गणेश ध्यान स्तोत्र
गणेश ध्यान स्तोत्र-भगवान्
श्रीगणेशजी ने अपनी प्रसन्नता का उपाय राधाजी को बतलाते हुए स्वयं कहा है-
यद्दत्तं वस्तु मे मातस्तत्सर्वं
सार्थकं कुरु ।
देहि विप्राय मत्प्रीत्या तदा
भोक्ष्यामि सांप्रतम् ।।
मात्रः! तुमने जो कुछ वस्तु मुझे
समर्पित की है, उस सबको सार्थक कर डालो अर्थात्
अब मेरी प्रसन्नता के लिए उसे ब्राह्मण को दे दो। तब मैं उसका भोग लगाऊँगा।
देवे देयानि दानानि देवे देया च
दक्षिणा ।
तत्सर्वं ब्राह्मणे
दद्यात्तदानन्त्याय कल्पते ।।
क्योंकि देवता का देने योग्य जो दान
अथवा दक्षिणा होती है, वह सब यदि ब्राह्मण
को दे दी जाय तो वह अनन्त हो जाती है।
ब्राह्मणानां मुखं राधे देवानां
मुखमुख्यकम् ।
विप्रभुक्तं च यद्द्रव्यं
प्राप्नुवन्त्येव देवताः ।।
राधे! ब्राह्मणों का मुख ही देवताओं
का प्रधान मुख है; क्योंकि ब्राह्मण
जिस पदार्थ को खाते हैं, वही देवताओं को मिलता है।
विप्रांश्च भोजयामास तत्सर्व राधिका
सती ।
बभूव तत्क्षणादेव प्रीतो लम्बोदरो
मुने ।।
राधा ने श्रीकृष्ण प्राप्ति की
कामना से उत्तम संकल्प का विधान करके भक्तिपूर्वक गंगा जल से गणेश को स्नान कराया।
इसके बाद जो चारों वेदों, वसु और लोकों की
माता, ज्ञानियों की परा जननी एवं बुद्धिरूपा हैं; वे भगवती राधा श्वेत पुष्प लेकर सामवेदोक्त प्रकार से अपने पुत्रभूत गणेश
का यों ध्यान करने लगीं।
श्रीराधाकृतं गणेशध्यानस्तोत्रम्
गणेश ध्यान
शर्वं लम्बोदरं स्थूलं ज्वलन्तं
ब्रह्मतेजसा ।
गजवक्त्रं वह्निवर्णमेकदन्तमनन्तकम्
।।
सिद्धानां योगिनामेव ज्ञानिनां च
गुरोर्गुरुम् ।
ध्यातं
मुनीन्द्रैर्देवेन्द्रैर्ब्रह्मेशशेषसंज्ञकैः ।।
सिद्धेन्द्रैर्मुनिभिः
सद्भिर्भगवन्तं सनातनम् ।
ब्रह्मस्वरूपं परमं मङ्गलं
मङ्गलालयम् ।।
सर्वविघ्नहरं शान्तं दातारं
सर्वसंपदाम् ।
भवाब्धिमायापोतेन कर्णधारं च
कर्मिणाम् ।।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणम् ।
ध्यायेद्ध्यानात्मकं साध्यं भक्तेशं
भक्तवत्सलम् ।।
‘जो खर्व (छोटे कदवाले) लम्बोदर
(तोंदवाले), स्थूलकाय, ब्रह्मतेज से
उद्भासित, हाथी के से मुखवाले, अग्निसरीखे
कान्तिमान एकदन्त और असीम हैं; जो सिद्धों, योगियों और ज्ञानियों के गुरु के गुरु हैं; ब्रह्मा,
शिव और शेष आदि देवेंद्र, मुनीन्द्र, सिद्धेन्द्र, मुनिगण तथा संतलोग जिनका ध्यान करते
हैं; जो ऐश्वर्यशाली, सनातन, ब्रह्मस्वरूप, परम मंगल, मंगल
