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कर्मकाण्ड

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नारदसंहिता अध्याय ४६

नारदसंहिता अध्याय ४६                            

नारदसंहिता अध्याय ४६ में रजोलक्षण और भूकंप लक्षण का वर्णन किया गया है।  

नारदसंहिता अध्याय ४६

नारदसंहिता अध्याय ४६  

अथ रजोलक्षणाध्यायः।

सितेन रजसा छिन्नदिग्ग्रामवनपर्वताः ।

यथा तथा भवंत्यंते निधनं यांति भूमिपाः॥ १ ।।

दिशा, ग्राम, वन, पर्वत ये सफेद वायु से आच्छादित हो जायें अर्थात् अंधी चलकर आकाश में सफेद गरम चढ जाय तो राजा लोग मृत्यु को प्राप्त होवें ॥ १ ॥

रजःसमुद्भवो यस्यां दिशि तस्यां विनाशनम् ।

तत्रतत्रापि जंतूनां हानिदः शस्त्रकोपतः ।। २ ॥

और जिस दिशा में रज ( अंधी ) उड़कर चलके आवे उसी दिशा के प्राणियों के शस्त्र कोप से हानि करे ।। २ ।।

मंत्रीजनपदानां च व्याधिदं चासितं रजः ।

अर्कोदये विजृंभंति गगनं स्थगयंति च ॥ ३ ॥

दिनद्वयं च त्रिदिनमत्युग्रभयदं रजः॥

रजो भवेदेकरात्रं नृपं हंति निरंतम् ॥ ४॥

काले वर्ण की रज ( अंधी ) राजमंत्री को व देशों को हानि करे सूर्योदय के समय अंधी चलकर आकाश को आच्छादित कर दे दो दिन तथा तीन दिन तक अत्यंत उग्रवायु चले और एक रात्रि तक निरंतर धूल चढी रहे तो राज को नष्ट करे ।। ३ - ४ ॥

परचक्रागमं न स्याद्विरात्रं सततं यदि ।

क्षामडामरमातंकस्त्रिरात्रं सततं यदि ॥ ४ ॥

दो रात्रि तक निरंतर धूल चढी रहे तो परचक्रागमन नहीं होता और तीन रात्रि तक धूल बनी रहे को दुष्ट डाकू जनों का प्रजा में भय हो, रोग हो ॥ ५ ।।

ईतिदुर्भिक्षमतुलं यदि रात्रचतुष्टयम् ॥

निरंतरं पंचरात्रं महाराजविनाशनम् ॥ ६ ॥

चार रात्रि तक रहे को टीडी आदि ईंति तथा दुर्भिक्षक अर्यंत भय हो निरंतर पांच रात्रि तक हो तो महाराजा को नष्ट करे ॥ ६ ॥

ऋतावन्यत्र शिशिरात्संपूर्णफलदं रजः ॥ ७ ॥

शिशिर ऋतु के बिना अन्य ऋतु की रज (अंधी) चलना पूरा फल करती है अर्थव शिशिर ऋतु में अंधी चलने का (ज्यादे पवन चलने का ) कुछ दोष नहीं ॥ ७ ॥

इति श्रीनारदीयसहिताभाषाटीकायां रजोलक्षणाध्यायः षट्चत्वारिंशत्तमः ।। ४६ ।।  

नारदसंहिता अध्याय ४६                            

भूकंप लक्षण

भूभारखिन्ननागेंद्रदीर्घनिःश्वससंभवः ।

भूकंपः सोपि जगतामशुभाय भवेत्तदा ॥ १ ॥

पृथ्वी के भार से खिन्न हुए शेषनाग के ऊंचे श्वास लेने से भूकंप अर्थात् भूमि कांपना भौंचाल होता है वह संसार को अशुभ फलदायी है ॥ १ ॥

