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ऋषि पंचमी व्रत
भाद्र पद की शुक्ल पंचमी को ऋषि
पंचमी का व्रत मनाया जाता है। यह गणेश चतुर्थी के अगले दिन और हरतालिका तीज व्रत
के ठीक दूसरे दिन होता है। इस त्यौहार में सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव
व्यक्त किया जाता है। सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महिलाएं ऋषि
पंचमी का व्रत रखती हैं । इस मौके पर विधि-विधान से पूजा की जाती है और साथ ही ऋषि
पंचमी व्रत कथा सुनी जाती है। यह व्रत चारों वर्ण की महिलाओं को करना चाहिए। यह
व्रत जाने -अनजाने में हुए पापों को नष्ट करने वाला है। ऋषि पंचमी खौस तौर पर महिलाओं
के लिए अटल सौभाग्यवती व्रत माना जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहते हैं कि इस
मौके पर अगर महिलाएं गंगा स्नान कर लें तो उसका फल कई सौ गुणा बढ़ जाता है। यह
व्रत पूरे श्रद्धा भाव से किया जाए तो जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। यह व्रत
करने से पुरुषों को धन-धान्य, सुख-समृद्धि तथा मनोवांक्षित फल, विद्यार्थियों को
करने से उत्तम विद्या और तंत्र-मंत्र के क्षेत्रवालों को अपनी साधना में तत्काल
सफलता सप्तऋषियों की कृपा से प्राप्त होता है। ऋषि पंचमी व्रत में सप्तऋषि की विधि
विधान से पूजा की जाती है।
ऋषि पंचमी व्रत कथा इस प्रकार से है-
ऋषि पंचमी व्रत कथा १
राजा सुतीश्च बोले-हे पितामह ! ऐसा व्रत
बताइये जिससे समस्त पापों का नाश हो। तब ब्रह्माजी बोले-हे राजन् ! मैं तुम्हें यह
व्रत बताता हूँ जिससे समस्त पाप मिट जाते हैं। वह ऋषि-पचमी का व्रत है,
जिसके करने से नारी जाति के सब पाप दूर हो जाते हैं। इसके लिए मैं
तुमसे एक पुरातन कथा कहता हूँ-
विदर्भ देश में एक उतंक नाम के
सदाचारी ब्राह्मण रहते थे। उनकी पतिव्रता नारी सुशीला से एक पुत्री और एक पुत्र का
जन्म हुआ। पुत्र सुभूषण ने वेदों का सांगोपांग अध्ययन किया । कन्या का समयानुसार
एक सामान्य कुल में विवाह कर दिया, पर
विधि के विधान से वह कन्या विधवा हो गई तो वह अपने सतीत्व की रक्षा को पिता के घर
पर रहने लगी। ब्राह्मण सपरिवार गंगातट पर कुटी बना ब्राह्मण बालकों को विद्याध्ययन
कराने लगे। एक दिन वह कन्या माता-पिता की सेवा करके एक शिलाखण्ड पर शयन कर रही थी ।
रात भर में उसके शरीर में कीड़े पड गये। सुबह जब कुछ शिष्यों ने उस कन्या को अचानक
इस दशा में देखा तो उसकी माता को आवेदन किया, माता पुत्री की
अचानक यह दशा देख नाना प्रकार से विलाप करने लगी और पुत्री को उठाकर ब्राह्मण के
पास लाई। ब्राह्मण भी पुत्री की दशा देख कर अति विस्मय को प्राप्त हुए, तब ब्राह्मणी ने हाथ जोड़कर कहा-हे महाराज! क्या कारण है कि इस पुत्री के
सारे शरीर में कीड़े पड गये तब ब्राह्मण ने ध्यान धरकर देखा तो पता चला कि यह पुत्री
सात जन्म पूर्व ब्राह्मणी थी तो एक दिन रजस्वला होते हुए भी घर के तमाम बर्तन व
भोजन-सामग्री छु ली और ऋषि-पचमी व्रत को भी अनादर से देखा। उसी दोष के कारण इस
पुत्री के शरीर में कीड़े पड़ गये हैं, क्योंकि रजस्वला वाली
स्त्री प्रथम दिन चाण्डालनी के समान, दूसरे दिन ब्रह्महत्या
के समान और तीसरे दिन धोबिन के समान शास्त्र-दृष्टि से मानी जाती है। इस कन्या ने
ऋषि-पचमी व्रत दर्शन अपमान के साथ किये। इससे ब्राह्मण-कुल में जन्म तो हुआ,
