भवनभास्कर अध्याय २१

भवनभास्कर अध्याय २१                    

भवनभास्कर के इस अध्याय २१ में वास्तुदोष – निवारण के उपाय का वर्णन किया गया है।

भवनभास्कर अध्याय २१

भवनभास्कर इक्कीसवाँ अध्याय

भवनभास्कर

इक्कीसवाँ अध्याय

वास्तुदोष – निवारण के उपाय

( १ ) घर में वास्तुदोष होने पर उचित यही है कि उसे यथासम्भव वास्तुशास्त्र के अनुसार ठीक कर ले अथवा उसे बेचकर दूसरा मकान अथवा जमीन खरीद ले ।

जहाँ तक हो सके, निर्मित मकान में तोड़ - फोड़ नहीं करना चाहिये । तोड़ - फोड़ करने से वास्तुभङ्ग का दोष लगता है । इसलिये वास्तुशास्त्र में आया है -

जीर्णं गेहं भित्तिभग्नं विशीर्णं तत्पातव्यं स्वर्णनागस्य दन्तैः ।

गोश्रृडैवां शिल्पिना निश्चयेन पूजां कृत्वा वास्तुदोषो न तस्य ॥( वास्तुराज० ५। ३८)

' घर के पुराना होने पर, दीवार के गिर जाने पर अथवा छिन्न-भिन्न होने पर उसे सोने से बने हुए नागदन्त (हाथीदाँत ) अथवा गोश्रृङ्ग (गाय के सींग) - से वास्तुपूजनपूर्वक गिरवाने से वास्तुभङ्ग का दोष नहीं लगता ।'

( २ ) घर में अखण्डरुप से श्रीरामचरितमानस के नौ पाठ करने से वास्तुजनित दोष दूर हो जाता है ।

( ३ ) घर में नौ दिन तक अखण्ड भगवन्नाम - कीर्तन करने से वास्तुजनित दोष का निवारण हो जाता है ।

( ४ ) स्कन्दपुराण में आया है कि कात्यायन ॠषि ने हाटकेश्वर – क्षेत्र में ' वास्तुपद ' नामक तीर्थ का निर्माण किया और विश्वकर्मा के साथ वहाँ वास्तुपूजन किया । उस तीर्थ में अड़तालीस देवताओं की पूजा होती है । घर में जो शिला, कुत्सित पद और कुवास्तुजनित दोष होते हैं वे उस तीर्थ के दर्शन से मिट जाते हैं । शिल्प आदि की दृष्टि से दोषयुक्त और उपद्रवपूर्ण घर को पाकर भी यदि मनुष्य उस तीर्थ का संयोग प्राप्त कर ले तो उसी दिन से उसके घर में अभ्युदय होने लगता है ( स्कन्द०, नागर० १३२ ) ।

( ५ ) मुख्य द्वार के ऊपर सिन्दूर से स्वस्तिक का चिह्न बनायें । यह चिह्न नौ अंगुल लम्बा तथा नौ अंगुल चौड़ा होना चाहिये । घर में जहाँ - जहाँ वास्तुदोष हो, वहाँ - वहाँ यह चिह्न बनाया जा सकता है ।

भवनभास्कर अध्याय २१ सम्पूर्ण                            

भवनभास्कर समाप्त    

About कर्मकाण्ड

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 $type={blogger} :

Post a Comment