स्वप्न फलादेश- शुभ स्वप्न

स्वप्न फलादेश- शुभ स्वप्न

स्वप्न फलादेश के विषय में हमारे वेद पुराणों में विस्तृत वर्णन है। इससे आप यह बड़ी आसानी से जान सकते हैं की आपका कौन सा स्वप्न शुभ फल देगा और कौन सा स्वप्न अशुभ फल देगा। साथ ही इसमें अशुभ फल के लिए किया जानेवाला उपाय भी वर्णित है। अतः यहाँ श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण से पहले सुस्वप्न दर्शन के फल का विचार पहले दिया जा रहा है।

स्वप्न फलादेश- शुभ स्वप्न

स्वप्न फलादेश- शुभ स्वप्न (सुस्वप्न) दर्शन के फल का विचार

नन्द जी ने पूछा- प्रभो! किस स्वप्न से कौन- सा पुण्य होता है और किससे मोक्ष एवं सुख की सूचना मिलती है? कौन-कौन सा स्वप्न शुभ बताया गया है?

श्री भगवान बोले- तात! वेदों में सामवेद समस्त कर्मों के लिए श्रेष्ठ बताया गया है। इसी प्रकार कण्वशाखा के मनोहर पुण्यकाण्ड में इस विषय का वर्णन है। जो दुःस्वप्न है और जो सदा पुण्य-फल देने वाला सुस्वप्न है, वह सब जैसा पूर्वोक्त कण्वशाखा में बताया गया है; उसका वर्णन करता हूँ, सुनो। यह स्वप्नाध्याय अधिक पुण्य-फल देने वाला है। अतः इसका वर्णन करता हूँ। इसका श्रवण करने से मनुष्य गंगा स्नान के फल की प्राप्ति होती है।

स्वप्नक्तु प्रथमे यामे संवत्सरफलप्रदः ।

द्वितीये चाष्टभिर्मासैस्त्रिभिर्मासैस्तृतीयरे ।।

चतुर्थे चार्धमासेन स्वप्नः स्वात्मफलप्रदः ।

दशाहे फलदः स्वप्नोऽप्यरुणोदयदर्णने ।।

रात के पहले पहर में देखा गया स्वप्न एक वर्ष में फल देता है। दूसरे पहर का स्वप्न आठ महीनों में, तीसरे पहर का स्वप्न तीन महीनों में और चौथे पहर का स्वप्न एक पक्ष में अपना फल प्रकट करता है। अरुणोदय की बेला में देखा गया स्वप्न दस दिन में फलद होता है।

प्रातःकाल का स्वप्न यदि तुरंद नींद टूट जाए तो तत्काल फल देने वाला होता है। दिन को मन में जो कुछ देखा और समझा गया है, वह सब अवश्य सपने में लक्षित होता है। तात! चिन्ता या रोग से युक्त मनुष्य जो स्वप्न देखता है, वह सब निःसंदेह निष्फल होता है। जो जडतुल्य है, मल-मूत्र के वेग से पीड़ित है, भय से व्याकुल है, नग्न है और बाल खोले हुए है, उसे अपने देखे हुए स्वप्न का कोई फल नहीं मिलता। निद्रालु मनुष्य स्वप्न देखकर यदि पुनः नींद लेने लग जाता है अथवा मूढ़तावश रात में ही किसी दूसरे से कह देता है; तब उसे उस स्वप्न का फल नहीं मिलता। किसी नीच पुरुष से, शत्रु से, मूर्ख मनुष्य से, स्त्री से अथवा रात में ही किसी दूसरे से स्वप्न की बात कह देने पर मनुष्य को विपत्ति, दुर्गति, रोग, भय, कलह, धनहानि एवं चोर भय का सामना करना पड़ता है।

