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- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ८
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- मातङ्गी शतनाम स्तोत्र
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- छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
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- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता सहस्रनाम स्तोत्र
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- छिन्नमस्ता हृदय स्तोत्र
- धूमावती कवच
- धूमावती हृदय स्तोत्र
- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ६
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- छिन्नमस्ता कवच
- श्रीनायिका कवचम्
- मन्त्रमहोदधि पञ्चम तरङ्ग
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- नारदसंहिता अध्याय ९
- नारदसंहिता अध्याय ८
- नारदसंहिता अध्याय ७
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- नारदसंहिता अध्याय ५
- मन्त्रमहोदधि चतुर्थ तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि तृतीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि द्वितीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि - प्रथम तरड्ग
- द्वादशलिङगतोभद्रमण्डलदेवता
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- ग्रहलाघव पञ्चतारास्पष्टीकरणाधिकार
- ग्रहलाघव - रविचन्द्रस्पष्टीकरण पञ्चाङ्गानयनाधिकार
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- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 18
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
तण्डिकृत शिवसहस्रनाम
सम्पूर्ण लोकों के पितामह ब्रह्माजी
ने पूर्वकाल में इस स्तोत्र का आविष्कार करके इसे समस्त दिव्य स्तोत्रों के राजा
के पद पर प्रतिष्ठत किया था। तब से महादेव का यह देवपूजित स्तोत्र संसार में ’स्तवराज’ के नाम से विख्यात हुआ। ब्रह्मालोक से यह
स्तवराज स्वर्गलोक में उतारा गया। पहले इसे तण्डि मुनि ने प्राप्त किया था,
इसलिये यह ‘तण्डिकृत शिवसहस्रनाम स्तवराज’
के रूप में प्रसिद्ध हुआ। तण्डि ने स्वर्ग से उसे इस भूतल पर उतारा
था। यह ब्रह्मा जी का कहा हुआ सनातन शिव स्तोत्र अन्य स्तोत्रों की अपेक्षा
श्रेष्ठ है और उत्तम वेदमय है। सब स्तोत्रों की इसका प्रथम स्थान है। यह स्वर्ग की
प्राप्ति कराने वाला, सम्पूर्ण भूतों के लिये हितकर एवं
शुभकारक है। यह सहस्रनाम सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला और चारों वेदों के
समन्वय से युक्त है। यह मंगलजनक, पुष्टि कारक, राक्षसों का विनाशक तथा परम पावन है। जो भक्त हो, श्रद्धालु
और आस्तिक हो, उसी को इसका उपदेश देना चाहिये। अश्रद्धालु,
नास्तिक और अजितात्मा पुरुष को इसका उपदेश नहीं देना चाहिये। जो जगत
के कारणरूप ईश्वर महादेव के प्रति दोषदृष्टि रखता है, वह
पूर्वजों और अपनी संतान के सहित नरक में पड़ता है। सर्वोत्तम ध्येय है, यह जापनीय मन्त्र है, यह ज्ञान है और यह उत्तम रहस्य
है। जिसको अन्तकाल में भी जान लेने पर मनुष्य परमगति को पा लेता है, वह यह सहस्रनाम स्तोत्र परम उत्तम है।
तण्डिकृत शिवसहस्रनामस्तोत्र का हिंदी अर्थ सहित
1 स्थिरः- चंचलतारहित,
कूटस्थ एवं नित्य, 2 स्थाणुः- गृहके आधारभूत
खम्भके समान समस्त जगत के आधारस्तम्भ, 3 प्रभः- समर्थ ईश्वर,
4 भीमः- संहारकारी होन के कारण भयंकर, 5
प्रवरः- सर्वश्रेष्ठ, 6 वरदः- अभीष्ट वर देनेवाले, 7 वरः- वरण करने योग्य, वरस्वरूप, 8 सर्वात्मा- सबके आत्मा, 9 सर्वविख्यातः- सर्वत्र
प्रसिद्ध, 10 सर्वः- विश्वात्मा होनेके कारण सर्वस्वरूप,
11 सर्वकारः- सम्पूर्ण जगत के स्रष्टा, 12
भवः- सबकी उत्पतिके स्थान।,13 जटी- जटाधारी, 14 चर्मी- व्याघ्रचर्म धारण करने वाले, 15 शिखण्डी-
शिखाधारी, 16 सर्वांगः- सम्पूर्ण अंगोंसे सम्पन्न, 17 सर्वभावनः- सबके उत्पादक, 18 हरः- पापहारी,
19 हरिणाक्षः- मृगके समान विशाल नेत्र वाले, 20
सर्वभूतहरः- सम्पूर्ण भूतोंका संहार करने वाले, 21 प्रभुः-
स्वामी। 22 प्रवृतिः- प्रवृतिमार्ग, 23 निवृतिः- निवृतिमार्ग,
24 नियतः- नियमपरायण, 25 शाश्वतः- नित्य,
26 ध्रुवः- अचल, 27 शशानवासी- शषान भूमि में
निवास करने वाले, 28 भगवान- सम्पूर्ण ऐश्वर्य, ज्ञान, यज्ञ, श्री, वैराग्य, और धर्मसे सम्पन्न,120,
29 खचरः- आकाश में विचरने वाले, 30 गोचरः-
पृथ्वी पर विचरने वाले, 31 अर्दनः- पापियों को पीड़ा देने
वाले। 32 अभिवाद्यः- नमस्कार के योग्य, 33 महाकर्मा- महान
कर्म करने वाले, 34 तपस्वी- तपस्या में संलग्न, 35 भूतभावनः- संकल्पमात्र से आकाश आदि भूतों की सृष्टि करने वाले, 36 उन्मतवेशप्रच्छन्नः- उन्मत वेश में छिपे रहने वाले, 37 सर्वलोकप्रजापतिः- सम्पूर्ण लोकों की प्रजाओं के पालक। 38 महारूपः-
महान रूप वाले, 39 महाकायः- विराप, 40
वृषरूपः- धर्मस्वरूप, 41 महायशा- महान यशस्वी, 42 महात्मा- 43 सर्वभूतात्मा- सम्पूर्ण भूतों के आत्मा, 44 विश्वरूपः- सम्पूर्ण विश्व जिनका रूप है वे, 45
महाहनुः- विशाल ठोढ़ी वाले। 46 लोकपालः- लोकरक्षक, 47
अन्तर्हितात्मा- अदृश्य स्वरूप वाले, 48 प्रसादः- प्रसन्नता
से परिपूर्ण, 49 हयगर्दभिः- खच्चर जुते रथ पर चलने वाले,
50 पवित्रम्- शुद्ध वस्तुरूप, 51 महान- पूजनीय,
52 नियमः- शौच- संतोष आदि नियमों के पालन के प्राप्त होने योग्य,
53 नियमाश्रितः- नियमों के आश्रय भूत। 54 सर्वकर्मा- सारा जगत जिनका
कर्म है वे, 55 स्वयम्भूतः- नित्यसिद्ध, 56 आदिः- सबसे प्रथम, 57 आदिकरः- आदि पुरुष हिरण्य
गर्भ की सृष्टि करने वाले, 58 निधिः- अक्षय ऐश्वर्य के
भण्डार, 59 सहस्राक्षः- सहस्रों नेत्र वाले, 60 विशालाक्षः- विशाल नेत्र वाले, 61 सोमः-
चन्द्रस्वरूप, 62 नक्षत्रसाधकः- नक्षत्रों के साधक। 63
चन्द्रः- चन्द्रमारूप में आहादकारी, 64 सूर्यः- सबकी उत्पति
के हेतुभूत सूर्य, 65 शनिः-, 66 केतुः-,
67 ग्रहः- चन्द्रमा और सूर्य पर ग्रहण लगाने वाला राहु, 68 ग्रहपतिः- ग्रहों के पालक, 69 वरः- वरणीय,
70 अत्रिः- अत्रि ऋषिस्वरूप, 71 अत्रया
