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कर्मकाण्ड

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नारदसंहिता अध्याय ४०

नारदसंहिता अध्याय ४०                      

नारदसंहिता अध्याय ४० में कपोत व पिंगला के शब्द का शुभाशुभ फलकथन का वर्णन किया गया है। 

नारदसंहिता अध्याय ४०

नारदसंहिता अध्याय ४०  

आरोहेत गृहं यस्य कपोतो वा प्रवेशयेत् ॥

स्थानहानिर्भवेत्तस्य यद्वानर्थपरंपरा ॥ १ ॥

जिसके घर में कपोत ( बाजपक्षी ) प्रवेश हो जाय अथवा घर के ऊपर बैठ जाय उसके स्थान की हानि हो अथवा कोई दुःख होवे ।। १ ॥

दोषाय धनिनां गेहे दरिद्राणां शिवाय च ॥

तच्छांतिस्तु प्रकर्तव्या जपहोमविधानतः॥ २॥

धनी पुरुषों के घर में प्रवेश होना यह अशुभफल है और दरिद्री पुरुषों के घर में तथा शून्यघर में शुभफल जानना तिसकी शांति जप होम विधि से करनी चाहिये ।। २ ।।

ब्राह्मणान्वरयेत्तत्र स्वस्तिवाचनपूर्वकम् ॥

षोडशद्वादशाष्टौ वा श्रौतस्मार्तक्रियापरान् ॥ ३ ॥

श्रुति स्मृति की क्रिया में तत्पर रहनेवाले सोलह वा आठ ब्राहणों को स्वस्तिवाचनपूर्वक वरण करै ।। ३ ॥

देवाः कपोत इत्यादि ऋग्भिः स्यात्पंचभिर्जपः ।

कुंडं कृत्वा प्रयत्नेन स्वगृह्योक्तविधानतः ॥ ४ ॥

देवाः कपोत, इत्यादि पांच ऋचाओं से जप कराना और अपने वेदशास्त्र के अनुकूल अग्निकुंड बनवावे ।। ४ ॥

ईशान्यां स्थापयेद्वह्निं मुखांतेऽष्टोत्तरं शतम् ।

प्रत्येकं समिदाज्यान्नैः प्रतिप्रणवपूर्वकम् ॥९॥

ईशानकोण में अग्निस्थापन कर समिध, घृत, अन्न इन्हों करके ओंकारपूर्वक अष्टोत्तरशत १०८ आहुति अग्नि के मुख में करै ।।५।।

यत इंद्रभयामहस्वस्ति तेनेति त्र्यंबकैः ।

त्रिभिर्मंत्रैश्च जुहुयात्तिलान्व्याहृतिभिः सह ॥ ६ ॥

यत इंद्रभयामहे इस मंत्र से अथवा स्वस्तिन इन्द्रो वा त्र्यंबकंइन तीन मंत्रों से व्याहृति पूर्वक तिल से होमकरै ।।

कुर्यादेव ततो भक्त्या कर्ता पूर्णाहुतिं स्वयम् ॥

विप्रेभ्यो दक्षिणां दद्याद्दोषशांतिं ततो जपेत् ॥ ७॥

फिर यजमान आप भक्तिपूर्वक पूर्णाहुति करें और ब्राह्मण के वास्ते दक्षिणा बाँटै ऐसे करने से तिस दोष की शांति होवे ॥ ७ ॥

ब्राह्मणान्भोजयेत्पश्चात्स्वयं भुंजीत बंधुभिः ॥

एवं यः कुरुत भक्त्या तस्मादोषात्प्रमुच्यते ॥ ८ ॥

फिर ब्राह्मणों को भोजन कराके आप अपने बंधुजनों सहित भोजन करें ऐसे जो भक्ति से करता है वह तिस दोष से छूट जाता है ॥८॥

पिंगलायाः स्वरेप्येवं मधुवाल्मीकयोरपि ।

संपूर्णमंगले हानिः शून्यसद्मनि मंगलम्॥ ९॥

पिंगला (कोतरी ) के बोलने में तथा मधु वाल्मीक पक्षी के बोलेन में भी ऐसे ही शांति कराना। संपूर्ण मंगल की जगह इनका प्रचार होवे तो हानि हो और शून्य मकान में बोलें तो शुभफ़ल है ॥ ९ ॥

प्राकारेषु पुरद्वारे प्रासादाद्येषु वीथिषु ॥

तत्फलं ग्रामपस्यैव सीमा सीमाधिपस्य च ।। १० ॥

किला, कोट, पुर का दरवाजा, मंदिर, राजभवन, गली इन पर बोले तो वह फल ग्राम के अधिपति को ही होता है सीमा पर बोले तो सीमा के मालिक को फल होता है ।। १० ।।

शांतिकर्माखिलं कार्यं पूर्वोक्तेन क्रमेण तु ॥ ११ ॥

इति श्रीनारदीयसंहितायां कपोतपंगलादिशां तिरध्यायश्चत्वारिंशत्तमः ॥ ४० ॥

इन कोतरी आदिकों के बोलने में पूर्वोक्त क्रम करके संपूर्ण शांति कर्म कराना चहिये ।। ११ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषांटीकायां कपोतापिंगळादि शांतिरध्यायश्चत्वारिंशत्तमः ।। ४० ।।

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ४१ ॥   

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