भवनभास्कर अध्याय १४

भवनभास्कर अध्याय १४             

भवनभास्कर के इस अध्याय १४ में गृह के विविध उपकरण का वर्णन किया गया है।

भवनभास्कर अध्याय १४

भवनभास्कर चौदहवाँ अध्याय

भवनभास्कर

चौदहवाँ अध्याय

गृह के विविध उपकरण

दरवाजे

( १ ) घर के द्वार परिमाण से अधिक ऊँचे होने पर राजभय तथा रोग होता है, और अधिक नीचे होने पर चोरभय, दुःख तथा धन की हानि होती है । द्वार के ऊपर द्वार यमराज का मुख कहलाता है ।

( २ ) एक दरवाजे के ऊपर यदि दूसरा दरवाजा बनाना हो तो उसे नीचे के दरवाजे की अपेक्षा छोटा बनाना चाहिये ।

सभी दरवाजों का शीर्ष एक सीध में होना उत्तम है ।

( ३ ) नीचे के द्वार से ऊपर का द्वार द्वादशांश छोटा होना चाहिये । नीचे के महल से ऊपर के महल की ऊँचाई द्वादशांश कम होनी चाहिये ।

( ४ ) जिस घर के आगे और पीछे की दोनों दीवारों के दरवाजे आपस में विद्ध होते हैं, वह गृहस्वामी के लिये अशुभ फल देनेवाला होता है । वहाँ पर स्थापित किसी भी वस्तु की वृद्धि नहीं होती ।

( ५ ) घर के मध्यमभाग में द्वार नहीं बनाना चाहिये । मध्य में द्वार बनाने से कुल का नाश, धन – धान्य का नाश, स्त्री के लिये दोष तथा लडा़ई - झगडा़ होता है ।

( ६ ) द्वार के ऊपर द्वार और द्वार के सामने ( आमने - सामने ) - का द्वार व्यय करनेवाला और दरिद्रताकारक होता है ।

सीढ़ियाँ 

सीढ़ी के ऊपर का दरवाजा पूर्व या दक्षिण की ओर शुभदायक होता है । सीढ़ी मकान के पश्चिम या उत्तर भाग में होनी चाहिये । दक्षिणावर्ती सीढ़ीयाँ शुभ होती हैं ।

सीढ़ीयाँ (पग), खम्भे, शहतीर, दरवाजे, खिड़कियाँ आदि की कुल संख्या को तीन से भाग देने पर यदि एक शेष बचे तो ' इन्द्र ', दो शेष बचे तो ' काल ' ( यम ) और तीन शेष बचे तो ' राजा ' संज्ञा होती है । ' काल ' आने पर संख्या अशुभ समझनी चाहिये । दूसरे शब्दों में, सीढ़ीयों आदि की ' इन्द्र-काल-राजा' - इस क्रम से गणना करे। यदि अन्त में ' काल ' आये तो अशुभ है ।

स्तम्भ 

घर के खम्भे सम – संख्या में होने पर ही उत्तम कहे गये हैं, विषम संख्या में नहीं ।

प्रदक्षिण – क्रम के बिना स्थापित किये गये स्तम्भ भयदायक होते हैं ।

चित्र 

निम्रलिखित चित्र घर की दीवार आदि में नहीं लगाने चाहिये और न किवाड़ आदि में अंकित कराने चाहिये-

सिंह, सियार, सूअर, साँप, गिद्ध, उल्लू, कबूतर, कौआ, बाज, बगुला, गोह, बन्दर, ऊँट, बिल्ली आदि के चित्र । मांसभक्षी पशु – पक्षियों के चित्र । रामायण, महाभारत आदि के युद्ध के चित्र । खड्गयुद्ध के चित्र । इन्द्रजालिक चित्र । राक्षसों, भूत – प्रेतों के भयङ्कर चित्र । रोते हुए मनुष्य के चित्र - ये सभी चित्र अशुभ फलदायक हैं ।

इतिहास और पुराणों में कहे गये वृत्तान्तों के प्रतिरुपक चित्र गृह में निन्दित हैं । ये मन्दिर में ही होने चाहिये । इन्द्रजाल के समान झूठे तथा भीषण प्रतिरुपक भी घर में नहीं बनाने चाहिये ।( समराङ्गण० ३८। ७१-७२ )

दीवार

( १ ) घर की चौडा़ई के सोलहवें भाग के बराबर दीवार बनानी चाहिये । परन्तु यह नियम ईंट की दीवार के लिये है ।

( २ ) नई ईंट के साथ पुरानी ईंट और कच्ची ईंट के साथ पक्की ईंट नहीं लगानी चाहिये । यदि लगाना अनिवार्य हो तो पुरानी या कच्ची ईंट को नीचे लगाकर उसके ऊपर नयी या पक्की ईंट लगाये । फिर पुरानी या कच्ची ईंट लगाकर नयी या पक्की ईंट लगाये । इस क्रम से दोनों प्रकार की ईंट लगायी जा सकती है ।

( ३ ) जो दीवार ऊपर से भारी तथा नीचे से हलकी हो, जिसमें गारा कहीं कम तथा कहीं अधिक लगा हो, जो कहीं मोटी तथा कहीं पतली हो, जिसमें जोड़ की रेखा प्रतीत होती हो, वह धन की हानि करनेवाली होती है ।

( ४ ) दीवार चुनने पर यदि पूर्व की दीवार बाहर निकल जाय तो गृहस्वामी के लिये तीव्र राजदण्ड- भय होता है ।

दक्षिण की दीवार बाहर निकल जाय तो व्याधि और राजदण्ड - भय होता है ।

पश्चिम की दीवार बाहर निकल जाय तो धनहानि एवं चोर - भय होता है ।

उत्तर की दीवार बाहर निकल जाय तो गृहस्वामी एवं मिस्त्री पर संकट आता है ।

ईशान की दीवार बाहर निकल जाय तो गाय - बैल और गुरुजनों का नाश होता है ।

आग्नेय की दीवार बाहर निकल जाय तो भीषण अग्निभय तथा गृहस्वामी के लिये प्राणसंकट की स्थिति आती है ।

नैर्ऋत्य की दीवार बाहर निकल जाय तो कलह आदि उपद्रव एवं पत्नी पर संकट आता है ।

वायव्य की दीवार बाहर निकल जाय तो वाहन, पुत्र एवं नौकरों के लिये उपद्रव उत्पन्न होता है ।

भवनभास्कर अध्याय १४ सम्पूर्ण                  

आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय १५  

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