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कर्मकाण्ड

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श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी

श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी

श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्णजन्मखण्ड उत्तरार्द्ध- अध्याय १२३ और १२६ में श्रीराधा-कृष्ण के मनोहर झाँकी का वर्णन किया गया है।

पार्वती ने कहा- राधे! मैं तुमसे क्या कुशल प्रश्न करूँ; क्योंकि तुम तो स्वयं ही मंगलों की आश्रय स्थान हो। श्रीदामा के शाप से मुक्त हो जाने पर अब तुम्हारी विरह ज्वाला भी शान्त ही हो गयी। जैसे मेरे मन-प्राण तुम में वास करते हैं; वैसे ही तुम्हारे मुझमें लगे रहते हैं। इस प्रकार शक्ति और पुरुष की भाँति हम दोनों में कोई भेद नहीं है। जो मेरे भक्त होकर तुम्हारी और तुम्हारे भक्त होकर मेरी निन्दा करते हैं; वे चंद्रमा और सूर्य के स्थितिकाल पर्यन्त कुम्भीपाक में पचते रहते हैं। जो नराधम राधा और माधव में भेद-भाव करते हैं, उनका वंश नष्ट हो जाता है और वे चिरकाल तक नरक में यातना भोगते हैं। इसके बाद साठ हजार वर्षों तक वे विष्ठा के कीड़े होते हैं, फिर अपन सौ पीढ़ियों सहित सूकर की योनि में उत्पन्न होते हैं। सर्वपूज्य पुत्र गणेश्वर की तुमने ही सर्वप्रथम पूजा की है; मैं वैसा नहीं कर पायी हूँ। यह गणेश जैसे तुम्हारा है, वैसे मेरा भी है। देवि! दुग्ध और उसकी धवलता के समान राधा और माधव में जीवनपर्यन्त कभी विच्छेद नहीं होगा। पुण्यक्षेत्र भारतवर्ष में स्थित इस महातीर्थ सिद्धाश्रम में विघ्न विनाशक गणेश की भलीभाँति पूजा करके तुम बिना किसी विघ्न बाधा के गोविन्द को प्राप्त करो। तुम रसिका-रासेश्वरी हो और श्रीकृष्ण रसिकशिरामणि हैं; अतः तुम नायिका का रसिक नायक के साथ समागम गुणकारी होगा। सती राधे! सौ वर्ष के बाद तुम श्रीदामा के शाप से मुक्त हुई हो; अतः आज मेरे वरदान से तुम श्रीकृष्ण के साथ मिलो! सुन्दरि! मेरी दुर्लभ आज्ञा मानकर तुम अपना उत्तम श्रृंगार करो।

श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी
तब पार्वती की आज्ञा से प्यारी सखियाँ राधा का श्रृंगार करने में जुट गयीं। उन्होंने ईश्वरी राधा को रमणीय रत्नसिंहासन पर बैठाया।

श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी

पुरतो रत्नमाला सा रत्नमालां गले ददौ ।

राधाया दक्षिणे हस्ते क्रीडापद्मं मनोहरम् ।।

फिर तो सखी रत्नमाला ने सामने से आकर राधा के गले में रत्नों की माला पहना दी और उनके दाहिने हाथ में मनोहर क्रीड़ा कमल रख दिया।

ददौ पद्ममुखी पादपद्मयुग्मेऽप्यलक्तकम् ।

प्रददौ सुन्दरी गोपी सिन्दूरं सुन्दरं वरम् ।।

चन्दनेन समयुतं सीमन्ताधः स्थलोज्ज्वलम् ।

सुचारुकबरीं रम्यां चकार मालती सती ।।

मनोहरां मुनीनां च मालतीमाल्यभूषिताम् ।

कस्तूरीकुङ्कुमाक्तं च चारुचन्दनपत्रकम् ।।

पद्ममुखी ने उनके दोनों चरणकमलों को महावर से सुशोभित किया। सुंदरी गोपी ने चन्दनयुक्त सिंदुर की परम रुचिर बेंदी से सीमन्त के अधोभाग-ललाट को सुशोभित किया। सती मालती ने मालती को मालाओं से विभूषित करके ऐसी मनभावनी रमणीय कवरी गूँथकर तैयार की जो मुनियों के भी मन को मोहे लेती थी। फिर कपोलों पर कस्तूरी और कुंकुममिश्रित चंदन से सुंदर पत्रभंगी की रचना की।