के स्थान, संपूर्ण विघ्नों को हरने वाले, शान्त, संपूर्ण संपत्तियों के दाता, कर्मयोगियों के लिए भवसागर में मायारूपी जहाज के कर्णधारस्वरूप शरमागत
दीन-दुखी की रक्षा में तत्पर, ध्यानरूप साधना करने योग्य,
भक्तों के स्वामी और भक्तवत्सल हैं; उन गणेश
का ध्यान करना चाहिए।’
इस प्रकार ध्यान करके सती राधा ने
उस पुष्प को अपने मस्तक पर रखकर पुनः सर्वांगों को शुद्ध करने वाला वेदोक्त न्यास
किया। तत्पश्चात उसी शुभदायक ध्यान द्वारा पुनः ध्यान करके राधा ने उन लम्बोदर के
चरणकमल में पुष्पाञ्जलि समर्पित की। फिर गोलोकवासिनी स्वयं श्रीराधिका जी ने
सुगन्धित सुशीतल तीर्थजल, दूर्वा, चावल, श्वेत पुष्प, सुगन्धित
चन्दनयुक्त अर्घ्य, पारिजात-पुष्पों की माला, कस्तूरी केसरयुक्त चन्दन, सुगन्धित शुक्ल पुष्प,
सुगन्धयुक्त, उत्तम धूप, घृत-दीपक, सुस्वादु रमणीय नैवेद्य, चतुर्विध अन्न, सुपक्व, फल,
भाँति-भाँति के लड्डू, रमणीय सुस्वादु पिष्टक,
विविध प्रकार के व्यञ्जन, अमूल्य रत्ननिर्मित
सिंहासन, सुंदर दो वस्त्र, मधुपर्क,
सुवासित सुशीतल पवित्र तीर्थजल, ताम्बूल,
अमूल्य श्वेत चँवर, मणि मुक्ता हीरा से
सुसज्जित सुंदर सूक्ष्मवस्त्र द्वारा सुशोभित शय्या, सवत्सा
कामधेनु गौ और पुष्पाञ्जलि अर्पण करके अत्यंत श्रद्धा के साथ षोडशोपचार समर्पित
किया। फिर कालिन्दीकुलवासिनी राधा ने ‘ऊँ गं गौं गणपतये
विघ्नविनाशि ने स्वाहा’ गणेश के इस षोडशाक्षर मंत्र का,
जो श्रेष्ठ कल्पतरु के समान है, एक हजार जप
किया। इसके बाद वे भक्तिवश कंधा नीचा करके नेत्रों में आँसू भरकर पुलकित शरीर से
परम भक्ति के साथ इस स्तोत्र द्वारा स्तवन करने लगीं।
गणेश ध्यान स्तोत्र
गणेश स्तोत्र
राधिकोवाच
परं धाम परं ब्रह्म परेशं
परमेश्वरम् ।
विघ्ननिघ्नकरं शान्तं पुष्टं
कान्तमनन्तकम् ।।
सुरासुरेन्द्रैः सिद्धेन्द्रैः स्तुतं
स्तौमि परात्परम् ।
सुरपद्मदिनेशं च गणेशं मङ्गलायनम्
।।
श्रीराधिका ने कहा- जो परम धाम,
परब्रह्मा, परेश, परमेश्वर,
विघ्नों के विनाशक, शान्त, पुष्ट, मनोहर और अनन्त हैं; प्रधान-प्रधान
सुर और असुर जिनका स्तवन करते हैं; जो देवरूपी कमल के लिए
सूर्य और मंगलों के आश्रय स्थान हैं; पर परात्पर गणेश की मैं
स्तुति करती हूँ।
इदं स्तोत्रं महापुण्यं विघ्नशोकहरं
परम् ।
यः पठेत्प्रातरुत्थाय
सर्वविघ्नात्प्रमुच्यते ।।
यह उत्तम स्तोत्र महान पुण्यमय तथा
विघ्न और शोक को हरने वाला है। जो प्रातःकाल उठकर इसका पाठ करता है,
वह संपूर्ण विघ्नों से विमुक्त हो जाता है।
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