माधव स्तुति

माधव स्तुति

राजा युधिष्ठिर तथा भाइयों ने जरासंध आदि का वध करके मुनिवरों तथा श्रेष्ठ नरेशों के साथ मनोवाञ्छित राजसूय यज्ञ कराया, जिसमें विधिपूर्वक दक्षिणा नियत थी। उस यज्ञ के अवसर पर उन्होंने शिशुपाल और दन्तवक्र को भी यमलोक का पथिक बना दिया। जिस समय शिशुपाल उस देवताओं और भूपालों की सभा में श्रीकृष्ण की अतिशय निन्दा कर रहा था, उसी समय उसका शरीर धराशायी हो गया और जीव श्रीहरि के परम पद की ओर चला गया; परंतु वहाँ उन सर्वेश्वर को न देखकर वह लौट आया और माधव की स्तुति करने लगा।

माधव स्तुति

माधव स्तुति

शिशुपाल उवाच

वेदानां जनकोऽसि त्वं वेदाङ्गानां च माधव ।

सुराणामसुराणां च प्राकृतानां च देहिनाम् ।।

शिशुपाल बोला- माधव! तुम वेदों, वेदांगों, देवताओं, असुरों और प्राकृत देहधारियों के जनक हो।

सूक्ष्मां विधाय सृष्टिं च कल्पभेदं करोषि च ।

मायया च स्वयं ब्रह्मा शंकरः शेष एव च ।।

तुम सूक्ष्म सृष्टि का विधान करके उसमें कल्पभेद करते हो। तुम्हीं माया से स्वयं ब्रह्मा, शंकर और शेष बने हुए हो।

मनवो मुनयश्चैव देवाश्च सृष्टिपालकाः ।

कलांशेनापि कलया दिक्पालाश्च ग्रहादयः ।।

मनु, मुनि, वेद और सृष्टिपालकों के समुदाय तुम्हारे कलांश से तथा दिक्पाल और ग्रह आदि कला से उत्पन्न हुए हैं।

स्वयं पुमान्स्वयं स्त्री च स्वयमेव नपुंसकः ।

कारणं च स्वयं कार्यं जन्यश्च जनकः स्वयम् ।।

तुम स्वयं ही पुरुष, स्वयं स्त्री, स्वयं नपुंसक, स्वयं कार्य और कारण तथा स्वयं जन्म लेने वाले और जनक हो।

यन्त्रस्य च गुणो दोषो यन्त्रिणश्च श्रुतौश्रुतम् ।

सर्वे यन्त्रा भवान्यन्त्री त्वयि सर्वं प्रतिष्ठितम् ।।

यन्त्र के गुण-दोष यन्त्री पर ही आरोपित होते हैं- ऐसा श्रुति में सुना गया है; अतः ये सभी प्राणी यंत्र हैं और तुम यंत्री हो। सब कुछ तुममें ही प्रतिष्ठित है।

मम क्षमस्वापराधं मूढस्य द्वारिणस्तव ।

ब्रह्मशापात्कुबुद्धेश्च रक्ष रक्ष जगद्गुरो ।।

जगद्गुरो! मैं तुम्हारा दुर्बुद्धि एवं मूढ़ द्वारपाल हूँ; अतः मेरा अपराध क्षमा करो और ब्रह्मशाप से मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।

इत्येवमुक्त्वा क्रमतो जयो विजय एव च ।

मुदा तौ ययतुः शीघ्रं वैकुण्ठद्वारमीप्सितम् ।।

यों कहकर जय और विजय (शिशुपाल और दंतवक्र) चल पड़े और शीघ्र ही आनन्दपूर्वक वे दोनों वैकुण्ठ के अभीष्ट द्वार पर जा पहुँचे।

शिशुपालस्य स्तोत्रेण सर्वे ते विस्मयं ययुः ।

परिपूर्णतमं कृत्वा मेनिरे कृष्णमीश्वरम् ।।

शिशुपाल के इस स्तवन से वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। उन लोगों ने श्रीकृष्ण को परिपूर्णतम परमेश्वर माना ।

इति श्रीब्रह्मo महाo श्रीकृष्णजन्मखo उत्तं नारदनाo माधव स्तुति त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः ।। ११३ ।।

About कर्मकाण्ड

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 $type={blogger} :

Post a Comment