गवां च कुञ्जराणां च हयानां च व्रजेश्वर ।

प्रासादानां च शैलानां वृक्षाणां च तथैव च ।।

आरोहणं च धनदं भोजनं रोदनं तथा ।

प्रतिगृह्यतथा वीणां सस्याढ्यां भूमिमालभेत् ।।

व्रजेश्वर! स्वप्न में गौ, हाथी, अश्व, महल, पर्वत और वृक्षों पर चढ़ना, भोजन करना तथा रोना धनप्रद कहा गया है। हाथ में वीणा लेकर गीत गाना खेती से भरी हुई भूमि की प्राप्ति का सूचक होता है।

शस्त्रास्त्रेण यदा विद्धो व्रणेन कृमिणा तथा ।

विष्ठया रुधिरेणैव संयुक्तोऽप्यर्थवान्भवेत् ।।

यदि स्वप्न में शरीर अस्त्र-शस्त्र से विद्ध हो जाय, उसमें घाव हों, कीड़े हो जाएं, विष्ठ अथवा खून से शरीर लिप्त हो जाये तो यह धन की प्राप्ति का सूचक है।

स्वप्नेऽप्यगम्यागमतो भार्यालाभं करोति यः ।

मूत्रसिक्तः पिबेच्छुकं नरकं च विशत्यपि ।।

नगरं प्रविशेद्रक्तं समुद्रं वा सुधां पिबेत् ।

शुभवार्तामवाप्नोति विपुलं चार्थमालभेत् ।।

स्वप्न में अगम्या स्त्री के साथ समागम भार्या प्राप्ति की सूचना देने वाला है। जो स्वप्न में मूत्र से भीग जाता, वीर्यपात करता, नरक में प्रवेश करता, नगर या लाल समुद्र में घुसता अथवा अमृत पान करता है; वह जगने पर शुभ समाचार पाता है और उसे प्रचुर धनराशि का लाभ होता है।

गजं नृपं सुवर्ण च वृषभं घेनुमेव च ।

दीपमन्नं फलं पुष्पं कन्यां छत्रं रथं ध्वजम् ।

कुटुम्बं लभते दृष्ट्वा कीर्तिं च विपुलां श्रियम् ।।

स्वप्न में हाथी, राजा, सुवर्ण, वृषभ, धेनु, दीपक, अन्न, फल, पुष्प, कन्या, छत्र, ध्वज और रथ का दर्शन करके मनुष्य कुटुम्ब, कीर्ति और विपुल संपत्ति का भागी होता है।

पूर्णकुम्भंद्विजं वह्निं पुष्पताम्बूलमन्दिरम् 

शुक्लधान्यं नदं वेश्यां दृष्ट्वा श्रियमवाप्नुयात् ।

गोक्षीरं च घृतं दृष्ट्वा चार्थ पुण्यधनं लभेत् ।।

भरे हुए घड़े, ब्राह्मण, अग्नि, फूल, पान, मन्दिर, श्वेत धान्य, नट एवं नर्तकी को स्वप्न में देखने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। गोदुग्ध और घी के दर्शन का भी यही फल है।

पायसं पद्मपत्रे च दधि दुग्धं घृतं मधु ।

मिष्टान्नं स्वस्तिकं भुक्त्वा ध्रुवं राजा भविष्यति ।।

सपने में कमल के पत्ते पर खीर, दही, दूध, घी, मधु और स्वस्तिक नामक मिष्ठान्न खाने वाला मनुष्य भविष्य में अवश्य ही राजा होता है।

छत्रं वा पादुकां वाऽपि लब्ध्वा धान्यं च गच्छति ।

असिं च निर्मरं तीक्ष्णं तत्तथैव भविष्यति ।

हेलया संतरेद्यो हि स प्रधानो भविष्यति ।।

छत्र, पादुका और निर्मल एवं तीखे खड्ग की प्राप्ति धान्य-लाभ की सूचना देती है। खेल-खेल में ही पानी के ऊपर तैरने वाला मनुष्य प्रधान होता है।

