भवनभास्कर अध्याय १६

भवनभास्कर अध्याय १६               

भवनभास्कर के इस अध्याय १६ में गृह में जल – स्थान का वर्णन किया गया है।

भवनभास्कर अध्याय १६

भवनभास्कर सोलहवाँ अध्याय

भवनभास्कर

सोलहवाँ अध्याय

गृह में जल - स्थान

( १ ) कुएँ का स्थान -

यदि घर की पूर्व दिशा में कुआँ हो तो ऐश्वर्य की वृद्धि तथा पुष्टि की प्राप्ति होती है ।

आग्नेय दिशा में कुआँ हो तो भय, दुःख तथा पुत्र का विनाश होता है ।

दक्षिण दिशा में कुआँ हो तो स्त्री का विनाश, सन्तान की हानि, भूमि का नाश तथा अद्भूत रोग होता है ।

नैर्ऋत्य दिशा में कुआँ हो तो मृत्यु तथा बालकों को भय होता है ।

पश्चिम दिशा में कुआँ हो तो सम्पत्ति प्राप्त होती है ।

वायव्य दिशा में कुआँ हो तो शत्रु से पीड़ा तथा स्त्रियों का नाश होता है ।

उत्तर दिशा में कुआँ हो तो सुख होता है ।

ईशान दिशा में कुआँ हो तो पुष्टि तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।

( कुएँ के अन्तर्गत भूमिगत टंकी, बोरिंग, ट्युबवैल आदि को भी मान लेना चाहिये । )

( २ ) जलाशय का स्थान -

पूर्व दिशा में जलाशय हो तो पुत्रहानि होती है ।

आग्नेय दिशा में जलाशय हो तो अग्निभय होता है ।

दक्षिण दिशा में जलाशय हो तो शत्रुभय तथा विनाश होता है ।

नैर्ऋत्य दिशा में जलाशय हो तो स्त्रीकलह होता है ।

पश्चिम दिशा में जलाशय हो तो स्त्रियों मे दुष्टता आती है ।

वायव्य दिशा में जलाशय हो तो निर्धनता आती है ।

उत्तर दिशा में जलाशय हो तो धन की वृद्धि होती है ।

ईशान दिशा में जलाशय हो तो पुत्रवृद्धि होती है ।

(जलाशय के अन्तर्गत ऊर्ध्व टंकी को भी मान लेना चाहिये । )

( ३ ) जलप्रवाह ( जल गिरने ) - का स्थान -

जलप्रवाह पूर्व दिशा में हो तो धन की प्राप्ति होती है ।

आग्नेय दिशा में हो तो धन का नाश तथा मृत्यु होती है ।

दक्षिण दिशा में हो तो निर्धनता, रोग तथा प्राणसंकट उत्पन्न होता है ।

नैर्ऋत्य दिशा में हो तो प्राणघातक, कलह तथा क्षय करता है ।

पश्चिम दिशा में हो तो पुत्र की मृत्यु होती है ।

वायव्य दिशा में हो तो सुख की प्राप्ति होती है ।

उत्तर दिशा में हो तो राज्य - सम्पत्ति तथा सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है ।

ईशान दिशा में हो तो धन तथा सुख – सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।

( ४ ) दिन के दूसरे या तीसरे पहर किसी घर या मन्दिर की छाया यदि किसी कुएँ पर पड़े तो वह घर शुभकारक एवं निवास करने योग्य नहीं होता ।

भवनभास्कर अध्याय १६ सम्पूर्ण                  

आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय १७    

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