नारदसंहिता अध्याय ४८

नारदसंहिता अध्याय ४८                              

नारदसंहिता अध्याय ४८  में मिश्रप्रकरण का वर्णन किया गया है। 

नारदसंहिता अध्याय ४८

नारदसंहिता अध्याय ४८            

अथ मिश्रप्रकरणम्। 

असंक्रांतिर्द्विसंक्रांतिः संसर्पाहस्पती समौ ।

मासौ तु बहवश्चांद्रास्त्वधिमासः परः क्षयः ॥ १ ॥

बिना संक्रांतिवाला तथा दोसंक्रांतिवाळा ऐसे ये दो महीने क्रम मे संसर्प तथा अहस्पतिनामवाले कहाते हैं और अधिमास तथा क्षयमास भी होता है ऐसे ये सब भेद चांद्रमास के जानने ॥ १ ॥

हिमाद्विभागयोर्मध्ये सुरार्चितवसुंधरा ॥

गोदावरी कृष्णवेण्योर्मध्ये काव्यवसुंधरा ॥ २॥

हिमालय और गंगाजी के मध्य में बृहस्पति की भूमि जानना गोदावरी और कृष्णावेणी नदी के मध्य में शुक्र की भूमि जानना ॥२॥

विंध्यगोदावरीमध्ये भूमिः सूर्यसुतस्य च ।

विंध्याद्रिगंगयोर्मध्ये या भूमिः सा बुधस्य च ॥ ३ ॥

विंध्याचल और गोदावरी के मध्य में शनि की भमि जानना विंध्याचल और गंगाजी के मध्य में जो भूमि है वह बुध की जाननी ॥३॥

या वेण्यालंकयोर्मध्ये धरात्मजवसुंधरा ॥

समुद्भयंत्रितक्षोणीनाथौ सूर्यहिमद्युती ॥ ४ ॥

और वेणी नदी तथा लंका के मध्य में मंगल की भूमि जानना और समुद्र के पास की भूमि के मालिक सूर्य चंद्रमा कहे हैं ।

इषमासि चतुर्दश्यामिंदुक्षयतिथावपि ।

ऊर्जादौ स्वातिसंयुक्ते तदा दीपावली भवेत् ॥ ५॥

अश्विन वदि चतुर्दशी अथवा अमावास्या को और कार्त्तिक की चतुर्दशी तथा दीपमालिका को ।। ५॥

तैले लक्ष्मीर्जले गंगा दीपावल्यां तिथौ भवेत् ॥

अलक्ष्मीपरिहारार्थमभ्यंगस्नानमाचरेत् ॥ ६ ॥

तैल में लक्ष्मी और जल में गंगाजी रहती है इसलिये दीपमालिका के दिन अलक्ष्मी ( दरिद्र ) दूर होने के वास्ते तेल लगाकर स्नान करना चाहिये ॥ ६ ॥

इंदुक्षये च संक्रांतौ वारे पाते दिनक्षये ॥

तत्राभ्यंगे ह्यदोषाय प्रातः पापापनुत्तये ॥ ७ ॥

अमावास्या तथा संक्रांति के दिन व्यतीपात के दिन तिथि क्षय के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर स्नान करे तो संपूर्ण पाप दूर होवें ।। ७॥

मासि भाद्रपदे कृष्णे रोर्हिणीसहिताष्टमी ॥

जयंती नाम सा तत्र रात्रौ जातो जनार्दनः ॥ ८॥

भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र हो तब वह जयंतीनाम अष्टमी है उस दिन श्रीकृष्ण भगवान्का जन्म भया है।

उपोष्य जन्मचिह्नानि कुर्याज्जागरणं च यः ॥

अर्द्धरामयुताष्टम्यां सोश्वमेधफलं लभेत् ॥ ९ ॥

उस दिन व्रत कर जन्म के चिह्नकर अर्धरात्रियुक्त अष्टमी में जो जागरण करता है वह अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त होता है ॥ ९ ॥

रोहिणीसहिताष्टम्यां श्रावणे मासि वा तयोः ॥

श्रावणे मासि वा कुर्याद्रोहिणीसहिता तयोः ॥ १० ॥

रोहिणी सहित अष्टमी श्रवण में मिल जाय तो रोहिणी के योग होने से वह भी जयंती अष्टमी जाननी उसी दिन व्रत करना ।१०।।

मासि भाद्रपदे शुक्ले पक्षे ज्येष्ठर्क्षसंयुते ।

रात्रौ तस्मिन्दिने कुर्याज्ज्येष्ठायाः परिपूजनम् ॥ ११ ॥

भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को ज्येष्ठा नक्षत्र होय तो उस रात्रि में अथवा दिन में ज्येष्ठा नक्षत्र का पूजन करना चाहिये ॥ ११ ॥

अर्धरात्रयुता यत्र माघकृष्णचतुर्दशी ।

शिवरात्रिव्रतं तत्र सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥ १२ ॥

और माघकृष्णा चतुर्दशी अर्धरात्रयुक्त हो उस दिन शिवरात्रि व्रत होता है वह अश्वमेधयज्ञ को फल देती है ॥

