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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
विष्णु स्तुति
इन्द्रद्युम्न ब्राह्मण ने
श्रीहरि के दर्शन के लिए आराधना की। तब उन आत्मस्वरूप एवं अविनाशी भगवान्
विष्णु को समीप आते हुए देखकर घुटने टेककर गरुड़ध्वज विष्णु को वह स्तुति करने
लगा।
विष्णु स्तुति इन्द्रद्युम्नकृत
इन्द्रद्युम्न उवाच ।
यज्ञेशाच्युत गोविन्द माधवानन्त
केशव ।
कुष्ण विष्णो हृषीकेश तुभ्यं
विश्वात्मने नमः ।। १.६९
इन्द्रद्युम्न ने (स्तुति करते हुए)
कहा-हे यज्ञेश, अच्युत, गोविन्द,
माधव, अनन्त, केशव,
कृष्ण, विष्णु, हृषीकेश,
आप विश्वात्मा को मेरा नमस्कार है।
नमोऽस्तु ते पुराणाय हरये
विश्वमूर्तये ।
सर्गस्थितिविनाशानां
हेतवेऽनन्तशक्तये ।। १.७०
पुराणपुरुष,
हरि, विश्वमूर्ति, उत्पत्ति,
स्थिति और प्रलय के कारणभूत तथा अनन्त शक्तिसम्पन्न आप के लिए मेरा
प्रणाम है।
निर्गुणाय नमस्तुभ्यं
निष्कलायामलात्मने ।
पुरुषाय नमस्तेस्तु विश्वरूपाय ते
नमः ।। १.७१
निर्गुण आपको नमस्कार है। विशुद्ध
रूप वाले आपको बार-बार नमस्कार है। पुरुषोत्तम को नमस्कार है। विश्वरूपधारी आपको
मेरा प्रणाम।
नमस्ते वासुदेवाय विष्णवे
विश्वयोनये ।
आदिमध्यान्तहीनाय ज्ञानगम्याय ते
नमः ।। १.७२
वासुदेव,
विष्णु, विश्वयोनि, आदि-मध्य
और अन्त से रहित तथा ज्ञान के द्वारा जानने योग्य आपको नमस्कार है।
नमस्ते निर्विकाराय निष्प्रपञ्चाय
ते नमः ।
भेदाभेदविहीनाय
नमोऽस्त्वानन्दरूपिणे ।। १.७३
निर्विकार,
प्रपञ्च रहित आप के लिए मेरा नमस्कार है। भेद और अभेद से विहीन तथा
आनन्दस्वरूप आपको मेरा नमस्कार है।
नमस्ताराय शान्ताय
नमोऽप्रतिहतात्मने ।
अनन्तमूर्तये तुभ्यममूर्ताय नमो नमः
।। १.७४
तारकमय तथा शान्तस्वरूप आप को
नमस्कार है। अप्रतिहतात्मा आप को नमस्कार। आपका रूप अनन्त और अमूर्त है,
आपको बार-बार नमस्कार है।
नमस्ते परमार्थाय मायातीताय ते नमः
।
नमस्ते परमेशाय ब्रह्मणे परमात्मने
।। १.७५
हे परमार्थस्वरूप! आपको नमस्कार है।
हे मायातीत ! आपको नमस्कार है। हे परमेश! हे ब्रह्मन्! तथा हे परमात्मन्! आपको
नमस्कार है।
नमोऽस्तु ते सुसूक्ष्माय महादेवाय
ते नमः ।
नमः शिवाय शुद्धाय नमस्ते
परमेष्ठिने ।। १.७६
अति सूक्ष्मरूपधारी आपको नमस्कार
है। महादेव! आपको नमस्कार है। शिवरूपधारी को नमस्कार है और परमेष्ठी को नमस्कार
है।
त्वयैव सृष्टमखिलं त्वमेव परमा गतिः
।
त्वं पिता सर्वभूतानां त्वं माता
पुरुषोत्तम ।। १.७७
आपने ही इस सम्पूर्ण संसार को रचा
है। आप ही इसकी परम गति हैं। हे पुरुषोत्तम! समस्त प्राणियों के आप ही पिता और
माता हैं।
त्वमक्षरं परं धाम चिन्मात्रं व्योम
निष्कलम् ।
सर्वस्याधारमव्यक्तमनन्तं तमसः परम्
।। १.७८
आप अक्षर,
अविनाशी परम धाम, चिन्मात्र अर्थात्
ज्ञानस्वरूप और निष्कल व्योम हैं। आप सबके आधारभूत, अव्यक्त,
अनन्त और तम से परे हैं।
प्रपश्यन्ति परात्मानं ज्ञानदीपेन
केवलम् ।
प्रपद्ये भवतो रूपं तद्विष्णोः परमं
पदम् ।। १.७९
महात्मा योगी ज्ञान-रूपी दीपक से ही
केवल देख पाते हैं। तब जिस रूप को प्राप्त करते हैं, वही विष्णु का परमपद है।
इति श्रीकूर्मपुराणे षट्साहस्त्र्यां संहितायां पूर्वविभागे इन्द्रद्युम्नमोक्ष वर्णनं नाम प्रथमोऽध्यायः ।।
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