नमस्कर्ता- अत्रिपत्नी अनसूया को दुर्वासारूप से नमस्कार करने वाले, 72 मृगबाणार्पणः- मृगरूपधारी यज्ञ पर बाण चलाने वाले, 73 अनघः- पापरहित। 74 महातपाः- महान तपस्वी, 75
घोरतपाः- भयंकर तपस्या करने वाले, 76 अदीनः- उदार, 77 दीनसाधकः- शरण में आये हुए दीन-दुखियों का मनोरथ सिद्ध करने वाले,
78 संवत्सरकरः-संवत्र का निर्माता, 79
मन्त्रः- प्रणव आदि मन्त्ररूप, 80 प्रमाणम्- प्रमाणस्वरूप,
81 परमं तपः- उत्कृष्ट तपः स्वरूप। 82 योगी- योगनिष्ठ, 83 योज्यः- मनोयोग के आश्रय, 84 महाबीजः- महान कारणरूप,
85 महारेताः- महावीर्य शाली, 86 महाबलः- महान
शक्ति से सम्पन्न, 87 सुवर्णरेताः-अग्निरूप, 88 सर्वज्ञः- सब कुछ जानने वाले, 89 सुबीजः- उत्तम
बीजरूप, 90 बीजवाहनः- जीवों के संस्काररूप बीज को वहन करने
वाले। 91 दशबाहुः- दस भुजाओं से युक्त, 92 अनिमिषः- कभी पलक
न गिराने वाले, 93 नीलकण्ठः- जगत कि रक्षा के लिये हालाहल
विष का पान करके उसके नील चिहन को कण्ठ में धारण करने वाले, 94
उमापतिः- गिरिराजकुमारी उमा के पतिदेव, 95 विश्वरूपः-
जगत्स्वरूप, 96 स्वयं श्रेष्ठः- स्वतःसिद्ध श्रेष्ठता से
सम्पन्न, 97 बलवीरः- बल के द्वारा वीरता प्रकट करने वाले,
98 अबलो गणः- निर्बल समुदायरूप। 99 गणकर्ता- अपने पार्षदगणों का
संघटन करने वाले, 100 गणपितः- प्रथमगणों के स्वामी, 101 दिग्वासाः- दिगम्बर, 102 कामः- कमनीय, 103 मन्त्रवित्- मन्त्रवेता, 104 परमो मन्त्रः-
उत्कृष्ट मन्त्ररूप, 105 सर्वभावकरः- समस्त पदार्थों की
सृष्टि करने वाले, 106 हरः- दुःख हरण करने वाले। 107
कमण्डललुधरः- एक हाथ में कमण्डलु धारण करने वाले, 108 धन्वी-
दूसरे हाथ में धनुष धारण करने वाले, 109 बाणहस्तः- तीसरे हाथ
में बाण लिये रहने वाले, 110 कपालवान्- चौथे हाथ में
कपालधारी, 111 अशनी- पांचवें हाथ में वज्र धारण करने वाले,
112 शतध्नी- छठे हाथ में शतध्नी रखने वाले, 113
खड्गी- सातवे में खड्गधारी, 114 पटिटशि- आठवे में पटिटश धारण
करने वाले, 115 आयुधी- नवे हाथ में अपने सामान्य आयुध
त्रिशुल को लिये रहने वाले, 116 महान- सर्वश्रेष्ठ। 117
स्त्रुहस्तः- दसवे हाथ में स्त्रुवा धारण करने वाले, 118
सुरूपः- सुन्दर रूपवाले, 119 तेजः- तेजस्वी, 120 तेजस्करो निधिः- भक्तों के तेज की वृद्धि करने वाले निधिरूप, 121 उष्णीषी- सिर पर साफा धारण करने वाले, 122
सुवस्त्रः- सुन्दर मुख वाले, 123 उदग्रः- ओजस्वी, 124 विनतः- विनयशील। 125 दीर्धः- उंचे कदवाले, 126
हरिकेषः- ब्रहा, विष्णु, महेशस्वरूप,
127 सुतीर्थः- उत्तम तीर्थस्वरूप, 128
कृष्णः- सच्चिदानन्दस्वरूप, 129 श्रृगालरूपः- सियार का रूप
धारण करने वाले, 130 सिद्धार्थः- जिनके सभी प्रयोजन सिद्ध
हैं, 131 मुण्डः- मूंड मुड़ाये हुए, भिक्षुस्वरूप,
132 सर्वशुभंकरः- समस्त प्राणियों का हित करने वाले। 133 अजः-
अजन्मा, 134 बहुरूपः- बहुत से रूप धारण करने वाले 135
गन्धधारीः- कुकुम और कस्तुरी आदि सुगन्धित पदार्थ धारण करने वाले, 136 कपर्दी- जटाजूटधारी, 137 उध्र्वरेताः- अखण्डिता
ब्रहाचर्य वाले, 138 उध्र्वलिंगः- 139 उध्र्वशायी- आकाश में
शयन करने वाले, 140 नभःस्थलः- आकाश जिनका वासस्थान है वे।
141 त्रिजटी- तीन जटा धारण करने वाले, 142 चीनवासाः- वल्कल
वस्त्र पहनने वाले, 143 रुद्रः- दुःख को दूर भगाने वाले,
144 सेनापतिः- सेनानायक, 145 विभुः-
सर्वव्यापी, 146 अहश्चरः- दिन में विचरने वाले, 147 नक्तंचरः- रात में विचरने वाले, 148
तिग्ममन्युः- तीखे कारेध वाले, 149 सुवर्चसः- सुन्दर
तेजवाले। 150 गजहा- गजरूपधारी महान असुर को मारने वाले, 151
दैत्यहा- अन्धक आदि दैत्यों का वध करने वाले, 152 कालः- मृत्यु
अथवा संवत्सर आदि समय, 153 लोकधाता- समस्त जगत का धारण-पोषण
करने वाले, 154 गुणाकारः- सद्गुणों की खान, 155 सिंहशार्दूलरूपः- सिंह-व्याघ्र आदि का रूप धारण करने वाले, 156 आर्द्रचर्माम्बरावृतः- गजासुर के गीले चर्म को ही वस्त्र बनाकर उससे
अपने-आपको आच्छादित करने वाले। 157 कालयोगी- काल को भी योगबल से जीतने वाले,
158 महानादः- अनाहत ध्वनिरूप, 159 सर्वकामः-
सम्पूर्ण कामनाओं से सम्पन्न, 160 चतुष्पथः- जिनकी प्राप्ति
के ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग और
अष्टांगयोग- ये चार मार्गहै वे महादेव, 161 निशाचरः- रात्रि
के समय विचरने वाले, 162 प्रेतचारी-प्रेतोंके साथ विचरण करने
वाले, 163 भूतचारी-भूतों के साथ विचरने वाले, 164 महेश्वरः- इन्द्र आदि लोकेश्वरों से भी महान।। 165 बहुभूतः- सृष्टिकाल
में एक से अनेक होने वाले, 166 बहुधरः- बहुतों को धारण करने
वाले, 167 स्वर्भानुः-, 168 अमितः-
अनन्त, 169 गतिः-122 भक्तों और मुक्तात्माओं के प्राप्त होने
योग्य, 170 नृत्यप्रियः-ताण्डव नृत्य जिन्हें प्रिय है वे
शिव, 171 नित्यनर्तः- निरन्तर नृत्य करने वाले, 172 नर्तकः- नाचने-नचाने वाले, 173 सर्वलालसः- सब पर
प्रेम रखने वाले। 174 घोरः- भयंकर रूपधारी, पाषः-अपनी
मायारूपी पाश से बांधने वाले, 177 नित्यः- विनाशवासी,
178 गिरिरूहः- पर्वतपर आरूढ़-कैलाशवासी, 179
नभः- आकाश के समान असंग, 180 सहस्रहस्तः- हजारो हाथो वाले,
181 विजयः- विजेता, 182 व्यवसायः- दृढ़निश्चयी,
183 अतन्द्रितः-आलस्यरहित। 184 अधर्षणः- अजेय, 185 धर्षणात्मा- भयरूप, 186 यज्ञहा- दक्ष के यज्ञ का
विध्वंस करने वाले, 187 कामनाशकः- कामदेव को नष्ट करने वाले,
188 दक्षयागापहारी- दक्ष के यज्ञ का अपहरण करने वाले, 189-सुसहः- अति सहनशील, 190 मध्यमः- मध्यस्थ। 191
तेजोपहारी- दूसरों के तेज को हर लेने वाले, 192 बलहा- बलनामक
दैत्य का वध करने वाले, 193 मुद्रितः-आनन्दस्वरूप, 194 अर्थः- अर्थस्वरूप, 195 अजितः- अपराजित, 196 अवरः- जिनसे श्रेष्ठ दूसरा कोई नहीं है वे भगवान शिव, 197 गम्भीरघोषः- गम्भीर घोष करने वाले, 198
गम्भीरः-गाम्भीर्ययुक्त, 199 गम्भीरबलवाहनः- अगाध बलशाली
वृषभ पर सवारी करने वाले। 200 न्यग्रोधरूपः- वटवृक्षस्वरूप, 201
न्यग्रोधः- वटनिकटनिवासी, 202 वृक्षकर्णस्थितिः- वटवृक्ष के
पते पर शयन करने वाले बालमुकुन्दरूप, 203 विभुः- विविध रूपो
से प्रकट होने वाले, 204 सुतीक्ष्णदशनः- अत्यन्त तीखे दांत