नक्तव्रतेषु सा ग्राह्या प्रदोषव्यापिनी तिथिः ॥

पूजाव्रतेषु सर्वेषु मध्याह्नव्यापिनी स्मृता ॥ १३ ॥

वह तिथि रात्रि के व्रतों में प्रदोषव्यापिनी ग्रहण की है और संपूर्ण पूजा व्रतों में तो मध्याह्न व्यापिनी कही है ॥ १३ ॥

एकभुक्तोपवासेषु या विंशघटिकात्मिका ॥

पिष्टान्नप्राशनेष्वेव लवणाम्लविवर्जिता ॥ १४॥

एक भुक्तोपवास अर्थात् एक वार भोजन करने के व्रतों में वीस २० घडी तक रहनेवाली तिथि गृहीत है पीठी के पदार्थ खाने में नमक खटाई का त्याग करने में भी बीस घडी इष्ट तक रहनेवाली तिथि ग्राह्य है। १४ ॥

आषाढसितपंचम्यामसंप्राश्य उपोषितः ॥

अर्चयेत्षण्मुखं देवमृणरोगविमुक्तये ॥ १५ ॥

आषाढ सुदी पंचमी को भोजन नहीं करना, उपवास व्रत करके षण्मुखदेख स्वामि कार्त्तिकजी का पूजन करने से ऋण और रोग दूर होता है ॥ १५ ॥

तथैव श्रावणे शुक्लपंचम्यां नागपूजनम् ॥

पयःप्रदानं सर्पेभ्यो भयरोगविमुक्तये ॥ १६ ॥

तैसे ही श्रावणशुक्ल पंचमी को नाग पूजन होता है उस दिन रोग दूर होने के वास्ते सर्पो को दूध पिलाना चाहिये ॥ 

मासि भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां गणनायकम् ॥

पूजयेन्मोदकाहारैः सर्वविघ्नोपशांतये ॥ १७ ॥

भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को गणेशजी का पूजन करना और लड्डुवो मे पूजन करना तथा लड्डुवों का भोजन करना ऐसे करने से संपूर्ण विघ्नों की शांति होती है ।। १७ ।।

माघशुक्ले च सप्तम्यां योर्चयेद्भास्करं नरः ॥

आरोग्यं श्रियमाप्नोति घृतपायसभक्षणैः ॥ १८॥

माघ शुक्ला सप्तमी को जो पुरुष सूर्य का पूजन करता है और घृत तथा खीर का भोजन करता है वह आरोग्य (खुशी ) रहता है १८॥

व्यंजनोपानहौ छत्रं दध्यमन्नकपात्रिकाम्॥

वैशाखे विप्रमुख्येभ्यो धर्मप्रीत्यै प्रयच्छति ॥ १९ ॥

कनकांदोलिकाछत्रचामैरैः स्वर्णभूषितैः॥

सह दिव्यान्नपानाभ्यां दत्वा स्वर्गमवाप्नुयात् ॥ २० ॥

और जो पुरुष धर्म हेतु वैशाख महीने में बीजना जूती जोडा छत्री, दही, अन्न, थाली इन्होंका दान श्रेष्ठ ब्राह्मणों के वास्ते देता है और सुवर्ण,पालकी, छत्र, चमर, सुवर्ण के आभूषण, दिव्य अन्नपान, दान करता है वह स्वर्ग में प्राप्त होता है ॥ 

आश्वयुङ्मासि शुक्लायां नवम्यां भक्तोतोर्चयेत् ॥

लक्ष्मीं सरस्वतीं शस्त्रान्विजयी धनवान्भवेत् ॥ २१ ॥

आश्विन शुक्ला नवमी को भक्ति से लक्ष्मी, सरस्वती, शस्त्र इन्होंका पूजन करनेवाला पुरुष विजयी तथा धनवान होता है। 

कार्तिक्यामथ वैशाख्यामुपोष्य वृषमुत्सृजेत् ॥

शिवप्रीत्यै भक्तियुतः स नरः स्वर्गभाग्भवेत् ॥२२॥

कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को अथवा वैशाख शुक्ला पूर्णिमा को उपवास व्रत करके बैल छोडे (आंकिल छोडे ) भक्ति से युक्त होकर शिवजी की प्रीति के वास्ते ऐसे करनेवाला पुरुष स्वर्ग में प्राप्त होता है ।। २२ ।।

घटांत्यक्षे नृयुग्मेषु कन्या कीटतुलाधनुः॥

कुलीरमृगासिंहाश्च चैत्राद्यः शून्यराशयः २३ ॥

और कुंभ, मीन, वृष, मिथुन, कन्या, वृश्चिक, तुला, धनु, कर्क, मकर, सिंह ये राशि यथाक्रम से चैत्र आदि महीनों में शून्य जाननी जैसे चैत्र में कुंभं ; वैशाख में मीन इत्यादि ॥ । २३ ॥

शेष जारी...................

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ४९ ॥    

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