नारदसंहिता अध्याय ४९

नारदसंहिता अध्याय ४९                               

नारदसंहिता अध्याय ४९ में तिथिशून्यलग्न, तिथि में शून्य मास, गंडांतविचार का वर्णन किया गया है। 

नारदसंहिता अध्याय ४९

नारदसंहिता अध्याय ४९            

अथ तिथिशून्यलग्नानि।

तुलामृगौ प्रतिपदि तृतीयायां हरिर्मृगः ॥

पंचम्यां मिथुनं कन्या सप्तम्यां चापचांद्रभे ॥२४॥

प्रतिपदा तिथि विषे तुला और मकर लग्न शून्य है तृतीया विषे सिंह और मकर, पंचमीविषे मिथुन कन्या, सप्तमीविषे धन कर्क लग्न शून्य है ।। २४ ।।

नवम्यां हरिकीटौ द्वावेकादश्यां गुरोर्गृहे ।

त्रयोदश्यां झषवृषौ दिनदग्धाश्च राशयः ॥ २५ ॥

नवमीविषे सिंह वृश्चिक, एकदशीविषे धन मीन,त्रयोदशीविषे मीन वृष लग्न शून्य (दग्ध ) कहे हैं ॥ २५ ॥

मासदग्धाह्वयात्राशीन्दिनदग्धांश्च वर्जयेत् ॥ २६ ॥

इस प्रकार मासदग्ध राशियों को और दिनदग्ध राशियों को वर्ज देवे ॥ २६ ॥

अथ मासशून्यतिथयः।

अष्टमी नवमी चैत्रे पक्षयोरुभयोरपि ।

वैशाखे द्वादशी शून्या पक्षयोरुभयोरपि ॥ २७॥

चैत्र के दोनों पक्षे में अष्टमी नवमी तिथि शून्य जाननी और वैशाख में दोनों पक्षों में द्वादशी शून्य जाननी ॥ २७ ॥

ज्येष्ठे त्रयोदशी शुक्ला कृष्णपक्षे चतुर्दशी ।

आषाढ कृष्णपक्षेपि षष्ठ शुक्रेऽथ सप्तमी ॥ २८॥

ज्येष्ठ में शुक्लपक्ष में त्रयोदशी, कृष्णपक्ष में चतुर्दशी और आषाढ में कृष्णपक्ष में षष्ठी, शुक्लपक्ष में सप्तमी शून्यतिथि जाननी ।। २८ ।।

श्रावणेपि द्वितीया च तृतीया पक्षयोर्द्वयोः ॥

प्रौष्ठपदे सिते कृष्णे द्वितीया प्रथमा तथा ॥ २९॥

श्रवण में दोनों पक्षों में द्वितीया, तृतीया, शून्य जाननी भाद्रपद शुक्लपक्ष में वा कृष्ण में प्रथमा द्वितीया शून्य तिथि जाननी ।। २९ ।। ।

सिते कृष्णेष्याश्वयुजि दशम्यैकादशी तथा ॥

कार्तिके च सिते पक्षे चतुर्दशी शराऽसिते ॥ ३० ॥

अश्विन में दोनों पक्षों में दशमी एकादशी शून्य तिथि जाननी कार्तिक में शुक्लपक्ष में चतुर्दशी और कृष्णपक्ष में पंचमी तिथि शून्य जाननी ॥ ३० ॥

मार्गेऽद्रिनागसंज्ञेऽपि पक्षयोरुभयोरपि ।

पौषे पक्षद्वये चैव चतुर्थी पंचमी तथा ॥ ३१॥

मार्गशीर्ष में दोनों पक्षों में सप्तमी अष्टमी शून्य जाननी पौष में दोनों पक्षों में चतुर्थी पंचमी शून्य जाननी ॥ ३१ ॥

माघे तु पंचमी षष्ठी शुक्ले कृष्णे यथाक्रमम् ।

तृतीया च चतुर्थी च फाल्गुने सितकृष्णयोः ॥ ३२ ॥

माघ में शुक्लपक्ष में पंचमी कृष्ण में षठी शून्य तिथि जाननी और फाल्गुन में शुक्लपक्ष में तृतीया कृष्ण में चतुर्थी शून्यतिथि जाननी३२