वाले, 205 महाकायः- बड़े डील डौल वाले, 206 महाननः- विशाल मुख वाले। 207 विश्वक्सेनः- दैत्यों की सेना को सब ओर
भगा देने वाले, 208 हरिः- आपतियों को हर लेने वाले, 209 यज्ञः- यज्ञरूप, 210 सयुगापीडवाहनः- युद्ध में
पीड़ारहित वाहन वाले, 211 तीक्ष्णतापः- दुःसह तापरूप सूर्य,
212 हर्यष्वः- हरे रंग के घोड़ो से युक्त, 213
सहायः- जीवमात्र के सखा, 214 कर्मकालवित- कर्मो के काल को
ठीक-ठीक जानने वाले। 215 विष्णुप्रसादितः- भगवान विष्णु ने जिन्हें आराधना करके
प्रसन्न किया था वे शिव, 216 यज्ञः- विष्णुस्वरूप, यज्ञो वै विष्णुः, 217 समुद्रः- महासागररूप, 218 वडवामुखः- समुद्र में स्थित बड़वानलरूप, 219
हुताशनसहायः- अग्नि के सखा वायुरूप, 220 प्रशान्तात्मा-
शान्तचित, 221 हुताशनः- अग्नि। 222 उग्रतेजाः- भयंकर तेज
वाले, 223 महातेजाः- महान तेज से सम्पन्न, 224 जन्यः- संसार के जन्मदाता, 225 वियजकालवित- विजय
के समय का ज्ञान रखने वाले, 226 ज्योतिशामयनम्- ज्योतिषों का
स्थान, 227 सिद्धिः- सिद्धिस्वरूप, 228
सर्वविग्रहः- सर्वस्वरूप,। 229 शिखी- शिखाधारी गृहस्थस्वरूप,
230 मुण्डी- शिखारहित संन्यासी, 231 जटी-
जटाधारी वानप्रस्थ, 232 ज्वाली- अग्नि की प्रज्वलित ज्वाला में
समिधा की आहुति देने वाले, 233 मूर्तिजः- शरीर रूपसे प्रकट
होने वाले, 234 मूर्द्धगः- मूद्र्धा-सहस्रार चक्र में ध्येय
रूप से विद्यमान, 235 बली- बलिष्ठ, 236
वेणवी- वंशी बजाने वाले श्रीकृष्ण, 237 पणवी- पणव नामक वाद्य
बजाने वाले, 238 ताली- ताल देनेवाले,239
खली- खलिहानके स्वामी, 240 काल-कटंकटः- यमराजके मायाके आवृत
करने वाले। 241 क्षत्रविग्रहमतिः- नक्षत्र-ग्रह-तारा आदिकी गतिको जाननेवाले,
242 गुणबुद्धिः- गुणोंमें बुद्धि लगानेवाले, 243
लयः- प्रलयके स्थान, 244 अगमः- जानने में आने वाला, 245 प्रजापतिः- प्रजा के स्वामी, 246 विश्वबाहुः- सब
ओर भुजा वाले, 247 विभागः- विभागस्वरूप, 248 सर्वगः- सर्वव्यापी, 249 अमुखः- बिना मुख वाला।
250 विमोचनः- संसार-बन्धन से छुड़ाने वाले, 251 सुसरणः-
श्रेष्ठ आश्रय, 252 हिरण्य-कवचोभ्दवः- हिरण्यगर्भ की उत्पति
का स्थान, 253 मेढ़जः-, 254 बलचानी-
बलका संचार करने वाले, 255 महीचारी- सारी पृथ्वी पर विचरने
वाले, 256 स्त्रुतः- सर्वत्र पहुँचे हुए। 257
सर्वतूर्यनिनादी- सब प्रकार के बाजे बजाने वाले, 258
सर्वातोद्यपरिग्रहः- सम्पूर्ण वाद्यों का संग्रह करने वाले, 259
व्यालरूपः- शेषनागस्वरूप, 260 गुहावासी- सबकी हदयगुफा में
निवास करने वाले, 261 गुहः- कार्तिकेयस्वरूप, 262 माली-मालाधारी, 263 तरंगवित्- क्षुधा-पिपासा आदि
छहों उर्मियों के ज्ञाता साक्षी। 264 त्रिदषः- प्राणियों की तीन दशाओं-जन्म,
स्थिति और विनाश के हेतुभूत, 265 त्रिकालधृक्-
भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों को धारण करने वाले,
266 कर्मसर्वबन्धविमोचनः- कर्मो के समस्त बन्धनों को काटने वाले,
267 असुरेन्द्राणां बन्धनः- बलि आदि असुरपतियों को बांध लेने वाले,
268 युधिशत्रुविनाशनः- युद्ध में शत्रुओं का विनाश करने वाले। 269
सांख्यप्रसादः- आत्मा और अनात्मा के विवेकरूप सांख्यज्ञान से प्रसन्न होने वाले,
270 दुर्वासाः- अत्रि और अनसूया के पुत्र रुद्रावतार दुर्वासा मुनि,
271 सर्वसाधुनिशेवितः- समस्त साधुपुरुषोद्वारा सेवित, 272 प्रस्कन्दनः- स्थान भ्रष्ट करने वाले, 273
विभागज्ञः- प्राणियो के कर्म और फलों के विभाग को यथोचितरूप से जानने वाले,
274 अतुल्यः- तुलनारहित, 275 यज्ञविभागवित्-
यज्ञसम्बन्धी हविष्य के विभिन्न भागों का ज्ञान रखने वाले। 276 सर्ववासः- सर्वत्र
निवास करने वाले, 277 सर्वचारी- सर्वत्र विचरने वाले,
278 दुर्वासाः- अनन्त और अपार होने के कारण जिनको वस्त्र से
आच्छादित करना दुर्लभ है, 279 वासवः- इन्द्रस्वरूप, 280 अमरः- अविनाशी, 281 हैमः- हिमसमूह- हिमालयरूप,
282 हेमकरः- सुवर्णके उत्पादक, 283 अयज्ञः-
कर्मरहित, 284 सर्वधारी- सबको धारण करने वाले, 285 धरोतमः- धारण करनेवालों में सबसे उत्तम-अखिल धारण करने वाले। 286
लोहिताक्षः- रक्तनेत्र, 287 महाक्षः- बड़े नेत्र वाले,
288 विजयाक्षः- विजयशील रथवाले, 289 विषारदः-
विद्वान्, 290 संग्रहः- संग्रह करने वाले, 291 निग्रहः- उदण्डोको दण्ड देनेवाले, 292
कर्ता-सबके उत्पादक, 293 सर्पचीन-निवासनः- सर्पमय चीर धारण
करने वाले। 294 मुख्यः- सर्वश्रेष्ठ, 295 अमुख्यः- जिससे
बढ़कर मुख्य दूसरा कोई न हो वह, 296 देहः- देहस्वरूप,
297 सर्वकामदः- सम्पूर्ण कामनाओंके दाता, 299
सर्वकालप्रसादः- सम्पन्न, 300 सुबलः- उत्त7म बलसे सम्पन्न,
301 बलरूपधृक्- बल और रूपके आधार, 302
सर्वकामवरः- 303 सर्वदः- सब कुछ देनेवाले, 304 र्वतोमुखः- सब
और मुखवाले, 305 आकाशनिर्विरूपः- आकाशकी भाँति जिनसे नाना
प्रकारके रूप प्रकट होते हैं वे, 306 निपाती- पापियोंको
नरकमें गिरानेवाले, 307 अवश- जिनके उपर किसी का वश नहीं चलता
वे, 308 खगः- आकाशगामी। 309 रौद्ररूपः- भयंकर रूपधारी,
310 अंशु- किरणस्वरूप, 311 आदित्यः-
अदितिपुत्र, 312 बहुरश्मि- असंख्य किरणोवाले, सूर्यरूप, 313 सुवर्चसी-उत्त म तेजसे सम्पन्न,
314 वसुवेगः- वायुके समान वेगवाले, 315
महावेगः- वायुसे भी अधिक वेगशाली, 316 मनोवगेः- मनके समान
वेगवाले, 317 निशाचरः- रात्रिमें विचरनेवाले। 318 सर्ववासी-
सम्पूीर्ण प्राणियोंमें आत्मारूपसे निवास करने वाले, 319
श्रियावासी- लक्ष्मीके साथ निवास करने वाले विष्णुरूप, 320
उपदेशकरः- जिज्ञासुओंको तत्त्वका और काशीमें मरे हुए जीवोंको तारकमन्त्रका उपदेश
करने वाले, 321 अकरः- कर्तृत्वके अभिमानसे रहित, 322 मुनिः- मननशील, 323 आत्मनिरालोकः- देह आदिकी
उपाधिसे अलग होकर आलोचना करने वाले, 324 सम्भग्नः- सम्यक्
रूपसे सेवित, 325 सम्भग्नः- हजारोंका दान करने वाले। 326
पक्षी- गरुड़रूपधारी, 327 पक्षरूपः- शुक्लपक्षस्वरूप,
328 अतिदीप्तः- अत्यन्त तेजस्वी, 329
विषाम्पतिः- प्रजाओंके स्वामी, 330 उन्मादः- प्रेममें उन्मत,
331 मदनः- कामदेवरूप, 332 कामः- कमनीय विषय,
333 अश्वत्थः- संसार-वृक्षरूप, 334 अर्थकरः-
धनआदि देनेवाले, 335 यश- श्यषस्वरूप। 336 वामदेवः- वामदेव
