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महादेव स्तुति उपमन्युकृत
उपमन्यु
कृत महादेव स्तुति- महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 14
में उपमन्यु ने सम्पूर्ण जगत् के पालक महादेव जी की स्तुति किया है ।
उपमन्युकृतं महादेव स्तुति
उपमन्युरुवाच।
नमो
देवाधिदेवाय महादेवाय ते नमः।
शक्ररूपाय
शक्राय शक्रवेषधराय च ।। 1
उपमन्यु
बोले- प्रभो! आप देवताओं के भी अधिदेवता हैं। आपको नमस्कार है। आप ही महान देवता
हैं,
आपकों नमस्कार है। इन्द्र आपके ही रूप हैं। आप ही साक्षात इन्द्र
हैं तथा आप इन्द्र का -सा वेश धारण करने वाले हैं।
नमस्ते वज्रहस्ताय
पिङ्गलायारुणाय च ।
पिनाकपाणये
नित्यं शङ्खशूलधराय च ।। 2
इन्द्र के
रूप में आप ही अपने हाथ में वज्र लिये रहते हैं। आपका वर्ण पिंगल और अरुण है,
आपको नमस्कार है। आपके हाथ में पिनाक शोभा पाता है। आप सदा शंख और
त्रिशूल धारण करते हैं।
नमस्ते
कृष्णवासाय कृष्णकुञ्चितमूर्धज ।
कृष्णाजिनोत्तरीयाय
कृष्णाष्टमिरताय च ।। 3
आपके वस्त्र
काले हैं तथा आप मस्तक पर काले घुंघराले केश धारण करते है,
आपको नमस्कार है। काला मृगर्च आपका दुपट्टा है। आप श्रीकृष्णाष्टमी
व्रत में तत्पर रहते हैं।
शुक्लवर्णाय
शुक्लाय शुक्लाम्बरधराय च ।
शुक्लभस्मावलिप्ताय
शुक्लकर्मरताय च ।। 4
आपका वर्ण
शुक्ल है। आप स्वरूप से भी शुक्ल (शुद्ध) हैं तथा आप श्वेत वस्त्र धारण करते
हैं। आपको नमस्कार है। आप अपने सारे अंगों में श्वेत भस्म लपेटे रहते हैं।
विशुद्ध कर्म में अनुरक्त हैं।
नमोस्तु
रक्तवर्णाय रक्ताम्बरधराय च ।
रक्तध्वजपताकाय
रक्तस्रगनुलेपिने ।। 5
कभी-कभी आप
रक्त वर्ण के हो जाते हैं और लाल वस्त्र धारण कर लेते हैं। आपको नमस्कार है।
रक्ताम्बरधारी होने पर आप अपनी ध्वजा-पताका भी लाल ही रखते हैं। लाल फूलों की
माला पहनकर अपने श्रीअंगों में लाल चन्दन का ही लेप लगाते है।
नमोस्तु
पीतवर्णाय पीताम्बरधराय च ।। 6
किसी समय
आपकी अंगकान्ति पीले रंग की हो जाती है। ऐसे समय में आप पीताम्बर धारण करते हैं।
आपको नमस्कार है।
नमोस्तूच्छ्रितच्छत्राय
किरीटवरधारिणे ।
अर्धहारार्दकेयूर
अर्धकुण्डलकर्णिने ।। 7
आपके मस्तक
पर ऊँचा छत्र तना है। आप सुन्दर किरीट धारण करते हैं। अर्द्धनारीश्वर रूप में
आपके आधे अंग में ही हार, आधे में ही केयूर
और आधे अंग के ही कान में कुण्डल शोभा पाता है। आपको नमस्कार है।
नमः
पवनवेगाय नमो देवाय वै नमः।
सुरेन्द्राय
मुनीन्द्राय महेन्द्राय नमोस्तु ते ।। 8
आप वायु के
समान वेगशाली हैं। आपको नमस्कार है। आप ही मेरे आराध्यदेव हैं। आपको बारंबार
नमस्कार है। आप ही सुरेन्द्र, मुनीन्द्र और
महेन्द्र हैं। आपको नमस्कार है।