स्तनयुग्मे सुकठिने चकार चन्दना सती ।

चारुचम्पकपुप्पाणां मालां गन्धमनोहराम् ।।

मालावती ददौ तस्यौ प्रफुल्लां नवमल्लिकाम् ।

रतीषु रसिका गोपी रत्नभूषणभूषिताम् ।

तां चकारातिरसिकां वरां रतिरसोत्सुकाम् ।।

मालावती ने राधा को सुनंदर चम्पा के पुष्पों की मनोहर गंधवाली माला और खिली हुई नवमल्लिका प्रदान की। रति कार्यों में रस का ज्ञान रखने वाली गोपी ने परम श्रेष्ठ नायिका राधा को रत्नाभरणों से विभूषित करके रति-रस के लिए उत्सुक बनाया।

शरत्पद्मदलाभं च लोजनं कज्जलोज्ज्वलम् ।

कृत्वा ददौ सुललितं वस्त्रं च ललिता सती ।।

महेन्द्रेण प्रदत्तं च पारिजातप्रसूनकम् ।

सुगन्धियुक्तं तस्याश्च पारिजातं करे ददौ ।।

सती ललिता ने उनके शरत्कालीन कमल-दल के समान विशाल नेत्रों को काजल से आँजकर सुहावनी साड़ी पहनने को दी और महेंद्र द्वारा दिए गये पारिजात के सुगन्धित पुष्प को उनके हाथ में दिया।

सुशीलं मधुरोक्तं च भर्तुः पार्श्वे यथोचितम् ।

शिक्षां चकार नीतिं च सुशीला गोपिका सती ।।

स्त्रीणां च षोडशकलां विपत्तौ विस्मृतांतयोः ।

स्मरणं कारयामास राधामाता कलावती ।।

सती गोपिका सुशीला ने पति के पास जाकर किस प्रकार सुशील एवं मधुर यथोचित वचन कहना चाहिए- ऐसी नीतियुक्त शिक्षा दी। राधा की माता कलावती ने विपत्तिकाल में विस्मृत हुई स्त्रियों की षोडश कलाओं का स्मरण कराया।

श्रृङ्गारविषयोक्तं च वचनं च सुधोपमम् ।

स्मरणं कारयामास भगिनी च सुधामुखी ।।

कमलानां चम्पकानां दले चन्दनचर्चिते ।

चकार रतितल्पं च कमला चाऽऽशु कोमलम् ।।

चारुचम्पकपुष्पं च कृष्णार्थं पुटकस्थितम् ।

चकार चन्दनाक्तं च स्वयं च पार्वती सती ।।

बहिन सुधामुखी ने श्रृंगार-विषय संबंधी अमृतोपम वचन की ओर ध्यान आकर्षित किया। कमला ने शीघ्र ही कमल और चम्पा के चंदन चर्चित पत्ते पर कोमल रति-शय्या सजायी। स्वयं सती चम्पावती ने चम्पा के सुंदर पुष्प को चंदन से अनुलिप्त करके श्रीकृष्ण के लिए दोनों में सजाकर रखा।

