recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

मयूरेश स्तोत्रम्

मयूरेश स्तोत्रम्

मयूरेश स्तोत्रम्  का महत्व सर्वोपरि है। यह स्तोत्र अपने आप में चैतन्य और मन्त्र सिद्ध है अतः इसका पाठ ही पूर्ण सफलता प्रदान करने वाला है। यह स्तोत्र समस्त प्रकार की चिन्ताओं तथा परेशानियों को दूर करने वाला, समस्त प्रकार के भौतिक सुख, आर्थिक उन्नति, व्यापार में लाभ, राज्य कार्य में विजय तथा समस्त उपद्रवों का नाश करने में पूर्णतः समर्थ है। राजा इंद्र ने भी इसी मयुरेश स्तोत्र से गणेशजी को प्रसन्न कर विघ्नों पर विजय प्राप्त की थी। स्त्री या बालक भी स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति इस पाठ को श्रद्धापूर्वक कर सकता है। यहाँ मयूरेश स्तोत्रम् मूलपाठ व इसका श्लोक भावार्थ सहित पाठकों के लाभार्थ दिया जा रहा है।

मयूरेश स्तोत्रम्

मयूरेशस्तोत्रम्  

ब्रह्मोवाच ।

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।

मायाविनं दुर्विभाग्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ १॥

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदिस्थितम् ।

गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ २॥

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।

सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ३॥

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।

नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ४॥

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टतमहर्निशम् ।

सदसद्वक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ५॥

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।

सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ६॥

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।

भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ७॥

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।

समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ८॥

सर्वज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ९॥

अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।

अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ १०॥

मयूरेश उवाच ।

इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम् ।

सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ॥११॥

कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ।

आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ॥१२॥

इति मयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

मयूरेश स्तोत्रम् भावार्थ सहित

ब्रह्मोवाच ।

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।

मायाविनं दुर्विभाग्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ १॥

ब्रह्मा जी बोले- जो पुराण पुरुष है और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडा करते हैं। जो माया के स्वामी है तथा स्वरूप दुर्विभाग्य अर्थात् अचिन्त्य है। उन मयुरेश गणेश को मै प्रणाम करता हूँ।

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदिस्थितम् ।

गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ २॥

जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार,सबके हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित गुणों से परे तथा गुणमय है । उन मयुरेश गणेश को मै प्रणाम करता हूँ।

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।

सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ३॥

जो स्वेच्छा से ही संसार की सृजन,पालन और संहार करते हैं। सभी विघ्नहरने वाले उन मयुरेश को मै प्रणाम करता हूँ।

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।

नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ४॥

जो अनेकोंनेक दैत्यों को मारनेवाले और अनेकोंनेक रूप धारण करनेवाले हैं,उन नानाआयुध धारण करनेवाले मयुरेश को भक्तिपूर्वक मै प्रणाम करता हूँ।

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टतमहर्निशम् ।

सदसद्वक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ५॥

इन्द्रादिदेवगण जिनका दिन-रात स्तवन करते हैं, तथा जो सत्-असत्, व्यक्त-अव्यक्त है,उन मयुरेश को मै नमन करता हूँ। 

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।

सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ६॥

जो सर्वशक्तिमान, सर्वरूपधारी,सर्वव्यापक और सभी विद्या के प्रवक्ता है, उन मयुरेश को मै नमन करता हूँ।

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।

भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ७॥

जो पार्वती को पुत्र रूप से आनंद देते हैं और भगवान शिव का भी आनंद बढ़ाते हैं उन भक्तों को आनन्द देनेवाले मयूरेश को मै नित्य नमस्कार करता हूँ।

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।

समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ८॥

मुनिगण जिनका ध्यान व गुणगान करते हैं तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन आप समष्टि- व्यष्टिरूप मयुरेश को मै प्रणाम करता हूँ।

सर्वज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ ९॥

जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, समस्त ज्ञान के उद्भावक, पवित्र, सत्य-ज्ञान स्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयुरेश को मै प्रणाम करता हूँ।

अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।

अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ १०॥

जो अनेककोटिब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर हैं, अनन्त वैभव समपन्न तथा सर्वव्यापी विष्णु रूप हैं, उन भगवान मयुरेश को मै नमस्कार करता हूँ।

मयूरेश उवाच ।

इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम् ।

सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ॥११॥

मयूरेश बोले-यह मयूरेश स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति करानेवाला और समस्त पापों का नाशक हैं,मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांक्षित देनेवाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करनेवाला है।

कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ॥

आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ॥ १२॥

सात दिन तक इसका पाठ किया जाय तो कारागार में पड़े हुए मनुष्यों को भी छुड़ा लाता है यह शुभ स्तोत्र आधि-व्याधि अर्थात् शारीरिक व मानसिक चिंता को भी हर लेता है एवं भोग व मोक्ष प्रदान करता है।

इति मयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

मयूरेशस्तोत्रं पाठ विधि 

पहले पाठ में "ब्रह्मोवाच" से "शुभम्" तक का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल स्तोत्र का पहले श्लोक से दसवें श्लोक तक का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः "ब्रह्मोवाच" से फलश्रुति सहित "सम्पूर्णम्" तक का पाठ करें। आप १००८ पाठ को ११ या २१ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं। यदि १०१ पाठ रोज़ किए जाएं तो १० दिनों में १०१० पाठ सम्पन्न हो जाएंगे। स्तोत्र पाठ के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर देना चाहिए। इस साधना को आप चाहे तो गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक नियमित सम्पन्न कर सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो तो प्रत्येक पक्ष की चतुर्थी अथवा प्रत्येक बुधवार को कर सकते हैं।

इस प्रकार मयूरेश्वर स्तोत्रम् भावार्थ सहित पूर्ण हुआ ।

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]