नमः
पद्मार्धमालाय उत्पलैर्मिश्रिताय च ।
अर्धचन्दनलिप्ताय
अर्धस्रगनुलेपिने ।। 9
आप अपने
आधे अंग को कमलों की माला से अलंकृत करते हैं और आधे में उत्पलों से विभूषित होते
हैं। आधे अंग में चन्द का लेप लगाते हैं तो आधे शरीर में फूलों का गजरा और
सुगन्धित अंगराग धारण करते हैं। ऐसे अर्द्धनारीश्वर रूप में आपको नमस्कार है।
नम
आदित्यवक्त्राय आदित्यनयनाय च ।
नम
आदित्यवर्णाय आदित्यप्रतिमाय च ।। 10
आपके मुख
सुर्य के समान तेजस्वी हैं। सूर्य आपके नेत्र हैं। आपकी अंगकान्ति भी सूर्य के ही
समान है तथा आप अधिक सादृश्य के कारण सूर्य की प्रतिमा-से जान पड़ते हैं।
नमः सोमाय
सौम्याय सौम्यवक्त्रधराय च ।
सौम्यरूपाय
मुख्याय सौम्यदंष्ट्राविभूषिणे ।। 11
आप सोमस्वरूप
हैं। आपकी आकृति बड़ी सौम्य है। आप सौम्य मुख धारण करते हैं। आपका रूप भी सौम्य
है। आप प्रमुख देवता हैं और सौम्य दन्तावली से विभूषित होते हैं। आपको नमस्कार
है।
नमः
श्यामाय गौराय अर्धपीतार्धपाण्डवे ।
नारीनरशरीराय
स्त्रीपुंसाय नमोस्तु ते ।। 12
आप
हरिहररूप होने के कारण आधे शरीर से सांवले और आधे से गोरे हैं। आधे शरीर में
पीताम्बर धारण करते हैं और आधे में श्वेत वस्त्र वस्त्र पहनते हैं। आपको नमस्कार
है। आपके आधे शरीर में नारी के अवयव हैं और आधे में नर के। आप स्त्री-पुरुष रूप
हैं। आपको नमस्कार है।
नमो
वृषभवाहाय गजेन्द्रगमनाय च ।
दुर्गमाय
नमस्तुभ्यमगम्यागमनाय च ।। 13
आप कभी बैल
पर सवार होते हैं और कभी गजराज की पीठ पर बैठकर यात्रा करते हैं। आप दुर्गम हैं। आपको
नमस्कार है, जो दुसरों के लिये अगम्य है,
वहाँ भी आपकी गति है। आपको नमस्कार है।
नमोस्तु
गणनीताय गणवृन्दरताय च ।
गुणानुयातमार्गाय
गणनित्यव्रताय च ।। 14
प्रथमगण
आपकी महिमा गान करते हैं। आप अपने पार्षदों की मण्डली में रत रहते हैं आपके प्रत्येक
मार्ग पर प्रथमण आपके पीछे-पीछे चलते हैं। आपकी सेवा ही गणों का नित्य-व्रत है।
आपको नमस्कार है।
नमः
श्वेताभ्रवर्णाय संध्यारागप्रभाच य ।
अनुद्दिष्टामभिधानाय
स्वरूपाय नमोस्तु ते ।। 15
आपकी
कान्ति श्वेत बादलों के समान है। आपकी प्रभा संध्याकालीन अरुणराग के समान है।
आपका कोई निश्चित नाम नहीं है। आप सदा स्वरूप में ही स्थित रहते हैं। आपको नमस्कार
है।
नमो
रक्ताग्रवासाय रक्तसूत्रधराय च ।
रक्तमालाविचित्राय
रक्ताम्बरधराय च ।। 16
आपका सुन्दर
वस्त्र लाल रंग का है। आप लाल सूत्र धारण करते हैं। लाल रंग की माला से आपकी
विचित्र शोभा होती है। आप रक्त वस्त्र धारी रुद्र देव को नमस्कार है।
मणिभूषितमूर्धाय
नमश्चन्द्रार्धभूषिणे ।
विचित्रमणिमूर्धाय
कुसुमाष्टधराय च ।। 17
आपका मस्तक