दृष्ट्वा च फलितं वृक्षं धनमाप्नोति निश्चितम् ।

सर्पेण भक्षितो यो हि णर्थलात्रश्च तद्भवेत् ।

स्वप्ने सूर्य विधुं दृष्ट्वा मुच्यते व्याधिबन्धनात् ।।

फलवान वृक्ष का दर्शन और सर्प का दनंश धन प्राप्ति का सूचक है। स्वप्न में सूर्य और चंद्रमा के दर्शन से रोग दूर होता है।

वडवां कुक्कुटीं दृष्ट्वा कौञ्चीं भार्यं लभेद्ध्रुवम् ।

स्वप्नेयो निगडैर्बद्धः प्रतिष्ठां पुत्रमालभेत् ।।

घोड़ी, मुर्गी और क्रौञ्ची को देखने से भार्या का लाभ होता है। स्वप्न में जिसके पैरों में बेड़ी पड़ गयी, उसे प्रतिष्ठा और पुत्र की प्राप्ति होती है।

दध्यन्नं पायसं भुङ्कते पद्मपत्रे नदीतटे ।

विशीर्णपद्मपत्रे च सोऽपि राजा मविष्यति ।।

जो सपने में नदी के किनारे नये अथवा फटे-पुराने कमल के पत्ते पर दही मिला हुआ अन्न और खीर खाता है; वह भविष्य में राजा होता है।

जलौकसं वृश्चिकं च सर्प च यदि पश्यति ।

धनं पुत्रं च विजयं प्रतिष्ठां वा लभेदिति ।।

जलौ का (जोंक), बिच्छू और साँप यदि स्वप्न में दिखायी दें तो धन, पुत्र, विजय एवं प्रतिष्ठा की प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।

शृङ्गिभिर्दंष्ट्रिभिः कोलैर्वानरैः पीडितो यदि ।

निश्चितं च भवेद्राजा धनं च विपुलं लभेत् ।।

सींग और बड़ी-बड़ी दाढ़वाले पशुओं, सूअरों और वानरों से यदि स्वप्न में पीड़ा प्राप्त हो तो मनुष्य निश्चय ही राजा होता और प्रचुर धन राशि प्राप्त कर लेता है।

मत्स्यं मांसं मौक्तिकं च शङ्खं चन्दनहीरकम् ।

यस्तु पश्यति स्वप्नान्ते विपुलं धनमालभेत् ।।

सुरां च रुधिरं स्वर्ण भुक्त्वा विष्ठांधनं लभेत् ।

प्रतिमां शिवलिङ्गंच लभेद्दृष्ट्वा जयं धनम् ।

फलितं पुष्पितं बिल्वमाम्रं दृष्ट्वा लभेद्धनम् ।।

जो स्वप्न में मत्स्य, मांस, मोती, शंख, चंदन, हीरा, शराब, खून, सुवर्ण, विष्ठा तथा फले-फूले बेल और आम को देखता है; उसे धन मिलता है। प्रतिमा और शिवलिंग के दर्शन से विजय और धन की प्राप्ति होती है।

दृष्ट्वा च ज्वलदग्निं च धनं बुद्धिं श्रियं लभेत् ।

आमलकं धात्रौफलमुत्पलं च धनागमम् ।।

प्रज्वलित अग्नि को देखकर मनुष्य धन, बुद्धि और लक्ष्मी पाता है। आँवला और कमल धन प्राप्ति का सूचक है।

देवताश्च द्विजा गावः पितरो लिङ्गिनस्तथा ।

यद्ददाति मिथःस्वप्ने तत्तथैव भविष्यति ।।

देवता, द्विज, गौ, पितर और साम्प्रदायिक चिह्नधारी पुरुष स्वप्न में परस्पर जिस वस्तु को देते हैं; उसका फल भी वैसा ही होता है।