पर शरीर में कीड़े पड़ गये हैं। तब सुशीला ने कहा हे महाराज! ऐसे
उत्तम व्रत का आप विधि सहित वर्णन करें, जो सांसारिक प्राणी
इस व्रत से लाभ उठा सकें। ब्राह्मण बोले-हे सुशीले! यह व्रत भादों शुक्ल-पंचमी के
दिन धारण किया जाता है। उस दिन पवित्र नदी में स्नानकर व्रत धारण करे । सायंकाल
सप्तर्षियों का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए भूमि को शुद्ध गोबर से लीपकर उस पर
अष्ट कमलदल बनाकर नीचे लिखे सप्तर्षियों का स्थापन करे । महर्षि, कश्यप, अत्रि, भारद्वाज,
विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि
व वशिष्ठ महर्षियों की स्थापना कर आचमन स्नान, चन्दन,
पुष्प, धूप, दीप,
नैवेद्य आदि से पूजन कर व्रत सफल की कामना करनी चाहिए। इस व्रत को करके उद्यापन करना
चाहिए। चौथे दिन एक बार भोजन करके पंचमी के दिन व्रत आरम्भ करे, सुबह नदी-जलाशय में स्नान करके गोबर से लीपकर सर्वतोभद्र चक्र बनाकर उस पर
कलश स्थापन करे। कलश के कंठ में नया वस्त्र डाल पूजा-सामग्री एकत्र कर अष्टकमलदल
पर सप्त-ऋषियों की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करे। फिर षोडशोपचार पूजन कर रात्रि को
पुराण (श्री ऋषि पंचमी व्रत कथा) का श्रवण करे, फिर सुबह
ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करे । इस व्रत का उद्यापन करने से
नारी सुन्दर रूप को प्राप्त होकर धन एवं पुत्र-पौत्रों से सन्तुष्ट होती है।
ऋषि पंचमी व्रत कथा २
दूसरी कथा भविष्य पुराण में इस
प्रकार आती है कि-
एक बार श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर ने
पूछा-हे प्रभो ! वह कौन-सी पंचमी है जिसका व्रत करने से नारि-जाति मुक्त होकर बहुत
पुण्य को प्राप्त होती है, आप मुझे संक्षेप
में बताइये? श्रीकृष्ण बोले-हे धर्मराज ! भादों सुदी
ऋषिपंचमी का व्रत करने से रजस्वला पापमुक्त हो जाती है, क्योंकि
जब इन्द्र ने वृत्रासुर को मारा था तो ब्रह्महत्या का एक भाग स्त्री के रज में
दूसरा नदी के फैन में, तीसरा पर्वतों में और चौथा भाग अग्नि
की प्रथम ज्वाला में विभक्त किया ।
हे राजन् ! विदर्भ देश में एक
श्येनजित नामक राजा था और उसी राज्य में एक सुमित्र नामक विद्वान् विप्र रहता था,
उसकी पत्नी जयश्री एक दिन किसी कार्य में रहते हुए रजस्वला हो गई और
समयानुसार भोजन की प्रत्येक वस्तु को छूती रही। इस प्रकार समय पाकर दोनों
पति-पत्नी की मृत्यु हो गई, मरने पर ब्राह्मणी को कुतिया का
जन्म मिला और ब्राह्मण को बैल का जन्म, पर इन दोनों को अपने
तप के प्रभाव से पूर्वजन्म की बातों का स्मरण बना रहा और यह दोनों प्राणी अपने
पुत्र के घर में ही पालित हुए। एक दिन पितृपक्ष में ब्राह्मण कुमार ने अपने पिता
की श्राद्ध-तिथि में विधिपूर्वक ब्राह्मण-भोज रखा और पत्नी को स्वादिष्ट पकवान
बनाने की आज्ञा दी, इधर ब्राह्मण पतोहू ने पकवान व खीर तैयार
की तो भाग्यवश एक सर्प ने उस खीरमें जहर उगल दिया, यह कुतिया
देख रही थी, उसने सोचा –अगर ब्राह्मण खायेंगे तो मर जायेंगे।
इससे मेरे पुत्र को ब्रह्महत्या का भारी पाप लगेगा, इससे उस
खीर को कुतिया ने जान-बूझकर झूठी करदी, तो उस बहुने कुतिया
को इतना मारा कि उसकी कमर तोडदी और खीर को फेंककर दुबारा बनाली, फिर श्राद्ध कर बाह्मणों को भोजन कराया। रात को कुतिया ने जाकर अपने पूर्व
पति (बैल) से दिन में होने वाली सारी घटना बताई तो बैल बोला-हे प्रिय! तुम्हारे ही