पुष्पं केलिकदम्बानां स्तबकं च मनोहरम् ।

कदम्बमालां कृष्णार्थ विद्यमानां चकार सा ।।

ताम्बूलं च वरं सम्यं कर्पूरादिसुवासितम् ।

कृष्णप्रिया च कृष्णार्थं चकार वासितं जलम् ।।

फिर उसने श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए केलि-कदम्बों का पुष्प, मनोहर स्तवक (गुलदस्ता) और कदम्ब-पुष्पों की माला तैयार की। कृष्णप्रिया ने श्रीकृष्ण के लिए कपूर आदि से सुवासित श्रेष्ठ एवं रुचिर पान तथा सुगन्धित जल उपस्थित किया।

श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी

ब्रह्म वैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय १२६- श्रीराधा ने भगवान् श्रीकृष्ण को आया देखकर तुरंत ही गोपियों के साथ उठ खड़ी हुईं और परम भक्तिपूर्वक उन परमेश्वर को सादर प्रणाम करके उनकी स्तुति करने लगीं और स्तुति करने के पश्चात् देवी राधिका ने परमात्मा श्रीकृष्ण को अपने आसन पर बैठाया और हर्षपूर्वक उनके चरणों की पूजा की और शोभाशाली श्रीकृष्ण राधा के साथ रत्नसिंहासन पर विराजमान हुए। उस समय गोपियाँ निरन्तर श्वेत चँवर डुलाकर उनकी सेवा कर रही थीं। अब गोपियों ने उन युगल सरकार की सुन्दर श्रृंगार कर रहे हैं मानो श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी प्रस्तुत कर रही हैं-

श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी

चन्दना सा ददौ गात्रे सुगन्धि चन्दनं हरेः ।

सस्मिता रत्नमाला सा रत्नमालां गले ददौ ।। २३ ।।

चंदना ने श्रीहरि के शरीर में सुगन्धित चंदन का अनुलेप किया। मुस्कराती हुई रत्नमाला ने श्रीहरि के गले में रत्नमाला पहनायी।

पद्मैः पद्मार्चिते पादपद्मे पद्मावती सती ।

अर्ध्या ददौ सा सजलं दूर्वा पुष्पं च चन्दनम् ।। २४ ।।

सती पद्मावती ने पद्मा द्वारा कमल-पुष्पों से समर्चित चरणकमल में जल, दूब, पुष्प और चंदनयुक्त अर्घ्य प्रदान किया।

मालतो मालतीमाल्यं चूडायां च हरेर्ददौ ।

चम्पापुष्पस्य पुटकं ददौ चम्पावती सती ।। २५ ।।

मालती ने श्रीहरि की चूड़ा को मालती की माला से सुशोभित किया। सती पार्वती ने चम्पा के पुष्प का पुटक समर्पित किया।

पारिजाता च हरये पारिजातं ददौ मुदा ।

सकर्पूरं च ताम्बूलं वासितं शीतलं जलम् ।। २६ ।।

पारिजाता ने हर्षमग्न हो श्रीहरि को पारिजात-पुष्प, कपूरयुक्त ताम्बूल और सुवासित शीतल जल निवेदित किया।

ददौ कदम्बमाला सा कदम्बमालिकां शुभाम् ।

क्रीडाकमलमम्लानममूल्यं र्तनदर्पणम् ।। २७ ।।

कदम्ब माला ने कदम्ब-पुष्पों की शुभ माला, प्रफुल्लित क्रीड़ा कमल और अमूल्य रत्नदर्पण समर्पित किया।

ददौ हस्ते हरेरेव कमला सा सुकोमला ।

वरुणेन पुरा दत्तं वस्त्रयुग्मं च सुन्दरम् ।। २८ ।।

सुकोमला कमला ने पूर्वकाल में वरुण द्वारा दिए हुए दोनों सुंदर वस्त्रों को श्रीहरि के हाथ में ही रख दिया।

साक्षाद्गोरोचनाभं च सुन्दरी हरये ददौ ।

मधुपात्रं मधुस्तस्मै मधुरं मधुपूर्णकम् ।। २९ ।।

 सुंदरी वधू ने साक्षात श्रीहरि को गोरोचन की सी आभावाले एवं मधुर मधु से परिपूर्ण मधुपात्र दिया।