दिव्य मणि से विभूषित है। आप अपने ललाट में अर्द्धचन्द्र का आभूषण धारण करते
हैं। आपका सिर विचित्र मणि की प्रभा से प्रकाशमान है और आप आठ पुष्प धारण करते
हैं।
नमोऽग्निमुखनेत्राय
सहस्रशशिलोचने ।
अग्निरूपाय
कान्ताय नमोस्तु गहनाय च ।। 18
आपके मुख
और नेत्र में अग्नि का निवास है। आपके नेत्र सहस्त्रों चन्द्रमाओं के समान
प्रकाशित हैं। आप अग्नि स्वरूप, कमनीय विग्रह
और दुर्गम गहन (वन) रूप हैं। आपको नमस्कार है।
खचराय
नमस्तुभ्यं गोचराभिरताय च ।
भूचराय
भुवनाय अनन्ताय शिवाय च ।। 19
चन्द्रमा
और सूर्य के रूप में आप आकाशचारी देवता को नमस्कार है। जहाँ गौएं चरती हैं उस स्थान
से आप विशेष प्रेम रखते हैं। आप पृथ्वी पर विचरने वाले और त्रिभुवन रूप हैं। अनन्त
एवं शिवस्वरूप हैं। आपको नमस्कार है।
नमो
दिग्वाससे नित्यमधिवाससुवाससे ।
नमो
जगन्निवासाय प्रतिपत्तिसुखाय च ।। 20
आप दिगम्बर
हैं। आपको नमस्कार है। आप सबके आवास-स्थान और सुन्दर वस्त्र धारण करने वाले
हैं। सम्पूर्ण जगत आप में ही निवास करता है। आपको सम्पूर्ण सिद्धियों का सुख
सुलभ है। आपको नमस्कार है।
नित्यमुद्बद्धमुकुटे
महाकेयूरधारिणे ।
सर्पकण्ठोपहाराय
विचित्राभरणाय च ।। 21
आप मस्तक
पर सदा मुकुट बांधे रहते हैं। भुजाओं में विशाल केयूर धारण करते हैं। आपके कण्ठ
में सर्पों का हार शोभा पाता है तथा विचित्र आभूषणों से विभूषित होते हैं। आपको
नमस्कार है।
नमस्त्रिनेत्रनेत्राय
सहस्रशतलोचने ।
स्त्रीपुंसाय
नपुंसाय नमः साङ्ख्याय योगिने ।। 22
सूर्य,
चन्द्रमा और अग्नि- ये तीन नेत्र रूप होकर आपको त्रिनेत्रधारी बना
देते हैं। आपके लाखों नेत्र में आप स्त्री हैं, पुरुष हैं
और नपुंसक हैं। आप ही सांख्यवेता और योगी हैं। आपको नमस्कार है।
शंयोरभिस्रवन्ताय
अथर्वाय नमोनमः ।
नमः
सर्वार्तिनाशाय नमः शोकहराय च ।। 23
आप
यज्ञपूरक 'शंयु' नामक
देवता के प्रसाद रूप हैं और अथर्ववेदस्वरूप हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। जो
सबकी पीड़ा का नाश करने वाले और शोकहारी हैं, उन्हें नमस्कार
हैं, नमस्कार है।
नमो
मेघनिनादाय बहुमायाधराय च ।
बीजक्षेत्राभिपालाय
स्रष्टाराय नमोनमः ।। 24
जो मेघ के
समान गम्भीर नाद करने वाले तथा बहुसंख्यक मायाओं के आधार हैं,
जो बीज और क्षेत्र का पालन करते हैं और जगत की सृष्टि करने वाले हैं,
उन भगवान शिव को बारंबार नमस्कार है।
नमः
सुरासुरेशाय विश्वेशाय नमोनमः ।
मनः
पवनवेगाय नमः पवनरूपिणे ।। 25
आप देवताओं
और असुरों के स्वामी हैं। आपको नमस्कार है। आप सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर हैं।
आपको बारंबार नमस्कार है। आप वायु के समान वेगशाली तथा वायुरूप हैं। आपको नमस्कार
हैं,