इति शून्यतिथयः ।।

अथ गंडांतविचारः।

अभुक्तमूलजं पुत्रं पुत्री वापि परित्यजेत् ॥

अथवाष्टाब्दकं तातस्तन्मुखं नावलोकयेत् ॥ ३३ ॥

अभुक्त मूलज पुत्र को अथवा पुत्री को त्याग देवे अथवा आठ वर्ष का बालक हो तब तक पिता उसके मुख को नहीं देखें ॥ ३३ ॥

मूलाद्यपादजो हंति पितरं तु द्वितीयजः ॥

मातरं तु तृतीयोर्थं सर्वस्वं तु चतुर्थजः ॥ ३४ ॥

मूल नक्षत्र के प्रथम प्रहर में बालक जन्मे तो पिता को नष्ट करै और दूसरे चरण में जन्मे तो माता को, तीसरे में धन को, चौथे चरण में संपूर्ण वस्तु को नष्ट करता है । ३४ ।।

दिवा जातस्तु पितरं रात्रौ तु जननीं तथा ॥

आत्मानसंध्ययोर्हन्ति नास्ति गंडो निरामयः ॥ ३५ ॥

दिन में बालक जन्मे तो पिता को नष्ट करे और रात्रि में जन्मे तो माता को, दोनों संधियों में अपने आत्मा को नष्ट करे ऐसे गंडांत नक्षत्र में जन्मा हुआ बालक निर्दोष नहीं है ॥ ३५॥

यो ज्येष्ठामूलयोरंतरालप्रहरजः शिशुः ॥

अभुक्तमूलजः सार्पमघानक्षत्रयोरपि ॥ ३६ ॥

जो बालक ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र के मध्य के प्रहरों में जन्मता है। और जो आश्लेषा तथा मघा के मध्य के प्रहर में जन्मता है वह अभुक्त मूलज कहा है ॥ ३६ ॥

विधेयं शांतिकं तत्र गंडे दोषापनुत्तये ।

अरिष्टं शतधा याति सुकृते शांतिकर्मणि ॥ ३७ ॥

तहां गंडांत नक्षत्र में जन्मने की शांति करनी चाहिये शांतिकर्म सुकृत करने से अरिष्ट ( पीडा ) सैंकडों प्रकार से दूर होता है।।३७

तस्माच्छांतिं प्रकुर्वीत प्रयत्नाद्विधिपूर्वकम् ॥

वसरात्पितरं हंति मातरं तु त्रिवर्षतः ॥ ३८ ॥

इसलिये यत्न से विधिपूर्वक शांति करवानी चाहिये और शांति नहीं की जाय तो गंडांत नक्षत्र पिता को एक वर्ष में नष्ट करे और माता को तीन वर्ष में नष्ट करे ।। ३८ ।।

धनं वर्षद्वये चैव श्वशुरं नववर्षके ।

जातं बालं वत्सरेण वर्षैः पंचभिरग्रजम् ॥ ३९ ॥

धन को दो वर्ष में, श्वशुर को नव वर्ष में नष्ट करे और जन्मे हुए उस बालक को एक वर्ष में औरं बालक के बडेभाई को पांच वर्ष में नष्ट करे ३९ ।।

श्यालकं चाष्टभिर्वर्षेरनुक्तान्हंति सप्तभिः ॥ ४० ॥

इति श्रीनारदीयसंहितायां मलमासाद्यनेकलक्षणाध्याय एकोनपंचाशत्तमः ।। ४९ ।।

साला को आठ वर्ष में नष्ट करे ऐसे वह बालक जिसको अशुभ हो तिसकी अवधि कही और बिना कहे हुए कुटुंब के जनों को सात वर्ष में नष्ट करे ॥ ४० ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां मलमासाद्यनेकलक्षणा एकोनपंचाशत्तमः ।। ४९ ।।

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय ५० ॥   

Post a Comment

0 Comments