्वेदी च पांचालं तस्येदं
नाभिमंडलम् ॥ १॥
पूर्व की तरफ है मुख जिसका ऐसे
कूर्मक नव अंगोविषे इस पृथ्वी का विभाग करना अर्थात् पूर्वाभिमुख कूर्मचक्र बनाकर
एक खंड के नव विभाग बनाकर प्रदक्षिणक्रम से मंडल बनावे तिस कूर्म का नाभि- मंडल,
( मध्यभाग, ) अंतर्वेदी अर्थात् गंगा यमुना का
मध्यभाग और पांचाल, पंजाब देश कूर्मचक्र का नाभिमण्डल है ।।
१ ॥
प्राचां
मागधलाटादिदेशास्तन्मुखमंडलम् ।
स्त्रीकलेयकिराताख्यादेशास्तद्बाहुमंडलम्
॥ २ ॥
तहां पूर्व के मध्य में मागध,लाट आदिदेश तिसका मुखमंडल हैं स्त्रीकलेय, किरात ये
देश तिसके बाहुमंडल हैं ॥ २
अवंतिद्राविडा
भिल्लदेशास्तपार्श्वमंडलम् ।
गौडकोंकणशाल्वेष्टपुण्ड्रास्तत्पार्श्वमंडलम्
॥ ३ ॥
अवंती,
उज्जैन प्रांतदेश, द्राविड, भिल्लदेश ये तिसके पार्श्व मंडल हैं और गौड़, कोंकण,
शाल्वदेश, पुंड्रदेश ये भी तिसके पार्श्वमंडल
हैं ॥ ३ ॥
सिंधुकाशीमहाराष्ट्रसौराष्ट्राः
पुच्छमंडलम् ।
पुलिंदभीष्मयवनगुर्जराः पादमंडलम् ॥
४ ॥
सिंधुदेश,
काशी, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र ये देश तिसके
पुच्छमंडल हैं पुलिंद, भीष्म, यवन,
गुर्जर ये देश पादमंडळ हैं ॥ ४ ॥
कुरुकाश्मीरमाद्रेयमत्स्यास्तत्पार्श्वमंडलम्
।
खशाङ्गवंगबाह्विककांबोजाः
पाणिमंडलम् ॥ ५ ॥
कुरु, काश्मीरमाद्रेय,मत्स्यदेश ये तिसके पार्श्व मंडल है खश, अंग, यंग वाल्हीक कंबोज ये देश तिसके हाथ की जगह समझने चाहियें
कृत्तिकादीनि धिष्ण्यानि
त्रीणित्रिणि क्रमान्न्यसेत् ।।
नाभेर्दिक्षु नवांगेषु पापैर्दुंष्टुं
कुमैः शुभम् ॥ ६ ॥
इति श्रीनारदीयसं०कूर्मविभागाध्यायः
षट्त्रिंशत्तमः३६॥
इस प्रकार तिस कूर्मे के नव विभाग
कर यथाक्रम से कृत्तिका आदि तीन २ नक्षत्र रखने । पहले ३ नक्षत्र मध्य में
नाभिमंडल पर रख के मगध लाटादि देशों क्रम से इन ९ अंगों पर रखने फिर जिस अंग पर के
नक्षत्रों पर पापग्रह होवें उसी अंग के देशों में अशुभ फल हो और जिस देश के
नक्षत्र पर शुभग्रह आ रहे हों उस देश में शुभफल हो ऐसे जानो ॥६॥
इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां
कूर्मविभागाध्यायः षट्त्रिंशत्तमः ३६ ॥
आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ३७ ॥
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