यामक्रमेण भूकंपो द्विजातीनाभनिष्टदः ॥

अनिष्टदो क्षितीशानां संध्ययोरुभयोरपि ॥ २॥

प्रहर के क्रम से भूकंप, द्विजातियों को अशुभफल देता है जैसे दिन के प्रथम प्रहर में ब्राह्मणों को अशुभ, २ प्रहर में क्षत्रियों को, ३ में वैश्य को और चौथे प्रहर में शूद्रों के अशुभ जानना और दोनों संधियों में भूकंप होय तो राजाओं को अशुभ है ॥ २ ॥

अर्यमाद्यानि चत्वारि दस्रेंद्वदितिभानि च ।

वायव्यमंडलं त्वेतदस्मिन्कंपो भवेद्यदि ॥ ३ ॥

और उत्तराफल्गुनी आदि चार नक्षत्र, अश्विनी, मृगशिर, पुनर्वसु इन नक्षत्र की वायव्य मंडल संज्ञा है इसमें भूकंप होय तो ॥३॥

नृपसस्यवाणिग्वेश्याशिल्पवृष्टिविनाशदः ॥

पुष्यद्विदैवभरणी पितृभाग्यानलाऽजपात् ॥ ४॥

खेती राजा, वैश्य, वेश्या, कारीगर, वर्षा इन्होंका नाश हो और पुष्य, विशाखा, भरणी,मघा, पूर्वफाल्गुनी, कृत्तिका, पूर्वा- भाद्रपद ॥ ४ ।।

आग्नेयमंडलं त्वेतदस्मिन्कृपो भवेद्यदि ॥

नृपवृष्टयर्धनाशाय इतिशांबरटंकणान् ॥ ५॥

यह इन नक्षत्रों का अभिमंडल कहाता है इसमें भूकंप हो तो राजा का नाश हो वर्षा नहीं हो भाव महँगा रहे शांभरनमक, सुहागा इत्यादि वस्तु महँगी रहें ।। ५ ॥

अभिजिद्धातृवैश्वेंद्रवसुवैष्णवमैत्रभम् ।

वासवं मंडलं त्वेतदस्मिन् कंपो भवेद्यदि ॥ ६॥

अभिजित, रोहिणी, उत्तराषाढ,ज्येष्ठा, धनिष्ठा, श्रवण, अनुराधा इन्होंका वासवमंडल कहाता है इसमें भूकंप होवे तो ।। ६ ॥ ।

राजनाशाय कोपाय हंति माहेयदर्दुरान्॥

मूलाहिर्बुध्न्यवरुणाः पौष्णमार्द्राहिभानि च ॥ ७ ॥

राजा का नाश हो और राजाओं का वैर हो माहेय तथा दर्दूर देशों का नाश हो । मूल, उत्तराभाद्रप्रद, शतभिषा, पूर्वाषाढ रेवती, आर्द्रा, आश्लेषा ॥ ७ ॥

वारुणं मंडलं त्वेतदस्मिन् कंपो भवेद्यदि ।

राजनाशकरो हंति पौण्ड्रचीनपुलिंदकान् ॥ ८ ॥

यह वारुणमंडल कहा है इसमें भूकंप होय तो राजा को नष्ट करे और पौण्ड्र, चीन, पुलिंद इन देशों को नष्ट करे ॥

प्रायेण निखिलोत्पताः क्षितीशानामनिष्टदाः ॥

षद्भिर्मासैश्च भूकंपो द्वाभ्यां दाहफलप्रदः ॥ ९ ॥

विशेष करके संपूर्ण उत्पात राजाओं को अशुभ कहे हैं भूकंप का फल छःमहीने में होता है दो महीनों में दिग्दाह का फल होता है ॥ ९ ॥

अनुक्तः पंचभिर्मासैस्तदानीं फलदं रजः ॥ १० ॥

' और रज अर्थात् अंधी चलने तथा अन्य वस्तु का उत्पात पांच महीनों में फल करता है ॥ १० ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां भूकंपलक्षणाध्याय षट्चत्वारिंशत्तमः ।। ४६ ।।  

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ४७ ॥  

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