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कर्मकाण्ड

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महादेव स्तवन

महादेव स्तवन

महादेव स्तवन- मानस रुद्र-पुत्रों के साथ त्रिलोचन महादेव को देखकर भगवान् ब्रह्मा के नेत्र प्रेम से प्रफुल्लित हो उठे। अपने ज्ञानचक्षु से परमोत्कृष्ट ऐश्वरभाव को जानकर शिर पर अञ्जलि रखते हुए (नमस्कारपूर्वक) वे जगत्पति की स्तुति करने लगे।

सनातन ब्रह्म स्तुति

सनातन ब्रह्म स्तुति

महादेव स्तवन

ब्रह्मोवाच ।

नमस्तेऽस्तु महादेव नमस्ते परमेश्वर ।।१०.४४।।

नमः शिवाय देवाय नमस्ते ब्रह्मरूपिणे ।

नमोऽस्तु ते महेशाय नमः शान्ताय हेतवे ।।१०.४५।।

प्रधानपुरुषेशाय योगाधिपतये नमः ।

नमः कालाय रुद्राय महाग्रासाय शूलिने ।।१०.४६

हे महादेव! आपको नमस्कार है। हे परमेश्वर आपको नमस्कार है। शिव को नमन, ब्रह्मरूपी देव के लिए नमस्कार है। आप महेश के लिए नमस्कार है। शान्ति के हेतुभूत आपको नमस्कार। प्रधान पुरुष के ईश, योगाधिपति, कालरूप, रुद, महाग्रास और शूली को नमस्कार।

नमः पिनाकहस्ताय त्रिनेत्राय नमो नमः ।।

नमस्त्रिमूर्त्तये तुभ्यं ब्रह्मणो जनकाय ते ।१०.४७

ब्रह्मविद्याधिपतये ब्रह्मविद्याप्रदायिने ।।

नमो वेदरहस्याय कालकालाय ते नमः ।१०.४८

पिनाकधारी को नमन। त्रिलोचन के लिए बार-बार प्रणाम। त्रिमूर्ति और ब्रह्मा के जनक आपको नमस्कार है। ब्रह्मविद्या के अधिपति और ब्रह्मविद्या के प्रदाता, वेदों के रहस्यस्वरूप, कालाधिपति आपको नमस्कार है।

वेदान्तसारसाराय नमो वेदात्ममूर्त्तये ।।

नमो बुद्धाय शुद्धाय योगिनां गुरवे नमः ।१०.४९

प्रहीणशोकैर्विविधैर्भूतैः वरिवृताय ते ।।

नमो ब्रह्मण्यदेवाय ब्रह्माधिपतये नमः ।१०.५०

वेदान्त के सार के अंशभूत तथा वेदात्म की मूर्ति आपको नमस्कार। प्रबुद्ध रूद्र के लिए नमस्कार योगियों के गुरु को नमस्कार है। जिनका शोक विनष्ट हो गया है ऐसे प्राणियों से घिरे हुए आप ब्रह्मण्यदेव के लिए नमस्कार। ब्रह्माधिपति को नमस्कार है।

त्र्यम्बकायदिदेवाय नमस्ते परमेष्ठिने ।।

नमो दिग्वाससे तुभ्यं नमो मुण्डाय दण्डिने ।१०.५१

अनादिमलहीनाय ज्ञानगम्याय ते नमः ।।

नमस्ताराय तीर्थाय नमो योगर्द्धिहेतवे ।११०.५२

त्र्यम्बक आदिदेव परमेष्ठी के लिए नमस्कार। नग्नशरीर, मुण्ड और दण्डधारी आपको नमस्कार है।

नमो धर्माधिगम्याय योगगम्याय ते नमः ।।

नमस्ते निष्प्रपञ्चाय निराभासाय ते नमः।१०.५३

ब्रह्मणे विश्वरूपाय नमस्ते परमात्मने ।।

त्वयैव सृष्टमखिलं त्वय्येव सकलं स्थितम् ।१०.५४

धर्म आदि के द्वारा प्राप्तव्य को नमस्कार। योग के द्वारा गम्य आपको नमस्कार है। प्रपञ्चरहित तथा निराभास आपको नमस्कार है। विश्वरूप ब्रह्म के लिए नमस्कार है। परमात्मस्वरूप आपको नमस्कार। यह सब आप द्वारा ही सृष्ट है और सब आप में ही स्थित है।

