भवनभास्कर अध्याय १५
भवनभास्कर के इस अध्याय १५ में द्वार
– वेध का वर्णन किया गया है।
भवनभास्कर पन्द्रहवाँ अध्याय
भवनभास्कर
पन्द्रहवाँ अध्याय
द्वार - वेध
( १ ) मुख्य द्वार के सामने कोई
वस्तु हो तो उस द्वार - वेध कहते हैं । द्वार के सामने किस वस्तु के होने से क्या
फल होता है, इसे बताया जाता है -
द्वार के सामने मार्ग ( गली या सड़क
) होने से गृहस्वामी की मृत्यु, कुल का क्षय,
बन्धन तथा अनेक रोग व शोक होते हैं ।
वृक्ष होने से बालकों में दोष,
ऐश्वर्य का नाश तथा नाना रोग होते हैं ।
कीचड़ होने से शोक होता है ।
जलप्रवाह होने से व्यर्थ खर्च तथा
अनेक अनर्थ होते हैं ।
कुआँ होने से मृगी रोग,
अतिसार रोग, भय तथा बन्धन होता हैं ।
मन्दिर होने से गृहस्वामी का नाश और
बालकों को दुःख होता है ।
मन्दिर का द्वार होने से विनाश होता
है ।
खम्भा होने से स्त्रियों में दोष,
गृहस्वामी की मृत्यु, दासत्व तथा दुर्भाग्य की
प्राप्ति होती है ।
कील होने से अग्निभय होता है ।
अपवित्र वस्तु होने से गृहस्वामिनी
वन्ध्या होती है ।
दूसरे घर का द्वार होने से धन –
धान्य का विनाश होता है ।
ध्वजा होने से द्रव्य का नाश तथा
रोग होता है ।
दीवार होने से दरिद्रता होती है ।
गड्ढा होने से कलह,
विरोध तथा धन की हानि होती है ।
श्मशान होने से भूत - प्रेत,
पिशाचों से भय होता है ।
चबूतरा होने से मृत्यु होती है ।
पनाला होने से दुःख,
भय तथा कलह होता है ।
बावड़ी होने से अतिसार रोग,
सन्निपात तथा दरिद्रता होती है ।
कुम्हार का चक्र होने से हृदयरोग
तथा परदेशवास होता है ।
ओखली होने से निर्धनता होती है ।
शिला होने से शत्रुता तथा पथरी -
रोग होता है ।
भस्म होने से बवासीर रोग होता है ।
दीमक की बाँबी होने से परदेश गमन
होता है ।
किसी मकान आदि का कोना होने से
दुर्गाति तथा मृत्युभय होता है ।
ब्राह्मण का घर होने से कुल का नाश
होता है ।
भट्ठी या आवाँ होने से पुत्र का नाश
होता है ।
छाया होने से निर्धनता आती है ।
( २ ) निम्रलिखित अवस्थाओं मे
द्वार – वेध का दोष नहीं लगता -
( क ) यदि घर की ऊँचाई से दुगुनी
जमीन छोड़कर वेध - वस्तु हो तो उसका कोई दोष नहीं लगता ।
( ख ) यदि घर और वेध – वस्तु के
बीच में राजमार्ग हो तो उसका दोष नहीं लगता ।
( ग ) यदि वेध - वस्तु घर के
सम्मुख न होकर पीछे अथवा बगल में हो तो उसका दोष नहीं लगता ।
( घ ) प्रासाद ( राजमहल या
देवमन्दिर ) और मण्डप के द्वार में मार्गवेध का दोष नहीं लगता –
'प्रासादमण्डपद्वारे
मार्गवेधो न विद्यते' ( शुक्रनीति १।
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भवनभास्कर
अध्याय १५ सम्पूर्ण ॥
आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय १६
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