भवनभास्कर अध्याय ९
भवनभास्कर के इस अध्याय ९ में गृह का
आकार और गृह के आकार में परिवर्तन का वर्णन किया गया है।
भवनभास्कर नवाँ अध्याय
भवनभास्कर
नवम अध्याय
गृह का आकार
( १ ) वास्तुशास्त्र में चौकोर,
आयताकार, भद्रासन और वृत्ताकार - इन चार घरों को
श्रेष्ठ बताया गया है । यद्यपि चौकोर घर को सभी ग्रन्थों में उत्तम बताया गया है,
तथापि ब्रह्मवैवर्तपुराण में भगवान् श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा के
प्रति कहा है -
दीर्घे प्रस्थ समानञ्च न
कुर्य्यान्मन्दिरं बुधः ।
चतुरस्त्रे गृहे कारो गृहिणां
धननाशनम् ॥( श्रीक्रुष्ण० १०३। ५७ )
'बुद्धिमान् पुरुष को चाहिये कि
जिसकी लम्बाई - चौडा़ई समान हो, ऐसा घर न बनाये; क्योंकि चौकोर घर में वास करना गृहस्थों के धन का नाशक होता है ।'
( २ ) घर की परिमित लम्बाई –
चौडा़ई में पृथक् - पृथक् दो का भाग देने पर यदि शून्य शेष आये तो वह घर मनुष्यों के
लिये शून्यप्रद होता है । यदि शून्य शेष न आये तो वह घर शुभ होता है । (
ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्ण० १०३। ५७-५८ )
( ३ ) आयताकार मकान में चौडा़ई से
दुगुनी से अधिक लम्बाई नहीं होनी चाहिये । चौडा़ई से दुगुनी या उससे अधिक लम्बाई
गृहस्वामी के लिये विनाशकारक होती है –
'विस्ताराद् द्विगुणं
गेहं गृहस्वामिविनाशनम् ' ।
( विश्वकर्मप्रकाश २। १०९ )
( ४ ) चक्र के समान घर में
दरिद्रता आती है ।
विषमबाहु घर में शोक होता है ।
शकट के समान घर में सुख और धन की
हानि होती है ।
दण्ड के समान घर में पशुओं की हानि तथा
वंश का नाश होता है ।
मृदंग के समान घर में स्त्री की
मृत्यु,
वंश की हानि तथा बन्धुनाश होता है ।
पंखी के समान घर होने से धन का नाश
होता है ।
कछुए के समान घर में बन्धन और पीड़ा
होती है ।
धनुष के समान घर में चोर आदि का भय
होता है । मूर्ख एवं पापी पुत्र पैदा होते हैं ।
कुम्भ के समान घर में कुष्ठरोग होता
है ।
कुल्हाड़ी के समान घर में मूर्ख एवं
पापी पुत्र उत्पन्न होते हैं ।
तीन कोनेवाले घर में राजभय,
पुत्र की हानि, दुःख, वैधव्य
एवं मृत्यु होती है ।
पाँच कोनेवाले घर में सन्तान को
कष्ट होता है । यह घर विनाशकारक होता है ।
छः कोनेवाले घर में मृत्यु एवं
क्लेश होता है ।
सात कोनेवाला घर अशुभ फल देनेवाला
होता है ।
आठ कोनेवाले घर में रोग तथा शोक
होता है ।
छाज के समान घर में धन एवं गायों का
नाश होता है ।
चौड़े मुखवाले घर में बन्धुओं का नाश
होता है ।
भवनभास्कर अध्याय ९
गृह के आकार में परिवर्तन
( १ ) घर के किसी अंश को आगे नहीं
बढा़ना चाहिये । यदि बढा़ना हो तो सभी दिशाओं में समानरुप से बढ़ाना चाहिये।
घर को पूर्व दिशा में बढ़ाने पर
मित्रों से वैर होता है ।
दक्षिण दिशा में बढ़ाने पर मृत्यु का
तथा शत्रु का भय होता है ।
पश्चिम दिशा में बढ़ाने पर धन का नाश
होता है ।
उत्तर दिशा में बढ़ाने पर मानसिक
सन्ताप की वृद्धि होती है ।
आग्नेय दिशा में बढ़ाने पर अग्नि से
भय होता है ।
नैर्ऋत्य दिशा में बढ़ाने पर शिशुओं का
नाश होता है ।
वायव्य दिशा में बढ़ाने पर वात -
व्याधि उत्पन्न होती है ।
ईशान्य दिशा में बढ़ाने पर अन्न की
हानि होती है ।
( २ ) यदि घर के किसी अंश को आगे
बढ़ाना अनिवार्य हो तो पुर्व या उत्तर की तरफ बढ़ा सकते हैं; क्योंकि
इसमें थोड़ा दोष है ।
भवनभास्कर अध्याय ९ सम्पूर्ण ॥
आगे जारी.......................भवनभास्कर अध्याय १०
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