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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीराधाकवचम्
श्रीनारदपञ्चरात्र पञ्चमरात्र
ज्ञानामृतसार में वर्णित इस सर्वरक्षाकर
नाम से विख्यात राधा कवचम् का प्रात:, मध्याह्न
व सांयकाल के समय में पाठ करने से सर्वार्थसिद्धि की प्राप्ति होती है, राजकिय
कार्य, सभा में युद्ध में, शत्रु भय हो और जब प्राणों पर संकट हो इसका पाठ लाभ
देता है । इस कवच को हल्दी, गोरोचन, केसर, हरिचन्दन से भोजपत्र पर लिखकर धारण करने से
अभीष्ट सिद्धि होती है ।
सर्वरक्षाकर श्रीराधाकवचम्
॥ श्रीपार्वत्युवाच ॥
कैलासवासिन् भगवन् भक्तानुग्रह-कारक ।
राधिका-कवचं पुण्यं कथयस्व मम प्रभो ॥ १ ॥
यद्यस्ति करुणा-नाथ त्राहि मां दुःखतो भयात् ।
त्वमेव शरणं नाथ शूल-पाणे पिनाक-धृक् ॥ २ ॥
॥ शिव उवाच ॥
शृणुष्व गिरिजे तुभ्यं कवचं पूर्व-सूचितम् ।
सर्व-रक्षा-करं पुण्यं सर्व-हत्या-हरं परम् ॥ ३ ॥
हरि-भक्ति-प्रदं साक्षाद्भुक्ति-मुक्ति-प्रसाधनम् ।
त्रैलोक्याकर्षणं देवि हरि-सान्निध्य-कारकम् ॥
४ ॥
सर्वत्र जयदं देवि सर्व-शत्रु-भयावहम् ।
सर्वेषां चैव भूतानां मनोवृत्ति-हरं(करं) परम् ॥ ५ ॥
चतुर्धा मुक्ति(सुक्ति)जनकं सदानन्दकरं परम् ।
राजसूयाश्वमेधानां यज्ञानां फलदायकम् ॥ ६ ॥
इदं कवचमज्ञात्वा राधा-मन्त्रं च यो जपेत् ।
स नाप्नोति फलं तस्य विघ्नास्तस्य पदे पदे ॥ ७ ॥
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीराधा कवचस्य श्री महादेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः
राधा देवता, रां
बीजं, रां कीलकं धर्मार्थ काम मोक्षेषु जपे विनियोगः ।।
ऋषिरस्य महादेवोऽनुष्टुप् छन्दश्च कीर्तितम् ।
राधाऽस्य देवता प्रोक्ता रां बीजं कीलकं स्मृतम् ॥ ८ ॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।
॥ श्रीराधा कवचम् मूल-पाठ ॥
श्रीराधा मे शिरः पातु ललाटं राधिका तथा ॥ ९ ॥
श्रीमती नेत्र-युगलं कर्णौ गोपेन्द्र-नन्दिनी ।
हरि-प्रिया नासिकां च भ्रूयुगं शशि-शोभना ॥ १० ॥
ओष्ठं पातु कृपादेवी अधरं गोपिका तथा ।
वृषभानु-सुता दन्तान् चिबुकं गोप-नन्दिनी ॥ ११ ॥
चन्द्रावली पातु गण्डं जिह्वां कृष्णप्रिया तथा ।
कण्ठं पातु हरि-प्राणा हृदयं विजया तथा ॥ १२ ॥
बाहू द्वौ चन्द्र-वदना उदरं सुबलस्वसा ।
कोटि-योगान्विता पातु पादौ सौभद्रिका तथा ॥ १३ ॥
नखांश्चन्द्रमुखी पातु गुल्फौ गोपाल-वल्लभा ।
नखान्(जङ्घे) विधुमुखी देवी गोपी पादतलं तथा ॥ १४ ॥
शुभप्रदा पातु पृष्ठं कुक्षौ श्रीकान्त-वल्लभा ।
जानुदेशं जया पातु हरिणी पातु सर्वतः ॥ १५ ॥
वाक्यं वाणी सदा पातु धनागारं धनेश्वरी ।
पूर्वां दिशं कृष्णरता कृष्णप्राणा च पश्चिमाम् ॥ १६ ॥
उत्तरां हरिता पातु दक्षिणां वृषभानुजा ।
चन्द्रावली नैशमेव दिवा क्ष्वेडितमेखला ॥ १७ ॥
सौभाग्यदा मध्यदिने सायाह्ने कामरूपिणी ।
रौद्री प्रातः पातु मां हि गोपिनी रजनीक्षये ॥ १८ ॥
हेतुदा सङ्गवे पातु केतुमाला दिवार्धके ।
शेषाऽपराह्णसमये शमिता सर्वसन्धिषु ॥ १९ ॥
योगिनी भोगसमये रतौ रतिप्रदा सदा ।
कामेशी कौतुके नित्यं योगे रत्नावली मम ॥ २० ॥
सर्वदा सर्वकार्येषु राधिका कृष्णमानसा ।
इत्येत् कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ॥ २१ ॥
॥ श्रीराधाकवचम् फलश्रुति ॥
सर्वरक्षाकरं नाम महारक्षाकरं परम् ।
प्रातर्मध्याह्नसमये सायाह्ने प्रपठेद्यदि ॥ २२ ॥
सर्वार्थसिद्धिस्तस्य स्याद्यन्मनसि वर्तते ।
राजद्वारे सभायां च सङ्ग्रामे शत्रुसङ्कटे ॥ २३ ॥
प्राणार्थनाशसमये यः पठेत्प्रयतो नरः ।
तस्य सिद्धिर्भवेद्देवि न भयं विद्यते क्वचित् ॥ २४ ॥
आराधिता राधिका च तेन सत्यं न संशयः ।
गङ्गास्नानात् हरेर्नामग्रहणाद्यत् फलं लभेत् ॥ २५ ॥
तत् फलं तस्य भवति यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
हरिद्रारोचनाचन्द्रमण्डितं हरिचन्दनम् ॥ २६ ॥
कृत्वा लिखित्वा भूर्जे च धारयेत् मस्तके भुजे ।
कण्ठे वा देवदेवेशि स हरिर्नात्र संशयः ॥ २७ ॥
कवचस्य प्रसादेन ब्रह्मा सृष्टिं स्थिति हरिः ।
संहारं चाहं नियतं करोमि कुरुते तथा ॥ २८ ॥
वैष्णवाय विशुद्धाय विरागगुणशालिने ।
दद्यात् कवचमव्यग्रमन्यथा नाशमाप्नुयात् ॥ २९ ॥
॥ इति श्रीनारदपञ्चरात्रे
पञ्चमरात्रे ज्ञानामृतसारे राधाकवचं सम्पूर्णम् ॥
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