सुधापूर्गं सुधापात्रं ददौ भक्त्या सुधामुखी ।

चकार पुष्पशय्यां च गोपी चन्दनचर्चिताम् ।। ३० ।।

सुधामुखी ने भक्तिपूर्वक अमृत से लबालब भरा हुआ अमृतपात्र प्रदान किया। किसी दूसरी गोपी ने प्रफुल्लित मालती पुष्पों के मालाजाल से विभूषित एवं चंदनचर्चित पुष्प शय्या तैयार की।

अम्लानमालतीपुष्पमालाजालविभूषिताम् ।

रत्नेन्द्रसारनिर्माणमन्दिरे सुमनोहरे ।। ३१ ।।

वह शय्या एक ऐसे परम मनोहर भवन में सजायी गयी थी, जिसका निर्माण बहुमूल्य रत्नों के सारभाग से हुआ था।

मणीन्द्रमुक्तामाणिक्यहीरहारविभूषिते ।

कस्तूरीकुङ्कुमाक्तेन वायुना सुरभीकृते ।। ३२ ।।

श्रेष्ठ मणि, मोती, माणिक्य और हीरों के हार जिसकी विशेष शोभा बढ़ा रहे थे; कस्तूरी और कुंकुमयुक्त वायु जिसे सुगन्धित बना रही थी।

रत्नप्रदीपशतकैर्ज्वलद्भिश्च सुदीपिते ।

धूपिते सततं धूपैर्नानावस्तुसमन्वितैः ।। ३३ ।।

जलते हुए सैकड़ों रत्नदीपों से जो उद्दीप्त हो रहा था और नाना प्रकार की वस्तुओं से समन्वित धूपों द्वारा जो निरन्तर धूपित रहता था।

कृत्वा शय्यां रतिकरीं ययुर्गोप्यश्च सस्मिताः ।

दृष्ट्वा रहसि तल्पं च सुरम्यं सुमनोहरम् ।। ३४ ।।

माधवो राघया सार्ध विवेश रतिमन्दिरम् ।

नानाप्रकारहास्यं च परिहासं स्मरोचितम् ।। ३५ ।।

वहाँ रतिकरी शय्या का निर्माण करके गोपियाँ हँसती हुई चली गयीं। तब एकान्त में मन को आकर्षित करने वाली उस परम रमणीय शय्या को देखकर राधा-माधव उस पर विराजमान हुए।

द्वयोर्बभूव तल्पे च मदनातुरयोस्तथा ।

माल्यं ददौ च कृष्णाय ताम्बूलं च सुवासितम् ।। ३६ ।।

उस समय सती राधा ने माधव के गले में माला पहनायी, मुख में सुवासित ताम्बूल का बीड़ा दिया।

कस्तूरीकुङ्कुमाक्तं च चन्दनं श्यामवक्षसि ।

चारुचम्पकपुष्पं च चूडायां प्रददौ सती ।। ३७ ।।

फिर श्यामसुंदर के वक्षःस्थल पर कस्तूरी-कुंकुमयुक्त चंदन का अनुलेप किया, उनकी शिखा में चम्पा का सुंदर पुष्प लगाया।

सहस्रदलससंक्तक्रीडापद्मं करे ददौ ।

प्रक्षिप्य मुरलीं हस्तात्प्रददौ रत्नदर्पणम् ।। ३८ ।।

पारिजातस्य कुसुममम्लानं पुरतो ददौ ।। ३९अ ।।।

हाथ में सहस्रदल युक्त क्रीड़ा कमल दिया और उनके हाथ से मुरली छीनकर उसमें रत्नदर्पण पकड़ा दिया तथा उनके आगे पारिजात का खिला हुआ रुचिर पुष्प रख दिया।

इति श्री ब्रह्म वैवर्त महापुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय १२३ व १२६ श्रीराधा-कृष्ण मनोहर झाँकी सम्पूर्ण।।

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