शुक्लाम्बरधरा नार्यः शुक्लमाल्यानुलेपना ।

समाश्लिष्यन्ति यं स्वप्ने तस्य श्रीः सर्वतः सुखम् ।।

श्वेत वस्त्र धारण करके श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत अनुलेपन से सुसञ्जित सुंदरियाँ स्वप्न में जिस पुरुष का आलिंगन करती हैं, उसे सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है।

पीताम्बरधरां नारीं पीतमाल्यानुलेपनाम् ।

अवगूहति यः स्वप्ने कल्याणं तस्य जायते ।।

जो पुरुष स्वप्न में पीत वस्त्र, पीले पुष्पों की माला और पीले रंग का अनुलेपन धारण करने वाली स्त्री का आलिंगन करता है; उसे कल्याण की प्राप्ति होती है।

सर्वाणि शुक्लानि प्रशंसितानि भस्मास्थिकार्पासविवर्जितानि ।

सर्वाणि कृष्णन्यतिनिन्दितानि गोहस्तिवाजिद्विजदेववर्ज्यम् ।।

स्वप्न में भस्म, रूई और हड्डी को छोड़कर शेष सभी श्वेत वस्तुएँ प्रशंसित हैं और कृष्णा गौ, हाथी घोड़े, ब्राह्मण तथा देवता को छोड़कर शेष सभी काली वस्तुएँ अत्यंत निन्दित हैं।

दिव्य स्त्री सस्मिता विप्रा नत्नभूषणभूषिता ।

यस्य मन्दिरमायाति स प्रियं लभते ध्रुवम् ।।

रत्नमय आभूषणों से विभूषित दिव्य ब्राह्मणजातीय स्त्री मुस्कराती हुई जिसके घर में आती है; उसे निश्चय ही प्रिय पदार्थ की प्राप्ति होती है।

स्वप्ने च ब्रह्मणो देवो ब्राह्मणी देवकन्यका ।

ब्राह्मणो ब्राह्मणी वाऽपि संतुष्टा सस्मिता सती ।

फलं ददाति यस्मै च तस्य पुत्रो भविष्यति ।।

स्वप्न में ब्राह्मण देवता का स्वरूप है और ब्राह्मणी देवकन्या का। ब्राह्मण और ब्राह्मणी संतुष्ट हो मुस्कराते हुए स्वप्न में जिसको कोई फल दे, उसे पुत्र होता है।

यं स्वप्ने ब्राह्मणा नन्द कुर्वन्ति च शुभाशिषम् ।

यद्वदन्ति भवेत्तस्य तस्यैश्वर्य भवेद्ध्रुवम् ।।

पिता जी! ब्राह्मण स्वप्न में जिसे शुभाशीर्वाद देते हैं, उसे अवश्य ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

परितुष्टो द्विजश्रेष्ठश्टाऽऽयाति यस्य मन्दिरम् ।

नारायणः शिवो ब्रह्मा प्रविशेत्तु तदाश्रमम् ।।

संपत्तिस्वस्य भवति यशश्च विपुलं शुभम् ।

पदे पदे सुखं तस्य समानं गौरवं लभेत् ।।

सपने में संतुष्ट ब्राह्मण जिसके घर आ जाय; उसके यहाँ नारायण, शिव और ब्रह्मा का प्रवेश होता है; उसे संपत्ति, महान सुयश, पग-पग पर सुख, सम्मान और गौरव की प्राप्ति होती है।

अकस्मादपि स्वप्ने तु लभते सुरभिं यदि ।

भूमिलाभो भवेत्तस्य भार्या चापि पतिव्रता ।।

करेण कृत्वा हस्ती यं मस्तके स्थापयेद्यदि ।

राज्यलाभोभवेत्तस्य निश्चितं च श्रुतौ मतम् ।।

यदि स्वप्न में अकस्मात गौ मिल जाय तो भूमि और पतिव्रता स्त्री प्राप्त होती है। स्वप्न में जिस पुरुष को हाथी सूँड़ से उठाकर अपने माथे पर बिठा ले; उसे निश्चय ही राज्य-लाभ होगा।

