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कर्मकाण्ड

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सुदर्शनचक्र स्तोत्र

सुदर्शनचक्र स्तोत्र

सुदर्शनचक्र के इस महत्पुण्यशाली स्तोत्र का जो मनुष्य परम भक्ति से पाठ करता है, उसके ग्रहदोष और रोगादि सभी कष्ट विनष्ट हो जाते हैं और वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।

सुदर्शनचक्र स्तोत्र

श्रीसुदर्शनचक्रस्तोत्रम् अथवा सुदर्शनपूजाविधिः

सुदर्शनचक्र-पूजा-विधि

रुद्र उवाच ।

सुदर्शनस्य पूजां मे वद शङ्खगदाधर ।

ग्रहरोगादिकं सर्वं यत्कृत्वा नाशमेति वै ॥ १॥

रुद्र ने कहा-हे शङ्ख-गदाधर ! उस सुदर्शन की पूजा के विषय में मुझे बतायें, जिसे करने से ग्रहदोष और रोगादि सभी कष्ट विनष्ट हो जाते हैं।

हरिरुवाच ।

सुदर्शनस्य चक्रस्य श्रृणु पूजां वृषध्वज ।

स्नानमादौ प्रकुर्वीत पूजयेच्च हरिं ततः ॥ २॥

मूलमन्त्रेण वै न्यासं मूलमन्त्रं श्रृणुष्व च ।

सहस्रारं हुं फट् नमो मन्त्रः प्रणवपूर्वकः ॥ ३॥

कथितः सर्वदुष्टानां नाशको मन्त्रभेदकः ।

ध्यायेत्सुदर्शनं देवं हृदि पद्मेऽमले शुभे ॥ ४॥

शङ्खचक्रगदापद्मधरं सौम्यं किरीटिनम् ।

आवाह्य मण्डले देवं पूर्वोक्तविधिना हर ॥ ५॥

पूजयेद्गन्धपुष्पाद्यैरुपचारैर्महेश्वर ।

पूजयित्वा जपेन्मन्त्रं शतमष्टोत्तरं नरः ॥ ६॥

एवं यः कुरुते रुद्र  चक्रस्यार्चनमुत्तमम् ।

सर्वरोगविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं समाप्नुयात् ॥ ७॥

एतत्स्तोत्रं जपेत्पश्चात्सर्वव्याधिविनाशनम् ।

श्रीहरि ने कहा-हे वृषभध्वज! सुदर्शनचक्र की पूजाविधि को मैं कह रहा हूँ, आप सुनें। सर्वप्रथम स्रान करके हरि का पूजन करे। साधक को चाहिये कि अपने निर्मल एवं शुभ हृदय-कमल में भगवान् सुदर्शनदेव विष्णु का ध्यान करे। हे महादेव! उसके बाद मण्डल में शङ्ख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण करनेवाले, सौम्य आकृतिवाले, किरीटी भगवान् विष्णुदेव का आवाहन करके गन्ध, पुष्प, धूप, दीप आदि विविध उपचारों से पूजा करे।

पूजा के अन्त में मूल मन्त्र का १०८ बार जप करे। हे रुद्र ! जो इस प्रकार सुदर्शनचक्र का उत्तम पूजन करता है, वह इस लोक में समस्त रोगों से विमुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त करता है। मन्त्र-जप के पश्चात् सभी व्याधियों को विनष्ट करनेवाले इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये-

श्रीसुदर्शनचक्रस्तोत्रम्

अथ स्तोत्रम् ।

नमः सुदर्शनायैव सहस्रादित्यवर्चसे ॥ ८॥

ज्वालामालाप्रदीप्ताय सहस्राराय चक्षुषे ।

सर्वदुष्टविनाशाय सर्वपातकमर्दिने ॥ ९॥

सहस्त्रों सूर्य के समान तेजःसम्पन्न सुदर्शनचक्र के लिये नमस्कार है। तेजस्वी किरणों की मालाओं से प्रदीप्त हजारों अरे (चक्र के अवयव)-वाले, नेत्रस्वरूप, सर्वदुष्टविनाशक तथा सभी प्रकार के पापों को नष्ट करनेवाले आपको नमन है।

सुचक्राय विचक्राय सर्वमन्त्रविभेदिने ।

प्रसवित्रे जगद्धात्रे जगद्विध्वंसिने नमः ॥ १०॥

सुचक्र तथा विचक्र नामधारी, सम्पूर्ण मन्त्र का भेदन करनेवाले, जगत्की सृष्टि करनेवाले, पालन-पोषण करनेवाले एवं जगत्का संहार करनेवाले हे सुदर्शनचक्र! आपको नमस्कार है।

पालनार्थाय लोकानां दुष्टासुरविनाशिने ।

उग्राय चैव सौम्याय चण्डाय च नमो नमः ॥ ११॥

(संसार की रक्षा करने के लिये) देवताओं का कल्याण करनेवाले, दुष्ट राक्षसों का विनाश करनेवाले, दुष्टों का संहार करने के लिये उग्र-स्वरूप एवं प्रचण्डस्वरूप और सज्जनों के लिये सौम्य-स्वरूप धारण करनेवाले आपको बारम्बार नमस्कार है।

नमश्चक्षुःस्वरूपाय संसारभयभेदिने ।

मायापञ्जरभेत्रे च शिवाय च नमो नमः ॥ १२॥

जगत्के लिये नेत्रस्वरूप संसारभय को काटनेवाले मायारूपी पिंजड़े का भेदन करनेवाले, कल्याणकारी सुदर्शनचक्र को नमस्कार है।

ग्रहातिग्रहरूपाय ग्रहाणां पतेय नमः ।

कालाय मृत्यवे चैव भीमाय च नमो नमः ॥ १३॥

ग्रह एवं अतिग्रहस्वरूप, ग्रहपति, कालस्वरूप, मृत्युस्वरूप, पापात्माओं के लिये महाभयंकर आपके लिये बार-बार नमन है।

भक्तानुग्रहदात्रे च भक्तगोप्त्रे नमो नमः ।

विष्णुरूपाय शान्ताय चायुधानां धराय च ॥ १४॥

विष्णुशस्त्राय चक्राय नमो भूयो नमो नमः ।

भक्तों पर कृपा करनेवाले, उनके अभिरक्षक, विष्णुस्वरूप, शान्तस्वभाव, समस्त आयुधों की शक्ति को अपने में धारणकर स्थित रहनेवाले विष्णु के शस्त्रभूत हे सुदर्शनचक्र! आपके लिये बारम्बार नमस्कार है।

इति स्तोत्रं महापुण्यं चक्रस्य तव कीर्तितम् ॥ १५॥

यः पठेत्परया भक्त्या विष्णुलोकं स गच्छति ।

चक्रपूजाविधिं यश्च पठेद्रुद्र जितोन्द्रियः ।

स पापं भस्मसात्कृत्वा विष्णुलोकाय कल्पते ॥ १६॥

हे शङ्कर ! सुदर्शनचक्र के इस महत्पुण्यशाली स्तोत्र का जो मनुष्य परम भक्ति से पाठ करता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।

इति श्रीगारुडे महापुराणे पूर्वखण्डे प्रथमांशाख्ये आचारकाण्डे सुदर्शनपूजाविधिर्नाम त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः सम्पूर्णः ।

इस प्रकार श्रीगरुड़ महापुराण के आचारकाण्ड अंतर्गत् अध्याय ३३ में श्रीसुदर्शनचक्रस्तोत्रम् अथवा सुदर्शनपूजाविधि पूर्ण हुआ ॥

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