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- श्रीविद्याकवच
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- गायत्री पञ्जर स्तोत्र
- नारदसंहिता अध्याय ४८
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- नारदसंहिता अध्याय ४७
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- नारदसंहिता अध्याय ४६
- भवनभास्कर अध्याय २०
- नारदसंहिता अध्याय ४५
- भवनभास्कर अध्याय १९
- नारदसंहिता अध्याय ४४
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- भवनभास्कर अध्याय ११
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- भवनभास्कर अध्याय १०
- वार्षिक नवचण्डी विधान
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- भवनभास्कर अध्याय ८
- नवचण्डीविधान
- भवनभास्कर अध्याय ७
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- सप्तशती प्रति श्लोक पाठ फल प्रयोग
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- दत्तात्रेयतन्त्र
- दत्तात्रेयतन्त्र पटल २२
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- दुर्गा सप्तशती शापोद्धारोत्कीलन
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- भवनभास्कर अध्याय १
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- दत्तात्रेयतन्त्र पटल २०
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- दत्तात्रेयतन्त्र पटल १९
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- दुर्गा सप्तशती प्रयोग
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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
भवनभास्कर अध्याय १२
भवनभास्कर बारहवाँ अध्याय
भवनभास्कर
बारहवाँ अध्याय
गृह के समीपस्थ वृक्ष
( १ ) अशोक, पुत्राग, मौलसिरी, शमी,
चम्पा, अर्जुन, कटहल,
केतकी, चमेली, पाटल,
नारियल, नागकेशर, अड़हुल,
महुआ, वट, सेमल, बकुल, शाल आदि वृक्ष घर के पास शुभ हैं ।
पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेडा़, पीपल, कपित्थ, अगस्त्य, बेर, निर्गुण्डी,
इमली, कदम्ब, केला,
नींबू, अनार, खजूर,
बेल आदि वृक्ष घर के पास अशुभ हैं ।
( २ ) कई वृक्ष ऐसे हैं, जो दिशा विशेष में स्थित होने पर शुभ अथवा अशुभ फल देनेवाले हो जाते हैं;
जैसे -
पूर्व में पीपल भय तथा निर्धनता
देता हैं । परन्तु बरगद कामना - पूर्ति करता हैं ।
आग्नेय में वट,
पीपल, सेमल, पाकर तथा
गूलर पीडा़ और मृत्यु देनेवाले हैं । परन्तु अनार शुभ है ।
दक्षिण में पाकर रोग तथा पराजय
देनेवाला है, और आम, कैथ,
अगस्त्य तथा निर्गुण्डी धननाश करनेवाले हैं । परन्तु गूलर शुभ है ।
नैर्ऋत्य में
इमली शुभ है ।
दक्षिण - नैर्ऋत्य में जामुन और
कदम्ब शुभ हैं ।
पश्चिम में वट होने से राजपीडा़,
स्त्रीनाश व कुलनाश होता है, और आम, कैथ अगस्त्य तथा निर्गुण्डी धननाशक हैं । परन्तु पीपल शुभदायक है ।
वायव्य में बेल शुभदायक है ।
उत्तर में गूलर नेत्ररोग तथा ह्रास
करनेवाला है । परन्तु पाकर शुभ है ।
ईशान में आँवला शुभदायक है ।
ईशान – पूर्व में कटहल एवं आम
शुभदायक हैं ।
( ३ ) घर के पास काँटेवाले,
दूधवाले तथा फलवाले वृक्ष स्त्री और सन्तान की हानि करनेवाले हैं ।
यदि इन्हें काटा न जा सके तो इनके पास शुभ वृक्ष लगा दें ।
आसन्नाः कण्टकिनो रिपुभयदाः
क्षीरिणोऽर्थनाशय ।
फलिनः
प्रजाक्षयकरा दारुण्यपि वर्जदेषाम् ॥ ( बृहत्संहिता
५३ । १३१ )
काँटेवाले वृक्ष शत्रु से भय
देनेवाले,
दूधवाले वृक्ष धन का नाश करनेवाले और फलवाले वृक्ष सन्तान का नाश