स्वप्ने तु ब्राह्मणस्तुष्टः समाश्लिष्यतियं व्रज ।

तीर्थस्नायी भवेत्सोऽपि निश्चितं च श्रियाऽन्वितः ।।

स्वप्ने ददाति पुष्पं च यस्मै पुण्यवते द्विजः ।

जययुक्तो भवेत्सोऽपि यशस्वी च धरी सुखी ।।

स्वप्न में संतुष्ट ब्राह्मण जिसे हृदय से लगाये और फूल हाथ में दे; वह निश्चय ही संपत्तिशाली, विजयी, यशस्वी और सुखी होता है। साथ ही उसे तीर्थ स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।

स्वप्ने दृष्टवा च तीर्थानि सौधरत्नगृहाणि च ।

जययुक्तश्च धनवांस्तीर्थस्नायी भवेन्नरः ।।

स्वप्ने तु पूणंकलशं कश्चित्कस्मै ददाति च ।

पुत्रलाभो भवेत्तस्य मंपत्तिं वा समालभेत् ।।

स्वप्न में तीर्थ, अट्टालिका, और रत्नमय गृह का दर्शन हो तो उससे भी पूर्वोक्त फल की प्राप्ति होती है। स्वप्न में यदि कोई भरा हुआ कलश दे तो पुत्र और संपत्ति का लाभ होता है।

हस्ते कृत्वा तु कुडवमाढकं वारसुन्दरी ।

यस्य मन्दिरमायाति स लक्ष्मीं लभते ध्रुवम् ।।

हाथ में कुडव या आढक लेकर स्वप्न में कोई वारांगना जिसके घर आती है; उसे निश्चय ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

दिव्या स्त्री यद्गृहं गत्वा पुरीषं विसृजेद्द्विज ।

अर्थलाभो भवेत्तस्य दारिद्र्यं च प्रयाति च ।।

यस्य गेहं समायाति ब्राह्मणो भार्यया सह ।

पार्वत्या सह शंभुर्वा लक्ष्म्या नारायणोऽथवा ।।

जिसके घर पत्नी के साथ ब्राह्मण आता है; उसके यहाँ पार्वती सहित शिव अथवा लक्ष्मी के साथ नारायण का शुभागमन होता है।

ब्राह्मणो ब्राह्मणी वाऽपि स्वप्ने तस्मै प्रदीयते ।

धान्यं पुष्पाञ्जलिं वाऽपि तस्य श्रीः सर्दतोमुखी ।।

मुक्ताहारं पुष्पमाल्यं चन्दनं च लभेद्व्रज ।

स्वाप्ने ददाति विप्रश्च तस्य श्रीः सर्दतोमुखी ।।

गोरोचनं पताकां वा हरिद्रामिक्षुदण्डकम् ।

सिद्धान्नं च लभेत्स्वप्ने तस्य श्रीः सर्दतोमुखी ।।

ब्राह्मण और ब्राह्मणी स्वप्न में जिसे धान्य, पुष्पांजलि, मोती का हार, पुष्पमाला और चंदन देते हैं तथा जिसे स्वप्न में गोरोचन, पताका, हल्दी, ईख और सिद्धान्न का लाभ होता है; उसे सब ओर से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

ब्राह्मणो ब्रह्माणी वाऽपि ददाति यस्य मस्तके ।

छत्रं वा शुक्लवान्यं व स चराजा भविष्यति ।।

स्वप्ने लथस्थः पुरुषः शुक्लमाल्यानुलेपनः ।

तत्रस्थोदधि भुङ्क्ते च पायसं वा लृपो भवेत् ।।

स्वप्ने ददाति विप्रश्च ब्राह्मणी च सुधांदधि ।

प्रशस्तपात्रं यस्मै वा सोऽपि राजा भवेद्ध्रुवम् ।।

ब्राह्मण और ब्राह्मणी स्वप्नावस्था में जिसके मस्तक पर छत्र लगाते अथवा श्वेत धान्य बिखेरते हैं या अमृत, दही और उत्तम पात्र अर्पित करते हैं अथवा जो स्वप्न में श्वेत माला और चंदन से अलंकृत हो रथ पर बैठकर दही या खीर खाता है; वह निश्चय ही राजा होता है।

