भवनभास्कर अध्याय १२

भवनभास्कर अध्याय १२           

भवनभास्कर के इस अध्याय १२ में गृह के समीपस्थ वृक्ष एवं गृह के समीपस्थ शुभाशुभ वस्तुओं का वर्णन किया गया है।

भवनभास्कर अध्याय १२

भवनभास्कर बारहवाँ अध्याय

भवनभास्कर

बारहवाँ अध्याय

गृह के समीपस्थ वृक्ष

( १ ) अशोक, पुत्राग, मौलसिरी, शमी, चम्पा, अर्जुन, कटहल, केतकी, चमेली, पाटल, नारियल, नागकेशर, अड़हुल, महुआ, वट, सेमल, बकुल, शाल आदि वृक्ष घर के पास शुभ हैं ।

पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेडा़, पीपल, कपित्थ, अगस्त्य, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, केला, नींबू, अनार, खजूर, बेल आदि वृक्ष घर के पास अशुभ हैं ।

( २ ) कई वृक्ष ऐसे हैं, जो दिशा विशेष में स्थित होने पर शुभ अथवा अशुभ फल देनेवाले हो जाते हैं; जैसे -

पूर्व में पीपल भय तथा निर्धनता देता हैं । परन्तु बरगद कामना - पूर्ति करता हैं ।

आग्नेय में वट, पीपल, सेमल, पाकर तथा गूलर पीडा़ और मृत्यु देनेवाले हैं । परन्तु अनार शुभ है ।

दक्षिण में पाकर रोग तथा पराजय देनेवाला है, और आम, कैथ, अगस्त्य तथा निर्गुण्डी धननाश करनेवाले हैं । परन्तु गूलर शुभ है ।

नैर्ऋत्य में इमली शुभ है ।                     

दक्षिण - नैर्ऋत्य में जामुन और कदम्ब शुभ हैं ।

पश्चिम में वट होने से राजपीडा़, स्त्रीनाश व कुलनाश होता है, और आम, कैथ अगस्त्य तथा निर्गुण्डी धननाशक हैं । परन्तु पीपल शुभदायक है ।

वायव्य में बेल शुभदायक है ।

उत्तर में गूलर नेत्ररोग तथा ह्रास करनेवाला है । परन्तु पाकर शुभ है ।

ईशान में आँवला शुभदायक है ।

ईशान – पूर्व में कटहल एवं आम शुभदायक हैं ।

( ३ ) घर के पास काँटेवाले, दूधवाले तथा फलवाले वृक्ष स्त्री और सन्तान की हानि करनेवाले हैं । यदि इन्हें काटा न जा सके तो इनके पास शुभ वृक्ष लगा दें ।

आसन्नाः कण्टकिनो रिपुभयदाः क्षीरिणोऽर्थनाशय ।

फलिनः प्रजाक्षयकरा दारुण्यपि वर्जदेषाम् ॥ ( बृहत्संहिता ५३ । १३१ )

काँटेवाले वृक्ष शत्रु से भय देनेवाले, दूधवाले वृक्ष धन का नाश करनेवाले और फलवाले वृक्ष सन्तान का नाश करनेवाले हैं । इनकी लकड़ी भी घर में नहीं लगानी चाहिये ।

(  ) बदरी कदली चैव दाडिमी बीजपूरिका ।

प्ररोहन्ति गृहे यत्र तद्गृहं न प्ररोहति॥ ( समरांगणसूत्रधारनबृहद्दैवज्ञ० ३८ ।१३१ )

'बेर, केला, अनार तथा नींबू जिस घर में उगते हैं, उस घर की वृद्धि नहीं होती ।'

अश्वत्थं च कदम्बं च कदलीबीपूरकम् ।

गृहे यस्य प्ररोहन्ति स गृही न प्ररोहति ॥ ( बृहद्दैवज्ञ० ८७ । ९ )

'पीपल, कदम्ब, केला, बीजू, नींबू - ये जिस घर में होते हैं, उसमें रहनेवाले की वंशवृद्धि नहीं होती ।'

