भवनभास्कर अध्याय १०
भवनभास्कर के इस अध्याय १० में गृह निर्माण में धन, ॠण, आय आदि के ज्ञान का उपाय का वर्णन किया गया है।
भवनभास्कर दसवाँ अध्याय
भवनभास्कर
दसवाँ अध्याय
धन, ॠण, आय आदि के ज्ञान का उपाय
( १ ) घर की चौडा़ई को लम्बाई से
गुणा करने पर जो गुणनफल आता है, उसे ' पद
' कहते है । उस पद को ( छः स्थानों में रखकर ) क्रमशः ८,३,९,८,९,६ से गुणा करें और गुणनफल में क्रमशः १२,८,८,२७,७,९
से भाग दें । फिर जो शेष बचे, वह क्रमशः धन, ऋण, आय, नक्षत्र, वार तथा अंश होते है ।
उदाहरणार्थ – घर की चौडा़ई १५ हाथ
और लम्बाई २५ हाथ है । इनको परस्पर गुणा करने से गुणनफल ३७५ पद हुआ । अब इसके धन,
ॠण आदि इस प्रकार निकाले जायँगे –
अब इनका फल इस प्रकार समझना चाहिये
-
धन - यदि ऋण की अपेक्षा धन अधिक हो
तो वह घर शुभ होता है ।
ॠण - यदि धन की अपेक्षा ऋण अधिक हो
तो वह घर अशुभ होता है ।
आय - यह आठ प्रकार की होती है - १.
ध्वज २. धूम्र ३. सिंह ४. श्वान ५. वृक्ष ६. खर ७. गज और ८. उष्ट्र अथवा काक । यदि
आय विषम ( १,३,५,७ ) हो तो शुभ होता है और सम ( २,४,६,८ ) हो तो अशुभ होता है ।
नक्षत्र – घर का जो नक्षत्र हो,
वहाँ से अपने नाम के नक्षत्र तक गिनकर जो संख्या हो, उसमें ९ से भाग दें । यदि शेष ३ बचे तो धन का नाश, ५
बचे तो यश की हानि और ७ बचे तो गृहकर्ता की मृत्यु होती है । घर की राशि और अपनी
राशि गिनने पर परस्पर २, १२ हो तो धन की हानि; ९,५ हो तो पुत्र की हानि और ६,८
हो तो अनिष्ट होता है । अन्य संख्या हो तो शुभ समझाना चाहिये ।
वार तथा अंश - सूर्य ( १ ) और मंगल
( ३ ) के वार तथा अंश हो तो उस घर में अग्निभय होता है । अन्य वार तथा अंश होने से
सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुऍं प्राप्त होती हैं ।
उपर्युक्त उदाहरण में सब वस्तुऍं
शुभ हैं ,
केवल वार १ ( रवि ) अशुभ है, जिससे घर में
अग्निभय रहेगा ।
( २ ) घर की लम्बाई – चौडा़ई के
गुणनफल ( पद ) - को आठ से गुणा करे, फिर १२० से भाग दे तो घर
की आयु का ज्ञान होता है ।
( ३ ) घर और गृहस्वामी का एक
नक्षत्र हो तो गृहस्वामी की मृत्यु होती है ।
( ४ ) ध्वज आय में गृहारम्भ करने पर
अधिक धन तथा कीर्ति मिलती है ।
धूम्र आय में गृहारम्भ करने पर भ्रम
तथा शोक होता है ।
सिंह आय में गृहारम्भ करने पर विशेष
लक्ष्मी तथा विजय प्राप्त होती है ।
श्वान आय में गृहारम्भ करने पर कलह
व वैर होता है ।
वृष आय में गृहारम्भ करने पर धन –
धान्य का लाभ होता है ।
खर आय में गृहारम्भ करने पर
स्त्रीनाश तथा निर्धनता होती है ।
गज आय में गृहारम्भ करने पर
पुत्रलाभ तथा सुख होता है ।
उष्ट्र आय में गृहारम्भ करने पर
शून्यता तथा रोग होता है ।
( ५ ) ' ध्वज
' आय हो तो सब दिशाओं में, ' सिंह '
आय हो तो पूर्व, दक्षिण, उत्तर दिशाओं में, ' वृष' आय
हो तो पश्चिम दिशा में और ' गज ' आय हो
तो पूर्व और दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार बनाना उत्तम होता है ।
( ६ ) ब्राह्मण के लिये ' ध्वज ' आय और पश्चिम में द्वार बनाना उत्तम है ।
क्षत्रिय के लिये ' सिंह ' आय और उत्तर
में द्वार बनाना उत्तम है । वैश्य के लिये ' वृष ' आय और पूर्व में द्वार बनाना उत्तम है । शूद्र के लिये ' गज ' आय और दक्षिण में द्वार बनाना उत्तम है ।
( ७ ) जिस मकान की लम्बाई बत्तीस
हाथ से अधिक हो, उसमें आय आदि का विचार नहीं करना चाहिये ।
भवनभास्कर अध्याय १० सम्पूर्ण ॥
आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय ११
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