कुमारी चाष्टवर्षीया रत्नभूषणभूषिता ।

यस्य तुष्टा भवेत्स्वप्ने स भवेत्कविपण़्डितः ।।

ददाति पुस्तकं स्वप्ने यस्मै पुण्यवते च सा ।

स भवेद्विश्वविख्यातः कवीन्द्रः पण़्डितेश्वरः ।।

स्वप्न में रत्नमय आभूषणों से विभूषित आठ वर्ष की कुमारी कन्या जिस पर संतुष्ट हो जाती है और जिस पुण्यात्मा को पुस्तक देती है; वह विश्वविख्यात कवीश्वर एवं पंडितराज होता है।

यं पाठयति स्वप्ने वा मातेव च सुतं यथा ।

सरस्वतीसुतः सोऽपि तत्परो नास्ति पण्डितः ।।

ब्राह्मणः पाठयेद्यं च पितेव यत्नपूर्वकम् ।

ददाति पुस्तकं प्रीत्या स च सत्सदृशो भवेत् ।।

जिसे स्वप्न में माता की भाँति वह पढ़ाती है; वह सरस्वती पुत्र होता है और अपने समय का सबसे बड़ा पंडित माना जाता है। यदि विद्वान ब्राह्मण किसी को पिता की भाँति यत्नपूर्वक पढ़ावे या प्रसन्नतापूर्वक पुस्तक दे तो वह भी उसी के समान विद्वान होता है।

प्राप्नोति पुस्तकं स्वप्ने पथि वा यत्र तत्र वा ।

स पण्डितो यशस्वी च विख्यातश्च महीतले ।।

जो स्वप्न में मार्ग पर या जहाँ कहीं भी पड़ी हुई पुस्तक पाता है; वह भूतल पर विख्यात एवं यशस्वी पंडित होता है।

स्वप्ने यस्मै महामन्त्रं विप्रो विप्रे ददाति चेत् ।

स भवेत्पुरुषः प्राज्ञो धनवान्गुणवान्सुधीः ।।

जिसे ब्राह्मण-ब्राह्मणी स्वप्न में महामंत्र दें; वह पुरुष विद्वान, धनवान और गुणवान होता है।

स्वप्ने ददाति मन्त्रं वा प्रतिमां वा शिलामयीम् ।

यस्मै ददाति विप्रश्च मन्त् सिद्धिश्च तद्भवेत् ।

विप्रं विप्रसमूहं च दृष्ट्वा नत्वाऽऽशिषं लभेत् ।।

राजेन्द्रः स भवेद्वाऽपि किंवा च कविपण्डितः ।

शुक्लधान्ययुतां भूमीं यस्मै विप्र समुत्सृजेत् ।।

ब्राह्मण स्वप्न में जिसे मंत्र अथवा शिलामयी प्रतिमा देता है; उसे मंत्रसिद्धि प्राप्त होती है। यदि ब्राह्मण स्वप्न में ब्राह्मण समूह का दर्शन एवं वन्दन करके आशीर्वाद पाता है तो वह राजाधिराज अथवा महान कवि एवं पंडित होता है।

स्वप्नेऽपि परितुष्टश्च स भवेत्पृथिवीपतिः ।

स्वप्न विप्रो रथे कृत्वा नानास्वर्गं प्रदर्शयेत् ।

चिरंजीवी भवेदायुर्धनवृद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ।।

स्वप्न में रथ पर बिठाकर नाना प्रकार के स्वर्ग दिखाता है; वह चिरंजीवी होता है तथा उसकी आयु एवं संपत्ति की निश्चय ही वृद्धि होती है।