ऋषिस्वरूप, 337 वामः- पापियोंके प्रतिकूल, 338 प्राक्-सबके आदि, 339 दक्षिणः- कुशल, 340 वामनः- बलिको बांधनेवाले वामन रूपधारी, 341
सिद्धयोगी- सनत्कुमार आदि सिद्ध महात्मा, 342 महषिः- वसिष्ठ
आदि, 343 सिद्धार्थः- आप्तकाम, 344
सिद्धसाधकः- सिद्ध और साधकरूप।345 भिक्षुः- संन्यासी, 346
भिक्षुरूपः- श्रीराम-कृष्ण आदिकी बालछविका दर्शन करनेके लिये भिक्षुरूप धारण करने
वाले, 347 विपणः- व्यवहारसे अतीत, 348
मृदुः- कोमल स्वभाववाले, 349 अव्ययः- अविनाशी, 350 महासेनः- देवसेनापति कार्तिकेयरूप, 351 विशाखः-
कार्तिकेयके सहायक, 352शष्टिभागः- प्रभव आदि आठ भागों में
विभक्त संवत्सररूप, 353 गवाम्पतिः- इन्द्रियोके स्वामी। 354
वज्रहस्तः- हाथमें वज्र धारण करने वाले इन्द्ररूप, 355
विश्कम्भी-विस्तारयुक्त, 356 चमूस्तम्भनः- दैत्यसेनाको
स्तब्ध करने वाले, 357 वृतावृतकरः- युद्धमें रथके द्वारा
मण्ड़ल बनाना वृत कहलाता है और शत्रुसेनाको विदीर्ण करके अक्षत शरीरसे लौट आना
आवृत कहलाता है। इन दोनोंको कुशलतापूर्वक करने वाले, 358
तालः- संसारसागरके तल प्रदेश-आधार-स्थान अर्थात् शुद्ध जाननेवाले, 359 मधुः- वसन्त ऋतुरूप, 360 मधुकलोचनः- मधुके समान
पिंगल नेत्र वाले। 361 वाचस्पत्यः- पुरोहितका काम करने वाले, 362 वाजसनः- शुक्ल यजुर्वेदकी माध्यन्दिनी शाखाके प्रवर्तक, 363 नित्यमाश्रमपूजितः- सदा आज्ञमोंद्वारा पूजित होने वाले, 364 लोकचारी- सम्पूर्ण लोकोंमें विचरनेवाले, 365
सम्पूर्ण लोक का स्वामी, 366 सर्वचारी-सर्वत्र गमन करने वाले,
367 विचारवित्- विचारोंके ज्ञाता। 368 ईशानः- नियन्ता, 369 ईश्वरः- सबके शासक, 370 कालः- कालस्वरूप,
371 निशाचारी- प्रलयकालकी रातमें विचननेवाले, 372
पिनाकवान्- पिनाक नामक धनुष धारण करने वाले, 373 निमितस्थः-
अन्तर्यामी, 374 निमितम्-निमित कारणरूप, 375 नन्दिः- ज्ञानसम्पतिरूप, 376 नन्दिकरः-
ज्ञानरूपीसम्पति देनेवाले, 377 हरिः- विष्णुस्वरूप। 378
नन्दीश्वरः- नन्दी नामक पार्षदके स्वामी, 379 नन्दी- नन्दी
नामक गणरूप, 380 नन्दनः- परम आनन्द प्रदान करने वाले,
381 नन्दिवर्द्धनः- समृद्धि बढ़ानेवाले, 382
भगहारी- ऐश्वर्यका अपहरण करने वाले, 383 निहन्ता-
मृत्युरूपसे सबको मारनेवाले, 384 कालः- चौसठ कलाओंके
निवासस्थल, 385 ब्रहा- लोकस्त्रष्ठा ब्रहा, 386 पितामहः- प्रजापतिके भी पिता। 387 चतुर्मुखः- चार मुखवाले, 388 महालिंगः- महालिंगस्वरूप, 389 चारूलिंगः- रमणीय
वेशधारी, 390 लिंगाध्यक्षः- प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंके
अध्यक्ष, 391 सुराध्यक्षः- देवताओंके अधिपति, 392 योगाध्यक्षः- योगके अध्यक्ष, 393 युगावहः- चारों
युगोंके निर्वाहक । 394 बीजाध्यक्षः- कारणोंके अध्यक्ष, 395
बीजकर्ता- कारणोंके उत्पादक, 396 अध्यायत्मनुगतः- अध्यात्म
शास्त्र का अनुसरण करने वाले, 397 बलः- बलवान, 398 इतिहासः- महाभारत आदि इतिहासस्वरूप, 399
संकल्पः- कल्प-यज्ञोंके प्रयोग और विधिके विचारके साथ मीमांसा और न्यायका समूह,
400 गौतमः- तर्कशास्त्रके प्रणेता मुनिस्वरूप, 401 निशाकरः- चन्द्रमारूप। 402 दम्भः- शत्रुओंका दमन करने वाले, 403 अदम्भः- दम्भरहित, 404 वैदम्भः- दम्भरहित
पुरुषोंके आत्मीय, 405 वषय- भक्तपराधीन, 406 वशकरः7 दूसरोंको वशमें करनेकी शक्ति रखनेवाले, 407
कलिः- कलि नामक युग, 408 लोककर्ता- जगत कि सृष्टि करने वाले,
409 पशुपतिः- पशुओं-जीवोंके स्वामी, 410
महाकर्ता- पंच महाभूतादि सृष्टिकी रचना करने वाले, 411
अनौषधः- अन्न आदि ओषधियोंके सेवनसे रहित। 412 अक्षरम्- अविनाशी ब्रहा, 413 परमं ब्रहा-सर्वात्कृष्ट परमात्मा, 414 बलवत्-
शक्तिशाली, 415शक्रः- इन्द्र, 416
नीतिः- न्यायस्वरूप, 417 अनीतिः- साम,दाम,दण्ड़,भेदसे रहित, 418शुद्धात्माः-
शुद्धस्वरूप, 419शुद्धः- परम पवित्र, 420
मान्यः- सम्मानने योग्य, 421 गतागतः- गमनागमनशील संसारस्वरूप,। 422 बहुप्रसादः- भक्तोंपर अधिक कृपा करने वाले, 423
सुस्वप्नः- सुन्दर स्वप्नवाले, 424 दर्पणः- दर्पणके समान
स्वच्छ, 425 अमित्रजित्-बाहर-भीतरके शत्रुओंके जीतनेवाले,
426 वेदकारः- वेदोंका कर्ता, 427 मन्त्रकारः-
मन्त्रोंका आविष्कार करने वाले, 428 विद्वान् सर्वज्ञ,
429 समरमर्दनः- समरांगणमें शत्रुओंका संहार करने वाले। 430
महामेघनिवासी- प्रलयकालिक महामेघोंमें निवास करने वाले, 431
महाघोरः- प्रलय करने वाले, 432 वशी- सबको वशमें रखनेवाले,
433 करः- संहारकारी, 434 अग्निज्वालः- अग्निकी
ज्वालाके समान तेजवाले, 435 महाज्वालः- अग्निसे भी महान्
तेजवाले, 436 अतिधूम्रः- कालग्निरूपसे सबके दाहकालमें
अत्यन्त धूम्र वर्णवाले, 437 हुतः- आहुति पाकर प्रसन्न होने
वाले अग्निरूप, 438 हविः- घी-दूध आदि हवनीय पदार्थरूप। 439
वृषणः- कर्मफलकी वर्षा करने वाले धर्मस्वरूप, 440शकर-कल्याणकारी,
441 नित्यं वर्चस्वी- सदा तेजसे जगमगासे रहनेवाले, 442 धूमकेतनः- अग्निस्वरूप, 443 नीलः- शमवर्ण
श्रीहरि, 444 अंगलुब्धः- अपने श्रीअंगके सौन्दर्यपर स्वयं ही
लुभाये रहनेवाले, 445शोभनः- शोभाशाली, 446
निरवग्रहः- प्रतिबन्धरहित। 447 स्वस्तिदः- कल्याणदायक, 448
स्वस्तिभावः- कल्याणमयी सता, 449 भागी- यज्ञमें भागलेनेवाले,
450 भागकरः- यज्ञके हविष्यका विभाजन करने वाले, 451 लघुः- शीघ्रकारी, 452 उत्संग- संगरहित, 453 महागः- महान् अंगवाले, 454 महागर्भपरायणः-
हिरण्यगर्भके परम आश्रय। 455 कृष्णवर्णः- शमवर्ण विष्णुस्वरूप, 456 सुवर्णः- उत्त4म वर्णवाले, 457 सर्वदेहिनाम्
इन्द्रियम्-समस्त देहधारियोंके इन्द्रियसमुदायरूप, 458
महापादः- लंबे पैरोवाले त्रिविक्रमस्वरूप, 459 महाहस्तः-
लंबे हाथवाले, 460 महाकायः- विश्वरूप, 461
महायशा- महान् सुयशवाले।।85।। 462 महामूर्धा- महान् मस्तकवाले, 463 महामात्रः- विशाल नापवाले, 464 महानेत्रः- विशाल
नेत्रोंवाले, 465 निशालयः- निशा अर्थात् अविद्याके लयस्थान,
466 महान्तकः- मृत्युकी भी मृत्यु, 467
महाकर्णः- बड़े-बड़े कानवाले, 468 महोष्ठः- लंबे ओठवाले,
469 महाहनुः- पुष्ट एवं बड़ी ठोड़ीवाले। 470 महानासः- बड़ी
नासिकावाले, 471 महाकम्बुः- बड़े कण्ठवाले, 472 महाग्रीवः- विशाल ग्रीवासे युक्त, 473श्मशानभाक्-श्मशान