पाप के संसर्ग से आज मुझे बैल होना पड़ा और आज मेरे लड़के ने दिनभर मुँह बाँधकर
जोता है, अभी तक एक मुट्ठी घास नहीं डाली। यह सारी बातें
छिपा हुआ वह ब्राह्मण पुत्र भी सुनता रहा, जिससे वह बहुत
दुःखी हुआ। दोनों माता-पिता को भोजन देकर दुःखी हो वन को चला गया और ऋषियों से
दण्डवत करके पूछा-हे महाराज! मेरे माता-पिता कुतिया व बैल को योनि में है, वह किस प्रकार योनि से छुटकारा पा सकेंगे ? ऋषियों
ने बताया कि तुम्हारे माता-पिता ने रजोधर्म के दोष से कृतिया व बैल का जन्म पाया
है, इससे तुम घर जाकर विधिपूर्वक ऋषि-पंचमी व्रत को करके
उसका फल अपने माता-पिता को समर्पण करो, जिससे वह इस पशुयोनि
से मुक्त होकर स्वर्ग प्राप्त करें। मुनियों से व्रत का विधान सुन उसने घर जाकर
विधिवत् भाद्रपद शुक्ल ऋषि-पंचमी का व्रत किया जिसके प्रभाव से वह क्रूर योनि से
छूटकर दिव्य-देही पा विमान पर चढ़कर स्वर्ग को गये। हे राजन् ! जो नारी इन व्रत को
विधिपूर्वक श्रद्धा से कर सप्तऋषियो का पूजन करती है वह नारी भयंकर रजस्वला
दोष-मुक्त हो, शीघ्र ही धन, पुत्रादि
सुख सौभाग्य को पाती है। इससे इस व्रत को करना नारी जाति का मुख्य कर्तव्य है,
इससे तन-मन आदि के दोष से मुक्ति होती है। जो फल तीर्थों के करने से
प्राप्त होता है वे इस व्रत से अनायास ही नारी को मिल जाते हैं।
ऋषि पंचमी व्रत पूजन विधि
* प्रातः नदी आदि पर स्नान कर
स्वच्छ वस्त्र पहनें।
* तत्पश्चात घर में ही किसी
पवित्र स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकोर मंडल (चौक पूरें) बनाएं। फिर
उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना करें।
* इसके बाद गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से सप्तर्षियों का पूजन करें।
* तत्पश्चात निम्न मंत्र से
अर्घ्य दें-
'कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो
विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः
स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं
गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥'
* अब व्रत कथा सुनकर आरती कर
प्रसाद वितरित करें।
* तदुपरांत अकृष्ट (बिना बोई हुई)
पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि का आहार लें।
* इस प्रकार लगातार सात वर्ष तक
ऋषि पंचमी के दिन व्रत रख कर आठवें वर्ष में सप्त ऋषियों की सोने की सात
मूर्तियां(श्रद्धानुसार ) बनवाएं।
* तत्पश्चात कलश स्थापन करके
यथाविधि पूजन करें।
* अंत में सात गोदान तथा सात
युग्मक-ब्राह्मण को भोजन करा कर उनका विसर्जन करें।
* सप्त ऋषियों की प्रतिमाओं को ब्राह्मणोंको
दान करना चाहिए।
ऋषि पंचमी व्रत पूजन की आरती
जय जय ऋषिराजा,
प्रभु जय जय ऋषिराजा ।
देव समाजाहृत मुनि,
कृत सुरगया काजा॥ टेक॥
जय दध्यगाथर्वण,
भरद्व गौतम।
जय श्रृंगी,
पराशर अगस्त्य मुनि सत्तम॥१॥
वशिष्ठ,
विश्वामित्र, गिर, अत्री
जय
जय कश्यप भृगुप्रभृति जय,
जय कृप तप संचय ॥२॥
वेद मन्त्र दृष्टावन,
सबका भला किया।
सब जनता को तुमने वैदिक ज्ञान दिया
॥३॥
सब ब्राह्मण जनता के मूल पुरुष
स्वामी।
ऋषि संतति,
हमको ज्ञानी हों सत्पथगामी॥४॥
हम में प्रभु आस्तिकता आप शीघ्र भर
दो।
शिक्षित सारे नर हों,
यह हमको वर दो॥५॥
‘धरणीधर’ कृत
ऋषिजन की आरती जो गावे।
वह नर मुनिजन, कृपया सुख सम्पति पावै॥६॥
ऋषि पंचमी व्रत समाप्त।
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