त्वया संह्रियते विश्वं प्रधानाद्यं जगन्मय ।

त्वमीश्वरो महादेवः परं ब्रह्म महेश्वरः ।१०.५५

हे जगन्मय ! प्रधान-प्रकृति से लेकर इस सम्पूर्ण विश्व का आप ही संहार करते हैं। आप ईश्वर, महादेव, परब्रह्म और महेश्वर है।

परमेष्ठी शिवः शान्तः पुरुषो निष्कलो हरः ।।

त्वमक्षरं परं ज्योतिस्त्वं कालः परमेश्वरः ।१०.५६

आप परमेष्ठी, शिव, शान्त, पुरुष, निष्कल, हर, अक्षर, परम ज्योतिः और कालरूप परमेश्वर हैं।

त्वमेव पुरुषोऽनन्तः प्रधानं प्रकृतिस्तथा ।।

भूमिरापोऽनलो वायुर्व्योमाहङ्कार एव च ।१०.५७

यस्य रूपं नमस्यामि भवन्तं ब्रह्मसंज्ञितम् ।।

यस्य द्यौरभवन्मूर्द्धा पादौ पृथ्वी दिशो भुजाः ।१०.५८

आकाशमुदरं तस्मै विराजे प्रणमाम्यहम् ।।

आप ही अविनाशी पुरुष, प्रधान और प्रकृति हैं और भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश और अहंकार जिनका रूप है, ऐसे ब्रह्मासंज्ञक आपको नमस्कार करता है। जिनका मस्तक द्यौ है तथा पृथ्वी दोनों पैर हैं और दिशायें भुजाएं हैं। आकाश जिसका उदर है, उस विराट् को मैं प्रणाम करता हूँ ।

संतापयति यो नित्यं स्वभाभिर्भासयन् दिशः ।१०.५९

ब्रह्मतेजोमयं वश्वं तस्मै सूर्यात्मने नमः ।।

हव्यं वहति यो नित्यं रौद्री तेजोमयी तनुः ।१०.६०

कव्यं पितृगणानां च तस्मै वह्न्यात्मने नमः ।।

जो सदा अपनी आभाओं से दिशाओं को उद्भासित करते हुए ब्रह्मतेजोमय विश्व को सन्तप्त करते हैं, उन सूर्यात्मा को नमस्कार है। जो तेजोमय रौद्र शरीरधारी नित्य हव्य को तथा पितरों के लिए कव्य के वहन करते हैं, उस वह्निस्वरूप पुरुष को नमस्कार है।

आप्यायति यो नित्यं स्वधाम्ना सकलं जगत् ।१०.६१

पीयते देवतासङ्‌घैस्तस्मै सोमात्मने नमः।।

विभर्त्त्यशेषभूतानि यान्तश्चरति सर्वदा ।१०.६२

शक्तिर्माहेश्चरी तुभ्यं तस्मै वाय्वात्मने नमः ।।

सृजत्यशेषमेवेदं यः स्वकर्मानुरूपतः ।१०.६३

आत्मन्यवस्थितस्तस्मै चतुर्वक्त्रात्मने नमः ।।

यः शते शेषशयने विश्वमावृत्य मायया ।११०.६४

स्वात्मानुभूतियोगेन तस्मै विश्वात्मने नमः ।

जो अपने तेज से सम्पूर्ण जगत् को नित्य आलोकित करते हैं तथा देवसमूह द्वारा जिनकी रश्मियों का पान किया जाता है, उस चन्द्ररूप को नमस्कार है। जो माहेश्वरी शक्ति सर्वदा अन्दर विचरण करके अशेष भूतसमूह को धारण करती है, उस वायुरूपी पुरुष को नमस्कार है। जो अपने कर्मानुरूप इस सम्पूर्ण जगत् का सृजन करता है, आत्मा में अवस्थित उस चतुर्मुखरूपी पुरुष को नमस्कार है। जो आत्मानुभूति के योग से माया द्वारा विश्व को आवृत करके शेषशय्या पर शयन करते हैं उन विष्णुमूर्ति स्वरूप को नमस्कार है।

