मनसा स्तोत्र

मनसा स्तोत्र

जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस परम पुण्यमय मनसा स्तोत्र का पाठ करता है; उसके वंशजों को नागों से भय नहीं होता, इसमें संशय नहीं है।

मनसा देवी ध्यान

चारुचम्पकवर्णाभां सर्वाङ्गसुमनोहराम् ।

ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां शोभितां सूक्ष्मवाससा ।।

मनसादेवी की अंगकान्ति मनोहर चम्पा के समान गौर है। उनके सभी अंग मन को मोह लेने वाले हैं। प्रसन्नमुख पर मंद हास की छटा छा रही है। महीन वस्त्र उनके श्रीअंगों की शोभा बढ़ाते हैं।

सुचारुकबरीशोभां रत्नाभरणभूषिताम् ।

सर्वाभयप्रदां देवीं भक्तानुग्रहकातराम् ।।

परम सुंदर केशों की वेणी अद्भुत शोभा से संपन्न है। वे रत्नमय आभूषणों से विभूषित हैं। सबको अभय देने वाली वे देवी भक्तों पर अनुग्रह के लिए कातर देखी जाती हैं।

सर्वविद्याप्रदां शान्तां सर्वविद्याविशारदाम् ।

नागेन्द्रवाहिनीं देवीं भजे नागेश्वरीं पराम् ।।

संपूर्ण विद्याओं की देने वाली, शान्तस्वरूपा, सर्वविद्याविशारदा, नागेन्द्रवाहना और नागों की स्वामिनी हैं; उन परा देवी मनसा का मैं भजन करता हूँ।

मनसा स्तोत्र

मनसा स्तोत्रम्

धन्वतरिरुवाच ।।

नमः सिद्धिस्वरूपायै सिद्धिदायै नमो नमः ।

नमः कश्यपकन्यायै वरदायै नमो नमः ।। १ ।।

नमः शंकरकन्यायै शंकरायै नमो नमः ।

नमस्ते नागवाहिन्यै नागेश्वर्यै नमो नमः ।। २ ।।

नम आस्तीकजननि जनन्यै जगतां मम ।

नमो जगत्कारणायै जरत्कारुस्त्रियै नमः ।। ३ ।।

नमो नागभगिन्यै च योगिन्यै च नमो नमः ।

नमश्चिरं तपस्विन्यै सुखदायै नमो नमः ।। ४ ।।

नमस्तपस्यारूपायै फलदायै नमो नमः ।

सुशीलायै च साध्व्यै च शान्तायै च नमो नमः ।। ५ ।।

इदं स्तोत्रं महापुण्यं भक्तियुक्तश्च यः पठेत् ।

वंशजानां नागभयं नास्ति तस्य न संशयः ।। १० ।।

इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे मनसा स्तोत्रम् सम्पूर्ण:।। ५१ ।।

मनसा स्तोत्र भावार्थ सहित

धन्वतरिरुवाच ।।

नमः सिद्धिस्वरूपायै सिद्धिदायै नमो नमः ।

नमः कश्यपकन्यायै वरदायै नमो नमः ।। १ ।।

धन्वन्तरि बोले- सिद्धिस्वरूपा मनसा देवी को नमस्कार है। उन सिद्धिदायिनी देवी को बारंबार मेरा प्रणाम है। वरदायिनी कश्यप कन्या को नमस्कार, नमस्कार और पुनः नमस्कार।

नमः शंकरकन्यायै शंकरायै नमो नमः ।

नमस्ते नागवाहिन्यै नागेश्वर्यै नमो नमः ।। २ ।।

कल्याणकारिणी शंकर कन्या को बारंबार नमस्कार। तुम नागों पर सवार होने वाली नागेश्वरी हो। तुम्हें नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार।

नम आस्तीकजननि जनन्यै जगतां मम ।

नमो जगत्कारणायै जरत्कारुस्त्रियै नमः ।। ३ ।।

तुम आस्तीक की माता और जगज्जननी हो; तुम्हें मेरा नमस्कार है। जगत की कारणभूता जरत्कारु को नमस्कार है। जरत्कारु मुनि की पत्नी को नमस्कार है।

नमो नागभगिन्यै च योगिन्यै च नमो नमः ।

नमश्चिरं तपस्विन्यै सुखदायै नमो नमः ।। ४ ।।

नागभगिनी को नमस्कार है। योगिनी को बारंबार नमस्कार है। चिरकाल तक तपस्या करने वाली सुखदायिनी मनसा देवी को बारंबार नमस्कार है।

नमस्तपस्यारूपायै फलदायै नमो नमः ।

सुशीलायै च साध्व्यै च शान्तायै च नमो नमः ।। ५ ।।

तपस्यारूपा देवी को नमस्कार है। फलदायिनी मनसा देवी को नमस्कार है। साध्वी, सुशीला एवं शान्तस्वरूपा देवी को बारंबार नमस्कार है।

इत्येवमुक्त्वा भक्त्या च प्रणनाम प्रयत्नतः ।

तुष्टा देवी वरं दत्त्वा सत्वरं स्वालयं ययौ ।। ६ ।।

ऐसा कहकर धन्वन्तरि ने भक्तिभाव से यत्नपूर्वक उन्हें प्रणाम किया। उस स्तुति से संतुष्ट हुई देवी मनसा धन्वन्तरि को वर देकर शीघ्र ही अपने घर को चली गयी।

ब्रह्मरुद्रवैनतेयाः समाजग्मुर्निजालयम् ।।

धन्वंतरिश्च भगवाञ्जगाम निजमन्दिरम् ।। ७ ।।

ब्रह्मा, रुद्र और गरुड़ भी अपने-अपने धाम को चले गये। भगवान धन्वन्तरि भी अपने भवन को पधारे।

जग्मुर्नागाः प्रहृष्टाश्च फणाराजिविराजिताः ।

इत्येवं कथितं सर्वं स्तवराजं मया तव ।। ८ ।।

फणों से सुशोभित नागगण प्रसन्नतापूर्वक पाताल को चले गये। प्रिये! इस प्रकार मैंने संपूर्ण स्तवराज तुमसे कहा है।

विधिना मातरं भक्तिमास्तीकश्च चकार ह ।

तदा तुष्टा जगद्गौरी पुत्रं तं मुनिपुंगवम् ।। ९ ।।

आस्तीक ने विधिपूर्वक माता की भक्ति की। इससे वह जगद्गौरी अपने पुत्र मुनिवर आस्तीक पर बहुत संतुष्ट हुई।

इदं स्तोत्रं महापुण्यं भक्तियुक्तश्च यः पठेत् ।

वंशजानां नागभयं नास्ति तस्य न संशयः ।। १० ।।

जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस परम पुण्यमय स्तोत्र का पाठ करता है; उसके वंशजों को नागों से भय नहीं होता, इसमें संशय नहीं है।

इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्त महापुराण के श्रीकृष्णजन्मखण्ड से मनसा स्तोत्रम् सम्पूर्ण हुआ ।। ५१ ।।

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