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कर्मकाण्ड

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स्कन्द स्तोत्र

स्कन्द स्तोत्र

जो वामदेव द्वारा वर्णित इस दिव्य स्कन्द स्तोत्र(जो की शिवपुराण के कैलाससंहिता अंतर्गत् अध्याय-११ में श्लोक २२-३३ में वर्णित है) का पाठ या श्रवण करता है, वह परमगति को प्राप्त होता है। यह स्तोत्र बुद्धि को बढ़ानेवाला, शिवभक्ति की वृद्धि करने वाला, आयु, आरोग्य तथा धन की प्राप्ति करानेवाला और सदा सम्पूर्ण अभीष्ट को देनेवाला है।

महामुनि वामदेव ने शिष्यों के साथ स्नान करके शिखर पर बैठे हुए मुनिवृन्द- सेवित कुमार का दर्शन किया।

कुमारं शिखरासीनं मुनिवृन्दनिषेवितम् ।

उद्यदादित्यसंकाशं मयूरवरवाहनम् ।।१।।

चतुर्भुजमुदारांगं मुकुटादिविभूषितम् ।

शक्तिरत्नद्वयोपास्यं शक्तिकुक्कुटधारिणम् ।।२।।

वरदाभयहस्तञ्च दृष्ट्वा स्कन्दं मुनीश्वरः।।

वे उगते हुए सूर्य के समान तेजस्वी थे। मोर उनका श्रेष्ठ वाहन था। उनके चार भुजाएँ थीं। सभी अंगों से उदारता सूचित होती थी। मुकुट आदि उनकी शोभा बढ़ा रहे थे रत्नभूत दो शक्तियाँ उनकी उपासना करती थीं उन्होंने अपने चार हाथों में क्रमशः शक्ति, कुक्कुट, वर और अभय धारण कर रखे थे।

स्कन्द का दर्शन और पूजन करके उन मुनीश्वर ने बड़ी भक्ति से उनका स्तवन आरम्भ किया।

स्कन्द स्तोत्र

श्रीस्कन्दस्तवन

श्रीस्कन्दस्तवम्

स्कन्द स्तोत्र

वामदेव उवाच ।

ॐ नमः प्रणवार्थाय प्रणवार्थविधायिने ।

प्रणवाक्षरबीजाय प्रणवाय नमोनमः ॥ २२॥

वामदेव बोले-जो प्रणव के वाच्यार्थ, प्रणवार्थ के प्रतिपादक, प्रणवाक्षर रूप बीज से युक्त तथा प्रणव रूप हैं, उन आप स्वामी कार्तिकेय को बारंबार नमस्कार है।

वेदान्तार्थस्वरूपाय वेदान्तार्थविधायिने ।

वेदान्तार्थविदे नित्यं विदिताय नमोनमः ॥ २३॥

वेदान्त के अर्थभूत ब्रह्म ही जिनका स्वरूप है, जो वेदान्त का अर्थ करते हैं, वेदान्त के अर्थ को जानते हैं और नित्य विदित हैं, उन स्कन्दस्वामी को बारंबार नमस्कार है।

नमो गुहाय भूतानां गुहासु निहिताय च ।

गुह्याय गुह्यरूपाय गुह्यागमविदे नमः ॥ २४॥

समस्त प्राणियों की हृदयगुफा में प्रतिष्ठित गुह को नमस्कार है। जो स्वयं गुह्य हैं, जिनका रूप गुह्य है तथा जो गुह्य शास्त्रों के ज्ञाता हैं, उन स्वामी कार्तिकेय को नमस्कार है।

अणोरणीयसे तुभ्यं महतोऽपि महीयसे ।

नमः परावरज्ञाय परमात्मस्वरूपिणे ॥ २५॥

प्रभो ! आप अणु से भी अत्यन्त अणु और महान से भी परम महान् हैं, कारण और कार्य अथवा भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं। आप परमात्म स्वरूप को नमस्कार है।

स्कन्दाय स्कन्दरूपाय मिहिरारुणेतेजसे ।

नमो मन्दारमालोद्यन्मुकुटादिभृते सदा ॥ २६॥

आप स्कन्द (माताके गर्भ से च्युत) हैं। स्कन्दन (गर्भ से स्खलन) ही आपका रूप है। आप सूर्य और अरुण के समान तेजस्वी हैं। पारिजात की माला से सुशोभित, मुकुट आदि धारण करनेवाले आप स्कन्द स्वामी को सदा नमस्कार है।