नमस्कार है।
नमः
काञ्चनमालाय गिरिमालाय वै नमः ।
नमः
सुरारिमालाय चण्डवेगाय वै नमः ।। 26
आप
सुवर्णमालाधारी तथा पर्वत-मालाओं में विहार करने वाले हैं। देव शत्रुओं मुण्डों
की माला धारण करने वाले प्रचण्ड वेगशाली आपको नमस्कार हैं,
नमस्कार है।
ब्रह्मशिरोपहर्ताय
महिषघ्नाय वै नमः ।
नमः
स्त्रीरूपधाराय यज्ञविध्वंसनाय च ।। 27
ब्रह्मा जी
के मस्तक का उच्छेद और महिष का विनाश करने वाले आपको नमस्कार है। आप स्त्री
रूप धारण करने वाले तथा यज्ञ के विध्वंसक हैं। आपको नमस्कार है।
नमस्त्रिपुरहर्ताय
यज्ञविध्वंसनाय च ।
नमः
कामाङ्गनाशाय कालदण्डधराय च ।। 28
असुरों के
तीनों पुरों का विनाश और दक्ष-यज्ञ का विध्वंस करने वाले आपको नमस्कार है। काम
के शरीर का नाश तथा कालदण्ड को धारण करने वाले आपको नमस्कार है।
नमः
स्कन्दविशाखाय ब्रह्मदण्डाय वै नमः ।
नमो भवाय
शर्वाय विश्वरूपाय वै नमः ।। 29
स्कन्द
और विशाखरूप आपको नमस्कार है। ब्रहृादण्डस्वरूप आपको नमस्कार है। भव (उत्पादक)
और शर्व (संहारक) -रूप आपको नमस्कार है। विश्वरूपधारी प्रभु को नमस्कार है।
ईशानाय
भवघ्नाय नमोस्त्वन्धकघातिने ।
नमो
विश्वाय मायायचिन्त्याचिन्त्याय वै नमः ।। 30
आप सबके
ईश्वर,
संसार-बन्धक का नाश करने वाले तथा अन्धकासुर के घातक हैं। आपको
नमस्कार है। आप सम्पूर्ण मायास्वरूप तथा चिन्त्य और अचिन्त्यरूप हैं। आपको
नमस्कार है।
त्वं नो
गतिश्च श्रेष्ठश्च त्वमेव हृदयं तथा ।
त्वं
ब्रह्मा सर्वदेवानां रुद्राणां नीललोहितः ।। 31
आप ही
हमारी गति हैं, श्रेष्ठ हैं और आप ही हमारे
हृदय हैं। आप सम्पूर्ण देवताओं में ब्रह्मा तथा रुद्रों में नीललोहित हैं।
आत्मा च
सर्वभूतानां साङ्ख्ये पुरुष उच्यते ।
ऋषभस्त्वं
पवित्राणां योगिनां निष्कलः शिवः ।। 32
आप समस्त
प्राणियों में आत्मा और सांख्यशास्त्र में पुरुष कहलाते हैं। आप पवित्रों में
ऋषभ तथा योगियों में निष्फल शिवरूप हैं।
गृहस्थस्त्वमाश्रगिणामीश्वराणां
महेश्वरः ।
कुबेरः
सर्वयक्षाणां क्रतूनां विष्णुरुच्यते ।। 33
आप
आश्रमियों में गृहस्थ, ईश्वरों में
महेश्वर, सम्पूर्ण यक्षों में कुबेर तथा यज्ञों में विष्णु
कहलाते हैं।
पर्वतानां
भवान्मेरुर्नक्षत्राणां च चन्द्रमाः ।
वसिष्ठस्त्वमृषीणां
च ग्रहाणां सूर्य उच्यते ।। 34
पर्वतों
में आप मेरु हैं। नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं। ऋषियों में वसिष्ठ हैं तथा ग्रहों
में सूर्य कहलाते हैं।
आरण्यानां
पशूनां च सिंहस्त्वं परमेश्वरः ।
ग्राम्याणां
गोवृषश्चासि भवाँल्लोक्प्रपूजितः ।। 35
आप जंगली
पशुओं में सिंह हैं। आप ही परमेश्वर हैं। ग्रामीण पशुओं में आप ही लोक सम्मानित
सांड़ हैं।
आदित्यानां