विप्राय विप्रः संतुष्टो यस्मै कन्यां ददाति च ।

स्वप्ने च स भवेन्नित्यं धनाढ्यो भूवतिः स्वयम् ।।

स्वप्ने सरोवरं दृष्टवा समुद्रं वा नदीं नदम् ।

शुक्लाहिं शुक्लशैलं च दृष्ट्वा श्रियमवाप्नुयात् ।।

सपने में संतुष्ट ब्राह्मण जिस ब्राह्मण को अपनी कन्या देता है; वह सदा धनाढ्य राजा होता है। स्वप्न में सरोवर, समुद्र, नदी, नद, श्वेत सर्प और श्वत पर्वत का दर्शन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

यं पश्यन्ति मृतं स्वप्ने स भवेच्चिरजीवनः ।

अरोगी रोगिणं दु खी सुशिनं च सुखं भवेत् ।।

जो स्वप्न में अपने को मरा हुआ देखता है, वह चिरंजीवी होता है। रोगी देखने पर नीरोग होता है और सुखी देखने पर निश्चय ही दुःखी होता है।

दिव्या स्त्री यं प्रवदति मम स्वामी भवानिति ।

स्वप्ने दृष्ट्वा च चागतिं स च राजा भवेद्दृढम् ।।

दिव्य नारी जिससे स्वप्न में कहती है कि आप मेरे स्वामी हैं और वह स्वप्न को देखकर तत्काल जाग उठता है तो अवश्य राजा होता है।

स्वप्ने वा कालिकां दृष्ट्वा लब्धवा स्फटिकमालिकाम् ।

इन्द्रचापं शक्रवज्रं स प्रतिष्ठां लभेद्ध्रुवम् ।।

स्वप्न में कालिका का दर्शन करके और स्फटिक की माला, इंद्र-धनुष एवं वज्र को पाकर मनुष्य अवश्य ही प्रतिष्ठा का भागी होता है।

स्वप्ने वदति यं विप्रो मम दासो भवेति च ।

हरिदास्यं च मद्भक्तिं स लब्ध्वा वैष्णवो भवेत् ।।

स्वप्न में ब्राह्मण जिससे कहे कि तुम मेरे दास हो जाओ, वह मेरी दास्यभक्ति पाकर वैष्णव हो जाता है।

स्वप्ने विप्रो हरीः शंभुर्ब्राह्मणी कमला शिवा ।

शक्ला स्त्री देवमाता वा जाह्नवी वा सरस्वती ।।

गोपालिकावेषधरी बालिका राधिका मम ।

बालश्च बालगोपालः स्वप्नविद्भिः प्रकाशितः ।।

स्वप्नावस्था में ब्राह्मण शिव और विष्णु का स्वरूप है। ब्राह्मणी लक्ष्मी एवं पार्वती का प्रतीक है तथा श्वेतवर्णा स्त्री वेदमाता, सावित्री, गंगा एवं सरस्वती का रूप है। ग्वालिन का वेष धारण करने वाली बालिका मेरी राधिका है और बालक बाल-गोपाल का स्वरूप है।

स्वप्न विज्ञान (स्वप्न फलादेश) के जानने वाले विद्वानों ने इस रहस्य को प्रकाशित किया है। पिता जी! यह मैंने पुण्यदायक उत्तम स्वप्नों का वर्णन किया है।

इति श्रीब्रह्मo महाo श्रीकृष्णजन्मखo उत्तo नारादनाo सुस्वप्नकथानं नाम सप्तसप्ततितमोऽध्यायः ।। ७७ ।।

शेष जारी.......आगे पढ़ें स्वप्न फलादेश- दु:स्वप्न दर्शन के फल का विचार

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