( ५ ) घर के भीतर लगायी हुई तुलसी मनुष्यों के लिये कल्याणकारिणी, धन - पुत्र प्रदान करनेवाली, पुण्यदायिनी तथा हरिभक्ति देनेवाली होती है । प्रातःकाल तुलसी का दर्शन करने से सुवर्ण – दान का फल प्राप्त होता है ।( ब्रह्मवैवर्तपुराण, कृष्ण० १०३। ६२-६३ )

अपने घर से दक्षिण की ओर तुलसीवृक्ष का रोपण नहीं करना चाहिये, अन्यथा यम - यातना भोगनी पड़ती है । (भविष्यपुराण म० १ )

( ६ ) मालतीं मल्लिकां मोचां चिञ्चां श्वेतां पराजिताम् ।

वास्तुन्यां रोपयेद्यस्तु स शस्त्रेण निहन्यते ॥ ( वास्तुसौख्यम् ३९ )

'मालती, मल्लिका, मोचा (कपास), इमली, श्वेता (विष्णुक्रान्ता) और अपराजिता को जो वास्तुभूमि पर लगाता है, वह शस्त्र से मारा जाता है ।'

( ७ ) वाटिका (बगीचा) - जो घर से पूर्व, उत्तर, पश्चिम या ईशान दिशा में वाटिका बनाता है, वह सदा गायत्री से युक्त, दान देनेवाला और यज्ञ करनेवाला होता है । परन्तु जो आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत्य या वायव्य में वाटिका बनाता है, उसे धन और पुत्र की हानि तथा परलोक में अपकीर्ति प्राप्त होती है । वह मृत्यु को प्राप्त होता है । वह जातिभ्रष्ट व दुराचारी होता है ।

( ८ ) यदि घर के समीप अशुभ वृक्ष लगे हों और उनको काटने में कठिनाई हो तो अशुभ वृक्ष और घर के बीच में शुभ फल देनेवाले वृक्ष लगा देने चाहिये । यदि पीपल का वृक्ष घर के पास हो तो उसकी सेवा - पूजा करते रहना चाहिये ।

( ९ ) दिन के दूसरे और तीसरे पहर यदि किसी वृक्ष, मन्दिर आदि की छाया मकान पर पड़े तो वह सदा दुःख व रोग देनेवाली होती है ।

( सूर्योदय से लेकर तीन - तीन घण्टे का एक पहर होता है । )

भवनभास्कर अध्याय १२           

गृह के समीपस्थ शुभाशुभ वस्तुएँ

( १ ) घर के समीप सचिवालय हो तो धन की हानि, धूर्तका घर हो तो पुत्रनाश, मन्दिर हो तो उद्वेग (अशान्ति), चौराहा हो तो अपशय, चैत्य वृक्ष हो तो भय, दीमक व पोली जमीन हो तो विपत्ति, गड्ढा हो तो पिपासा और कूर्माकार जमीन हो तो धननाश होता है ।

( २ ) देवालय, धूर्त, सचिव या चौराहे के समीप घर बनाने से दुःख, शोक तथा भय बना रहता है ।

( ३ ) भविष्यपुराण में आया है – नगर के द्वार, चौक, यज्ञशाला, शिल्पियों के रहने के स्थान, जुआ खेलने तथा मद्य - मांसादि बेचने के स्थान, पाखण्डियों के रहने के स्थान, राजा के नौकरों के रहने के स्थान, देवमन्दिर के मार्ग, राजमार्ग और राजा के महल - इन स्थानों से दूर घर बनाना चाहिये । स्वच्छ, मुख्य मार्गवाला, उत्तम व्यवहारवाले लोगों से आवृत्त तथा दुष्टों के निवास से दूर स्थान पर गृह का निर्माण करना चाहिये ।

( ४ ) घर के पूर्व में विवर या गड्ढा, दक्षिण में मठ - मन्दिर, पश्चिम में कमलयुक्त जल और उत्तर में खाई हो तो शत्रु से भय होता है ।

भवनभास्कर अध्याय १२ सम्पूर्ण                  

आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय १३    

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