बिल्वाष्टक
भगवान् शिव को बिल्वपत्र अत्यन्त
प्रिय है । शिवजी का पूजन में बिल्वपत्र अर्पित करते हुए बिल्वाष्टक स्तोत्र का
पाठ करने से समस्त पापों से मुक्त होकर भगवान् शिव की कृपा प्राप्त होता है ।
बिल्वाष्टक- बिल्व माहात्म्य
भगवान शिव को जो पत्र पुष्प प्रिय
हैं उनमे बिल्बपत्र प्रमुख है । बिल्बपत्र को शिव पर अर्पित करने से धन -संपदा ,ऐश्वर्य प्राप्त होता है । लिंग पुराणानुसार 'बिल्ब
पत्रे स्थिता लक्ष्मी देवी लक्षण संयुक्ता 'अर्थात बिल्ब
पत्र में लक्ष्मी का वास माना जाता है । बिल्ब वृक्ष को श्री वृक्ष माना जाता है ।
ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त के अनुसार माँ लक्ष्मी
के तपोबल से बिल्बपत्र उत्पन्न हुआ,जो दरिद्रता को
दूर करने वाला है ।
शिवपुराण विद्येश्वर संहिता अध्याय २२
में "शिव नैवेद्य और बिल्व माहात्म्य" का वर्णन इस प्रकार है-
हे ऋषियो ! बिल्व अर्थात बेल का
वृक्ष महादेव का रूप है। देवताओं द्वारा इसकी स्तुति की गई है। तीनों लोकों में
स्थित सभी तीर्थ बिल्व में ही निवास करते हैं क्योंकि इसकी जड़ में लिंग रूपी
महादेव जी का वास होता है। जो इसकी पूजा करता है, वह निश्चय ही शिवपद प्राप्त करता है । जो मनुष्य बिल्व की जड़ के पास अपने
मस्तक को जल से सींचता है, उसे संपूर्ण तीर्थ स्थलों पर
स्नान का फल प्राप्त होता है। बिल्व की जड़ों को पूरा पानी से भरा देखकर भगवान शिव
संतुष्ट एवं प्रसन्न होते हैं, जो मनुष्य बिल्व की जड़ों
अर्थात मूल भाग का गंध, पुष्प इत्यादि से पूजन करता है वह
सीधा शिवलोक जाता है। उसे संतान और सुख की प्राप्ति होती है। भक्तिपूर्वक पवित्र
मन से बिल्व की जड़ में दीपक जलाने वाला मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। इस वृक्ष
के नीचे जो मनुष्य एक शिवभक्त ब्राह्मण को भोजन कराता है, उसे
एक करोड़ ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है। इस वृक्ष के नीचे दूध-घी में
पके अन्न का दान देने से दरिद्रता दूर हो जाती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जो
शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाता है,
वह पत्र-संख्या के बराबर युगों तक कैलास में सुख पूर्वक वास करता
है। पुनः श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर भगवान शिव का परम भक्त होता है। विद्या,
पुत्र, सम्पत्ति, प्रजा
और भूमि-ये सभी उसके लिए सुलभ रहते हैं।
बिल्वाष्टकम्
Bilvashtakam
बिल्वाष्टक स्तोत्रम्
।। बिल्वाष्टकम् ।।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च
त्रयायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं
शिवार्पणम् ॥१॥
तीन दल वाला,
सत्त्व, रज एवं तमः स्वरूप, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि- त्रिनेत्रस्वरूप और
आयुधत्रय स्वरूप तथा तीनों जन्मों के पापों को नष्ट करने वाला बिल्वपत्र में
भगवान् शिव के लिये समर्पित करता हूँ ।
त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च
ह्यच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।
शिवपूजां करिष्यामि बिल्वपत्रं
शिवार्पणम् ॥२॥
छिद्ररहित,
सुकोमल, तीन पत्ते वाले, मंगल प्रदान करने वाले बिल्वपत्र से मैं भगवान् शिव की पूजा करूँगा । यह
बिल्वपत्र शिव को समर्पित करता हूँ ।
अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे
।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो
बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ॥३॥
अखण्ड बिल्वपत्र से नन्दिकेश्वर
भगवान् की पूजा करने पर मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाते हैं। मैं
बिल्वपत्र शिव को समर्पित करता हूँ ।
शालग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु
अर्पयेत् ।
सोमयज्ञमहापुण्यं बिल्वपत्रं
शिवार्पणम् ॥४॥
मेरे द्वारा किया गया भगवान् शिव को
यह बिल्वपत्र का समर्पण, कदाचित् ब्राह्मणों
को शालग्राम की शिला के समान तथा सोमयज्ञ के अनुष्ठान के समान महान् पुण्यशाली हो।
(अतः मैं बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित करता हूँ) ।
दन्तिकोटिसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च
।
कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रं
शिवार्पणम् ॥५॥
हजारों करोड़ गजदान,
सैकड़ों वाजपेय-यज्ञ के अनुष्ठान तथा करोड़ों कन्याओं के महादान के
समान हो । (अतः मैं बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित करता हूँ) ।
लक्ष्म्याः स्तनत उत्पन्नं
महादेवस्य च प्रियम् ।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि बिल्वपत्रं
शिवार्पणम् ॥६॥
विष्णु-प्रिया भगवती लक्ष्मी के
वक्षःस्थल से प्रादुर्भूत तथा महादेवजी के अत्यन्त प्रिय बिल्ववृक्ष को मैं
समर्पित करता हूँ, यह बिल्वपत्र
भगवान् शिव को समर्पित है ।
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्
।
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं
शिवार्पणम् ॥७॥
बिल्ववृक्ष का दर्शन और उसका स्पर्श
समस्त पापों को नष्ट करने वाला तथा शिवापराध का संहार करने वाला है। यह बिल्वपत्र
भगवान् शिव को समर्पित है ।
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो
विष्णुरूपिणे ।
अग्रत: शिवरूपाय बिल्वपत्रं
शिवार्पणम् ॥८॥
बिल्वपत्र का मूलभाग ब्रह्मरूप,
मध्यभाग विष्णुरूप एवं अग्रभाग शिवरूप है, ऐसा
बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित है ।
बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं यः
पठेच्छिवसन्निधौ ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः
शिवलोकमवाप्नुयात् ॥९॥
जो भगवान् शिव के समीप इस पुण्य
प्रदान करने वाले “बिल्वाष्टक” का पाठ करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अन्त
में शिवलोक को प्राप्त करता है ।
॥ इति बिल्वाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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