करनेवाले हैं । इनकी लकड़ी भी घर में नहीं लगानी चाहिये ।
( ४ ) बदरी कदली चैव दाडिमी बीजपूरिका ।
प्ररोहन्ति गृहे यत्र तद्गृहं न
प्ररोहति॥ ( समरांगणसूत्रधारनबृहद्दैवज्ञ० ३८
।१३१ )
'बेर, केला,
अनार तथा नींबू जिस घर में उगते हैं, उस घर की
वृद्धि नहीं होती ।'
अश्वत्थं च कदम्बं च कदलीबीपूरकम् ।
गृहे यस्य प्ररोहन्ति स गृही न
प्ररोहति ॥ ( बृहद्दैवज्ञ० ८७ ।
९ )
'पीपल, कदम्ब,
केला, बीजू, नींबू - ये जिस घर में होते हैं,
उसमें रहनेवाले की वंशवृद्धि नहीं होती ।'
( ५ ) घर के भीतर लगायी हुई तुलसी
मनुष्यों के लिये कल्याणकारिणी, धन - पुत्र प्रदान करनेवाली,
पुण्यदायिनी तथा हरिभक्ति देनेवाली होती है । प्रातःकाल तुलसी का
दर्शन करने से सुवर्ण – दान का फल प्राप्त होता है ।( ब्रह्मवैवर्तपुराण,
कृष्ण० १०३। ६२-६३ )
अपने घर से दक्षिण की ओर तुलसीवृक्ष
का रोपण नहीं करना चाहिये, अन्यथा यम - यातना
भोगनी पड़ती है । (भविष्यपुराण म० १ )
( ६ ) मालतीं मल्लिकां मोचां
चिञ्चां श्वेतां पराजिताम् ।
वास्तुन्यां रोपयेद्यस्तु स
शस्त्रेण निहन्यते ॥ ( वास्तुसौख्यम् ३९ )
'मालती, मल्लिका,
मोचा (कपास), इमली, श्वेता
(विष्णुक्रान्ता) और अपराजिता को जो वास्तुभूमि पर लगाता है, वह शस्त्र से मारा जाता है ।'
( ७ ) वाटिका (बगीचा) - जो घर से
पूर्व, उत्तर, पश्चिम या ईशान दिशा में
वाटिका बनाता है, वह सदा गायत्री से युक्त, दान देनेवाला और यज्ञ करनेवाला होता है । परन्तु जो आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत्य या वायव्य में वाटिका बनाता है,
उसे धन और पुत्र की हानि तथा परलोक में अपकीर्ति प्राप्त होती है ।
वह मृत्यु को प्राप्त होता है । वह जातिभ्रष्ट व दुराचारी होता है ।
( ८ ) यदि घर के समीप अशुभ वृक्ष
लगे हों और उनको काटने में कठिनाई हो तो अशुभ वृक्ष और घर के बीच में शुभ फल
देनेवाले वृक्ष लगा देने चाहिये । यदि पीपल का वृक्ष घर के पास हो तो उसकी सेवा -
पूजा करते रहना चाहिये ।
( ९ ) दिन के दूसरे और तीसरे पहर
यदि किसी वृक्ष, मन्दिर आदि की छाया मकान पर पड़े तो वह सदा
दुःख व रोग देनेवाली होती है ।
( सूर्योदय से लेकर तीन - तीन
घण्टे का एक पहर होता है । )
भवनभास्कर अध्याय १२
गृह के समीपस्थ शुभाशुभ वस्तुएँ
( १ ) घर के समीप सचिवालय हो तो
धन की हानि, धूर्तका घर हो तो पुत्रनाश, मन्दिर हो तो उद्वेग (अशान्ति), चौराहा हो तो अपशय,
चैत्य वृक्ष हो तो भय, दीमक व पोली जमीन हो तो
विपत्ति, गड्ढा हो तो पिपासा और कूर्माकार जमीन हो तो धननाश
होता है ।
( २ ) देवालय, धूर्त, सचिव या चौराहे के समीप घर बनाने से दुःख,
शोक तथा भय बना रहता है ।
( ३ ) भविष्यपुराण में आया है –
नगर के द्वार, चौक, यज्ञशाला, शिल्पियों के रहने के स्थान, जुआ खेलने तथा मद्य -
मांसादि बेचने के स्थान, पाखण्डियों के रहने के स्थान,
राजा के नौकरों के रहने के स्थान, देवमन्दिर के
मार्ग, राजमार्ग और राजा के महल - इन स्थानों से दूर घर
बनाना चाहिये । स्वच्छ, मुख्य मार्गवाला, उत्तम व्यवहारवाले लोगों से आवृत्त तथा दुष्टों के निवास से दूर स्थान पर
गृह का निर्माण करना चाहिये ।
( ४ ) घर के पूर्व में विवर या
गड्ढा, दक्षिण में मठ - मन्दिर, पश्चिम
में कमलयुक्त जल और उत्तर में खाई हो तो शत्रु से भय होता है ।
भवनभास्कर
अध्याय १२ सम्पूर्ण ॥
आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय १३
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