भूमिमें क्रीड़ा करने वाले 474 महावक्षाः- विशाल वक्षःस्थलवाले, 475 महोरस्कः- चौड़ी छातीवाले, 476 अन्तरात्मा- सबके
अन्तरात्मा, 477 मृगालयः- मृग-शिशुको अपनी गोदमें लिये
रहनेवाले। 478 लम्बनः- अनेक ब्रहाण्डोके आश्रय, 479
लम्बितोष्ठः- प्रलयकालमें सम्पूर्ण विश्वको अपना ग्रास बनानेके लिये ओठोंको फैलाये
रखनेवाले, 480 महामायः- महामायावी, 481
पयोनिधिः- क्षीरसागररूप, 482 महादन्तः- बड़े-बडे दाढ़वाले,
484 महामायः- विशाल महामायवाले, 485 महामुखः-
बहुत बड़े मुखवाले। 486 महानखः- बड़े-बड़े नखवाले नृसिंह, 487
महारोमा-विशाल रोमवाले वराहरूप, 488 महाकोषः- बहुत बड़े
पेटवाले, 489 महाजटः- बड़ी-बड़ी जटावाले, 490 प्रसन्नः- आनन्दमग्न, 491 प्रसादः- प्रसन्नताकी
मूर्ति, 492 प्रत्ययः- ज्ञानस्वरूप, 493
गिरिसाधनः- पर्वतको युद्धका साधन बनानेवाले। 494 स्नेहनः- प्रजाओंके प्रति पिताकी
भाँति स्नेह रखनेवाले, 495 अस्नेहनः- आसक्तिसे रहित, 496 महामुनिः- अत्यन्त मननशील, 497
वृक्षाकारः-संसारवृक्षस्वरूप, 498 अजितः- किसीसे पराजित न
होने वाले, 499 वृक्षकेतुः- वृक्षके समान उंची ध्वजावाले,
500 अनलः- अग्निस्वरूप, 501 वायुवाहनः- वायुका
वाहनके रूपमें उपयोग करने वाले। 502 गण्डली- पहाड़ोकी गुफाओंमें छिपकर रहनेवाले,
503 मेरूधामा-मेरू-पर्वतको अपना निवासस्थान बनानेवाले, 504 देवाधिपतिः- देवताओंके स्वामी, 505 अथर्वशीर्ष
जिनका मस्तक है वे, 506 सामास्यः- सामवेद जिनका मुख है वे,
507 ऋक्सहस्रामितेक्षणः- सहस्रों ऋचाएं जिनके नेत्र हैं। 508
यजुःपादभुजः- यजुर्वेद जिनके हाथ-पैर हैं, 509
गुहयः-गोपनीयस्वरूप, 510 प्रकाश-भक्तोंपर कृपा करके स्वयं ही
उनके समक्ष अपनेको प्रकाशित कर देनेवाले, 511 जंगमः-
चलने-फिरनेवाले, 512 अमोघार्थः- किसी वस्तुके लिये याचना
करनेपर उसे अवश्य सफल होने वाले, 513 प्रसादः- दया करके
शीघ्र प्रसन्न होने वाले, 514 अभिगम्यः- सुगमतासे प्राप्त
होनेयोग्य, 515सुदर्शनः- सुन्दर दर्शनवाले। 516 उपकारः-
उपकार करने वाले, 517 प्रियः- भक्तोंके प्रेमास्पद, 518 सर्वः- सर्वस्वरूप, 519 कनकः- सुवर्णस्वरूप,
520 कांचनच्छविः- कांचनके समान कमनीय कान्तिवाले, 521 नाभिः- समस्त भुवनका मध्यदेशरूप, 522 नन्दिकरः-
आनन्द देनेवाले, 523 भावः- श्रद्धा-भक्तिस्वरूप, 524 पुष्करस्थपतिः- ब्रहाणडरूपी पुष्करका निर्माण करने वाले, 525 स्थिरः- स्थिरस्वरूप, 526 द्वादश-ग्यारह
रुद्रोसे श्रेष्ठ बारहवे रुद्र, 527 त्रासनः-संहारकारी होने
कारण भयजनक, 529 आद्यः-सबके आदि कारण, 530
यज्ञसमाहितः-यज्ञमें उपस्थित रहनेवाले, 531 नक्तम्-
प्रलयकालकी रात्रिस्वरूप, 532 कलिः-कलिके स्वरूप, 533 कालः- सबको अपना ग्रास बनानेवाले कालरूप, 524
मकरः- मकराकार शिशुसार चक्र, 535 कालपूजितः- काल अर्थात्
मृत्युके द्वारा पूजित। 536 सगणः- प्रमथ आदि गणोंसे युक्त, 537
गणकारः- बाणासुर आदि भक्तोंको अपने गणमें सम्मिलित करने वाले, 538 भूतवाहनसारथिः- त्रिपुर-विनाशके लिये समस्त प्राणियोंके योगक्षेमका
निर्वाह करने वाले ब्रहाजीको सारथि बनाने वाले, 539 भस्मषयः-
भस्मपर शयन करने वाले, 540 भस्मगोप्ता- भस्मस्वरूवप, 541 भस्मभूतः- भस्मस्वरूप, 542 तरूः-
कल्पवृक्षस्वरूप, 543 गणः-भृंगिरिटि और नन्दिकेश्वर आदि
पार्षदरूप। 544 लोकपालः- चतुर्दश भुवनोंका पालन करने वाले, 545
अलोकः- लोकातीत, 546महात्मा-, 547
सर्वपूजितः- सबके द्वारा पूजित, 548शुक्लः- शुद्धस्वरूप,
549 त्रिशुक्लः- मन,वाणी और शरीर ये तीनों,
550 सम्पन्नः- सम्पूबर्ण सम्पदाओंसे युक्त, 551शुचिः-परम
पवित्र, 552 भूतनिशेवितः- समस्त प्राणियोंद्वारा सेवित। 553
आश्रमस्थः- चारों आश्रमोंमें धर्मस्वरूपसे स्थित रहनेवाले, 554
क्रियावस्थः-यज्ञादि क्रियाओंमें संलग्न, 555
विश्वकर्ममतिः-संसारकी रचनारूप कर्ममें कुशल, 556 वरः-
सर्वश्रेष्ठ, 557 विशालशाखः-लंबी भुजाओंवाले, 558 ताम्रोष्ठः- लाल-लाल आठवाले, 559
अम्बुजालः-जलसमूह-सागररूप, 560 सुनिष्चलः- सर्वथा निश्चलरूप।
561 कपिलः- कपिल वर्ण, 562 कपिषः- पीले वर्णवाले, 563शुक्लः-श्वेत वर्णवाले, 564 आयुः-जीवनरूप,
565 परः-प्राचीन, 566 अपनः-अर्वाचीन, 567 गन्धर्वः-चित्ररथ आदि गन्धर्वरूप, 568 अदितिः-
देवमाता अदितिस्वरूप, 569 ताक्ष्यं- विनतानन्दन गरूडरूप,
570 सुविज्ञेयः- सुगमतापूर्वक जानने योग्य, 571
सुषारदः-उत्तिम वाणी बोलनेवाले। 572 परश्वधायुधः-फरसेका आयुधके रूपमें उपयोग करने
वाले परशुरामरूप, 573 देवः-महादेवस्वरूप, 574 अनुकारी-भक्तोंका अनुकरण करने वाले, 575
सुबान्धवः- उत्त,म बान्धवरूप, 576
तुम्बवीणः7 तूंबीकी वीणा बजानेवाले, 577 महाक्रोधः-
प्रलयकालमें महान् क्रोध प्रकट करने वाले, 578
उध्र्वरेताः-अस्खलितवीर्य, 579 जलेशयः- विष्णुरूपसे जलमें
शयन करने वाले। 580 उग्रः- प्रलयकालमें भयंकर रूप धारण करने वाले, 581 वंशकरः-वंशप्रवर्तक, 582 वंश- वंशस्वरूप,
583 वंशनादः- श्रीकृष्णरूपसे वंशी बजानेवाले, 584
अनिन्दितः- निन्दारहित, 585 सर्वांगरूपः- सर्वांग
पूर्णस्वरूपवाले, 586 मायावीः-, 587
सुहदः- हेतुरहित दयालु, 588 अनिलः- वायुस्वरूप,589 अनलः- अग्निस्वरूप। 590 बन्धनः- स्नेहबन्धनमें बांधनेवाले, 591 बन्धकर्ता- बन्धनरूप संसारके निर्माता, 592
सुबन्धनविमोचनः- मायाके सुदृढ़ बन्धनसे छुड़ानेवाले, 593
सयज्ञारिः- दक्षयज्ञ-शत्रुओंके साथी, 594 सकामारिः- कामविजयी
योगियोंके साथी, 595 महादंष्टः- बड़ी-बड़ी दाढ़वाले
नरसिंहरूप, 596 महायुधः-विशाल आयुधधारी। 597 बहुधा
निन्दितः-दक्ष और उनके समर्थकोंद्वारा अनेक प्रकारसे निन्दित, 598 सर्वः-प्रलयकालमें सबका संहार करने वाले, 599शकरः-कल्याणकारी,
600शकरः- भक्तोंको आनन्द देनेवाले, 601
अधनः-सांसारिक धनसे रहित, 602 अमरेषः-देवताओंके भी ईश्वर,
603 महादेवः- देवताओंके भी पूजनीय, 604
विश्वदेवः-सम्पूर्ण विश्वके आराध्यदेव, 605 सुरारिहाः-
देवशत्रुओं वध करने वाले। 606 अहिर्बुध्न्यः- शेषनागस्वरूप, 607
अनिलाभः-वायुके समान वेगवान्, 608 चेकितानः- अतिशय
ज्ञानसम्पन्न, 609 हविः- हविष्यरूप, 610
अजैकपाद -ग्यारह रुद्रों में से एक, 611 कापाल-दो कपालोंसे
निर्मित कपालरूप अखिल के अधीश्वर, 612 त्रिशकुः-त्रिशकुरूप,
