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कर्मकाण्ड

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नारदसंहिता अध्याय ३८

नारदसंहिता अध्याय ३८                     

नारदसंहिता अध्याय ३८ में काकमैथुन और काकघातव्रत का वर्णन किया गया है।  

नारदसंहिता अध्याय ३८

नारदसंहिता अध्याय ३८  

उत्पातास्त्रिविधा लोके दिवि भौमांतरिक्षजाः ॥

तेषां नामानि शांतिं च सम्यग्वक्ष्ये पृथक्पृथक् ॥ १ ॥

संसार में तीन प्रकार के उत्पात हैं स्वर्ग, भूमि, आकाश इन तीन जगह होने वाले उत्पात हैं तिनके नामों को और शांति को अलग २ कहते हैं ॥ १ ॥

दिवा वा यदि वा रात्रौ यः पश्येत्काकमैथुनम् ॥

स नरो मृत्युमाप्नोति यदि वा स्थाननाशनम् ॥ २॥

दिन में अथवा रात्रि में जो पुरुष काक के मैथुन को देखता है उस पुरुष की मृत्यु हो अथवा स्थान नष्ट होवे ॥ २ ॥

काकघातव्रतं चैव विदधीताथ वत्सरम् ।

पितृदेवद्विजान्भक्त्या प्रत्यहं चाभिवादनम् ॥ ३ ॥

तिस पुरुष ने वर्ष दिन तक काकघात नामक व्रत करना और पितर देवता ब्राह्मण इनको भक्ति से दिन २ प्रति प्रणाम करना ॥ ३ ॥

जितेंद्रियः शुद्धमनाः सत्यधर्मपरायणः ।

तदोषशमनायेत्थं शांतिकर्म समाचरेत् ॥ ४ ॥

जितेंद्रिय शुद्ध मन वाला रहे, सत्यधर्म में तत्पर रहै तिस दोष को शांत करने के वास्ते इस प्रकार शांति करे कि ॥

गृहस्येशानकोणे तु होमस्थानं प्रकल्पयेत् ॥

स्वगृह्योक्तविधानेन तत्र स्थाप्य हुताशनम् ॥ ४ ॥

घर में ईशानकोण की तर्फ अग्नि स्थान कल्पित कर तहां अपने गृह्योक्त विधि से अग्निस्थापन करना ।। ५ ।।

मुखांते समिदाज्यानैर्होमश्चाऽष्टोत्तरं शतम् ।

प्रतिमंत्रं त्र्यंबकेन चाथ मृत्युंजयेन वा ॥ ६ ॥

व्याहृतिभिर्व्रीहितिलैर्जपाद्यंतं प्रकल्पयेत् ॥

पूर्णाहुतिं च जुहुयात्कर्ता शुचिरलंकृतः ॥ ७ ॥

फिर समिध,घृत, तिलादिक अन्न इनसे त्र्यंबकं यजामहेइस मंत्र से अथवा महामृत्यंजय मंत्र से अर्थात् भूभुवःस्वः' इत्यादिक व्याहृतियों सहित त्र्यंबक मंत्र से चावल तिलों से जप की संख्या के अनुसार होम कर और पवित्र विभूषित हुआ कर्ता यजमान होम के अंत में पूर्णाहुति करें ॥ ६ ॥ ७ ॥

स्वर्णश्रृंगीं रौप्यखुरां कृष्णां धेनुं पयस्विनीम् ।

वस्त्रालंकारसहितां निष्कद्वादशसंयुताम् ॥ ८॥

और सुवर्ण की सींग तथा चांदी के खुरों से विभूषत हुई का अच्छे दुधवाली काली गौ को वस्त्र आभूषणों से विभूषित कर बारह निष्क अर्थात् ४८ तोले सुवर्ण से युक्त ॥ ८ ॥

तदर्द्धेन तदर्द्धेन तदर्द्धेनाथ वा पुनः ।

यथा वित्तानुसारेण तन्यूनाधिककल्पना ॥ ९ ॥

अथवा इससे आधा अथवा तिससे भी आधा अथवा तिससे भी आधा सुवर्ण वा चांदी अपने वित्त के अनुसार कम ज्यादा देना ॥९ ।।

आचार्याय श्रोत्रियाय गां च दद्यात्कुटुंबिने ।

ब्राह्मणेभ्यो विशिष्टेभ्यो यथाशक्त्या च दक्षिणाम् ॥ १०॥

वेदपाठी कुटुंब आचार्य के वास्ते इस गौ को दान देवे और श्रेष्ठ ब्राह्मणो के वास्ते शक्ति के अनुसार दक्षिणा देनी ॥ १० ॥

ब्राह्मणान्भोजयेत्पश्चात्स्वस्तिवाचनपूर्वकम् ॥

एवं यः कुरुते सम्यक्प्त तदोषात्प्रमुच्यते ॥ ११ ॥

इति श्रीनारीयसंहितायां वायसमैथुनलक्षणा ध्यायोऽष्टत्रिंशत्तमः ॥ ३८ ॥

फिर स्वस्तिवाचनपूर्वक ब्राह्मण को भोजन करवावे ऐसे जो अच्छे प्रकार से करता है वह तिसदोष से (काकमैथुनादिदोष से ) छूट जाता है ॥ ११ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाटीयां वायसमैथुनलक्षणा- ध्यायेऽष्टत्रिंशत्तमः। ३८ ।।

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ३९ ॥   

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