भवान्विष्णुर्वसूनां चैव पावकः ।
पक्षिणां
वैनतेयस्त्वमनन्तो भ्रुजगेषु च ।। 36
आप ही
आदित्यों में विष्णु हैं। वसुओं में अग्नि हैं। पक्षियों में आप विनतानन्दन
गरुड और सर्पों में अनन्त (शेषनाग) हैा।
सामवेदश्च
वेदानां यजुषां शतरुद्रियम् ।
सनत्कुमारो
योगानां साङ्ख्यानां कपिलो ह्यसि ।। 37
आप वेदों
में सामवेद, यजुर्वेद मन्त्रों में
शतरुद्रिय, योगियों में सनत्कुमार और सांख्यवेताओं में
कपिल हैं।
शक्रोसि
मरुतां देव पितॄणां हव्यवाडसि ।।
ब्रह्मलोकश्च
लोकानां गतीनां मोक्ष उच्यसे ।। 38
देव! आप
मरूद्गणों में इन्द्र, पितरों में हव्यावाहन
अग्नि, लोकों में ब्रहृालोक और गतियों में मोक्ष कहलाते हैं।
क्षीरोदः
सागराणां च शैलानां हिमवान्गिरिः ।
वर्णानां
ब्राह्मणश्चासि विप्राणां दीक्षितो द्विजः ।। 39
आप
समुद्रों में क्षीरसागर, पर्वतों में हिमालय,
वर्णों में ब्राह्मण और ब्राह्मणों में भी दीक्षित ब्राह्मण हैं।
आदिस्त्वमसि
लोकानां संहर्ता काल एव च
यच्चान्यदपि
लोके वै सर्वतेजोधिकं स्मृतम् ।
तत्सर्वं
भगवानेव इति मे निश्चिता मतिः ।। 40
आप ही सम्पूर्ण
लोकों के आदि हैं। आप ही संहार करने वाले काल हैं। संसार में और भी जो-जो वस्तुएं
सर्वथा तेज में बढ़ी-बढ़ी हैं, वे सभी आप
भगवान ही हैं- यही मेरी निश्चित धारण है।
नमस्ते
भगवन्देव नमस्ते भक्तवत्सलः ।
योगेश्वर
नमस्तेऽस्तु नमस्ते विस्वसम्भव ।। 41
भगवन! देव!
आपको नमस्कार है। भक्तवत्सल! आपको नमस्कार है। योगेश्वर! आपको नमस्कार है।
विश्व की उत्पति के कारण! आपको नमस्कार है।
प्रसीद मम
भक्तस्य दीनस्य कृपणस्य च ।
अनैश्वर्येणि
युक्तस्य गतिर्भव सनातन ।। 42
सनातन
परमेश्वर! आप मुझ दीन-दु:खी भक्त पर प्रसन्न होइये। मैं ऐश्वर्य से रहित हूँ।
आप ही मेरे आश्रयदाता हों।
यच्चापराधं
कृतवानज्ञात्वा परमेश्वर ।
मद्भक्त
इति देवेश तत्सर्वं क्षन्तुमर्हसि ।। 43
परमेश्वर
देवेश! मैंने अनजाने में जो अपराध किये हैं, वह
सब यह समझकर क्षमा कीजिये कि यह मेरा अपना ही भक्त है।
मोहितश्चास्मि
देवेश त्वया रूपविपर्ययात् ।
नार्घ्यं
तेन मया दत्तं पाद्यं चापि महेश्वर ।। 44
देवेश्वर!
आपने अपना रूप बदलकर मुझे मोह में डाल दिया। महेश्वर! इसीलिये न तो मैंने आपको
अर्ध्य दिया और न पाद्य ही समर्पित किया।
एवं
स्तुत्वाऽहमीशानं पाद्यमर्घ्यं च भक्तितः ।
कृताञ्जलिपुटो
भूत्वा सर्वं तस्मै न्यवेदयम् ।। 45
इस प्रकार उपमन्यु
ने महादेव की स्तुति करके उन्हें भक्ति भाव से पाद्य और अर्घ्य निवेदन किया।
फिर दोनों हाथ जोड़कर उन्हें अपना सब कुछ समर्पित कर दिया।
इति: उपमन्युकृतं महादेव स्तुति सम्पूर्ण: ।
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