विभर्त्ति शिरसा नित्यं द्विसप्तभुवनात्मकम् ।१०.६५

ब्रह्माण्डं योऽखिलाधारस्तस्मै शेषात्मने नमः ।।

यः परान्ते परानन्दं पीत्वा देव्यैकसाक्षिकम् ।१०.६६

नृत्यत्यनन्तमहिमा तस्मै रुद्रात्मने नमः ।।

योऽन्तरा सर्वभूतानां नियन्ता तिष्ठतीश्वरः ।१०.६७

यस्य केशेषु जीमूताः नद्यः सर्वांगसन्धिषु।

कुक्षौ समुद्रश्चत्वारस्तस्मै तोयात्मने नमः।१०.६८

जो चतुर्दश भुवनों वाले इस ब्रह्माण्ड को सर्वदा अपने मस्तक द्वारा धारण करते हैं और जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आधाररूप हैं, उन शेषरूपधारी आपको नमस्कार है। जो महाप्रलय के अन्त में परमानन्द का पान कर दिव्य, एकमात्र साक्षी तथा अनन्त महिमायुक्त होकर नृत्य करते हैं, उन रुद्रस्वरूप को नमस्कार है। जो सब प्राणियों के भीतर नियन्ता होकर ईश्वररूप में स्थित है। जिनके केशों में मेघसमूह, सर्वाङ्गसन्धियों में नदियों तथा कुक्षि में चारों समुद्र रहते हैं उन जलरूप परमेश्वर को नमस्कार है।

तं सर्वसाक्षिणं देवं नमस्ये विश्वतस्तनुम् ।।

यं विनिन्द्रा जितश्वासाः संतुष्टाः समदर्शिनः ।१०.६९

ज्योतिः पश्यन्ति युञ्जानास्तस्मै योगात्मने नमः ।।

यया संतरते मायां योगी संक्षीणकल्मषः ।१०.७०

अपारतरपर्यन्तां तस्मै विद्यात्मने नमः ।।

यस्य भासा विभातीदमद्वयं तमसः परम् ।१०.७१

प्रपद्ये तत् परं तत्त्वं तद्रूपं पारमेश्वरम् ।।

नित्यानन्दं निराधारं निष्कलं परमं शिवम् ।१०.७२

प्रपद्ये परमात्मानं भवन्तं परमेश्वरम् ।।

उन सर्वसाक्षी और विश्व में व्याप्त शरीर वाले देव को नमस्कार करता हूँ। जिन्हें निद्रारहित, श्वासजयी, सन्तुष्ट और समदर्शी योग के साधक ज्योतिरूप में देखते हैं, उन योगस्वरूप को नमस्कार है। जिसके द्वारा योगीजन निष्पाप होकर अत्यन्त अपारपर्यन्त मायारूप समुद्र को तर जाते हैं, उन विद्यारूप परमेश्वर को नमस्कार है। जिनके प्रकाश से सूर्य चमकता है और जो महान् (तमोगुणरूप) अन्धकार से परे है, उस एक (अद्वैतरूप) परमतत्त्व स्वरूप परमेश्वर के शरणागत होता हूँ। जो नित्य आनन्दरूप, निराधार, निष्कल, परम कल्याणमय, परमात्मस्वरूप है, उस परमेश्वर की शरण में आता हूँ।

महादेव स्तवन

एवं स्तुत्वा महादेवं ब्रह्मा तद्भावभावितः ।१०.७३

प्राञ्जलिः प्रणतस्तस्थौ गृणन् ब्रह्म सनातनम् ।।

ततस्तस्मै महादेवो दिव्यं योगमनुत्तमम् ।१०.७४

ऐश्वरं ब्रह्मसद्भावं वैराग्यं च ददौ हरः ।।

इस प्रकार महादेव का स्तवन करके उनके भाव से भावित होकर ब्रह्मा सनातन ब्रह्म की स्तुति करते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम करके खड़े हो गये। तदुपरान्त महादेव ने ब्रह्मा को दिव्य, परम श्रेष्ठ, ईश्वरीय योग, ब्रह्म-सद्भाव तथा वैराग्य दिया।

इति श्रीकूर्मपुराणे षट्‌साहस्त्र्यां संहितायां पूर्वविभागे देशमोऽध्यायः ।।१०।।

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