शिवशिष्याय पुत्राय शिवस्य शिवदायिने ।

शिवप्रियाय शिवयोरानन्दनिधये नम ॥ २७॥

आप शिव के शिष्य और पुत्र हैं, शिव (कल्याण) देनेवाले हैं, शिव को प्रिय हैं। तथा शिवा और शिव के लिये आनन्द की निधि हैं। आपको नमस्कार है।

गाङ्गेयाय नमस्तुभ्यं कार्तिकेयाय धीमते ।

उमापुत्राय महते शरकाननशायिने ॥ २८॥

आप गंगाजी के बालक, कृत्तिकाओं के कुमार, भगवती उमा के पुत्र तथा सरकंडों के वन में शयन करनेवाले हैं। आप महाबुद्धिमान् देवता को नमस्कार है।

षडक्षरशरीराय षड्विधार्थविधायिने ।

षडध्वातीतरूपाय षण्मुखाय नमोनमः ॥ २९॥

षडक्षर मन्त्र आपका शरीर है। आप छः प्रकार के अर्थ का विधान करनेवाले हैं। आपका रूप छः मार्गो से परे है। आप षडानन को बारंबार नमस्कार है।

द्वादशायतनेत्राय द्वादशोद्यतबाहवे ।

द्वादशायुधधाराय द्वादशात्मन्नमोऽस्तु ते ॥ ३०॥

द्वादशात्मन् ! आपके बारह विशाल नेत्र और बारह उठी हुई भुजाएँ हैं। उन भुजाओं में आप बारह आयुध धारण करते हैं। आपको नमस्कार है।

चतुर्भुजाय शान्ताय शक्तिकुक्कुटधारिणे ।

वरदाय विहस्ताय नमोऽसुरविदारिणे ॥ ३१॥

आप चतुर्भुज रूपधारी, शान्त तथा चारों भुजाओं में क्रमशः शक्ति, कुक्कुट, वर और अभय धारण करते हैं। आप असुरविदारण देव को नमस्कार है।

गजावल्लीकुचालिप्तकुङ्कुमाङ्कितवक्षसे ।

नमो गजाननानन्दमहिमानन्दितात्मने ॥ ३२॥

आपका वक्ष:स्थल गजावल्ली के कुचों में लगे हुए कुंकुम से अंकित है। अपने छोटे भाई गणेशजी की आनन्दमयी महिमा सुनकर आप मन-ही-मन आनन्दित होते हैं। आपको नमस्कार है।

ब्रह्मादिदेवमुनिकिन्नरगीयमानगाथाविशेषशुचिचिन्तितकीर्तिधाम्ने ।

वृन्दारकामलकिरीटविभूषणस्रक्पूज्याभिरामपदपङ्कज ते नमोऽस्तु ॥ ३३॥

ब्रह्मा आदि देवता, मुनि और किंनरगणों से गायी जाने वाली गाथा विशेष के द्वारा जिनके पवित्र कीर्तिधाम का चिन्तन किया जाता है, उन आप स्कन्द को नमस्कार है। देवताओं के निर्मल किरीट को विभूषित करने वाली पुष्प-मालाओं से आपके मनोहर चरणारविन्दों की पूजा की जाती है। आपको नमस्कार है।

श्रीस्कन्दस्तवम् फलश्रुति:

इति स्कन्दस्तवन्दिव्यं वामदेवेन भाषितम् ।

यः पठेच्छृणुयाद्वापि स याति परमां गतिम् ॥ ३४॥

जो वामदेव द्वारा वर्णित इस दिव्य स्कन्दस्तोत्र का पाठ या श्रवण करता है, वह परमगति को प्राप्त होता है।

महाप्रज्ञाकरं ह्येतच्छिवभक्तिविवर्धनम् ।

आयुरारोग्यधनकृत्सर्वकामप्रदं सदा ॥ ३५॥

यह स्तोत्र बुद्धि को बढ़ानेवाला, शिवभक्ति की वृद्धि करने वाला, आयु, आरोग्य तथा धन की प्राप्ति करानेवाला और सदा सम्पूर्ण अभीष्ट को देनेवाला है।

इति श्रीशिवमहापुराणे षष्ठ्यां कैलाससंहितायां वामदेवब्रह्मवर्णनंनामैकादशोऽध्यायान्तर्गतम् स्कन्दस्तवं सम्पूर्णम् ॥

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