613 अजितः-किसीके द्वारा पराजित न होने वाले, 614
शिव :-कल्याणस्वरूप। 615 धन्वन्तरिः-महावैद्य धन्वन्तरिरूप, 616
धूमकेतुः-अग्निस्वरूप, 617 स्कन्दः-स्वामी कार्तिकेयस्वरूप,
618 वैश्रवणः- कुबेरस्वरूप, 619 धाता-सबको
धारण करने वाले, 620 शक्र :-इन्द्रस्वरूप, 621 विष्णुः-सर्वव्यापी नारायणदेव, 622 मित्रः-बारह
आदित्यों में से एक, 623 त्वष्टा-प्रजापति विश्वकर्मा,
624 ध्रुवः-नित्यस्वरूप, 625 धरः-आठ वसुओंमेंसे
एक वसु धरस्वरूप। 626 प्रभावः-उत्कृष्टभावसे सम्पन्न, 627
सर्वगो वायुः-सर्वव्यापी वायु-सूत्रात्मा, 628 अर्यमा-बारह
आदित्योंमें एक आदित्य अर्यमारूप, 629 सविता-सम्पूर्ण जगत कि
उत्पति करने वाले, 630 रविः-सूर्य, 631
उषंगुः-सर्वदाहक किरणों वाले सूर्यरूप, 632 विधाता-प्रजाका
विशेषरूप से धारण-पोषण करने वाले, 633 मान्धाता-जीव को
तृप्ति प्रदान करने वाले, 634 भूतभावनः-समस्त प्राणियोंके
उत्पादक। 635 विभुः-विविधरूपसे विद्यमान, 636
वर्णविभावी-श्वेत-पीत आदि वर्णोको विविधरूपसे व्यक्त करने वाले, 637 सर्वकाम-गुणावहः-समस्त भोगों और गुणोंकी प्राप्ति करानेवाले 638
पद्यनाभः-अपनी भाभिसे कमलको प्रकट करने वाले विष्णुरूप, 639
महागर्भः-विशाल ब्रहाण्ड को उदर मे धारण करने वाले, 640
चन्द्रवक्त्रः-चन्द्रमा-जैसे मनोहर मुखवाले, 641
अनिलः-वायुदेव, 642 अनलः-अग्निदेव। 643 बलवान्-शक्तिशाली,
644 उपशान्तः-शान्तस्वरूप, 645
पुराणः-पुराणस्वरूप, 646 पुण्यचंचुः-पुण्यके द्वारा जाननेमें
आने वाले, 647 ई-दयास्वरूप, 648
कुरुकर्ता- कुरुक्षेत्रके निर्माता, 649कुरूवासी-कुरुक्षेत्रनिवासी,
650 कुरुभूतः-कुरुक्षेत्रस्वरूप, 651
गुणौषधः-गुणोंको उत्पन्न करने वाली ओषधिके समान ज्ञान, वैराग्य
आदि गुणोंके उत्पादक। 652 सर्वाशयः-सबके आश्रय, 653
दर्भचारी-वेदीपर बिछे हुए-कुषोंपर रखे हुए हविष्यको भक्षण करने वाले, 654 सर्वेषो प्राणिनां पतिः- समस्त प्राणियोंके स्वामी, 655 देवदेवः-देवताओंके भी देवता, 656 सुखासक्तः-अपने
परमानन्दमय स्वरूपमें ही रत रहनेवाले, 657 सत्-सत्स्वरूप,
658 असत्-असत्स्वरूप, 659
सर्वरत्नवित्-सम्पूर्ण रत्नोंके ज्ञाता। 660 कैलासगिरिवासी-कैलास पर्वतपर निवास
करने वाले, 661 हिमवद्गिरिसंश्रयः-हिमालयपर्वतके निवासी,
662 कूलहारी-प्रबल प्रवाहरूपसे नदियोंके तटोंका अपहरण करने वाले,
663 कूलकर्ता-पुष्कर आदि बड़े-बड़े सरोवरोंका निर्माण करने वाले,
664 बहुविद्यः- बहुत-सी विद्याओंके ज्ञाता, 665
बहुप्रदः-बहुत अधिक देनेवाले। 666 वणिजो-वैषयरूप, 667
वर्धकी-संसाररूपी वृक्षको काटनेवाले बढ़ई, 668
वृक्षः-संसाररूप वृक्षस्वरूप, 669 बकुलः-मौलकिसरी
वृक्षस्वरूप, 670 चन्दनः-चन्दन वृक्षस्वरूप, 671 छदः-छितवन वृक्षस्वरूप, 672 सारग्रीवः-सुदृढ़
कण्ठवाले, 673 महाजत्रुः-बहुत बड़ी हंसुलवाले, 674 अलोलः-अचंचल, 675 महौषधः-महान् औषधस्वरूप। 676
सिद्धार्थकारी-आश्रितजनोंको सफलमनोरथ करने वाले, 677
सिद्धार्थः-वेदकी व्याख्यासे निर्णीत उत्कृष्ट सिद्धान्तस्वरूप, 678 सिंहनादः-सिंहके समान गर्जना करने वाले, 679
सिंहदंटः-सिंहके समान दाड़वाले, 680 सिंहगः-सिंहपर आरूढ़
होकर चलनेवाले, 681 सिंहवाहनः-सिंहपर सवारी करने वाले। 682
प्रभावात्मा-उत्कृष्ट सतास्वरूप, 683
जगत्कालस्थालः-प्रलयकालमें जगत्का संहार करने वाले कालके स्थान, 684 लोकहितः-लोकहितैषी, 685 तरूः-तारनेवाले, 686 सारंगः-चातकस्वरूप, 687 नवचक्रांगः-नूतन हंसरूप,
688 केतुमाल-ध्वजा-पताकाओंकी मालाओंसे अलंकृत, 689 सभावनः-धर्मस्थानकी रक्षा करने वाले।। 690 भूतालयः-सम्पूर्ण भूतोंके
घर, 691 भूतपतिः-सम्पूर्ण प्राणियोंके स्वामी, 692 अहोरात्रम्-दिन-रात्रिस्वरूप, 693
अनिन्दितः-निन्दारहित। 694 सर्वभूतानां वाहिता-सम्पूर्ण भूतोंका भार वाहन करने
वाले, 695 सर्वभूतानां निलयं-समस्त प्राणियोंके निवासस्थान,
696 विभुः-सर्वव्यापी, 697 भवः-सतारूप,
698 अमोघः-कभी असफल न होने वाले, 699
संयतः-संयमशील, 700 अश्व-उच्चैःश्रवा आदि उत्तवम अश्वरूप,
701 भोजनः-अन्नदाता, 702 प्राणधारणः-सबके
प्राणोंकी रक्षा करने वाले। 703 धृतिमान्-धैर्यशाली, 704
मतिमान्-बुद्धिमान्, 705 दक्षः-चतुर, 706
सत्कृतः-सबके द्वारा सम्मानित, 707 युगाधिपः-युगके स्वामी,
708 गोपालिः-इन्द्रियोंके पालक, 709
गोपतिः-गौओंके स्वामी, 710 ग्रामः-समूहरूप, 711 गोचर्मवसनः-गोचर्ममय वस्त्र धारण करने वाले, 712
हरिः-भक्तोंका दुःख हर लेनेवाले। 713 हिरण्यबाहुः-सुनहरी कान्तिवाली सुन्दर
भुजाओंसे सुशोभित, 714 गुहापालः प्रवेशिनाम्-गुफाके भीतर
प्रवेष करने वाले योगियोंकी गुफाके रक्षक, 715
प्रकृष्टारिः-काम,क्रोध आदि शत्रुओंको क्षीण कर देनेवाले,
716 महाहर्षः-परमानन्दस्वरूप, 717
जितकामः-कामविजयी, 718 जितेन्द्रियः-इन्द्रियविजयी। 719
गान्धारः-गान्धार नामक स्वरूप, 720 सुवासः-कैलास नामक सुन्दर
स्थानमें वास करने वाले, 721 तपःसक्तः- तपस्यामें संलग्न 722
रतिः-प्रीतिरूप, 723 नरः-विराट् पुरुष, 724 महागीतः-जिनके माहात्मयका वेद-शास्त्रोद्वारा गान किया गया है ऐसे
महान् देव, 725 महानृत्यः-प्रकाण्ड़ ताण्ड़व करने वाले,
726 अप्सरोगणसेवितः-अप्सराओंके समुदायसे सेवित। 727
महाकेतुः-धर्मरूप महान् ध्वजावाले, 728
महाधातुः-सुवर्णस्वरूप, 729 नैकसानुचरः-मेरूगिरिके अनेक
शिखरोंपर विचरण करने वाले, 730 चलः-किसीकी पकड़में नहीं आने
वाले, 731 आवेदनीयः-प्रार्थना करनेयोग्य, 732 आदेश-आज्ञा प्रदान करने वाले, 733
सर्वगन्धसुखावहः-सम्पूर्ण गन्धादि विषयोके सुखकी प्राप्ति करानेवाले। 734
तोरणः-मुक्तिद्वारस्वरूप, 735 तारणः-तारनेवाले, 736 वातः-वायुरूप, 737 परिधिः-ब्रहाण्डका घेरारूप,
738 पतिखेचरः-आकाशचारीकी स्वामी, 739
वर्धनःसंयोगः- वृद्धिका हेतुभूत स्त्री-पुरुषका संयोग, 740
वृद्धः-गुणोंमें बढ़ा-चढ़ा, 741 अतिवृद्धः-सबसे पुरातन
होनेके कारण अतिवृद्ध, 742 गुणाधिकः-ज्ञान-ऐश्वर्य आदि
गुणोंके द्वारा सबसे अधिकतर। 743 नित्य आत्मसहायः-आत्माकी सदा सहायता करने वाले,
744 देवासुरपतिः-देवताओं, और असुरोंके स्वामी,
745 पतिः-सबके स्वामी, 746 युक्तः-भक्तोंके
उद्धारके लिये सदा उद्यत रहनेवाले, 747 युक्तबाहुः-सबकी
