ऋणहर गणेश स्तोत्रम्
ऋणहर गणेश स्तोत्रम् -कृष्णयामल
ग्रंथ में हर प्रकार के ऋणों से मुक्ति देने वाले गणेश स्तोत्र का वर्णन किया है।
एक बार कैलाश पर्वत के रमणीय शिखर
पर भगवान चन्द्रशेशर शिव गिरिराजनन्दिनी पार्वती के साथ बैठे हुए थे और उस समय
पार्वतीजी ने भगवान शिव से कहा- 'आप सम्पूर्ण
शास्त्रों के ज्ञाता हैं। कृपा करके मुझे ऋण नाश का उपाय बताइये।' इसके बाद शिवजी ने कहा- 'तुमने संसार के कल्याण की
कामना से यह बात पूछी है, इसे मैं जरुर बताऊंगा। भगवान गणेश
ऋणहर्ता हैं। उनका 'ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र' हर प्रकार के कर्जों से मुक्ति दिलाने वाला है।'
ऋणहरगणेशस्तोत्रम्
सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं
लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम् ।
ब्रह्मादिदेवैः परिसेव्यमानं
सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम् ॥
१॥
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः
फलसिद्धये ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ २॥
त्रिपुरस्यवधात् पूर्वं शम्भुना
सम्यगर्चितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ ३॥
हिरण्यकशिप्वादीनां वधार्ते
विष्णुनार्चितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ ४॥
महिषस्य वधे देव्या गणनाथः
प्रपूजितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ ५॥
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण
प्रपूजितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ ६॥
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्च
स्वसिद्धये।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ ७॥
शशिना कान्तिवृद्ध्यर्थं पूजितो
गणनायकः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ ८॥
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण
पूजितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे
॥ ९॥
इदं त्वृणहरं स्तोत्रं
तीव्रदारिद्र्यनाशनम् ।
एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः
।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा
कुबेरसमतां व्रजेत् ॥ १०॥
॥ इति ऋणहर गणेश स्तोत्रम् ॥
ऋणहर गणेश स्तोत्रम् अर्थ सहित
ध्यान -
सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं
लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम् ।
ब्रह्मादिदेवै: परिसेव्यमानं
सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम् ॥
अर्थ - सच्चिदानन्द भगवान गणेश की अंगकान्ति सिन्दूर
के समान है। उनके दो भुजाएं हैं, वे लम्बोदर
हैं और कमलदल पर विराजमान हैं, ब्रह्मा आदि देवता उनकी सेवा
में लगे हैं तथा वे सिद्ध समुदाय से युक्त (घिरे हुए) हैं-ऐसे श्रीगणपतिदेव को मैं
प्रणाम करता हूँ।
'ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र' (हिन्दी अर्थ सहित)
सृष्टयादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित:
फलसिद्धये ।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - सृष्टि के आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टिरूप
फल की सिद्धि के लिए जिनका सम्यक् पूजन किया था, वे पार्वतीपुत्र सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना
सम्यगर्चित: ।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - त्रिपुर वध के पूर्व भगवान शिव ने जिनकी
सम्यक् आराधना की थी, वे पार्वतीनन्दन
गणेश सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे
विष्णुनार्चित: ।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप
आदि दैत्यों के वध के लिए जिनकी पूजा की थी, वे
पार्वतीकुमार गणेश सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
महिषस्य वधे देव्या गणनाथ:
प्रपूजित: ।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - महिषासुर के वध के लिए देवी दुर्गा ने जिन
गणनाथ की उत्तम पूजा की थी, वे पार्वती नन्दन
गणेश सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण
प्रपूजित: ।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर के वध से पूर्व
जिनका भलीभांति पूजन किया था, वे
पार्वतीपुत्र गणेश सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
भास्करेण गणेशस्तु
पूजितश्छविसिद्धये ।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - भगवान सूर्यदेव ने अपनी तेजोमयी प्रभा की
रक्षा के लिए जिनकी आराधना की थी, वे
पार्वतीनन्दन गणेश सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
शशिना कान्तिसिद्धयर्थं पूजितो
गणनायक: ।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - चन्द्रमा ने अपनी कान्ति की सिद्धि के लिए
जिन गणनायक का पूजन किया था, वे
पार्वतीपुत्र गणेश सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
पालनाय च तपसा विश्वामित्रेण पूजित:
।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे ॥
अर्थ - विश्वामित्र ऋषि ने अपनी रक्षा के लिए तपस्या
द्वारा जिनकी पूजा की थी, वे पार्वतीपुत्र
गणेश सदा ही मेरे ऋण का नाश करें।
इदं त्वृणहरं स्तोत्रं
तीव्रदारिद्र्यनाशनम् ।
एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं
समाहितः ।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां
व्रजेत् ॥
अर्थ - इस ऋणहर गणेश स्तोत्रम् का पाठ करने से शीघ्र
ही दरिद्रता का नाश होता है। एकबार नित्य वर्ष भर करने से जीवन में कभी धन की कमी
नहीं होता और पाठक कुबेर सदृश्य हो जाता है ।
इस प्रकार यह ऋणहर गणेश स्तोत्रम् समाप्त हुआ ॥
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