रक्षाके लिये उपयुक्त भुजाओंवाले, 748 देवो
दिविसुपर्वणः-स्वर्गमें जो महान् देवता इन्द्र हैं, उनके भी
आराध्यदेव।। 749 आषाढ़ः-भक्तोंको सब कुछ सहन करनेकी शक्ति देनेवाले, 750 सुषाढः-उत्तम सहनशील, 751 ध्रुवः-अविचलस्वरूप,
752 हरिणः-शुद्धस्वरूप, 753 हरः-पापहारी,
754 आवर्तमानेभ्यो वपुः- स्वर्गलोक से लौटने वाले नूतन शरीर देने
वाले, 755 वसुश्रेष्ठः-श्रेष्ठ धनस्वरूप अर्थात्
मुक्तिस्वरूप, 756 महापथः-सर्वोत्तम मार्गस्वरूप। 757 विमर्षः
शिरोहारी-विवेकपूर्वक दुष्टों का शिरष्छेद करने वाले, 758
सर्वलक्षणलक्षितः-समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न, 759 अक्षः
रथयोगी-रथसे सम्बन्ध रखनेवाला धुरीस्वरूप, 760 सर्वयोगी-सभी
समयमें योगयुक्त, 761 महाबलः-अनन्त शक्तिसे सम्पन्न। 762
समाम्नायः-वेदस्वरूप, 763 असमाम्नायः-वेदभिन्न, स्मृति, इतिहास, पुराण और
आगमरूप, 764 तीर्थदेवः-सम्पूर्ण तीर्थों के देवस्वरूप,
765 महारथः-त्रिपुरदाह के समय पृथ्वीरूपी विशाल रथ पर आरूढ़ होने
वाले, 766 निर्जीवः-जड-प्रपंचस्वरूप, 767
जीवनः-जीवनदाता, 768 मन्त्रः-प्रणव आदि मन्त्रस्वरूप,
769शुभाक्षः-मंगलमयी दृष्टिवाले, 770
बहुकर्कषः-संहारकालमें अत्यन्त कठोर स्वभाववाले। 771 रत्नप्रभूतः-अनेक रत्नों के
भण्डाररूप, 772 रत्नांगः-रत्नमय अंगवाले, 773 महार्णव-निपानवित्-महासागररूपी निपानों हौजों-को जाननेवाले, 774 मूलम्-संसाररूपी वृक्ष के कारण, 775 विशालः-अत्यन्त
शोभायमान, 776अमृतः-अमृतस्व्रूप, 777
व्यक्ताव्यक्तः-साकार-निराकार स्वरूप, 778 तपोनिधिः-तपस्या
के भण्डार। 779 आरोहणः-परम पदपर आरूढ़ होने के द्वारस्वरूप, 780
अधिरोहः-परम पदपर आरूढ़, 781शीलधारी-सुशीलसम्पन्न, 782 महायशा-महान् श्यषसे सम्पन्न, 783 सेनाकल्पः-सेना
के आभूषणरूप, 784 महाकल्पः-बहुमूल्य अलंकारों से अलंकृत,
785 योगः-चितवृतियों के निरोधस्वरूप, 786
युगकरः-युगप्रवर्तक, 787 हरिः-भक्तों का दुःख हर लेनेवाले।
788 युगरूपः-युगस्वरूप, 789 महारूपः-महानपवाले, 790 महानागहनः-विशालकाय गजासुर का वध करने वाले, 791
अवधः- मृत्युरहित, 792 न्यायनिर्वपणः-न्यायोचित दान करने
वाले, 793 पादः-शरण लेनेयोग्य पद्यते भक्तैः इति पादः,
794 पण्डितः-ज्ञानी, 795 अचलोपमः-पर्वत के
समान अवचिल। 796 बहुमालः-बहुत-सी मालाएं धारण करने वाले, 797
महामालः-महती-पैरोंतक लटकने-वाली माला धारण करने वाले, 798शशी
हरसुलोचनः-चन्द्रमा के समान सौम्य दृष्टियुक्त महादवे, 799
विस्तारो लवणः कूपः-विस्तृत क्षारसमुद्रस्वरूप, 800
त्रियुगः-सत्ययुग, त्रेता और द्वापर त्रिविध युगस्वरूप,
801 सफलोलदयः-जिसका अवताररूपमें प्रकट होना सफल हैं। 802
त्रिलोचनः-त्रिनेत्रधारी, 803 विषण्णंगः-अंगरहित अर्थात्
सर्वथा निराकार, 804 मणिविद्धः-मणिका कुण्डल पहनने के लिये,
छिदे हुए कर्णवाले, 805 जटाधरः-जटाधारी,
806 बिन्दुः-अनुस्वाररूप, 807
विसर्गः-विसर्जनीयस्वरूप, 808 सुमुखः-सुन्दर मुखवाले,
809 ष्षरः-अनुस्वाररूप, 810
सर्वायुधः-सम्पूर्ण आयुधों से युक्त, 811 सहः-सहनशील। 812
निवेदनः-सब प्रकार की वृति से रहित ज्ञान वाले, 813
सुखाजातः-सब वृतियों का लय होने पर सुखरूपसे प्रकट होने वाले, 814 सुगन्धारः- उत्तम गन्धसे युक्त, 815
महाधनुः-पिनाक नामक विषाल धनुष धारण करने वाले, 816 भगवान
गन्धपाली-उत्तम गन्ध की रक्षा करने वाले भगवान्, 817
सर्वकर्मणामुत्थानः-समस्त कर्मों के उत्थानस्वरूप। 818 मन्थानो बहुलो वायुः-विश्व
को मथ डालनेमें समर्थ प्रलयकाल की महान् वायुस्वरूप, 819
सकलः-सम्पूर्ण कलाओंसे युक्त, 820 सर्वलोचनः-सबके दृष्टा,
821 तलस्तालः-हाथ पर ही ताल देनेवाले, 822
करस्थली-हाथोंसे ही भोजनपात्र का काम लेनेवाले, 823संहननः-सुदृढ़
शरीरवाले, 824 महान्-श्रेष्ठतम्। 825 छत्रम्-छत्र के समान
पाप-तापसे सुरक्षित रखनेवाले, 826 सुच्छत्रः-उत्तम
छत्रस्वरूप, 827 विख्यातो लोकः- सुप्रसिद्ध लोकस्वरूप,
828 सर्वाश्रयः क्रमः-सबके आधारभूत गति, 829
मुण्डः-मुण्डित-मस्तक, 830 विरूपः-विकट रूपवाले, 831 विकृतः-सम्पूर्ण विपरीत क्रियाओं को धारण करने वाले, 832 दण्डी-दण्डधारी, 833 कुण्डी-खप्परधारी, 834 विकुर्वणः-क्रियाद्वारा अलभ्य। 835 हर्यक्षः-सिंहस्वरूप, 836 ककुभः-सम्पूर्ण दिशास्वरूप, 837 वज्री-वज्रधारी,
838शतजिहवः-सैकड़ो जिहवावाले, 839 सहस्रपात्
सहस्रमूर्धा-सहस्रों पैर और मस्तकवाले, 840
देवेन्द्रः-देवताओं के राजा, 841 सर्वदेवमयः-सम्पूर्ण
देवस्वरूप, 842 गुरुः-सब के ज्ञानदाता। 843
सहस्रबाहुः-सहस्रों भुजाओंवाले, 844 सर्वांगः- समस्त अंगोसे
सम्पन्न, 845शरण्यः-षरण लेने के योग्य, 846 सर्वलोककृत्-सम्पूर्ण लोकों के उत्पन्न करने वाले, 847 पवित्रम्-परम पावन, 848
त्रिककुन्मन्त्रः-त्रिपदा गायत्रीरूप, 849 कनिष्ठः- अदिति के
पुत्रोंमें छोटे, वामनरूपधारी विष्णु, 850
कृष्णपिगंलः-श्याम-गैरहरि-हर-मूर्ति।851 ब्रहादण्डविनिर्माता-ब्रहादण्ड का निर्माण
करने वाले, 852शतध्नीपाषशक्तिमान्-शतध्नी, पाश और शक्तिसे युक्त, 853 पद्यगर्भः-ब्रहास्वरूप,
854 महागर्भः-जगत्रूप गर्भ को धारण करने वाले होनसे महागर्भ,
855 ब्रहागर्भः-वेदको उदरमें धारण करने वाले, 856
जलोभ्दवः-एकार्णव के जल में प्रकट होने वाले। 857 गभस्तिः-सूर्यस्वरूप, 858 ब्रहाकृत्-वेदोंका आविष्कार करने वाले, 859
ब्रहा-वेदाध्यायी, 860 ब्रहावित्-वेदार्थवेता, 861 ब्राहाणः-ब्रहानिष्ठ, 862 गतिः-ब्रहानिष्ठोंकी
परमगति, 863 अनत्नरूपः-अनन्त रूपवाले, 864
नैकात्मा-अनेक शरीरधारी, 865 तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः-ब्रहाजी
की अपेक्षा प्रचण्ड तेजस्वी। 866आत्मा-देश-काल-वस्तुकृत उपाधिसे अतीत स्वरूपवाले,
867 पशुपतिः-जीवोंके स्वामी, 868
वातरंहाः-वायुके समान वेगशाली, 869 मनोजवः-मनके समान वेगशाली,
870 चन्दनी-चन्दनचर्चित अंगवाले, 871
पद्यनालाग्रः-पद्यनाल के मूल विष्णुस्वरूप, 872 सुरभ्युतरणः-
सुरभि को नीचे उतारनेवाले, 873 नरः-पुरुषरूप। 874
कर्णिकारमहास्त्रग्वी-करेनकी बहुत बड़ी माला धारण करने वाले, 875 नीलमौलिः-मस्तकपर नीलमणिमय मुकुट धारण करने वाले, 876 पिनाकधृत्-पिनाक धनुष को धारण करने वाले, 877
उमापतिः-उमा-ब्रहाविद्याके स्वामी, 878 उमाकान्तः-पार्वती के
प्राण-प्रियतम, 879 जाहवीधृत्-गंगा को मस्तकपर धारण करने
वाले, 880 उमाधवः-पार्वतीपति। 881 वरो वराहः- श्रेष्ठ
वराहरूपधारी भगवान 882 वरदः- वरदाता, 883 वरेण्यः-स्वामी
बनाने योग्य, 884 सुमहास्वनः-महान गर्जना करने वाले, 885 महाप्रसादः-भक्तों पर महान् अनुग्रह करने वाले, 886
दमनः-दुष्टों का दमन करने वाले, 887शत्रुहा- शत्रुनाशक,
888 श्वेतपिगंलः- अर्धनारीनरेश्वर वेश में श्वेत-पिंगल वर्ण वाले।
889 पीतात्मा- हिरण्यमय पुरुष, 890 परमात्मा- परमेश्वर,
891 प्रयतात्मा-विशुद्धिचित, 892 प्रधानकृत-
जगत के कारणभूत त्रिगुणमय प्रधान के अधिष्ठानस्वरूप, 893
सर्वपार्वमुखः- सम्पूर्ण दिशाओं की ओर मुखवाले, 894
युक्षः-त्रिनेत्रधारी, 895 धर्मसाधारणो वरः-धर्म-पालन के
अनुसार वर देने वाले। 896 चराचरात्मा-चराचर प्राणियों के आत्मा, 897 सूक्ष्मात्मा-अति सूक्ष्मस्वरूप, 898 अमृतो
गोवृशेश्वरः-निष्काम धर्म के स्वामी, 899 साध्यर्षिः- साध्य
देवताओं के आचार्य, 900 आदित्यो वसुः- अदितिकुमार वसु,
901 विवस्वान् सवितामृतः-किरणों से सुशोभित एवं जगत को उत्पन्न करने
वाले अमृतस्वरूप सूर्य। 902 व्यासः-पुराण-इतिहास आदि के स्रष्टा वेदव्यासस्वरूप,
903 सर्गःसुसंक्षेपो विस्तारः- संक्षिप्त और विस्तृत सृष्टिस्वरूप,
904 पर्ययो नरः- सब ओर से व्याप्त करने वाले वैश्वानरस्वरूप,
905 ऋतुः-ऋतुरूप, 906 संवत्सरः-संवत्सरूप,
907 मासः-मासरूप, 908 पक्षः-पक्षरूप, 909 संख्यासमापनः-पूर्वोक्त ऋतु आदि की संख्या समाप्त करने वाले पर्व
संक्रान्ति, दर्ष, पूर्णमासादि रूप।
910 कलाः, 911 काष्ठाः-, 912 लवाः,
913 मात्राः-इत्यादि कालावयवस्वरूप, 914
मुहूर्ताहःक्षपाः- मुहूर्त, दिन और रात्रिरूप, 915 क्षणाः- क्षणरूप, 916 विश्वक्षेत्रम- ब्रहाण्डरूपी
वृक्ष के आधार, 917 प्रजाबीजम्- प्रजाओं के कारणरूप, 918 लिंगम्- महतत्त्वस्वरूप, 919 आद्यो निर्गमः-
सबसे पहले प्रकट होने वाले। 920 सत्- सत्स्वरूप, 921 असत्-
असत्त्वरूप, 922 व्यक्तम्- साकाररूप, 923
अव्यक्तम्- निराकाररूप, 924 पिता, 925
माता, 926 पितामहः- 927 स्वर्गद्वारम्-स्वर्ग के साधनस्वरूप,
928 प्रजाद्वारम्- प्रजा के कारण, 929
मोक्षद्वारम्- मोक्ष के साधनस्वरूप, 930 त्रिविष्टपम्-स्वर्ग
के साधनस्वरूप 931 निर्वाणम्-मोक्षस्वरूप, 932 हादनः-आनन्द
प्रदान करने वाले, 933 ब्रहालोकः-ब्रहालोकस्वरूप, 931 निर्वाणम्- मोक्षस्वरूप, 932 हादनः- आनन्द
प्रदान करने वाले, 933 ब्रहालोकः- ब्रहालोकस्वरूप, 934 परा गतिः- सर्वोत्कृष्ट गतिस्वरूप, 935
देवसुरविनिर्माता- देवताओं तथा असुरों के जन्मदाता, 936
देवासुरपरायणः- देवताओं तथा असुरों के परम आश्रय। 937 देवासुरगुरुः-देवताओं और
असुरों के गुरु, 938 देवः-परम देवस्वरूप, 939 देवासुरनमस्कृतः-देवताओं और असुरों से वन्दित, 940
देवासुरमहामात्रः-देवताओं और असुरों से अत्यन्त श्रेष्ठ, 941
देवासुरगणाश्रयः-देवताओं तथा असुरगणों के आश्रय लेने योग्य। 942
देवासुरगणाध्यक्षः-देवताओं तथा असुरगणों के अध्यक्ष, 943
देवासुरगणाग्रणीः-देवताओं तथा असुरों के अगुआ, 944
देवातिदेवः-नारदस्वरूप, 945 देवर्षिः- नारदस्वरूप, 946 देवासुरवरप्रदः- देवताओं और असुरों को भी वरदान देने वाले। 947
देवासुरेश्वरः-देवताओं और असुरों के ईश्वर, 948 विश्व-
विराटस्वरूप, 949 देवासुरमहेश्वरः- देवताओं और असुरों के
महान ईश्वर, 950 सर्वदेवमयः- सम्पर्ण देवस्वरूप, 951 अचिन्तयः- अचिन्त्यस्वरूप, 952 देवतात्मा-
देवताओं के अन्तरात्मा, 953 आत्मसम्भवः- स्वयम्भू। 954
उद्भित्- वृक्षादिस्वरूप, 955 त्रिविक्रमः- तीनों लोकों को
तीन चरणों से नाप लेने वाले भगवान वामन, 956 वैद्यः-
वैद्यस्वरूप, 957 विरजः- रजोगुणरहित, 958
नीरजः-निर्मल, 959 अमरः-नाशरहितः-नाशरहित, 960 ईड्यः- स्तुति के योग्य, 961 हस्तीश्वरः-ऐरावत
हस्ती के ईश्वर-इन्द्रस्वरूप, 962 व्याघ्रः-सिंहस्वरूप,
963 देवसिंहः-देवताओं में सिंह के समान पराक्रमी, 964 नरर्षभः-मनुष्यों में श्रेष्ठ। 965 विबुधः-विशेष ज्ञानवान्, 966 अग्रवरः-यज्ञ में सबसे प्रथम भाग लेने के अधिकारी, 967 सूक्ष्मः-अत्यन्त सूक्ष्मस्वरूप, 968
सर्वदेवः-सर्वदेवस्वरूप, 969 तपोमयः-तपोमयस्वरूप, 970 सुयुक्तः-भक्तों पर कृपा करने के लिये सब तरह से सदा सावधान रहने वाले,
971 शोभनः-कल्याणस्वरूप, 972
वज्री-वज्रायुधधारी, 973 प्रासानां प्रभवः- प्रास नामक
अस्त्र की उत्पति के स्थान, 974 अव्ययः-विनाशरहित।। 975
गुहः- कुमार कार्तिकेयस्वरूप 976 कान्तः-आनन्द की पराकाष्ठारूप, 977 निजः-सर्गः-सृष्टि से अभिन्न, 978 पवित्रम-परम
पवित्र, 979 सर्वपावनः-सबको पवित्र करने वाले, 980 श्रृंगीः-सिंगी नामक बाजा अपने पास रखने वाले, 981
श्रृंगप्रियः-पर्वत-शिखर को पसंद करने वाले, 982
बभ्रूः-विष्णुस्वरूप, 983 राजराजः-राजाओंके राजा, 984 निरामयः-सर्वथा दोषरहित। 985 अभिरामः-आनन्ददायक, 986 सुरगणः-देवसमुदायरूप, 987 विरामः-सबसे उपरत,
988 सर्वसाधनः-सभी साधनों द्वारा साध्य, 989
ललाटाक्षः-ललाट में तीसरा नेत्र धारण करने वाले, 990
विश्वदेवः-सम्पूर्ण विश्वदेव के द्वारा क्रीड़ा करने वाले, 991
हरिणः-मृगरूप, 992 ब्रहावर्चसः-ब्रहातेज से सम्पन्न। 993 स्थावराणां
पतिः- पर्वतों के स्वामी हिमाचलादिरूप, 994
नियमेन्द्रियवर्धनः-नियमोंद्वारा मनसहित इन्द्रियोंका दमन करने वाले, 995 सिद्धार्थः-आप्तकाम, 996 सिद्धभूतार्थः-जिसके
समस्त प्रयोजन सिद्ध हैं, 997 अचिन्त्यः-चितकी पहुँचसे परे,
998 सत्यव्रतः-सत्यप्रतिज्ञ, 999 शुचिः-सर्वथा
शुद्ध। 1000 व्रताधिपः- व्रतों के अधिपति, 1001
परम-सर्वश्रेष्ठ, 1002 ब्रहा-देश,काल
और वस्तु से अपरिच्छिन्न चिन्मयतत्त्व, 1003 भक्तानां परमा
गतिः- भक्तों के लिये परम गतिस्वरूप, 1004 विमुक्तः-नित्य
मुक्त, 1005 मुक्ततेजाः-शत्रुओं पर तेज छोड़ने वाले, 1006 श्रीमान्-योगैश्वर्य से सम्पन्न, 1007
श्रीवर्धनः-भक्तों की सम्पति को बढ़ाने वाले, 1008
जगत्-जगत्स्वरूप।
तण्डिकृत शिवसहस्रनामस्तोत्र स्तवराज पूर्ण हुआ।
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